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पाकिस्तान को स्थिर लोकतंत्र का अनुभव

१३ मार्च २०१३

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी देश के इतिहास में ऐसी पहली पार्टी बन गई है जिसने लगातार पांच साल लोकतांत्रिक ढंग से चुनी सरकार चलाई है. सैन्य शासन के लिए बदनाम पाकिस्तान में पीपीपी का यह कार्यकाल लोकतंत्र को मजबूत बना सकता है.

तस्वीर: dapd

14 अगस्त 1947 को एक देश के रूप में पाकिस्तान का जन्म तो हुआ लेकिन वहां लोकतंत्र कभी जवान नहीं हो सका. 66 साल के इतिहास का ज्यादातर वक्त सैन्य शासन के तले गुजरा है. चार सैन्य तानाशाहों पर तो विवाद जैसी कोई बात ही नहीं है. अन्य मामलों पर बहस हो सकती है, लेकिन इन सबके बीच इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की सरकार कार्यकाल पूरा करने वाली पहली लोकतांत्रिक सरकार है. सरकार का कार्यकाल 16 मार्च 2013 को खत्म होगा.

2008 में पीपीपी नेता यूसुफ रजा गिलानी ने पाकिस्तान के 17वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली. वह पाकिस्तान के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने लगातार पांच बजट सत्र देखे.

पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानीतस्वीर: AP

संघर्ष और सफलता

गिलानी ने जब प्रधानमंत्री पद संभाला तब देश की हालत नाजुक थी. बाहर और भीतर दोनों तरफ संकट था. देश में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली चीजों की कीमत आसमान छू रही थी, बिजली की दिक्कत थी, आम आदमी और अर्थव्यवस्था दोनों को खराब कानून व्यवस्था ने तंग कर रखा था. 2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद खुद पीपीपी अपने भीतर नेतृत्व के संकट से जूझ रही थी. बलूचिस्तान में बलोच नेता नवाब अकबर बुगती की मौत ने अलगाववादी ताकतों को मजबूत कर दिया था.

2010 तक उत्तर पश्चिमी फ्रंटियर का इलाका खैबर पख्तूनख्वा पूरी तरह आतंकवादियों के नियंत्रण में जा चुका था. ऐसे माहौल में सरकार की विश्वसनीयता ऐतिहासिक रूप से नीचे आ चुकी थी. पाकिस्तानी सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियां आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर करीब करीब अपने लोगों के खिलाफ युद्ध छेड़ने के करीब आ चुकी थी.

मुशर्रफ के समय में बर्खास्त किए गए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी समेत कई जजों को बहाल करने की मांग आंदोलन का रूप से चुकी थी. कट्टरपंथियों की वजह से मीडिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा था.

डॉयचे वेले के साथ इंटरव्यू में पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी मानते हैं कि उनकी सरकार ने पांच साल के कार्यकाल में कई उपलब्धियां हासिल की हैं. वह महिलाओं के हितों को मजबूत करने और समाज व राज्यों से जुड़े कुछ मुद्दों को अपनी सरकार की कामयाबी बताते हैं.

गिलानी कहते हैं, "पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि यह पाकिस्तान के 65 साल के इतिहास में अपना कार्यकाल पूरा करने वाली पहली लोकतांत्रिक सरकार है. दुनिया बेसब्री से इस बात का इंतजार कर रही है कि हम अगली सरकार को सत्ता सौंपें और यह बदलाव आराम से और लोकतांत्रिक ढंग से होना चाहिए."

पूर्व प्रधानमंत्री के मुताबिक पीपीपी की सरकार तालिबानी उग्रवाद और संघीय कानून के प्रति अलगाववादी भावना से जूझी. आतंकवाद के खिलाफ युद्ध और इस लड़ाई की वजह से विस्थापित हुए लोगों के पुर्नवास को गिलानी सरकार की कामयाबी मानते हैं. उनके मुताबिक स्वात घाटी में 90 दिन के भीतर ऐसा कर दिखाना सफलता ही कही जाएगी. गिलानी कहते हैं, "हमने कट्टरपंथ और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई छेड़ पूरी दुनिया की शांति और समृद्धि के लिए बड़ा बलिदान किया है."

इमरान को चुनाव से खासी उम्मीदेंतस्वीर: Getty Images

पीपीपी की सफलता

गिलानी से जब यह पूछा गया कि सत्ता में पांच साल बिताने के बाद वह अपनी पार्टी को किस नजर से देखते हैं तो वह कहते हैं कि कई मुश्किलें बरकरार हैं लेकिन हालात पहले से बेहतर हुए हैं. उनके मुताबिक जनता में भी धैर्य की कमी है, लोग सरकार की पहल पूरा होने तक का भी इंतजार नहीं कर रहे हैं, "बेनजीर इनकम सपोर्ट प्रोग्राम के जरिए हमने पाकिस्तान के लोगों को खाद्य सुरक्षा दी. हमने गरीबों को बहुत फायदा पहुंचाया."

पाकिस्तान के और बाहर से पाकिस्तान को देखने वाले विशेषज्ञ दूसरे ढंग से पीपीपी सरकार को देखते हैं. हाइनरिष बोएल फाउंडेशन (एचबीएस) की ब्रिटा पीटरसेन के मुताबिक पीपीपी का झोला मिश्रण से भरा है. उनके मुताबिक सरकार का कार्यकाल पूरा करना पाकिस्तान में लोकतंत्र की बड़ी जीत है. वह मानती हैं कि महिला अधिकार, खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन को लेकर सरकार ने प्रगति की है.

ब्रिटा पीटरसेन आगे कहती हैं, "लेकिन अध्यादेश के इन सब पन्नों के साथ दिक्कत यह है कि ये सब लागू किए जाने का इंतजार कर रहे हैं. और असल में दिक्कत यहीं से शुरू होती है. सुरक्षा की स्थिति खराब हुई है. सांप्रदायिक हिंसा में खासी तेजी आई है."

पीटरसेन के मुताबिक पीपीपी सत्ता में तो रही लेकिन उसकी छवि खराब हुई है, "पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के सर्वे में जितने लोगों से सवाल पूछे गए उनमें से 53 फीसदी ने माना कि पीपीपी पाकिस्तान की सबसे भ्रष्ट पार्टी है. बड़े पैमाने पर लोग इस पार्टी पर भरोसा खो चुके हैं. बुरी आर्थिक दशा और ऊर्जा संकट की बात तो छोड़ ही दीजिए."

पीपीपी की उपलब्धियों और कामयाबी से आगे बढ़कर देखा जाए तो यही सवाल उठता है कि भविष्य क्या लाएगा. गिलानी चुनाव संबंधी कयास लगाने से इनकार करते हैं. एचबीएस के ताजा सर्वे के मुताबिक तमाम कमजोरियों के बावजूद पीपीपी अब भी देश की सबसे लोकप्रिय राजनीतिक पार्टी बनी हुई है. माना जा रहा है कि चुनावों में किसी पार्टी को साफ बहुमत नहीं मिलेगा. पीपीपी सबसे आगे रहेगी लेकिन नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग और इमरान खान की पार्टी तहरीक ए पाकिस्तान को भी फायदा होगा. पाकिस्तान को आगे भी एक मजबूत सरकार की जरूरत है, लेकिन ऐसी त्रिशंकु स्थिति में कमजोर सरकार बनेगी.

रिपोर्ट: अल्ताफउल्ला खान/ओ सिंह

संपादन: महेश झा

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