पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक हजारा लोगों का कहना है कि क्वेटा में उनका कत्ल-ए-आम हो रहा है और अधिकारी उन पर हो रहे हमलों को रोक पाने में नाकाम हैं.
विज्ञापन
हजारा लोग भी मुसलमान हैं लेकिन उनका संबंध शिया समुदाय है जबकि पाकिस्तान में रहने वाले ज्यादातर मुसलमान सुन्नी हैं. बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में बरसों से लाखों शिया हजारा लोगों को दो अलग अलग बस्तियों में रखा गया है जो संगीनों के साये में रहते हैं. उनकी बस्तियों के पास बहुत सारी चेकपोस्ट और हथियार बंद फौजी तैनात हैं, जो इन लोगों को हिंसक चरमपंथियों से बचाने के लिए तैनात किए गए हैं.
लेकिन इन बस्तियों के भीतर क्या हालात हैं? एक हजारा कार्यकर्ता बोस्तान अली कहते हैं, "यह जेल की तरह है. हजारा लोग यहां पर मानसिक यातना से गुजर रहे हैं." उनका कहना है कि यहां रहने वाले लोगों को बाकी शहर से काट दिया गया है और उन्हें सिर्फ छोटे सी जगह में समेट कर रख दिया गया है.
पाकिस्तान के सबसे गरीब प्रांत बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में शियाओं की अच्छी खासी आबादी रहती है. सैद्धांतिक रूप से हजारा लोग शहर में कहीं भी जाने के लिए आजाद हैं, लेकिन हमलों के डर से लोग बहुत कम ही बाहर निकलते हैं. हालत यह है कि जब छोटा मोटा सामान बेचकर गुजारा करने वाले हजारा लोग यहां से निकलते हैं तो उन्हें हथियारबंद सुरक्षा कर्मी मुहैया कराए जाते हैं.
पाकिस्तान की अनुमानित 20 करोड़ की आबादी में लगभग 95 फीसदी मुसलमान हैं. इनमें भी बहुसंख्यक सुन्नी हैं जिनकी संख्या 75 से 85 फीसदी बताई जाती है. एक नजर पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों पर.
तस्वीर: DW/U. Fatima
शिया
शिया मुसलमान पाकिस्तान का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है जिसकी आबादी से 10 से 15 फीसदी बताई जाती है. हाल के सालों में पाकिस्तान में कई बार शिया धार्मिक स्थलों को आतंकवादी हमलों में निशाना बनाया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS.com
अहमदी
पाकिस्तान की जनसंख्या में अहमदी मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 2.2 प्रतिशत है. हालांकि पाकिस्तान में इन्हें मुसलमान नहीं माना जाता. 1970 में दशक में एक कानून पारित कर इन्हें गैर मुसलमान घोषित कर दिया गया था और इनके साथ कई तरह के भेदभाव होते हैं.
तस्वीर: Arif Ali/AFP/Getty Images
हिंदू
पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी लगभग दो प्रतिशत है जिनमें से ज्यादातर सिंध प्रांत में रहते हैं. पाकिस्तान में हिंदू बेहद पिछड़े हैं और अभी तक बुनियादी अधिकारों के लिए जूझ रहे हैं.
तस्वीर: DW/U. Fatima
ईसाई
हिंदुओं के बाद पाकिस्तान में संख्या के हिसाब से ईसाई समुदाय की बारी आती है. उनकी आबादी लगभग 1.6 प्रतिशत है जबकि संख्या देखें तो यह 28 लाख के आसपास है. हाल के सालों में कई चर्चों पर हमले हुए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Akber
बहाई
बहाई धर्म को मानने वालों की संख्या पाकिस्तान में 40 से 80 हजार हो सकती है.
सिख
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म मौजूदा पाकिस्तान के ननकाना साहिब में हुआ था. यह स्थान सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है. पाकिस्तान में अब सिर्फ लगभग 20 हजार ही सिख बचे हैं.
तस्वीर: Farooq Naeem/AFP/Getty Images
पारसी
पारसियों की आबादी दुनिया भर में घट रही है. पाकिस्तान में भी ऐसा ही ट्रेंड दिखाई पड़ता है. वहां इनकी संख्या चंद हजार तक सिमट गई है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Solanki
कलाश
खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के चित्राल में रहने वाला कलाश समुदाय अपनी अलग संस्कृति के लिए जाना जाता है. उनकी अलग भाषा और अलग धर्म है. लगभग तीन हजार की आबादी के साथ इसे पाकिस्तान का सबसे छोटा धार्मिक समुदाय माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Matthys
8 तस्वीरें1 | 8
इसके बावजूद हजारा लोगों पर हमले नहीं रुक रहे हैं. अप्रैल में एक सब्जी मंडी में हुए बम धमाके में 21 लोग मारे गए और 47 घायल हुए. मारे गए लोगों में ज्यादातर हजारा थे. इस हमले की जिम्मेदारी तथाकथित इस्लामिक स्टेट से जुड़े समूह लश्कर ए झांगवी ने ली जो एक शिया विरोधी गुट है. हजारा लोगों के खिलाफ 2013 से लगातार हमले हो रहे हैं जिनमें अब तक लगभग 200 लोग मारे गए हैं.
सीमा पार अफगानिस्तान में भी हजारा लोगों की हालत इतनी ही दयनीय हैं. उनकी मस्जिदों, स्कूलों और सार्वजनिक आयोजनों पर चरमपंथी हमले होते हैं. पाकिस्तान लंबे समय से अशांति और सांप्रदायिक हिंसा झेल रहा है. इसमें हजारा लोगों को खास तौर से निशाना बनाया जाता है. हजारा लोग मध्य एशियाई लोगों की तरह दिखते हैं, इसलिए आसानी से पहचाने जा सकते हैं. सुन्नी चरमपंथी उन्हें काफिर मानते हैं और उन्हें बार बार निशाना बनाते हैं.
क्वेटा में हजारा लोगों की एक बस्ती का नाम है हजारा टाउन. यहां रहने वाले नोरोज अली कहते हैं कि यहां से बाहर निकलने का मतबल है कि अपनी जान को जोखिम में डालना, लेकिन कमाने नहीं जाएंगे तो अपने परिवार और बच्चों को कैसे पालेंगे. हमलों को रोकने में अपनी नाकामी पर अधिकारी कहते हैं कि सांप्रदायिक गुटों की हिंसा में उनके अपने कर्मचारी भी मारे जा रहे हैं. अधिकारियों के मुताबिक यह इस बात का सबूत है कि वे अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं.
स्थानीय पुलिस अधिकारी अब्दुर रज्जाक चीमा कहते हैं कि हजारा लोगों को बचाने की कोशिशों में "हजारा लोगों से ज्यादा पुलिसकर्मी मारे गए हैं". चीमा का कहना है कि उनकी कोशिशों का ही नतीजा है कि इतने सारे आतंकवादी गिरफ्तार किए गए हैं और मारे गए हैं. वह कहते हैं, "नए नए गुट पैदा हो रहे हैं. हम उनका पता लगा रहे हैं और उनसे होने वाले खतरे से निपटने की कोशिश कर रहे हैं."
भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बावजूद हजारा लोगों की बस्तियां भी सुरक्षित नहीं हैं. 2013 में एक बस्ती के भीतर जोरदार धमाका हुआ था. हजारा डेमोक्रेटिक पार्टी का कहना है कि बदहाल परिस्थितियों के कारण हाल के सालों में 75 हजार से लेकर एक लाख हजारा लोग देश के दूसरे हिस्सों में या फिर विदेशों में चले गए हैं. इस समुदाय से संबंध रखने वाले ताहिर हजारा कहते हैं, "हम लोग बेबस हैं. हम किससे उम्मीद करें कि वह हमारी जिंदगियों को बचाएगा."
अफगानिस्तान पर 2001 में तालिबान के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाई के बाद से पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथियों ने हजारों लोगों की जान ली है. यहां तस्वीरों में पिछले एक दशक के कुछ प्रमुख कट्टरपंथी हमले.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Khawer
2017- शाहबाज कलंदर की मजार पर हमला
सिंध प्रांत के सेहवान में 16 फरवरी 2017 को एक सूफी संत शाहबाज कलंदर की मजार को निशाना बनाया जिसमें 70 से ज्यादा लोग मारे गए. आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने हमले की जिम्मेदारी ली है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Nagori
2016 - क्वेटा पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज
24 अक्टूबर को क्वेटा के पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज पर तीन आतंकवादियों ने हमला किया. इस हमले में 60 से ज्यादा कैडेटों की मौत हो गई. इस साल के सबसे भयानक हमलों में से एक में तीनों आत्मघाती हमलावरों को मार डाला गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Taraqai
2016 - क्वेटा में अस्पताल पर हमला
आतंकवादियों ने 8 अगस्त 2016 को क्वेटा के सरकारी अस्पताल पर आत्मघाती हमला किया. फायरिंग और उसके बाद हुए आत्मघाती हमले में 70 लोग मारे गए. निशाना वकीलों को बनाया गया था जो अस्पताल में बार एसोसिएशन के प्रमुख बिलाल अनवर कासी की लाश के साथ आए थे. उन्हें अज्ञात लोगों ने गोली मार दी थी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Khan
2016 - लाहौर में पार्क पर हमला
27 मार्च 2016 को लाहौर में एक लोकप्रिय पार्क पर आत्मघाती हमला हुआ जिसमें 75 लोग मारे गए. हमला ईसाई समुदाय पर लक्षित था जो ईस्टर मना रहे थे. मृतकों में 14 लोगों की शिनाख्त ईसाइयों के रूप में हुई, बाकी मुसलमान थे. तहरीके तालिबान से जुड़े गुट जमात उल अहरार ने जिम्मेदारी ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali
2015 - कराची में एक बस को बनाया निशाना
कराची में सफूरा गोठ में 8 बंदूकधारियों ने एक बस पर हमला किया. फायरिंग में 46 लोग मारे गए. मरने वाले सभी लोग इस्माइली शिया समुदाय के थे. प्रतिबंधित उग्रपंथी गुट जुंदलाह ने हमले की जिम्मेदारी ली. हमले की जगह इस्लामिक स्टेट को समर्थन देने वाली पर्चियां भी मिली.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
2014 - पेशावर में बच्चों पर क्रूर हमला
16 दिसंबर 2014 को तहरीके तालिबान से जुड़े 7 बंदूकधारियों ने पेशावर में आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमला किया. आतंकियों ने बच्चों और स्टाफ पर गोलियां चलाईं और 154 लोगों को मार दिया. उनमें 132 बच्चे थे. यह पाकिस्तान में होने वाला अब तक का सबसे खूनी आतंकी हमला था.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A Majeed
2013 - पेशावर में चर्च पर हमला
पेशावर में 22 सितंबर 2013 को ऑल सेंट चर्च पर हमला हुआ. यह देश के ईसाई अल्पसंख्यकों पर सबसे बड़ा हमला था. इस हमले में 82 लोग मारे गए. हमले की जिम्मेदारी तहरीके तालिबान पाकिस्तान से जुड़े एक इस्लामी कट्टरपंथी गुट जुंदलाह ने ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Khan
2011 - चारसद्दा में पुलिस पर हमला
13 मई 2011 को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के चारसद्दा जिले में शाबकदर किले पर दोहरा हमला हुआ. दो आत्मघाती हमलावरों ने एक पुलिस ट्रेनिंग सेंटर के बाहर दस दिन की छुट्टी के लिए बस पर सवार होते कैडेटों पर हमला किया और 98 लोगों की जान ले ली. कम से कम 140 लोग घायल हो गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/H. Ahmed
2010 - कबायली इलाके पर दबिश
उत्तर पश्चिम के मोहमंद जिले में एक आत्मघाती हमलावर ने व्यस्त बाजार पर हमला किया और 105 लोगों की जान ले ली. केंद्र शासित कबायली इलाके में ये हमला 9 जुलाई को हुआ. माना जाता है कि हमले का लक्ष्य कबायली सरदारों की एक मीटिंग थी. जिम्मेदारी तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Majeed
2010 - लाहौर नरसंहार
मई 2010 के आतंकी हमले को लाहौर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है. 28 मई को जुम्मे की नमाज के दौरान अल्पसंख्यक अहमदिया संप्रदाय की दो मस्जिदों पर एक साथ हमले हुए. 82 लोग मारे गए. हमले की जिम्मेदारी तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने ली.
तस्वीर: Getty Images/N. Ijaz
2010 - वॉलीबॉल मैच को बनाया निशाना
पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी जिले बन्नू के एक गांव में वॉलीबॉल मैच चल रहा था. आतंकवादियों ने इस मैच को भी शांति में नहीं होने दिया. उस पर कार में रखे बम की मदद से आत्मघाती हमला हुआ. हमले में 101 लोग मारे गए. खेल का मैदान कत्लेआम का गवाह बना.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Azam
2009 - लाहौर का बाजार बना निशाना
दिसंबर 2009 में लाहौर के बाजार में दो बम धमाके किए गए और देश के दूसरे सबसे बड़े शहर के भीड़ भरे बाजार में फायरिंग भी की गई. हमलों में कम से कम 66 लोग मारे गए. मरने वालों में सबसे ज्यादा तादाद महिलाओं की थी. इस हमले के साथ देश का प्राचीन शहर आतंकियों की जद में आ गया था.
तस्वीर: DW/T.Shahzad
2009 - नया निशाना पेशावर
पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर में बसे शहर पेशावर के मीना बाजार में एक कार बम का धमाका किया गया. इस धमाके में 125 लोग मारे गए और 200 से ज्यादा घायल हो गए. पाकिस्तान की सरकार ने हमले के लिए तालिबान को जिम्मेदार ठहराया. लेकिन तालिबान और अल कायदा दोनों ने ही हमले में हाथ होने से इंकार किया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A Majeed
2008-राजधानी में लक्जरी होटल पर हमला
कट्टरपंथी आम लोगों पर हमले के तरह तरह के तरीके ईजाद कर रहे थे. एक ट्रक में विस्फोटक भर कर उन्होंने 20 सितंबर 2008 को राजधानी इस्लामाबाद के मैरियट होटल के सामने उसे उड़ा दिया. कम से कम 60 लोग मारे गए और 200 से ज्यादा घायल हो गए. मरने वालों में 5 विदेशी नागरिक भी थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Matthys
2008-पाकिस्तान की हथियार फैक्टरी पर हमला
वाह में 21 अगस्त 2008 को पाकिस्तान की ऑर्डिनेंस फैक्टरी पर दोहरा आत्मघाती हमला किया गया. हमलों में कम से कम 64 लोग मारे गए. यह पाकिस्तानी सेना के इतिहास में उसके संस्थान पर हुआ अब तक का सबसे खूनी हमला है. तहरीके तालिबान पाकिस्तान के एक प्रवक्ता ने हमले की जिम्मेदारी ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Khan
2007- बेनजीर की वापसी पर बम हमला
सैनिक तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने 2008 में चुनाव कराकर सत्ता के बंटवारे का रास्ता चुना था. दो बार प्रधानमंत्री रही बेनजीर भुट्टो चुनाव में भाग लेने निर्वासन से वापस लौटीं. करांची में उनके काफिले पर बम हमला हुआ. वे बाल बाल बची. लेकिन दो महीने बाद 27 दिसंबर को रावलपिंडी में भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया.