1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पाकिस्तान पर पिघलते ग्लेशियरों का खतरा

२० सितम्बर २०१८

गिलगित बल्तिस्तान के इलाके में जुलाई के महीने में जब एक ग्लेशियर झील फटी तो उसका पानी शेरबाज के घर को बहाकर ले गया. और शेरबाज के पास बेबस होकर यह सब देखने के अलावा कोई चारा नहीं था.

Pakistan Drohende Klimakatastrophe
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Qureshi

गिलगित बल्तिस्तान पर पाकिस्तान का नियंत्रण है लेकिन यह जम्मू कश्मीर का ही एक हिस्सा है जिसे लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद रहा है. शेरबाज इसी इलाके के एक गांव बादस्वात में रहते हैं जो इश्कोमान घाटी में पड़ता है. यहीं से बर्फ से ढकी रहने वाली हिंदू कुश पहाड़ियों की श्रृंखला शुरू होती है.

जुलाई के महीने में जब यहां बाढ़ आई तो वह अपने साथ घर, सड़कें, और पुल, सब कुछ बहा कर ले गई. फसलें और जंगल भी बर्बाद हो गए. 30 साल के शेरबाज कहते हैं, "खुदा का शुक्र है कि हम जिंदा हैं, लेकिन जब ग्लेशियर फटा और बाढ़ आई तो जो भी हमारे पास था, वह सब कुछ बहाकर ले गई."

गांव के सामने खड़ा हिमखंड

01:33

This browser does not support the video element.

बादस्वात के लोगों का कहना है कि उनके गांव के पास कई और ग्लेशियर हैं. लेकिन उनकी याद में पहली बार ऐसा हुआ जब कोई ग्लेशयर फटा. अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने समय रहते लोगों को इलाके से निकाल लिया, जिसकी वजह कोई जान नहीं गई.

शेरबाज कहते हैं कि जान तो बच गई लेकिन अब जो हालात हैं, वे बहुत मुश्किल हैं. वह बताते हैं, "हमारे आसपास पहाड़ और कीचड़ वाला पानी है. ऐसा लगता है कि हम लोग जिंदगी और मौत के बीच रह रहे हैं."

ध्रुवीय क्षेत्र के बाहर पाकिस्तान इकलौता ऐसा देश है जिसके पास सबसे ज्यादा ग्लेशियर हैं. पाकिस्तान के मौसम विज्ञान विभाग का कहना है कि काराकोरम, हिमालय और हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला में 7,200 से ज्यादा ग्लेशियर हैं.

इन्हीं ग्लेशियरों से सिंधु और उसकी सहायक नदियों में पानी जाती है जो पाकिस्तान के लिए पानी की जीवनरेखा हैं. लेकिन बीते 50 सालों के दौरान जमा की गई जानकारी बताती है कि बढ़ते तापमान की वजह से लगभग 120 ग्लेशियर के पिघलने के संकेत मिलते हैं.

जब ग्लेशियर सिमटते हैं तो वे अपने पीछे झील छोड़ जाते हैं. मिट्टी और चट्टानों से बने आइसडैम से इन झीलों को सहारा मिलता है. लेकिन जब कभी ये डैम फटते हैं तो भारी मात्रा में पानी गांवों का रुख करने लगता है. 

बादस्वात गांव में ही रहने वाले शकूर बेग कहते हैं, "पहले के मुकाबले ग्लेलियर ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं, इसलिए हमें ज्यादा खतरा है. ऐसा लगता है कि हम लगातार प्राकृतिक आपदा के साए में जी रहे हैं." जुलाई में आई बाढ़ में बेग ने अपना घर, फसल और खेत सब कुछ गंवा दिया.

बेग भी इस समय अपने गांव के लगभग एक हजार लोगों के साथ अस्थाई शिविरों में रह रहे हैं. बेहद मुश्किल परिस्थितियों और दुर्गम रास्तों की वजह से इन लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाना भी कई बार मुश्किल होता है.

पाकिस्तानी मौसम विज्ञान विभाग के प्रमुख गुलाम रसूल कहते हैं कि भविष्य में भी इस तरह की आपदाओं के लिए तैयार रहना होगा. उनका कहना है, "इन इलाकों में ग्लेशियर फटने से होने वाली आपदाएं यहीं नहीं रुकेंगी. भविष्य में भी ऐसा होता रहेगा क्योंकि इस इलाके में बहुत से ग्लेशियरों के फटने का जोखिम है."

रसूल कहते हैं कि जंगलों की कटाई और जलवायु परिवर्तन से इस इलाके में तापमान बढ़ रहा है और उसी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. वह बताते हैं कि पिछले 80 साल के दौरान गिलगित बल्तिस्तान इलाके के तापमान में 1.4 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हुआ है जबकि सिंध, पंजाब और खैबर पख्तून ख्वाह जैसे देश के दूसरे इलाकों के तापमान में 0.6 डिग्री की वृद्धि देखी गई है.

स्थानीय अधिकारी कहते हैं कि फिर से जंगल तैयार करना उनकी प्राथमिकता है लेकिन इसमें काफी समय लगेगा. स्थानीय सरकार के प्रवक्ता फैजुल्लाह फराक कहते हैं, "प्रांतीय सरकार ने पहले ही जंगल उगाने की मुहिम शुरू कर दी है, ताकि पहाड़ों में बढ़ते तापमान को नियंत्रित कर सकें." फराक बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि विकास कार्यक्रम की मदद से एक ऐसा सिस्टम तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि जरूरत पड़ने पर आसपास के लोगों को भी समय रहते सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा सके.

एके/ओएसजे (थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें