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समाज

कोरोना की वजह से पाकिस्तान में तेजी से बढ़ी शराब की कीमत

मावरा बारी
२६ अप्रैल २०२१

पाकिस्तान में मुसलमानों के लिए शराब पीना आधिकारिक तौर पर बैन है. इस वजह से यहां शराब की कालाबाजारी बड़े स्तर पर होती है. कोरोना महामारी के दौरान शराब के उत्पादन में कमी और बढ़ी हुई मांग ने इसे और महंगा बना दिया.

Pakistan Murree Brauhaus in Rawalpindi
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Mehri

पाकिस्तान में मुसलमानों के लिए शराब का इस्तेमाल प्रतिबंधित है लेकिन कालाबाजारी के जरिए इसकी लगातार आपूर्ति की जाती है. कोरोना वायरस महामारी के दौरान दुनिया भर के कई देशों की तरह पाकिस्तान में भी शराब की खपत बढ़ गई. देश में एक बड़ी आबादी ऐसे मुसलमानों की है जो प्रतिबंध को नहीं मानती. इनमें जो लोग अच्छे पैसे कमाते हैं वे ज्यादा पैसे देकर ब्रांडेड शराब खरीदते हैं. वहीं, कम कमाने वाले लोग अकसर कम कीमत वाले मूनशाइन की ओर रुख करते हैं. कोरोना वायरस महामारी के दौरान मांग बढ़ने की वजह से वैध रूप से बिकने वाली और कालाबाजारी के जरिए बिकने वाले, दोनों तरह के शराब महंगे हो गई. पाकिस्तान में 1977 में शराब की खपत को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाया गया था. उस समय देश में जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार थी. इसी सरकार ने शराबबंदी कानून लागू किया था. इसके तहत, बार और क्लबों को अलग-अलग छूट दी गई थी.

साल 1979 में जनरल जिया उल हक के इस्लामिक शासन के तहत इस कानून को और अधिक कठोर बना दिया गया. उन्होंने शराब पीने को "गैर-इस्लामिक" घोषित किया. साथ ही, मुसलमानों को शराब बेचने पर कठोर सजा देने के कानून बनाए. हालांकि, कुछ इलाकों में गैर-मुस्लिम तथाकथित शराब की दुकान खोल सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें काफी ज्यादा टैक्स देना पड़ता है.

पाकिस्तान का 'ग्रे एरियाहै शराब की दुकानें

राहुल हिंदू हैं जो पाकिस्तान के सबसे अधिक आबादी वाले शहर कराची में शराब की दुकान पर काम करते हैं. गैर मुस्लिम ग्राहकों के लिए पाकिस्तान के दक्षिणी सिंध प्रांत में शराब की दुकानें वैध हैं. हालांकि, राहुल कहते हैं कि वे उन सभी को शराब देते हैं जो उन्हें पैसे देते हैं. उन्होंने डॉयचे वेले से बात करते हुए कहा, "हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, काफी सारे लोग शराब पीते हैं. मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पीने वाले का धर्म क्या है. मेरा काम उनके धर्म का पता लगाना नहीं है."

हालांकि, राहुल यह भी मानते हैं कि इस काम में सतर्क रहना काफी जरूरी है. वे कहते हैं, "हमें इस काम में काफी सावधान रहना पड़ता है क्योंकि कोई भी, कभी भी आपको मुसीबत में डालने की कोशिश कर सकता है." राहुल कहते हैं कि वह शराब की दुकान पर हर महीने करीब 50 हजार पाकिस्तानी रुपये कमा्ते हैं. इसमें उन्हें ग्राहकों से मिलने वाली टिप भी शामिल है. यह रकम उनकी पिछली नौकरी की आय से काफी ज्यादा है. पहले वे कपड़े बनाने वाले मजदूर के तौर पर काम करते थे.

राहुल जिस शराब की दुकान पर काम करते हैं वह सिंध प्रांत में खास है. इस तरह की दुकानें पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में देखने को नहीं मिलती हैं. देश के अन्य हिस्सों में शराब के शौकीन मुसलमान कालाबाजारी के जरिए शराब खरीदते हैं. सिंध प्रांत में स्थित शराब की वैध दुकानों में कीमतें कुछ हद तक नियंत्रित हैं. हालांकि, महामारी के दौरान देश के अन्य हिस्सों में कालाबाजारी के जरिए मिलने वाली शराब की कीमतें काफी बढ़ गई हैं.

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पीने वालों को चुकाने पड़ रहे हैं ज्यादा पैसे

इस्लामाबाद में रहने वाले 37 वर्षीय उमर कहते हैं कि कीमतें बढ़ने के बावजूद, महामारी के दौरान शराब पीने वालों की संख्या बढ़ गई है. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "पहले मैं कभी-कभी ही पीता था, लेकिन पिछले साल के बाद से अब रोज अकेले बैठकर पीता हूं. घर से काफी कम बाहर निकलता हूं, लेकिन शराब की वजह से मुझे चिंताओं से निपटने में मदद मिलती है." उमर यह भी मानते हैं कि शराब पीना आज भी लज्जा और शर्म की बात है. शराब पीने वाले कई पाकिस्तानी खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं.

उमर कहते हैं कि 2020 में लॉकडाउन लगने के बाद से स्थानीय बीयर और शराब की कीमतें तीन गुना बढ़ गई थी. आज भी यह दोगुनी कीमत पर बिक रही है. एक बोतल वोदका की कीमत पहले आठ यूरो के बराबर थी जो अभी 19 यूरो हो गई है.

38 वर्षीय पत्रकार हीरा ने डॉयचे वेले को बताया कि उन्होंने 'ब्लैक लेबल' व्हिस्की की एक बोतल 70 यूरो के दाम में खरीदी जिसमें पानी मिला हुआ था. उन्होंने बताया कि वे कई और लोगों को जानती हैं जिन्हें इंपोर्टेड ब्रांड लेबल के नाम पर मिलावटी शराब मिली, "आप अपना पैसा बर्बाद कर रहे हैं क्योंकि कालाबाजारी से खरीदी गई इंपोर्टेड शराब की बोतलों पर भरोसा नहीं कर सकते." हीरा अब स्थानीय स्तर पर बनने वाली मुर्री ब्रूअरी बीयर पीना पसंद करते हैं, "यह काफी अच्छी है. हालांकि, इसमें काफी ज्यादा विकल्प नहीं हैं."

पाकिस्तान में सामाजिक कलंक की तरह है ब्रूअरी

पाकिस्तान की मुर्री ब्रूअरी के सीईओ इस्फनार एम भंडारा ने डॉयचे वेले को बताया, "जब पिछले साल मार्च और अप्रैल के बीच कई हफ्तों तक ब्रुअरी बंद रही, तो न तो किसी तरह का उत्पादन हुआ और न ही वितरण का काम. उन दो महीनों तक काम पूरी तरह ठप्प रहा. शराब बनाने के लिए रखा गया कच्चा माल काफी ज्यादा मात्रा में बर्बाद हो गया.”

वे आगे कहते हैं, "कोरोना महामारी उस समय आई जब शराब का सीजन पीक पर था. इस वजह से हमारा फायदा पहले की तुलना में आधा हो गया. हालांकि, यह उन कई कंपनियों से बेहतर है जो कोरोना की वजह से दिवालिया हो गए." 2021 की शुरुआत के कुछ महीनों में शराब की बिक्री एक बार फिर से बढ़ गई है.

पंजाब के एक रिसॉर्ट में प्यासे ब्रिटिश जवानों की मांगों को पूरा करने के लिए मुर्री की स्थापना 1860 में की गई थी. यह पाकिस्तान में अल्कोहल से बने पेय पदार्थों को बनाने वाला सबसे बड़ा और पुराना उत्पादक है. भंडारा कहते हैं कि उनकी ब्रुअरी पाकिस्तान में सामाजिक कलंक की तरह है. मुर्री ज्यादा चर्चा में नहीं रहती है और अपना विज्ञापन भी नहीं करती है. हालांकि, महामारी के दौरान ब्रुअरी, इथेनॉल से बनने वाले 10 हजार गैलन हैंड सैनेटाइजर का उत्पादन कर अपनी छवि को कुछ हद सुधारने में कामयाब रही. 

 

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