पाकिस्तान में एक करोड़ लड़कियों को स्कूल मयस्सर नहीं
१३ नवम्बर २०१८
पाकिस्तान में एक करोड़ से ज्यादा लड़कियां स्कूल नहीं जा पा रही हैं. मानवाधिकार संस्थाएं इसके लिए वहां की सरकार को जिम्मेदार ठहराती हैं.
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मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी ताजा रिपोर्ट में स्कूली शिक्षा को लेकर पाकिस्तान की तस्वीर पेश की है. रिपोर्ट कहती है कि 20.7 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में लगभग आठ करोड़ बच्चे स्कूल जाने की उम्र वाले हैं. लेकिन इसमें से 2.25 करोड़ ऐसे हैं जिन्हें स्कूल मयस्सर नहीं हैं. ऐसे में बच्चों में ज्यादातर लड़कियां हैं.
रिपोर्ट कहती है कि स्कूलों की कमी समेत कई कारण हैं जो पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा में बाधा बनते हैं. 111 पन्नों वाली इस रिपोर्ट का शीर्षक है: "मैं अपनी बेटी को खिलाऊं या फिर उसे पढ़ाऊं: पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा में बाधाएं."
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आज भी अनपढ़ हैं भारत के करोड़ों लोग
साक्षरता के मामले में भारत एशिया के टॉप 20 देशों में नहीं आता. देश की करीब 30 फीसदी जनता अब भी अनपढ़ है. देखिये साक्षरता के मामले में भारत का कौन सा राज्य कहां खड़ा है.
तस्वीर: P. Samanta
30. बिहार: 63.82 फीसदी
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29. तेलंगाना: 66.5 फीसदी
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28. अरुणाचल प्रदेश: 66.95 फीसदी
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27. राजस्थान: 67.06 फीसदी
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26. आंध्र प्रदेश: 67.4 फीसदी
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25. झारखंड: 67.63 फीसदी
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24. जम्मू कश्मीर: 68.74 फीसदी
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23. उत्तर प्रदेश: 69.72 फीसदी
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22. मध्य प्रदेश: 70.63 फीसदी
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21. छत्तीसगढ़: 71.04 फीसदी
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20. असम: 73.18 फीसदी
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19. ओडिशा: 73.45 फीसदी
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18. मेघालय: 75.48 फीसदी
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17. कर्नाटक: 75.60 फीसदी
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16. हरियाणा: 76.64 फीसदी
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15. पंजाब: 76.68 फीसदी
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14. पश्चिम बंगाल: 77.08 फीसदी
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13. गुजरात: 79.31 फीसदी
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12. उत्तराखंड: 79.63 फीसदी
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11. मणिपुर: 79.85 फीसदी
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10. नागालैंड: 80.11 फीसदी
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09. तमिलनाडु: 80.33 फीसदी
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08. सिक्किम: 82.20 फीसदी
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07. महाराष्ट्र: 82.91 फीसदी
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06. हिमाचल प्रदेश: 83.78 फीसदी
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05. दिल्ली: 86.34 फीसदी
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04. गोवा: 87.40 फीसदी
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03. त्रिपुरा: 87.75 फीसदी
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04. मिजोरम: 91.58 फीसदी
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01. केरल: 93.91 फीसदी
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रिपोर्ट के मुताबिक अगर सरकार बच्चों की शिक्षा पर ज्यादा रकम खर्च करे तो हालात सुधर सकते हैं. पाकिस्तान ने 2017 में अपनी जीडीपी का 2.8 प्रतिशत से भी कम शिक्षा पर खर्चा किया जबकि मानकों के मुताबिक चार से छह प्रतिशत खर्च करने की सिफारिश की जाती है.
रुढ़िवादी पाकिस्तानी समाज में कई सामाजिक मान्यताएं भी लड़कियों के रास्ते की बाधा बनती हैं. कई जगहों पर लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं माना जाता. शांति का नोबेल जीतने वाली पाकिस्तानी मलाला यूसुफजई पर 2012 में चरमपंथियों ने इसलिए हमला किया था कि वह लड़कियों को पढ़ाने की पैरवी करती थीं.
अब मलाला इंग्लैंड में रहती हैं और दुनिया भर में बच्चों और खासकर लड़कियों की शिक्षा के लिए जागरूकता फैलाने के प्रयासों में जुटी हैं.
एके/आईबी (एपी)
कुछ पाकिस्तानी मलाला से क्यों नफरत करते हैं?
सिर्फ 17 साल की उम्र में शांति का नोबेल जीतने वाली मलाला यूसुफजई अब एक ग्लोबल आइकन हैं. लेकिन उनके अपने देश में बहुत से लोग उन्हें पसंद नहीं करते हैं. आखिर इसकी वजह क्या है?
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मलाला ने क्या किया है?
पाकिस्तान में मलाला के कई आलोचकों का कहना है कि आखिर ऐसा उन्होंने किया क्या है कि उन्हें इतना मान सम्मान दिया जा रहा है. मलाला बचपन से ही लड़कियों की शिक्षा के लिए मुहिम चल रही हैं, लेकिन ये लोग इसे ज्यादा तवज्जो नहीं देते.
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बदनाम करने की साजिश
मलाला पर अक्टूबर 2009 में तालिबान ने जानलेवा हमला किया. ब्रिटेन में महीनों के इलाज के बाद वह ठीक हो पाईं. लेकिन मलाला के आलोचक इसे पूरे मामले को पाकिस्तान को बदनाम करने की साजिश बताते हैं.
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उन्हें कोई नहीं पूछता
मलाला को पसंद न करने वालों का कहना है कि पाकिस्तान बहुत से बच्चों के साथ उससे भी बुरा सलूक होता है जो मलाला के साथ हुआ. लेकिन उन्हें कोई नहीं पूछता. इस सिलसिले में वे मलाला के साथ हमले में घायल हुई साजिया कायनात का नाम भी लेते हैं.
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फर्जी हमला
पाकिस्तान में आपको कई ऐसे भी लोग मिल जाएंगे जो मलाला पर हुए हमले को एक ड्रामा मानते हैं. यही नहीं, वहां तो कई लोग 166 लोगों की जान लेने वाले मुंबई हमलों के बारे में भी ऐसा ही सोचते हैं.
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पश्चिमी एजेंडे पर
कई लोग कहते हैं कि मलाला यूसुफजई पश्चिम के एजेंडे को लागू कर रही हैं. सबसे पहले वह अपने ब्लॉग से चर्चा में आई थीं, जिसमें वह तालिबान के राज में मुश्किल जिंदगी के बारे में लिखा करती थीं. इसी के बाद तालिबान उन पर हमला किया.
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ओबामा की तारीफ क्यों?
तारीफ करने के लिए भी मलाला को पाकिस्तान में कई निशाना बनाते हैं. उनके मुताबिक मलाला पश्चिमी मूल्यों का प्रचार कर रही हैं, हालांकि खुद मलाला हमेशा लड़कियों और उदार मानवीय मूल्यों की बात करती हैं.
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तो पाकिस्तान में रहें..
कई लोग सोशल मीडिया पर यह भी लिखते हैं कि अगर मलाला को पाकिस्तान से इतना ही प्यार है तो फिर वह पाकिस्तान में आकर क्यों नहीं रहतीं. हालांकि इसका जबाव है सुरक्षा. 2009 के हमले के बाद से ही मलाला का परिवार पाकिस्तान से बाहर रह रहा है.
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आई एम नॉट मलाला
मलाला को जब 2014 में नोबेल पुरस्कार मिला तो पाकिस्तान के हजारों स्कूलों ने उनके संस्मरण "आई एम मलाला" को बैन करने की मांग की थी. वहीं यह किताब दुनिया की बेस्ट सेलर्स में से एक है और कई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ है.
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चुभते सवाल
आलोचक कहते हैं कि मलाला ने अपनी किताब में इस्लाम, चरमपंथ और पाकिस्तानी सेना को लेकर वही सब बातें कही हैं जिनके जरिए पश्चिमी देश पाकिस्तान को निशाना बनाते हैं. किताब में पाकिस्तान के अस्तित्व से जुड़े सवालों भी आलोचकों को चुभते हैं.
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अमेरिका विरोध
हाल के सालों में पाकिस्तान में अमेरिका विरोधी भावना मजबूत हुई हैं. इससे भी मलाला के विरोध को हवा मिलती है. पाकिस्तान में अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन को तलाशने में अमेरिका की मदद करने वाले एक पाकिस्तानी डॉक्टर को अब तक जेल में रखा गया है.