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पाकिस्तान में जिंदगी की दुआ मांगते हजारा लोग

१४ मई २०१९

पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक हजारा लोगों का कहना है कि क्वेटा में उनका कत्ल-ए-आम हो रहा है और अधिकारी उन पर हो रहे हमलों को रोक पाने में नाकाम हैं.

Pakistan Quetta Shiiten-Minderheit Hazara
तस्वीर: AFP/B. Khan

हजारा लोग भी मुसलमान हैं लेकिन उनका संबंध शिया समुदाय है जबकि पाकिस्तान में रहने वाले ज्यादातर मुसलमान सुन्नी हैं. बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में बरसों से लाखों शिया हजारा लोगों को दो अलग अलग बस्तियों में रखा गया है जो संगीनों के साये में रहते हैं. उनकी बस्तियों के पास बहुत सारी चेकपोस्ट और हथियार बंद फौजी तैनात हैं, जो इन लोगों को हिंसक चरमपंथियों से बचाने के लिए तैनात किए गए हैं.

लेकिन इन बस्तियों के भीतर क्या हालात हैं? एक हजारा कार्यकर्ता बोस्तान अली कहते हैं, "यह जेल की तरह है. हजारा लोग यहां पर मानसिक यातना से गुजर रहे हैं." उनका कहना है कि यहां रहने वाले लोगों को बाकी शहर से काट दिया गया है और उन्हें सिर्फ छोटे सी जगह में समेट कर रख दिया गया है.

पाकिस्तान के सबसे गरीब प्रांत बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में शियाओं की अच्छी खासी आबादी रहती है. सैद्धांतिक रूप से हजारा लोग शहर में कहीं भी जाने के लिए आजाद हैं, लेकिन हमलों के डर से लोग बहुत कम ही बाहर निकलते हैं. हालत यह है कि जब छोटा मोटा सामान बेचकर गुजारा करने वाले हजारा लोग यहां से निकलते हैं तो उन्हें हथियारबंद सुरक्षा कर्मी मुहैया कराए जाते हैं.

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इसके बावजूद हजारा लोगों पर हमले नहीं रुक रहे हैं. अप्रैल में एक सब्जी मंडी में हुए बम धमाके में 21 लोग मारे गए और 47 घायल हुए. मारे गए लोगों में ज्यादातर हजारा थे. इस हमले की जिम्मेदारी तथाकथित इस्लामिक स्टेट से जुड़े समूह लश्कर ए झांगवी ने ली जो एक शिया विरोधी गुट है. हजारा लोगों के खिलाफ 2013 से लगातार हमले हो रहे हैं जिनमें अब तक लगभग 200 लोग मारे गए हैं.

सीमा पार अफगानिस्तान में भी हजारा लोगों की हालत इतनी ही दयनीय हैं. उनकी मस्जिदों, स्कूलों और सार्वजनिक आयोजनों पर चरमपंथी हमले होते हैं. पाकिस्तान लंबे समय से अशांति और सांप्रदायिक हिंसा झेल रहा है. इसमें हजारा लोगों को खास तौर से निशाना बनाया जाता है. हजारा लोग मध्य एशियाई लोगों की तरह दिखते हैं, इसलिए आसानी से पहचाने जा सकते हैं. सुन्नी चरमपंथी उन्हें काफिर मानते हैं और उन्हें बार बार निशाना बनाते हैं.

क्वेटा में हजारा लोगों की एक बस्ती का नाम है हजारा टाउन. यहां रहने वाले नोरोज अली कहते हैं कि यहां से बाहर निकलने का मतबल है कि अपनी जान को जोखिम में डालना, लेकिन कमाने नहीं जाएंगे तो अपने परिवार और बच्चों को कैसे पालेंगे. हमलों को रोकने में अपनी नाकामी पर अधिकारी कहते हैं कि सांप्रदायिक गुटों की हिंसा में उनके अपने कर्मचारी भी मारे जा रहे हैं. अधिकारियों के मुताबिक यह इस बात का सबूत है कि वे अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं.

तस्वीर: AFP/B. Khan

स्थानीय पुलिस अधिकारी अब्दुर रज्जाक चीमा कहते हैं कि हजारा लोगों को बचाने की कोशिशों में "हजारा लोगों से ज्यादा पुलिसकर्मी मारे गए हैं". चीमा का कहना है कि उनकी कोशिशों का ही नतीजा है कि इतने सारे आतंकवादी गिरफ्तार किए गए हैं और मारे गए हैं. वह कहते हैं, "नए नए गुट पैदा हो रहे हैं. हम उनका पता लगा रहे हैं और उनसे होने वाले खतरे से निपटने की कोशिश कर रहे हैं."

भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बावजूद हजारा लोगों की बस्तियां भी सुरक्षित नहीं हैं. 2013 में एक बस्ती के भीतर जोरदार धमाका हुआ था. हजारा डेमोक्रेटिक पार्टी का कहना है कि बदहाल परिस्थितियों के कारण हाल के सालों में 75 हजार से लेकर एक लाख हजारा लोग देश के दूसरे हिस्सों में या फिर विदेशों में चले गए हैं. इस समुदाय से संबंध रखने वाले ताहिर हजारा कहते हैं, "हम लोग बेबस हैं. हम किससे उम्मीद करें कि वह हमारी जिंदगियों को बचाएगा."

एके/एनआर (एएफपी)

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