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पाकिस्तान में बिना आरोप कैद

२५ जनवरी २०१३

पाकिस्तान की जेलों में 700 ऐसे लोग कैद हैं जिन पर कोई आरोप ही तय नहीं हैं. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का कहना है कि ये आतंकवाद से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन इनके खिलाफ न तो मुकदमा चल रहा है, न ही आगे की कार्रवाई हो रही है.

तस्वीर: Reuters

पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने 700 लोगों को बिना आरोप तय किए गिरफ्तार किए जाने पर सवाल उठाया है. अटॉर्नी जनरल इरफान कादिर ने अदालत को बताया कि उन्हें एक खास कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है. एक्शंस इन एड ऑफ सिविल पावर रेगुलेशंस कानून के अंतर्गत इन लोगों को पाकिस्तान के उत्तर पूर्वी कबायली इलाके से गिरफ्तार किया गया है. इरफान कादिर ने कहा, "वजीरिस्तान में सैन्य कार्रवाई चल रही है. कानून के अनुसार जब तक यह कार्रवाई पूरी नहीं हो जाती, हम इन लोगों पर न तो मुकदमा चला सकते और न ही हम इन्हें छोड़ सकते हैं."

वजीरिस्तान का कबायली इलाका अफगानिस्तान की सीमा से लगा है. यहां पाकिस्तान सेना तालिबान के खिलाफ कार्रवाई कर रही है. दिसंबर में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस कानून की आलोचना करते हुए कहा था कि पाकिस्तान में बिना किसी सबूत के हजारों लोगों को बंदी बनाया जा रहा है और इस तरह के कानून से मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. रिपोर्ट में कहा गया था, "सेना द्वारा हिरासत में लिए गए लोगों को बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता है या उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है." हालांकि पाकिस्तान सेना और आईएसआई ने उत्पीड़न के आरोपों को गलत बताते हुए इससे इनकार किया है.

बिना आरोप कैद रखने पर सुप्रीम कोर्ट सख्ततस्वीर: dapd

सुप्रीम कोर्ट में 2007 से सात लोगों पर मुकदमा चल रहा है. हालांकि अदालत ने 2010 में ही इनकी रिहाई के आदेश दे दिए थे लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं. फरवरी 2012 में इन सातों को अदालत में पेश करने का आदेश दिया गया. तब तक सातों बंदियों की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि वे ठीक से चल तक नहीं पा रहे थे. अदालत ने इस मामले में सेना और आईएसआई से सफाई मांगते हुए पूछा है कि रिहाई के आदेश के बाद भी इन्हें आज तक क्यों कैद में रखा गया है.

इन सातों को नवंबर 2007 में पकड़ा गया था. शुरुआत में कुल 11 लोग थे. आईएसआई ने अदालत को बताया कि इस बीच चार लोगों की मौत हो चुकी है. चीफ जस्टिस इफ्तिकार मुहम्मद चौधरी ने कहा, "इन लोगों को हमेशा के लिए हिरासत में नहीं रखा जा सकता. ऐसा करना संविधान के और लोगों के अधिकारों के खिलाफ है." चौधरी ने कहा कि वह सभी 700 लोगों को छोड़ देने की पैरवी नहीं कर रहे हैं, "हम नहीं कहते कि आप इन्हें रिहा कर दें, हम चाहते हैं कि आप कानून के अनुसार इनकी सुनवाई करें."

माना जा रहा है कि अदालत अपने कड़े रुख से यह बात साफ करना चाहती है कि देश में संविधान नाम की भी कोई चीज है, जो सेना या खुफिया एजेंसियों से बहुत ऊपर है.

आईबी/ओएसजे (एएफपी/रॉयटर्स)

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