पाकिस्तान में एकजुट हुआ विपक्ष, निशाने पर इमरान खान और सेना
२१ सितम्बर २०२०
पाकिस्तान में विपक्षी पार्टियों ने मिलकर एक गठबंधन बनाया है और अगले महीने से इमरान खान सरकार के खिलाफ बड़ी रैलियों और प्रदर्शन की तैयारी हो रही है. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने फिर पाकिस्तानी सेना को निशाना बनाया है.
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रविवार को कई बड़ी विपक्षी पार्टियों ने राजधानी इस्लामाबाद में दिन भर बैठक की और प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अगले महीने से बड़े विरोध प्रदर्शनों की रूपरेखा तैयार की. उन्होंने इमरान खान का इस्तीफा मांगा है और इसी मकसद से देशव्यापी आंदोलन चलाने की घोषणा की. विपक्ष के इस नए गठबंधन को पाकिस्तान डेमोक्रैटिक मूवमेंट (पीडीएम) का नाम दिया गया है.
विपक्षी पार्टियां दरअसल पाकिस्तान की राजनीति में सेना के हस्तक्षेप का विरोध कर रही हैं और जवाबदेही का एक नया कानून बनाने की मांग कर रही हैं. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो जरदारी ने ट्वीट कर कहा कि पीडीएम "लोकतांत्रिक पाकिस्तान की दिशा में एक अहम कदम" है.
वहीं पीडीएम में शामिल धार्मिक पार्टी जमीयत उलेमाए इस्लाम (एफ) के मुखिया मौलाना फजलुर्रहमान ने कहा, "हमारी मांग है कि प्रधानमंत्री इमरान खान तुरंत इस्तीफा दें." इस बीच, विपक्षी सांसदों ने भी इस्तीफा देने की धमकी दी है ताकि देश में नए सिरे से चुनावों के लिए दबाव डाला जा सके.
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पाकिस्तान बनने से अब तक की पूरी कहानी
पाकिस्तान का 70 साल का इतिहास उथल पुथल से भरा है. एक ऐसा देश जो ना सिर्फ पाकिस्तानी सेना के हाथों की कठपुतली रहा है, बल्कि राजनेताओं के सियासी दाव पेंच भी उसका इम्तिहान लेते रहे हैं. जानिए पाकिस्तान में कब क्या हुआ..
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1947
अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना देश के गवर्नर जनरल बने जबकि लियाकत अली खान को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. लेकिन इसके एक साल बाद ही जिन्नाह का निधन हो गया जो टीबी की बीमारी से पीड़ित थे.
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1951
प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की रावलपिंडी में हत्या कर दी गई. कंपनी बाग में वह एक सभा में मौजूद थे कि उन पर दो गोलियां दागी गईं. पुलिस ने मौके पर ही हमलावर को ढेर कर दिया. लियाकत अली को झटपट अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. उनके बाद बंगाली मूल के ख्वाजा नजीमुद्दीन पाकिस्तान के दूसरे प्रधानमंत्री बने.
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1958
पाकिस्तान को 1956 में पहला संविधान मिला. लेकिन सियासी खींचतान के बीच 1958 में पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति इसकंदर मिर्जा ने संविधान को निलंबित कर मार्शल लॉ लगा दिया. फिर कुछ दिनों बाद ही सेना प्रमुख जनरल अयूब खान ने मिर्जा को हटाया और खुद देश के राष्ट्रपति बन बैठे. पाकिस्तान में पहली बार सत्ता सेना के हाथ में आई.
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1965
पाकिस्तान में अमेरिका जैसी राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू करने वाले अयूब खान ने 1965 में चुनाव कराने का फैसला किया. वह खुद पाकिस्तान मुस्लिम लीग के उम्मीदवार बने जबकि उनके सामने विपक्ष ने जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना को उतारा. फातिमा जिन्ना को भरपूर वोट मिले लेकिन अयूब खान इलेक्ट्रोल कॉलेज के जरिए चुनाव जीत गए.
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1969
फातिमा जिन्ना के खिलाफ विवादास्पद जीत और भारत के साथ 1965 में हुई जंग के नतीजों से अयूब खान की छवि को बहुत नुकसान हुआ. जबरदस्त विरोध प्रदर्शनों के बीच उन्होंने राष्ट्रपति पद छोड़ दिया और सत्ता अपने आर्मी चीफ जनरल याहया खान को सौंप दी. देश में फिर मार्शल लॉ लगा और सभी असेंबलियां भंग कर दी गईं.
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1970
पाकिस्तान में आम चुनाव कराए गए. पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के नेता शेख मुजीबउर रहमान की पार्टी आवामी लीग को जीत मिली. नेशनल असेंबली की कुल 300 सीटों में से आवामी लीग को 160 सीटें मिली. 81 सीटों के साथ जुल्फिकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी दूसरे नंबर पर रही. लेकिन आवामी लीग की जीत को स्वीकार नहीं किया गया.
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1971
चुनाव नतीजों को लेकर छिड़े विवाद ने एक युद्ध की जमीन तैयार की. इसमें भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की मदद की और 1971 में बांग्लादेश के नाम से भारतीय उपमहाद्वीप में एक नए देश का उदय हुआ. बुनियादी तौर पर भारत का विभाजन धर्म के नाम पर हुआ. लेकिन एक धर्म होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान एक साथ नहीं रह पाए.
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1972
पाकिस्तान की टूट के लिए याहया खान के शासन को जिम्मेदार माना गया, जिसके कारण उनका सत्ता में रहना मुश्किल होने लगा. ऐसे में, उन्होंने देश की सत्ता जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंप दी. देश में लगे मार्शल लॉ को हटाया गया और जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने. 1972 में ही भुट्टो ने पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम शुरू किया.
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1973
पाकिस्तान में फिर एक नया संविधान लागू हुआ जिसके तहत पाकिस्तान को एक संसदीय लोकतंत्र बनाया गया, जिसमें प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख हो. इस तरह भुट्टो राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री पद पर आ गए. भुट्टो ने 1976 में जनरल जिया उल हक को अपना चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया, जो आगे चल कर उनके लिए मुसीबत बन गए.
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1977
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए. भुट्टो की पार्टी को जबरदस्त जीत मिली. लेकिन विपक्ष ने चुनावों में धांधली के आरोप लगाए और देश में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया. मौके का फायदा उठाते हुए जिया उल हक ने भुट्टो का तख्तापलट किया और संविधान को निलंबित कर देश में फिर से मार्शल लॉ लगा दिया.
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1978
जिया उल हक ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. उन्होंने सेना प्रमुख का पद भी अपने ही पास रखा. भुट्टो को जिया की "हत्या के साजिश" के आरोप में दोषी करार देकर फांसी पर चढ़ा दिया गया. इसी साल जिया उल हक देश के इस्लामीकरण की अपनी नीति के तहत विवादित हूदूद ऑर्डिनेंस लाए, जिसमें कुरान के मुताबिक सजाएं देने का प्रावधान किया गया.
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1985
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए, लेकिन पार्टी के आधार पर नहीं. मार्शल लॉ हटाया गया और नई नेशनल असेंबली ने बीते आठ साल के जिया के कामों पर मुहर लगाई और उन्हें राष्ट्रपति चुना गया. मोहम्मद खान जुनेजो प्रधानमंत्री बनाए गए. इससे पहले 1984 में जिया उल हक ने अपनी इस्लामीकरण की नीति पर एक जनमत संग्रह भी कराया जिसमें 95 समर्थन का दावा किया गया.
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1988
बढ़ते मतभेदों के बीच जिया उल हक ने संसद को भंग कर दिया और जुनेजो की सरकार को भी बर्खास्त कर दिया. 90 दिनों के भीतर उन्होंने देश में नए आम चुनाव कराने का वादा किया. लेकिन 17 अगस्त 1988 को वह अपने 31 अन्य साथियों के साथ एक विमान हादसे में मारे गए. 1978 से लेकर 1988 तक जिया उल हक ने पाकिस्तान पर एक छत्र राज किया.
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1990
भ्रष्टाचार के आरोपों में बेनजीर को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी. राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने संसद को भंग कर भुट्टो सरकार को बर्खास्त कर दिया. चुनाव हुए और जिया के दौर में सियासत का ककहरा सीखने वाले नवाज शरीफ देश के प्रधानमंत्री चुने गए. इसके साल भर बाद पाकिस्तान की संसद ने शरिया बिल को मंजूर किया और इस्लामिक कानून पाकिस्तान की न्याय प्रणाली का हिस्सा बने.
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1993
राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने नवाज शरीफ सरकार को भी भ्रष्टाचार और नकारेपन के आरोपों में चलता कर दिया. इसी साल खुद उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया. देश में फिर चुनाव हुए जिनमें जीत दर्ज कर बेनजीर भुट्टो दूसरी बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के एक सदस्य फारूक लेघारी को देश का राष्ट्रपति चुना गया.
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1996
राष्ट्रपति लेघारी ने नेशनल असेंबली को भंग कर बेनजीर सरकार को बर्खास्त कर दिया जो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी थी. इस तरह, दस साल के भीतर देश चौथी बार आम चुनाव की दहलीज पर खड़ा था. 1997 के चुनाव में नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) को जबरदस्त जीत मिली और वह दूसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने.
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1998
पाकिस्तान ने बलूचिस्तान प्रांत के चघाई की पहाड़ियों में परमाणु परीक्षण किया. इससे चंद दिन पहले भारत ने पोखरण 2 परमाणु परीक्षण किया था. परमाणु परीक्षण के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. लेकिन इससे भारतीय उपमहाद्वीप में परमाणु हथियारों की होड़ को रोका नहीं जा सका.
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1999
कारगिल युद्ध के बाद नवाज शरीफ सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ की जगह ख्वाजा जियाउद्दीन अब्बासी को सेना प्रमुख बनाना चाहते थे. लेकिन जैसे ही इसका पता मुशर्रफ को लगा तो उन्होंने नवाज शरीफ का ही तख्तापलट कर दिया और उन्हें नजरबंद कर लिया. इस तरह पाकिस्तान की बागडोर चौथी बार एक सैन्य शासक के हाथ में आई.
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2000
सुप्रीम कोर्ट ने मुशर्रफ के तख्तापलट को उचित ठहराया और तीन साल के लिए उन्हें सारे अधिकार दे दिए. इसी साल नवाज शरीफ और उनका परिवार निर्वासन में सऊदी अरब चले गए. 2001 में मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए और सेना प्रमुख का पद भी उन्होंने अपने पास ही रखा.
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2002
पाकिस्तान में फिर से आम चुनाव हुए और ज्यादातर सीटें पीएमएल (क्यू) ने जीती. इस पार्टी को मुशर्रफ ने ही बनाया था जिसमें उनके वफादारों को अहम पद मिले. जफरउल्लाह खान जमाली (फोटो में सबसे दाएं) पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए. लेकिन वह दो साल ही पद पर रह पाए. 2004 में उनकी जगह शौकत अजीज को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया.
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2007
राष्ट्रपति मुशर्रफ ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी को बर्खास्त कर दिया जिसके बाद देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. आखिरकार चौधरी को बहाल किया गया लेकिन मुशर्रफ ने देश में इमरजेंसी लगा दी. इस बीच पाकिस्तानी संसद ने पहली बार अपना पांच साल का निर्धारित कार्यकाल पूरा कर लिया.
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2007
आम चुनावों में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की नेता बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान लौटीं. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे वापस लिए गए. लेकिन रावलपिंडी में एक चुनावी रैली के दौरान उनकी हत्या कर दी गई. उनकी हत्या उसी कंपनी बाग में हुई जहां पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को कत्ल किया गया था.
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2008
बेनजीर की मौत के बाद चुनावों में पीपीपी को सहानुभूति लहर का फायदा हुआ और नेशनल असेंबली की ज्यादातर सीटें उसके खाते में आईं. यूसुफ रजा गिलानी देश के प्रधानमंत्री बने जबकि बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी ने राष्ट्रपति का पद संभाला. आरोपों और विवादों के बीच पीपीपी की सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
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2013
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए और पीएमएल (एन) सत्ता में आई. नवाज शरीफ तीसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. क्रिकेट से राजनेता बने इमरान की पार्टी 2013 के चुनाव में तीसरी सबसे बड़ी ताकत बन कर उभरी. 17 प्रतिशत वोटों के साथ उसने राष्ट्रीय संसद की 35 सीटें जीतीं और खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत में उसकी सरकार बनी.
तस्वीर: AFP/Getty Images
2017
भ्रष्टाचार के आरोपों में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें किसी सार्वजनिक पद पर रहने और चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दे दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री पद अपने विश्वासपात्र शाहिद खाकान अब्बासी को सौंपा. नवाज शरीफ अपने खिलाफ मुदकमों को राजनीति से प्रेरित बताते हैं. पाकिस्तानी सेना से टकराव के कारण भी वह चर्चा में आए.
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2018
पाकिस्तान में फिर चुनाव हुए. सेना पर आरोप लगे कि वह किसी भी तरह से नवाज शरीफ और उनकी पार्टी को सत्ता से बाहर रखना चाहती थी. चुनाव मैदान में इमरान खान को सेना का समर्थन मिला. चुनाव प्रक्रिया में धांधली के आरोप भी लगे. फिलहाल इमरान पाकिस्तान के पीएम हैं. लेकिन पाकिस्तान बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा है. कर्ज से लेकर फंड की कमी तक की चुनौतियां इमरान के सामने हैं.
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2019
इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. इमरान खान ने अपने चुनाव प्रचार में पाकिस्तान को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की बात की थी. इमरान खान की तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान अभी आर्थिक संकट से निकल नहीं पाया है. भारत के साथ चल रहे तनाव से पाकिस्तान को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पीएमएल (एन) के नेता नवाज शरीफ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस से जरिए इस बैठक को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि पहले "सेना देश के भीतर एक देश" थी लेकिन अब वह "देश से ऊपर हो गई" है. बताया जाता है कि जब शरीफ राजनीति और गबन में शामिल रहे सैन्य जनरलों के नाम बोल रहे थे तो टीवी चैनलों पर उनकी आवाज को म्यूट कर दिया गया. अलबत्ता उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि चुने हुए लोग ही देश को चलाएं, इसकी अर्थव्यवस्था को संभाले और इसकी विदेश नीति को तय करें." पूर्व प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि पाकिस्तानी सेना ने इमरान खान को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पिछले चुनावों में धांधली कराई.
नवाज शरीफ भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल की सजा काट रहे हैं, लेकिन अभी वह जमानत पर हैं और लंदन में रहकर इलाज करा रहे हैं. उन्होंने कहा, "हमारा संघर्ष उन लोगों के खिलाफ है जो इमरान खान को लेकर आए हैं और जिन्होंने उनके जैसे नकारे आदमी को सत्ता में बिठाने के लिए चुनावों में गड़बड़ी की, देश को तबाह किया."
नवाज शरीफ तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे हैं, लेकिन वह अपना कोई भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. सेना के साथ टकराव के कारण उन्हें हर बार अपना पद छोड़ना पड़ा. माना जाता है कि पाकिस्तान में आम तौर पर सेना ही तय करती है कि देश की सत्ता किसके हाथ में होगी. अब विपक्षी गठबंधन इसी के खिलाफ आवाज उठा रहा है. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल ने भी साफ शब्दों में कहा कि राजनीति में सेना की भूमिका नहीं होनी चाहिए.
पाकिस्तान में विपक्षी पार्टियां ऐसे समय में सरकार के खिलाफ एकजुट हो रही है जब कुछ इलाकों में तालिबान के दोबारा मजबूत होने की खबरें आ रही हैं. रविवार को सेना ने कहा कि पश्चिमोत्तर पाकिस्तान में उग्रवादियों के साथ हुई गोलीबारी में दो सैनिक मारे गए हैं. इससे पहले इसी महीने पाकिस्तानी तालिबान ने देश के पश्चिमोत्तर हिस्से में ही सड़क किनारे हुए एक बम धमाके की जिम्मेदारी ली, जिसमें तीन सैनिक मारे गए थे.
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कितनी मजबूत है चीन और पाकिस्तान की दोस्ती
पाकिस्तान और चीन अपने रिश्तों को समंदर से गहरे, हिमालय से ऊंचे, शहद से मीठे और स्टील से भी अधिक मजबूत बताते हैं. जानते हैं दोनों देशों के रिश्तों की कहानी.
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राजनयिक संबंध
साल 1951 में चीन और पाकिस्तान ने एक दूसरे के साथ राजनयिक संबंध कायम किए. तब से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच घनिष्ठ दोस्ती और रणनीतिक संबंध बने हुए हैं. पाकिस्तान, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता देने वाले पहले कुछ देशों में से एक रहा. 1960 और 1970 के दशक में जब बीजिंग का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलगाव चल रहा था, उस वक्त भी पाकिस्तान चीन का स्थिर सहयोगी बना रहा.
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ऐतिहासिक घटनाएं
ऐतिहासिक रूप से कुछ घटनाओं ने चीन और पाकिस्तान के संबंधों को मजबूत बनाया है. साल 1959 के नक्शों में पाकिस्तान का कुछ हिस्सा चीन अपनी सीमाओं में दिखाता था. इसके बाद दोनों देशों के बीच मार्च 1963 में सीमा समझौता हुआ.
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पाकिस्तान बना मध्यस्थ
1965 में भारत-पाकिस्तान विवाद में भी चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया. 1960 के दशक में जब दुनिया में अमेरिका और चीन के संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश चल रही थी तब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के सलाहकार हेनरी किसिंजर ने 1971 में पाकिस्तान होते हुए चीन की यात्रा की.
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सांस्कृतिक समझौता
साल 1965 में पाकिस्तान और चीन के बीच सांस्कृतिक समझौता हुआ. इस समझौते ने दोनों देशों के बीच गहरी साझेदारी की नींव रखी. इसी दौर में पाकिस्तानी टीवी चैनलों में चीन के, तो वहीं चीन में पाकिस्तान के नाटक और फिल्में प्रसारित होने लगीं. पाकिस्तान की एयरलाइन दुनिया की पहली ऐसी एयरलाइन थी जिसकी फ्लाइट सीधे बीजिंग तक जाती थी.
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बांग्लादेश को मान्यता
पाकिस्तान से अलग होने के बाद बांग्लादेश ने जब संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए आवेदन दिया तो चीन ने उस प्रस्ताव को वीटो कर दिया. स्वतंत्र देश के रूप में बांग्लादेश को मान्यता देने वाले आखिरी कुछ देशों में चीन भी था. 31 अगस्त 1975 तक चीन ऐसा करने से इनकार करता रहा.
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रणनीतिक साथ
चीन ने हमेशा पाकिस्तान के विकास और परिस्थितियों के आधार पर आतंकवाद विरोधी सुरक्षा रणनीति के कार्यान्वयन का दृढ़ता से समर्थन किया है. वहीं पाकिस्तान, ताइवान, तिब्बत, शिजियांग और अन्य मुद्दों पर चीन का मजबूती से समर्थन करता है.
तस्वीर: ISPR
मजबूत आर्थिक रिश्ते
चीन, पाकिस्तान के लिए दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. वहीं पाकिस्तान, चीन के लिए दक्षिण एशिया में निवेश का सबसे बड़ा ठिकाना है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार तकरीबन 18 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. साल 2000 से 2015 की अवधि के दौरान दोनों देशों के बीच ट्रेड वॉल्यूम 5.7 अरब डॉलर से बढ़कर 100 अरब डॉलर तक पहुंच गया.
तस्वीर: picture-alliance/AA
रक्षा सौदे
1960 के दशक से चीन पाकिस्तान के लिए एक प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता की भूमिका निभा रहा है. चीन ने पाकिस्तान को हथियारों के लिए फैक्ट्रियों के निर्माण करने में काफी मदद की. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच अधिकारियों का प्रशिक्षण, संयु्क्त सैन्य अभ्यास, खुफिया सेवाओं का आदान-प्रदान और आंतकवाद के खिलाफ लड़ने को लेकर भी आपसी साझदेारी है.
तस्वीर: AP
पाकिस्तानी बेड़े में चीन
पाकिस्तान के बेड़े में छोटी और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें हैं मसलन शाहीन मिसाइल श्रृंखला जिसे जानकार चीन से आयातित बताते हैं. साथ ही पाकिस्तानी वायुसेना के पास चीनी इंटरसेप्टर और उन्नत ट्रेनर विमान के साथ-साथ विमान का पता लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले एक चीनी कंट्रोल रडार सिस्टम है. पाकिस्तान, चीन के साथ मिलकर जेएफ-17 जैसे कई लड़ाकू विमान को तैयार कर रहा है.
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परमाणु सहयोग
चीन शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का एक मुखर और मजबूत समर्थक रहा है. चश्मा न्यूक्लियर पावर कॉम्पलेक्स पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में में बना एक कमर्शियल ऊर्जा संयंत्र है. इस संयंत्र की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के नियमों के तहत चाइना नेशनल न्यूक्लियर कॉरपोरेशन के सहयोग से की गई थी.
तस्वीर: Imago/ZUMA Press
बुनियादी ढांचा
चीन पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर,सीपीईसी के तहत 60 अरब डॉलर का निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध है. इस प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान में सड़क, पाइपलाइन, पावर प्लांट, इंडस्ट्रियल पार्क और बंदरगाह बनाए जाएंगे. सीपीईसी बीजिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा है. बीआरआई का मकसद एशिया, अफ्रीका और यूरोप के 70 देशों के साथ जमीन और समुद्री व्यापार मार्ग बनाना है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. F. Röhrs
चीनी भाषा का क्रेज
चीन के सीपीईसी प्रोजेक्ट से पाकिस्तानी नई नौकरियों की उम्मीद कर रहे हैं. साल 2017 में डीडब्ल्यू ने इस्लामाबाद की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ मॉडर्न लैंगुएजेज (एनयूएमएल) में भाषा सिखाने वाले मिसबाख रशीद के हवाले से बताया था कि कि सीपीईसी से पहले यूनिवर्सिटी में करीब 200 छात्र चीनी भाषा सीख रहे थे लेकिन इसके बाद से यह संख्या 2,000 को भी पार कर गयी.
तस्वीर: DW/S. M. Baloch
भारत के लिए सिरदर्द
चीन-पाकिस्तान की नजदीकियां भारत को अकसर परेशान करती रही हैं. साल 1947 के बाद से ही भारत-पाकिस्तान जहां कश्मीर को लेकर विवाद है. वहीं चीन के साथ भी अरुणाचल प्रदेश, अक्साई चिन, तिब्बत को लेकर भारत हमेशा जूझता रहा है. भारत-चीन के बीच करीब 3000 किमी की सीमा पर कोई स्पष्टता नहीं है. ऐसे में चीन और पाकिस्तान की नजदीकी इसके लिए एक बड़ा सिरदर्द है.