गिलगित बल्तिस्तान के इलाके में जुलाई के महीने में जब एक ग्लेशियर झील फटी तो उसका पानी शेरबाज के घर को बहाकर ले गया. और शेरबाज के पास बेबस होकर यह सब देखने के अलावा कोई चारा नहीं था.
विज्ञापन
गिलगित बल्तिस्तान पर पाकिस्तान का नियंत्रण है लेकिन यह जम्मू कश्मीर का ही एक हिस्सा है जिसे लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद रहा है. शेरबाज इसी इलाके के एक गांव बादस्वात में रहते हैं जो इश्कोमान घाटी में पड़ता है. यहीं से बर्फ से ढकी रहने वाली हिंदू कुश पहाड़ियों की श्रृंखला शुरू होती है.
जुलाई के महीने में जब यहां बाढ़ आई तो वह अपने साथ घर, सड़कें, और पुल, सब कुछ बहा कर ले गई. फसलें और जंगल भी बर्बाद हो गए. 30 साल के शेरबाज कहते हैं, "खुदा का शुक्र है कि हम जिंदा हैं, लेकिन जब ग्लेशियर फटा और बाढ़ आई तो जो भी हमारे पास था, वह सब कुछ बहाकर ले गई."
गांव के सामने खड़ा हिमखंड
01:33
बादस्वात के लोगों का कहना है कि उनके गांव के पास कई और ग्लेशियर हैं. लेकिन उनकी याद में पहली बार ऐसा हुआ जब कोई ग्लेशयर फटा. अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने समय रहते लोगों को इलाके से निकाल लिया, जिसकी वजह कोई जान नहीं गई.
शेरबाज कहते हैं कि जान तो बच गई लेकिन अब जो हालात हैं, वे बहुत मुश्किल हैं. वह बताते हैं, "हमारे आसपास पहाड़ और कीचड़ वाला पानी है. ऐसा लगता है कि हम लोग जिंदगी और मौत के बीच रह रहे हैं."
ध्रुवीय क्षेत्र के बाहर पाकिस्तान इकलौता ऐसा देश है जिसके पास सबसे ज्यादा ग्लेशियर हैं. पाकिस्तान के मौसम विज्ञान विभाग का कहना है कि काराकोरम, हिमालय और हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला में 7,200 से ज्यादा ग्लेशियर हैं.
इन्हीं ग्लेशियरों से सिंधु और उसकी सहायक नदियों में पानी जाती है जो पाकिस्तान के लिए पानी की जीवनरेखा हैं. लेकिन बीते 50 सालों के दौरान जमा की गई जानकारी बताती है कि बढ़ते तापमान की वजह से लगभग 120 ग्लेशियर के पिघलने के संकेत मिलते हैं.
आइस मैन ओएत्सी के 25 साल
दुनिया का सबसे मशहूर ग्लेशियर ममी 25 साल पहले खोजा गया था. इटली के साउथ तिरोल के रिसर्चर्स बता रहे हैं 5,250 साल पुराने ओएत्सी से जुड़ी कई खास बातें, देखिए.
आज ओएत्सी को इटली के साउथ तिरोल म्यूजियम ऑफ आर्कियोलॉजी में रखा गया है. लेकिन काफी लंबे समय तक इस पर विवाद रहा कि उसे किसी देश में रखा जाना चाहिए. ‘ओएत्सी द आइसमैन’ के नाम से मशहूर ये ममी 19 सितंबर 1991 को दो जर्मन पर्यटकों को मिली. इस पर ऑस्ट्रिया और इटली दोनों ने दावा किया. ठीक से माप लेने पर पता चला कि ममी इटली की सीमा में करीब 303 फीट की गहराई में दबा मिली थी.
तस्वीर: AP
पहचान कैसे हुई
पहले पहल तो किसी को नहीं लगा कि यह इतनी बड़ी खोज है. बवेरिया का एक युगल हाइकिंग पर गया तो और इस जमे हुए मानव शरीर को उसने पहले वहां गए किसी पर्यटक का समझा. किसी ने उसे अपना रिश्तेदार बताया तो किसी ने बाइबिल में वर्णित बहुत बड़ी बाढ़ की चपेट में आया व्यक्ति. रिसर्चर्स ने जब उसकी सही उम्र पता लगाई तो हैरान रह गए.
तस्वीर: dapd
टैटू वाला ओएत्सी
ओएत्सी के शरीर पर 61 टैटू गुदे हुए मिले. ये टैटू आजकल के जैसे कोई खूबसूरत डिजाइन या बच्चों के नाम वाले नहीं बल्कि कई रेखाएं और क्रॉस थे. पाषाण काल के टैटू कलाकारों ने ओएत्सी की त्वचा को काट कर उसमें बनी जगह में कोयला भर दिया था, जिससे ये टैटू बने. अंत में ओएत्सी की मौत का राज भी खुला कि वह पीछे से अपने कंधे में तीर लगने से मारा गया था.
उसके जमे हुए शरीर में पेट की जांच से यह भी पता चला कि उसने आखिरी बार क्या भोजन किया था. रिसर्चर्स ने बताया कि उसका आखिरी भोजन काफी भारी भरकम और तैलीय था. ओएत्सी ने बाकी चीजों के अलावा पाषाण काल में पाए जाने वाले खास तरह के अनाज और बकरी के मीट का सेवन किया था.
ओएत्सी के शरीर में आजकल प्रचलित बीमारियों जैसे कई लक्षण पाए गए. उसके दांतों में कैविटी थी, बैक्टीरिया से होने वाली लाइम बीमारी के सबूत, शरीर में कीड़े लगे थे और फैफड़े ऐसे जैसे धूम्रपान करने वालों के होते हैं. ओएत्सी को लैक्टोज से एलर्जी थी और पेट में हेलिकोबैक्टर का संक्रमण था. अगर उसे तीर नहीं लगा होता तो भी वह अपनी ऐसी शारीरिक अवस्था के कारण ज्यादा नहीं जी पाता.
तस्वीर: picture alliance/dpa
उसके जैसे कपड़े
2015 में "ओएत्सी वॉकर्स" ने पश्चिमी जर्मनी में हाइकिंग की और पाषाण काल की चीजों की प्रदर्शनी का प्रचार किया. उन्होंने भी वैसे ही कपड़े पहने जैसे ओएत्सी के शरीर पर मिले थे. उनके सिर पर भूरे भालू के फर से बनी हैट थी, बकरी के चमड़े से बनी पैंट और बकरी और भेड़ की त्वचा से मिलाकर बनाया गया कोट था.
तस्वीर: DW/C. Bleiker
ओएत्सी की नकल
आइस मैन की ममी बेहद मूल्यवान है. ज्यादा से ज्यादा लोग इसके बारे में जान समझ सकें और ममी को नुकसान भी ना पहुंचे, इसके लिए अप्रैल 2016 में उसके शरीर की नकल तैयार की गई. थ्री डी प्रिंटर की मदद से बोजेन के रिसर्चर्स ने पेड़ों से निकलने वाले रेजिन से एक दूसरा ओएत्सी बना दिया. फिर पेलियो आर्टिस्ट से पेंट करवा कर अंतिम रूप देने के बाद इसे न्यूयॉर्क भेज दिया गया.
जब ग्लेशियर सिमटते हैं तो वे अपने पीछे झील छोड़ जाते हैं. मिट्टी और चट्टानों से बने आइसडैम से इन झीलों को सहारा मिलता है. लेकिन जब कभी ये डैम फटते हैं तो भारी मात्रा में पानी गांवों का रुख करने लगता है.
बादस्वात गांव में ही रहने वाले शकूर बेग कहते हैं, "पहले के मुकाबले ग्लेलियर ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं, इसलिए हमें ज्यादा खतरा है. ऐसा लगता है कि हम लगातार प्राकृतिक आपदा के साए में जी रहे हैं." जुलाई में आई बाढ़ में बेग ने अपना घर, फसल और खेत सब कुछ गंवा दिया.
बेग भी इस समय अपने गांव के लगभग एक हजार लोगों के साथ अस्थाई शिविरों में रह रहे हैं. बेहद मुश्किल परिस्थितियों और दुर्गम रास्तों की वजह से इन लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाना भी कई बार मुश्किल होता है.
विंटर स्पोर्ट्स के लिए बेहतरीन 10 जर्मन ठिकाने
एल्पाइन ग्लेशियरों से लेकर कम ऊंचाई वाली पर्वत श्रृंखलाओं तक, जर्मनी में विंटर स्पोर्ट्स के ठिकानों की लंबी चौड़ी फेहरिस्त है. अगर आपको भी रोमांच और खतरों से भरे बर्फीले खेलों का शौक है, तो यहां देखें टॉप 10 ठिकाने.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/U. Deck
जर्मनी की सबसे ऊंची चोटी
करीब 2,962 मीटर ऊंची पर्वत चोटी सूगश्पिट्से जर्मनी की सबसे ऊंची जगह है. इस सबसे ऊंचे पहाड़ पर ग्लेशियर स्की एरीना बना है जहां दुनिया भर से पेशेवर स्कीयर्स, पर्यटक और स्नोबोर्डिंग करने वाले पहुंचते हैं. कहीं थोड़े हल्के तो कहीं बेहद कठिन दूरी को मिलाकर खेलों के लिए यहां लगभग 20 किलोमीटर लंबा ट्रैक मिल जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K.-J. Hildenbrand
विश्वप्रसिद्ध ढलान
बीते 100 सालों से स्कीइंग के शौकीन बवेरिया की वेटरश्टाइन पर्वत श्रृंखला की क्रॉएत्सेक पहाड़ी (1,651 मीटर) की ढलान से फिसलते आए हैं. यहां 1936 के ओलंपिक खेल आयोजित हुए थे. 3,300 मीटर की इस ढलान से फिसल कर नीचे पहुंचने में टॉप एथलीट्स को 2 मिनट से भी कम समय लगता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K.-J. Hildenbrand
कोहरे की सींग
अलगेओ आल्प्स में स्की करने वालों को 2,000 मीटर से भी ऊंचे एरीना मिल जाते हैं. 2,224 मीटर ऊंची पहाड़ी नेबेलहोर्न, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है कोहरे की सींग, उस पर असल में कोहरा छाया दिखता है. जब कोहरा छंटता है तो डोलोमाइट्स से लेकर मौं ब्लां तक एल्पाइन पहाड़ियों की पूरी श्रृंखला दिखती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Puchner
वालबेर्ग पहाड़
टोबोगन की सवारी करना चाहें तो बवेरिया में ही आपको इसके लिए कई रूट मिलेंगे. वालबेर्ग पहाड़ की चोटी (1,722 मीटर) से घाटी तक करीब 6.5 किलोमीटर लंबे प्राकृतिक ट्रैक पर की जा सकती है स्लेजिंग.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Barth
ग्रेट आर्बर जंगलों की शांति
करीब 1,455 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बवेरिया के ग्रेट आर्बर जंगलों में हाइकिंग की बात ही कुछ और है. यहां हाइकर्स अपनी स्पीड पर ध्यान देने के बजाए आसपास के माहौल में खो जाना पसंद करते हैं. जंगल की शांति में सिर्फ बर्फ में धंसते बूटों की आवाज ही सुनाई पड़ती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Weigel
क्रॉस-कंट्री स्कीइंग के लिए
क्रॉस-कंट्री स्कीइंग करने वालों को ब्लैक फॉरेस्ट एरीना में सोनाख-बेलचेन के बीच की 100 किलोमीटर से भी ज्यादा दूरी तय करने में दो दिन लग जाते हैं. 1,414 मीटर ऊंची बेलषेन पहाड़ी पर्वतश्रृंखला के दक्षिण में स्थित है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Seeger
विंटर स्पोर्ट्स का लोकप्रिय केंद्र
साउअरलांड प्रांत में विंटरबेर्ग के पास स्थित है 842 मीटर ऊंचा बेहद लोकप्रिय विंटर स्पोर्ट्स का केंद्र काह्लर आस्टेन. खासतौर पर उत्तरी जर्मन और डच लोगों का यह पसंदीदा ठिकाना है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Berg
सबसे बड़ा स्की एरीना
लोअर सैक्सनी प्रांत के हार्त्स रेंज में स्थित 971 मीटर ऊंची वुर्मबेर्ग पहाड़ी में उत्तरी जर्मनी का सबसे बड़ा स्की एरीना है. ढलान का हिस्सा केवल 400 मीटर ऊंचा है लेकिन एक्सपर्ट स्की एथलीट्स के लिए यहां स्नो मशीनों का भी इंतजाम है. स्नो मशीनों की मदद से ढलान पर नकली बर्फ भी डाली जा सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Pfoertner
सबसे ऊंचा पहाड़
फिष्टेलबेर्ग पहाड़ 1,214 मीटर की ऊंचाई के साथ पूर्वी जर्मनी में स्थित सबसे ऊंचा पहाड़ है. यहां आप जर्मनी की सबसे पुरानी केबल कार में बैठ सकते हैं. 91 साल से चल रहे टी-बार लिफ्ट और चेयर लिफ्ट में बैठकर पहाड़ की चोटी तक जाया जा सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Woitas
जब ठंड सब जमा दे
जब खूब ठंड पड़े और कम ऊंची जगहों पर भी हर ओर बर्फ जमी हो तो देर किस बात की. शौकीन लोग अपने स्कीइंग के गियर और बाकी चीजें लेकर निकल पड़ते हैं. तस्वीर में देख रहे हैं एल्बे नदी पर स्थित मोरित्सबुर्ग पेलेस के पास से गुजरते हुए स्कीयर्स.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Kahnert
10 तस्वीरें1 | 10
पाकिस्तानी मौसम विज्ञान विभाग के प्रमुख गुलाम रसूल कहते हैं कि भविष्य में भी इस तरह की आपदाओं के लिए तैयार रहना होगा. उनका कहना है, "इन इलाकों में ग्लेशियर फटने से होने वाली आपदाएं यहीं नहीं रुकेंगी. भविष्य में भी ऐसा होता रहेगा क्योंकि इस इलाके में बहुत से ग्लेशियरों के फटने का जोखिम है."
रसूल कहते हैं कि जंगलों की कटाई और जलवायु परिवर्तन से इस इलाके में तापमान बढ़ रहा है और उसी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. वह बताते हैं कि पिछले 80 साल के दौरान गिलगित बल्तिस्तान इलाके के तापमान में 1.4 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हुआ है जबकि सिंध, पंजाब और खैबर पख्तून ख्वाह जैसे देश के दूसरे इलाकों के तापमान में 0.6 डिग्री की वृद्धि देखी गई है.
स्थानीय अधिकारी कहते हैं कि फिर से जंगल तैयार करना उनकी प्राथमिकता है लेकिन इसमें काफी समय लगेगा. स्थानीय सरकार के प्रवक्ता फैजुल्लाह फराक कहते हैं, "प्रांतीय सरकार ने पहले ही जंगल उगाने की मुहिम शुरू कर दी है, ताकि पहाड़ों में बढ़ते तापमान को नियंत्रित कर सकें." फराक बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि विकास कार्यक्रम की मदद से एक ऐसा सिस्टम तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि जरूरत पड़ने पर आसपास के लोगों को भी समय रहते सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा सके.
एके/ओएसजे (थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन)
आने वाले खतरे की निशानी है यह अंधेरा
रात भर चकमने वाले कुछ स्मारक अलग अलग देशों की शान हैं. लेकिन साल में एक दिन ऐसा आता है जब यह रोशनी गुम कर दी जाती है और अंधेरा उन्हें घेर लेता है. इसके पीछे बड़ा गहरा संदेश है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Cacace
नई दिल्ली
द्वितीय विश्वयुद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया इंडिया गेट 24 मार्च की रात वीरान सा हो गया. अर्थ ऑवर के मौके पर 190 देशों के 7,000 शहरों में इसी अंदाज में पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया.
तस्वीर: Reuters/S. Khandelwal
सिडनी
11वें अर्थ ऑवर के मौके पर सिडनी का मशहूर ओपरा हाउस और हार्बर ब्रिज भी गुम सा हो गया. आम तौर पर पानी के किनारे कमल की तरह दिखने वाला ओपरा हाउस इस दौरान जलवायु परिवर्तन के खतरे के प्रति आगाह कर रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Parks
हांग कांग
घने अंधेरे में हांग कांग का विक्टोरिया हार्बर. 2018 के अर्थ ऑवर की थीम जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन का असर थी. जलवायु परिवर्तन की वजह से कई पौधे और जीव जन्तु खत्म हो रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Fong
कुआलालम्पुर
विश्व की सबसे ऊंची इमारतों में शुमार कुलालालम्पुर के पेट्रोनस टावर ने भी इस दौरान खुद को छुपा लिया. 452 मीटर ऊंची यह इमारत लगातर बढ़ते तापमान के प्रति चेतावनी दे रही थी.
तस्वीर: Reuters/Stringer
मॉस्को
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर या वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) द्वारा आयोजित किए जाने वाले अर्थ ऑवर के दौरान रूस की राजधानी मॉस्को का नजारा.
तस्वीर: Imago/TASS/A. Geodakyan
एथेंस
पृथ्वी पर सिकंदर के ग्रीक साम्राज्य के अंश आज भी मौजूद हैं और रोमनों के भी. लेकिन तब से अब तक समय बहुत बदल चुका है और पृथ्वी की सेहत खराब ही हुई है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Tzortzinis
बर्लिन
जर्मन राजधानी की पहचान कहे जाने वाले ब्रांडेनबुर्ग गेट ने भी पर्यावरण की खातिर अपना रोशनी भरा मेकअप उतार दिया. इस दौरान बर्लिन का सबसे ऊंचा ढांचा एलेक्स टीवी टावर भी नहीं दिखाई पड़ा.