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समाज

मशाल खान की हत्या से बाकियों को सबक

२२ मार्च २०१९

पाकिस्तानी छात्र मशाल खान को 2017 में भीड़ ने ईंशनिंदा का आरोप लगा कर पीट पीट कर मार डाला है. भविष्य में ऐसा ना हो इसके लिए कानूनी सजा तय करने की मांग उठ रही है.

Pakistan Proteste nach Lynchmord Student Mashal Khan
तस्वीर: picture-alliance/AP/F. Khan

23 साल का मशाल खान पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत का रहने वाला था. 13 अप्रैल 2017 को भीड़ ने उस पर ईशनिंदा का आरोप लगाकर उसी के यूनिवर्सिटी परिसर में पीट पीट कर मार डाला. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया में आया. मिशाल की कानूनी टीम ने अनुसार जून 2017 में 13-सदस्यों की संयुक्त जांच टीम इस नतीजे पर पहुंची कि मशाल के खिलाफ लगाए गए आरोप साबित नहीं किए जा सकते. उसकी हत्या के मकसद से भीड़ को भड़काने के लिए आरोप गढ़ा गया था.

जांच टीम को पता चला कि असल में मशाल खान अपनी यूनिवर्सिटी में छात्रों के अधिकारों के बारे में खुल कर बोलता था और नए उपकुलपति की नियुक्ति की आलोचना कर रहा था. जांच के दौरान टीम को पता चला कि परिसर में छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार समेत कई अवैध और आपराधिक गतिविधियां हो रही थीं.

कुल मिलाकर 61 लोगों पर इस वारदात में शामिल होने का आरोप लगा. इनमें से 57 को सजा सुनाई जा चुकी है और चार को आरोप से बरी कर दिया गया है. जिन पर आरोप सिद्ध हुआ है उनमें से एक आरिफ खान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी का सभासद रहा है. कोर्ट ने कहा कि इसी आदमी ने भीड़ को भड़काया और मारने के लिए प्रेरित किया.

अदालत ने एक दोषी को मृत्युदंड की सजा जबकि पांच अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. 25 अन्य दोषियों को चार साल की जेल हुई. फिलहाल हाई कोर्ट में इन सभी दोषियों ने अपील डाली है, जिस पर सुनवाई होनी है. मशाल खान का परिवार कोर्ट के फैसले से कुछ ही हद तक संतुष्ट है. उसके पिता मुहम्मद इकबाल तो सभी आरोपियों के लिए मृत्युदंड की सजा चाहते हैं.

तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Khan

ईशनिंदा के मामले बढ़े

पैगंबर मोहम्मद का अपमान यानि ईशनिंदा पाकिस्तान में एक संवेदनशील विषय है. देश के 18 करोड़ लोगों में से 97 फीसदी मुसलमान हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता बताते हैं कि अकसर ईशनिंदा के आरोपों का इस्तेमाल कर या तो व्यक्तिगत दुश्मनी निकाली जाती है या दूसरे विवाद सुलझाए जाते हैं.

मशाल के पहले भी कई मामलों में लोगों को कड़ी सजा सुनाई गई है लेकिन ऐसे मामले आते रहते हैं. हाल ही में बहावलपुर से ऐसा एक मामला सामने आया है. यह वही जगह है, जहां आतंकी गुट 'जैश ए मोहम्मद' का गढ़ है. भारत के कश्मीर में फरवरी में हुए एक बड़े हमले में इसी गुट का हाथ माना जाता है.

हाल में पंजाब के बहावलपुर के एक प्रोफेसर को इस्लाम का अपमान करने के आरोप में एक छात्र ने जान से मार डाला. देश में दूसरी जगहों पर कुछ कालेज प्रोफेसरों को जेल में डाला गया है. इसके अलावा मानसिक रूप से बीमार एक ईसाई पर भी पंजाब के सियालकोट में ईशनिंदा का आरोप लगा कर पीटा गया. उसके बाद से इलाके के ईसाई अल्पसंख्यक डर के साये में जी रहे हैं.

अतिवादी गुटों को बढ़ावा नहीं'

पाकिस्तान में एक केंद्रीय मंत्री शाहबाज खान और पंजाब के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर ने ईंशनिंदा के कानून में बदलाव लाने और इसका गलत इस्तेमाल बंद करने की मांग की थी. इन दोनों नेताओं की हत्या कर दी गई. तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई और कुछ एक साल पहले जब उसे फांसी चढ़ाया गया तो उसके समर्थकों ने हत्यारे को हीरो बना दिया. उसकी कब्र एक तरह का मजार बन गई है और हर साल हजारों लोग वहां जाते हैं. इसी तरह, मशाल खान के आरोपियों में से जिनको रिहा कर दिया गया, उनका बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया गया.

तस्वीर: Getty Images/AFP/F. Naeem

पाकिस्तान के एक स्वतंत्र अधिकार समूह, मानवाधिकार आयोग के असद इकबाल बट कहते हैं कि जब तक अतिवादी तत्वों और नफरत फैलाने वाले वाले धार्मिक मदरसों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती तब तक कुछ नहीं सुधरेगा. इनसे ना सिर्फ देश में माहौल खराब होता है बल्कि हजारों लोग मारे भी जाते हैं. मशाल के पिता भी इस बात का समर्थन करते हुए कहते हैं कि स्कूलों का सिलेबस और टीचरों को बदलने की जरूरत है ताकि बच्चे मानवता का पाठ पढ़कर निकलें और ऐसे घृणा अपराध ना हों.

रिपोर्ट: सत्तार खान/आरपी

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