पाकिस्तानी छात्र मशाल खान को 2017 में भीड़ ने ईंशनिंदा का आरोप लगा कर पीट पीट कर मार डाला है. भविष्य में ऐसा ना हो इसके लिए कानूनी सजा तय करने की मांग उठ रही है.
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23 साल का मशाल खान पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत का रहने वाला था. 13 अप्रैल 2017 को भीड़ ने उस पर ईशनिंदा का आरोप लगाकर उसी के यूनिवर्सिटी परिसर में पीट पीट कर मार डाला. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया में आया. मिशाल की कानूनी टीम ने अनुसार जून 2017 में 13-सदस्यों की संयुक्त जांच टीम इस नतीजे पर पहुंची कि मशाल के खिलाफ लगाए गए आरोप साबित नहीं किए जा सकते. उसकी हत्या के मकसद से भीड़ को भड़काने के लिए आरोप गढ़ा गया था.
जांच टीम को पता चला कि असल में मशाल खान अपनी यूनिवर्सिटी में छात्रों के अधिकारों के बारे में खुल कर बोलता था और नए उपकुलपति की नियुक्ति की आलोचना कर रहा था. जांच के दौरान टीम को पता चला कि परिसर में छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार समेत कई अवैध और आपराधिक गतिविधियां हो रही थीं.
कुल मिलाकर 61 लोगों पर इस वारदात में शामिल होने का आरोप लगा. इनमें से 57 को सजा सुनाई जा चुकी है और चार को आरोप से बरी कर दिया गया है. जिन पर आरोप सिद्ध हुआ है उनमें से एक आरिफ खान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी का सभासद रहा है. कोर्ट ने कहा कि इसी आदमी ने भीड़ को भड़काया और मारने के लिए प्रेरित किया.
अदालत ने एक दोषी को मृत्युदंड की सजा जबकि पांच अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. 25 अन्य दोषियों को चार साल की जेल हुई. फिलहाल हाई कोर्ट में इन सभी दोषियों ने अपील डाली है, जिस पर सुनवाई होनी है. मशाल खान का परिवार कोर्ट के फैसले से कुछ ही हद तक संतुष्ट है. उसके पिता मुहम्मद इकबाल तो सभी आरोपियों के लिए मृत्युदंड की सजा चाहते हैं.
ईशनिंदा के मामले बढ़े
पैगंबर मोहम्मद का अपमान यानि ईशनिंदा पाकिस्तान में एक संवेदनशील विषय है. देश के 18 करोड़ लोगों में से 97 फीसदी मुसलमान हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता बताते हैं कि अकसर ईशनिंदा के आरोपों का इस्तेमाल कर या तो व्यक्तिगत दुश्मनी निकाली जाती है या दूसरे विवाद सुलझाए जाते हैं.
मशाल के पहले भी कई मामलों में लोगों को कड़ी सजा सुनाई गई है लेकिन ऐसे मामले आते रहते हैं. हाल ही में बहावलपुर से ऐसा एक मामला सामने आया है. यह वही जगह है, जहां आतंकी गुट 'जैश ए मोहम्मद' का गढ़ है. भारत के कश्मीर में फरवरी में हुए एक बड़े हमले में इसी गुट का हाथ माना जाता है.
हाल में पंजाब के बहावलपुर के एक प्रोफेसर को इस्लाम का अपमान करने के आरोप में एक छात्र ने जान से मार डाला. देश में दूसरी जगहों पर कुछ कालेज प्रोफेसरों को जेल में डाला गया है. इसके अलावा मानसिक रूप से बीमार एक ईसाई पर भी पंजाब के सियालकोट में ईशनिंदा का आरोप लगा कर पीटा गया. उसके बाद से इलाके के ईसाई अल्पसंख्यक डर के साये में जी रहे हैं.
अतिवादी गुटों को ‘बढ़ावा नहीं'
पाकिस्तान में एक केंद्रीय मंत्री शाहबाज खान और पंजाब के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर ने ईंशनिंदा के कानून में बदलाव लाने और इसका गलत इस्तेमाल बंद करने की मांग की थी. इन दोनों नेताओं की हत्या कर दी गई. तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई और कुछ एक साल पहले जब उसे फांसी चढ़ाया गया तो उसके समर्थकों ने हत्यारे को हीरो बना दिया. उसकी कब्र एक तरह का मजार बन गई है और हर साल हजारों लोग वहां जाते हैं. इसी तरह, मशाल खान के आरोपियों में से जिनको रिहा कर दिया गया, उनका बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया गया.
पाकिस्तान के एक स्वतंत्र अधिकार समूह, मानवाधिकार आयोग के असद इकबाल बट कहते हैं कि जब तक अतिवादी तत्वों और नफरत फैलाने वाले वाले धार्मिक मदरसों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती तब तक कुछ नहीं सुधरेगा. इनसे ना सिर्फ देश में माहौल खराब होता है बल्कि हजारों लोग मारे भी जाते हैं. मशाल के पिता भी इस बात का समर्थन करते हुए कहते हैं कि स्कूलों का सिलेबस और टीचरों को बदलने की जरूरत है ताकि बच्चे मानवता का पाठ पढ़कर निकलें और ऐसे घृणा अपराध ना हों.
रिपोर्ट: सत्तार खान/आरपी
आसिया बीबी: एक गिलास पानी के लिए मौत की सजा
पाकिस्तान में 2010 में आसिया बीबी नाम की एक ईसाई महिला को मौत की सजा सुनाई गई थी. पानी के गिलास से शुरू हुआ झगड़ा उनके ईशनिंदा का जानलेवा अपराध बन गया था. लेकिन सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी किया.
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खेत से कोर्ट तक
2009 में पंजाब के शेखपुरा जिले में रहने वाली आसिया बीबी मुस्लिम महिलाओं के साथ खेत में काम कर रही थी. इस दौरान उसने पानी पीने की कोशिश की. मुस्लिम महिलाएं इस पर नाराज हुईं, उन्होंने कहा कि आसिया बीबी मुसलमान नहीं हैं, लिहाजा वह पानी का गिलास नहीं छू सकती. इस बात पर तकरार शुरू हुई. बाद में मुस्लिम महिलाओं ने स्थानीय उलेमा से शिकायत करते हुए कहा कि आसिया बीबी ने पैंगबर मोहम्मद का अपमान किया.
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भीड़ का हमला
स्थानीय मीडिया के मुताबिक खेत में हुई तकरार के बाद भीड़ ने आसिया बीबी के घर पर हमला कर दिया. आसिया बीबी और उनके परिवारजनों को पीटा गया. पुलिस ने आसिया बीबी को बचाया और मामले की जांच करते हुए हिरासत में ले लिया. बाद में उन पर ईशनिंदा की धारा लगाई गई. 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में ईशनिंदा बेहद संवेदनशील मामला है.
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ईशनिंदा का विवादित कानून
1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून लागू किया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ईशनिंदा की आड़ में ईसाइयों, हिन्दुओं और अहमदी मुसलमानों को अकसर फंसाया जाता है. छोटे मोटे विवादों या आपसी मनमुटाव के मामले में भी इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है.
तस्वीर: Noman Michael
पाकिस्तान राज्य बनाम बीबी
2010 में निचली अदालत ने आसिया बीबी को ईशनिंदा का दोषी ठहराया. आसिया बीबी के वकील ने अदालत में दलील दी कि यह मामला आपसी मतभेदों का है, लेकिन कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी. आसिया बीबी को मौत की सजा सुनाई. तब से आसिया बीवी के पति आशिक मसीह (तस्वीर में दाएं) लगातार अपनी पत्नी और पांच बच्चों की मां को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे.
तस्वीर: picture alliance/dpa
मददगारों की हत्या
2010 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर ने आसिया बीबी की मदद करने की कोशिश की. तासीर ईशनिंदा कानून में सुधार की मांग कर रहे थे. कट्टरपंथी तासीर से नाराज हो गए. जनवरी 2011 में अंगरक्षक मुमताज कादरी ने तासीर की हत्या कर दी. मार्च 2011 में ईशनिंदा के एक और आलोचक और तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की भी इस्लामाबाद में हत्या कर दी गई.
तस्वीर: AP
हत्याओं का जश्न
तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतों ने हीरो जैसा बना दिया. जेल जाते वक्त कादरी पर फूल बरसाए गए. 2016 में कादरी को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद कादरी के नाम पर एक मजार भी बनाई गई.
तस्वीर: AP
न्यायपालिका में भी डर
ईशनिंदा कानून के आलोचकों की हत्या के बाद कई वकीलों ने आसिया बीबी का केस लड़ने से मना कर दिया. 2014 में लाहौर हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा. इसके खिलाफ परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सर्वोच्च अदालत में इस केस पर सुनवाई 2016 में होनी थी, लेकिन सुनवाई से ठीक पहले एक जज ने निजी कारणों का हवाला देकर बेंच का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
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ईशनिंदा कानून के पीड़ित
अक्टूबर 2018 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी की सजा से जुड़ा फैसला सुरक्षित रख लिया. इस मामले को लेकर पाकिस्तान पर काफी दबाव है. अमेरिकी सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस के मुताबिक सिर्फ 2016 में ही पाकिस्तान में कम से 40 कम लोगों को ईशनिंदा कानून के तहत मौत या उम्र कैद की सजा सुनाई गई. कई लोगों को भीड़ ने मार डाला.
तस्वीर: APMA
अल्पसंख्यकों पर निशाना
ईसाई, हिन्दू, सिख और अहमदी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं. इस समुदाय का आरोप है कि पाकिस्तान में उनके साथ न्यायिक और सामाजिक भेदभाव होता रहता है. बीते बरसों में सिर्फ ईशनिंदा के आरोपों के चलते कई ईसाइयों और हिन्दुओं की हत्याएं हुईं.
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कट्टरपंथियों की धमकी
पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों ने धमकी दी थी कि आसिया बीबी पर किसी किस्म की नरमी नहीं दिखाई जाए. तहरीक ए लबैक का रुख तो खासा धमकी भरा था. ईसाई समुदाय को लगता था कि अगर आसिया बीबी की सजा में बदलाव किया गया तो कट्टरपंथी हिंसा पर उतर आएंगे. और ऐसा हुआ भी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. K. Bangash
बीबी को अंतरराष्ट्रीय मदद
मानवाधिकार संगठन और पश्चिमी देशों की सरकारों ने आसिया बीबी के मामले में निष्पक्ष सुनवाई की मांग की थी. 2015 में बीबी की बेटी पोप फ्रांसिस से भी मिलीं. अमेरिकन सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस ने बीबी की सजा की आलोचना करते हुए इस्लामाबाद से अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने की अपील की थी.
बीबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन्होंने इस मामले से बरी कर दिया. आसिया को बरी किए जाने के खिलाफ आई अपील को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लोगों ने विरोध किया. लेकिन आसिया सुरक्षित रहीं. अब आसिया बीबी ने पाकिस्तान छोड़ दिया है. बताया जाता है वो कनाडा में रहने लगी हैं.