1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मीडिया का 'दम घोंटती पाकिस्तानी सेना'

२९ जून २०१८

पाकिस्तान में आम चुनावों से पहले मीडिया की आवाज को दबाने की कोशिश हो रही है. पत्रकारों का कहना है कि उन पर बेहद दबाव है और सेना की निगरानी में एक 'खामोश तख्तापलट' हो रहा है.

Zeitung Pakistan Afghanische Flüchtlinge
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb

पाकिस्तान के कई मीडिया संस्थानों का कहना है कि 25 जुलाई को होने वाले आम चुनावों से पहले सेना उनकी कवरेज पर कई तरह की बंदिशें लगा रही है. जो लोग इस दबाव के आगे झुकने से इनकार कर रहे हैं उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. जिन मीडिया हाउसों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, उन्होंने खुद ही सेल्फ सेंसरशिप शुरू कर दी है.

पाकिस्तानी फेडरल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट के अध्यक्ष अफजल बट कहते हैं, "हमने कभी ऐसी सेंसरशिप नहीं देखी जो आजकल थोपी जा रही है." पाकिस्तान दुनिया के उन देशों में शामिल है जिन्हें पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है.

पाकिस्तान के सबसे बड़ी टीवी चैनल जियो टीवी का प्रसारण इस साल कई हफ्तों तक ऑफ एयर रहा. मीडिया रिपोर्टों का कहना है कि सेना से डील हो जाने के बाद ही उसका प्रसारण टीवी स्क्रीनों पर लौट पाया. बताया जाता है कि जियो ने सेना के कहे मुताबिक अपनी कवरेज में बदलाव करने के लिए हामी भरी थी.

ये पार्टियां है सत्ता की दौड़ में

वहीं, पाकिस्तान के सबसे पुराने अखबार डॉन की शिकायत है कि सरकारी एजेंसियां उसके हॉकरों को लगातार परेशान कर रही हैं. डॉन ने मई में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का एक इंटरव्यू छापा था जिसमें उन्होंने कहा था कि मुंबई में 2008 में आतंकवादी हमलों में पाकिस्तानी सेना का हाथ था जिनमें 166 लोग मारे गए थे.

द न्यूज अखबार के संवाददाता वसीम अब्बासी कहते हैं कि पाकिस्तान के दो सबसे ताकतवर मीडिया हाउसों पर इतना दबाव है तो फिर छोटे मीडिया हाउसों के बारे में सोचिए. उनके लिए तो कोई संभावना ही नहीं बचती. इसलिए वे जो कहा जाएगा, वही करेंगे.

पाकिस्तान में एक राजनयिक सूत्र ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, "पाकिस्तान में एक सोची समझी योजना के जरिए मीडिया का मुंह बंद करने की कोशिश हो रही है. यह बहुत ही चिंता की बात है."

पाकिस्तान के लिए यूरोपीय संघ के मुख्य चुनाव पर्यवेक्षक मिषाएल गाहलर ने डॉयचे वेले से खास बातचीत में कहा कि वे पाकिस्तानी मीडिया पर भी नजदीकी नजर रख रहे हैं.

इस पूरे मामले की जड़ असल में पाकिस्तानी सेना और नवाज शरीफ के बीच चल रहा तनाव है. पाकिस्तान के 70 साल के इतिहास में आधे से ज्यादा समय तक सेना ने ही देश पर राज किया है. किसी जमाने में नवाज शरीफ सेना के बहुत करीबी थे, लेकिन अब उनका सेना के साथ छत्तीस का आंकड़ा है.

देखिए नवाज शरीफ ने झेले हैं ये तूफान 

पड़ोसी देश भारत के साथ अच्छे संबंधों की पैरवी करने वाले नवाज शरीफ को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था. भ्रष्टाचार के आरोपों में उन्हें न सिर्फ प्रधानमंत्री पद पर रहने बल्कि चुनाव लड़ने से भी अयोग्य करार दे दिया गया.

नवाज शरीफ लगातार सेना पर देश की राजनीति में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा रहे हैं. पाकिस्तान में सेना पर सवाल उठाना आसान नहीं है, खासकर पड़ोसी भारत और अफगानिस्तान के बारे में उसकी नीति पर बात करना एक टैबू है. इसीलिए डॉन को दिए इंटरव्यू में नवाज शरीफ ने एक तरह से ततैये के छत्ते में हाथ डाला है.

अब्बासी कहते हैं कि पत्रकारों पर दबाव डाला जा रहा है कि वे नवाज शरीफ और उनकी पार्टी पीएमएल (एन) के समर्थन में कोई कवरेज ना करें. 25 जुलाई को होने वाले चुनाव में पीएमएल (एन) के अलावा क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान की पार्टी तहरीक ए इंसाफ और दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी भी मुकाबले में है जिसका नेतृत्व अब उनके बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी कर रहे हैं.

कई लोग चुनावों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठा रहे हैं. कुछ पत्रकार कहते हैं कि सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई एक खामोश तख्तापलट कर रही है. सेना पर आरोप लग रहे हैं कि वह किसी भी तरह पीएमएल (एन) को सत्ता से बाहर देखना चाहती है.

पाकिस्तान के एक थिंकटैंक पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ लेजिस्लेटिव डिवेलपमेंट एंड ट्रांसपेरेंसी का कहना है कि चुनावी प्रक्रिया "पक्षपाती" लग रही है.

एके/एमजे (एएफपी)

पाकिस्तान में मलाला से नफरत क्यों?

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें