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पाकिस्तान में बढ़ रहे हैं तलाक

२८ मई २०१३

पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में महिलाओं के लिए तलाक लेना संभव नहीं है, खासतौर से अफगानिस्तान से लगे इलाकों में इसका खामियाजा औरतों को हिंसा और यहां तक कि मौत के रूप में भी भुगतना पड़ सकता है. बावजूद इसके तलाक बढ़ रहे हैं.

तस्वीर: picture alliance/Photoshot

मासूमा सारा खान के लिए उनकी शादी तब हुई जब वह महज 11 साल की थीं और उनके मां बाप ने उन्हें 25,000 पाकिस्तानी रूपये में बेच दिया. पेशावर के एक ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली मासूमा कहती हैं, "मेरी शादी ना तो अरेंज थी ना लव. मैं अपने पति को एक खिलौने की तरह बेच दी गई. हर औरत अपनी शादी के सपने देखती है, लेकिन मैं तो बस किसी तरह इससे निकल गई. मेरा पति मुझसे प्यार नहीं करता जबकि मैं केवल अपने मां बाप की खुशी चाहती थी."

11 साल की शादी के बाद पिछले साल मासूमा ने तलाक के लिए अर्जी दी. इसके पीछे वह कारण बताती हैं कि उनके पति का बड़ा भाई उनके साथ यौन दुर्व्यवहार करता था. उनका कहना है, "मैं उसी घर में उसके साथ कैसे रह सकती हूं? मुझे अपनी इज्जत की चिंता है."

मासूमा के तलाक का मामला अभी लटका हुआ है, लेकिन उनके लिए जिंदगी की मुश्किलें बढ़ गई हैं. उन्होंने बताया, "पति को छोड़ने के बाद मेरे मां बाप मुझे अपने घर में नहीं रखना चाहते. मैंने किराए पर घर लेना चाहा, लेकिन कोई भी अकेली औरत को घर नहीं देना चाहता. अब मैं अपनी एक दोस्त के घर उसके परिवार के साथ रहती हूं, पर वहां बहुत सारी बंदिशें हैं." मासूमा के लिए अपने दो बच्चों को पालना मुश्किल हो रहा है.

रूढ़िवादी पख्तून समुदाय में कोई औरत तलाक मांगे, यह लोगों को हजम नहीं होता, जबकि पुरुष अगर ऐसा करे तो उसे बहुत जल्दी तलाक की अनुमति मिल जाती है.

तस्वीर: DW

कोर्ट की शरण में

पिछले साल मशहूर पश्तो गायिका गजाला जावेद की उनके पति ने गोली मार कर हत्या कर दी. गजाला की गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने तलाक मांग लिया था. दरअसल उसे अपने पति की एक और बीवी होने का पता चल गया था. गजाला की मां अब भी उसकी मौत के सदमे में हैं, "हम अदालत से न्याय चाहते हैं और कोई ऐसा जो हमारी मदद करे."

मासूमा खान भी न्याय चाहती हैं. मासूमा ने पेशावर हाईकोर्ट में अपील की है. वकील अहमद सलीम खान उनकी ओर से बहस कर रहे हैं. खान ने बताया कि पिछले एक दशक से तलाक के मामलों में काफी इजाफा हुआ है. कोर्ट के दस्तावेजों से पता चलता है पेशावर कोर्ट में पिछले एक साल के भीतर एक हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. 1998 में ऐसे मामलों की संख्या केवल 80 थी. खान का मानना है कि महिलाओं में अब अपने अधिकारों के लेकर जागरुकता बढ़ गई है. अहमद खान बताते हैं, "मीडिया के कारण वे जानती हैं कि कोई भी वैवाहित महिला जिसे उसके अधिकार नहीं मिल रहे और जिसे हिंसा झेलनी पड़ रही है वह तलाक मांग सकती है. यही वजह है कि वे अब अदालत तक आ रही हैं."

तलाक का दंश

जामिया दरवेश एक स्थानीय इस्लामी स्कूल है जहां लोग इस्लाम से जुड़े अलग अलग मुद्दों पर सलाह लेने के लिए आ सकते हैं. यहां आने वाले 40 फीसदी से ज्यादा लोग तलाक के मामले में सलाह लेने के लिए आते हैं. जामिया दरवेश के विद्वानों में एक मुफ्ती अब्दुल कदीर हैं जो लोगों को अलग होने से रोकते हैं. कदीर का कहना है, "तलाक पूरी तरह से समाज, जाति और परिवार को तोड़ कर रख देता है. इस्लाम में भी इसकी कड़ी चेतावनी दी गई है और इसे आखिरी उपाय माना गया है."

तस्वीर: Reuters

इस्लाम में माना गया है कि तलाक पति या पत्नी कोई भी मांग सकता है. सैद्धांतिक रूप से यह दोनों को समान अधिकार देता है, लेकिन व्यवहारिक रूप में पाकिस्तान के कई समुदायों में यह अधिकार पति के हाथ में ही सिमटे हैं और महिलाएं इससे महरूम हैं. 2012 में विश्व आर्थिक मंच ने अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान को दुनिया के उन देशों में रखा, जहां लिंग के आधार पर असमानता सबसे ज्यादा है.

महिलाओं की मदद की कोशिश

शादी के बाद पत्नी का पति को छोड़ने पर विवश होने की एक बड़ी वजह है हिंसा. महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन औरत फाउंडेशन के मुताबिक पिछले साल आठ हजार से ज्यादा महिलाओं की हत्या हो गई. हत्या का शिकार हुई इन महिलाओं ने या तो अपने पतियों के हिंसा की शिकायत की थी या फिर उन्होंने तलाक मांगा था.

औरत फाउंडेशन की स्थानीय निदेशक शबीना अयाज ने कहा कि महिलाओं को हिंसा या जीवन में विपत्ति को नहीं सहना चाहिए, "हमारे समाज में महिलाओं को यह सिखाया जाता है कि एक बार शादी हो गई तो फिर यह उन्हें जीवन भर के लिए स्वीकार कर लेना चाहिए और यह गलत है." अयाज ने शादी के बाद संकट के कारण मां बाप के घर वापस लौटने वाली महिलाओं को स्वीकार न करने की प्रवृत्ति की भी निंदा की.

कराची और लाहौर जैसे शहरों में हालात पेशावर और दूसरे सरहदी इलाकों से काफी अलग हैं. बड़े शहरों में हिंसा की स्थिति में महिलाएं पुलिस के पास आसानी से पहुंच सकती हैं और अदालत या वकील से भी उनका ज्यादा संपर्क है.

महिला अधिकार के लिए काम करने वाले गुटों ने कुछ इलाकों में चुनौतियां झेल रही महिलाओं के लिए खास कार्यक्रम चलाए हैं. वे पुलिस के साथ काम करती हैं, घरेलू हिंसा झेल रही महिलाओँ को बताती हैं कि उन्हें ऐसी स्थिति से कैसे निपटना है. उनका लक्ष्य वकीलों में भी घरेलू हिंसा और लिंगभेद के प्रति जागरुकता पैदा करना है.

अयाज तलाक चाहने वाली या घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओँ को मुफ्त में कानूनी मदद भी दिलवाती हैं. हालांकि इसके बावजूद महिलाओं के लिए तालाक लेना काफी कठिन है. मासूमा अपने बच्चे के लिए पति से कोई मदद नहीं चाहतीं फिर भी वह डरी हुई हैं, "मुझे डर है कि किसी दिन कोई मेरे घर आकर मुझे गोली मार देगा. बाहर मुझे यह डर होता है कि कहीं कोई मुझ पर एसिड न फेंक दे."

रिपोर्टः मुदस्सर शाह/एनआर

संपादनः ईशा भाटिया

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