पाकिस्तान की सरकार म्यांयार की इस बात पर आलोचना करते हैं कि वे रखाइन में रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार कर रहे हैं. लेकिन पाकिस्तान उन रोहिंग्या मुसलमानों के साथ कैसा बर्ताव कर रहा है, जो वहां दशकों से रह रहे हैं
विज्ञापन
"मैं एक रोहिंग्या हूं, लेकिन एक पाकिस्तानी रोहिंग्या. मैं बांग्ला बोलता हूं और इसीलिए हमारे इलाके के ज्यादातर लोग हमें बंगाली कहते हैं. वे हमें पाकिस्तानी के रूप में स्वीकार नहीं करते." ये कहना है मुफीज उर रहमान का जो एक रोहिंग्या मुसलमान हैं और पाकिस्तान के कराची शहर के अराकान इलाके में रहते हैं.
पाकिस्तान में इस वक्त लगभग ढाई लाख रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं और म्यांमार के रखाइन प्रांत में 25 अगस्त को हुई हिंसा के बाद उसने म्यांमार सरकार के खिलाफ विरोध भी दर्ज कराया था. लेकिन इस विरोध पर पाकिस्तान में रह रहे रोहिंग्या मसलमानों ने खुद को छला हुआ महसूस किया क्योंकि वे कहते हैं मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में वे भेदभाव का सामना करते हैं और बहुत ही खराब स्थितियों में जीने को मजबूर हैं.
स्वीकार नहीं किया गया
डीडब्ल्यू से बातचीत में पाकिस्तान के एक रोहिंग्या मुसलमान नासिर अहमद ने कहा, "हम झोपड़ियों में रह रहते हैं. यहां स्थिति बहुत ही भयानक है."
उन्होंने बताया कि उस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं की कमी है. अराकान अबाद में कोई अस्पताल नहीं है. रोहिंग्या लोग पुराने और बार्बाद हो चुके घरों में रह रहे हैं. नासिर अहमद अपने अपार्टमेंट में 20 और लोगों के साथ रहते हैं. रहमान कहते हैं, "मैं कभी म्यांमार नहीं गया. मैं बस इतना जानता हूं कि मेरे पिता म्यांमार से पाकिस्तान आये थे. पर म्यांमार में क्या हुआ मैंने टीवी पर देखा. यह बहुत ही दिल दहला देने वाला है कि हमारे लोगों के साथ अत्याचार हो रहा है और कोई भी उनकी मदद नहीं कर रहा है."
75 वर्षीय रहमत अली 1970 के दशक में म्यांमार से पाकिस्तान आये थे. वो कहते हैं, "म्यांमार ने रोहिंग्या के प्रति अपना दृष्टिकोण नहीं बदला है. यातना और नरसंहार निरंतर जारी है, लेकिन इस समय के आसपास यह बहुत बुरा है. इस बार की हिंसा सबसे भयानक है." वे भी कहते हैं, "मुझे एक पाकिस्तानी के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया गया."
रहमत के मुताबिक, "पाकिस्तान में जीवन जीना बहुत मुश्किल है. मैं रखाइन में रहता था. मैं नरसंहार से बच कर बांग्लादेश से होते हुए पाकिस्तान आया, जो उस समय पूर्वी पाकिस्तान था. मेरी एक बेटी जोरा खातून आज भी बांग्लादेश के ढाका में रहती है. मैं चालीस साल से भी ज्यादा समय से पाकिस्तान में रह रहा हूं पर मुझे कभी भी पाकिस्तानी की तरह स्वीकार नहीं किया गया. पाकिस्तानियों के लिए हम हमेशा बंगाली और शरणार्थी रहे."
नागरिकता का कोई सबूत नहीं
कराची के अराकान में रहे रहे रोहिंग्या ने डीडल्ब्यू को बताया कि वह पाकिस्तान में किसी सरकारी नौकरी में भी आवेदन नहीं कर सकते हैं. एक पाकिस्तानी रोहिंग्या ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमारे पास देश का राष्ट्रीय पहचान पत्र नहीं है इसीलिए हम किसी भी सरकारी नौकरी में आवेदन करने के लिए योग्य नहीं है."
अबुल हुसैन 1968 में पाकिस्तान आये और अभी भी कराची में एक शरणार्थी की तरह रह रहे हैं. उन्होंने कहा, "पुलिस हमें तंग करती है क्योंकि हमारे पास पहचान पत्र नहीं है. पाकिस्तान के कई रोहिंग्या मछुआरे, भारत की समुद्री सीमाओं में पकड़े गये थे लेकिन वे यह साबित नहीं कर पाये कि वे पाकिस्तानी हैं क्योंकि उनके पास कोई पहचान पत्र नहीं था. हम देशविहीन लोग हैं. हम म्यांमार में मारे जा रहे हैं और पाकिस्तान में सताए जा रहे हैं.
हालांकि, कई रोहिंग्या और बंगालियों ने पाकिस्तान में अवैध पहचान पत्र बनवा लिये हैं. पाकिस्तान के एक रिक्शाचालक ने कहा, " पाकिस्तान में रोहिंग्या लोगों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. वे भारत के एजेंट हैं. उन्हें देश छोड़ देना चाहिए. "
-शाह मीर बलोच
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
तस्वीर: Reuters/D. Whiteside
सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
तस्वीर: Getty Images/Afp/C. Archambault
जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Pruksarak
सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Ismail
इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
तस्वीर: DW/C. Kapoor
बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
तस्वीर: Reuters
दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/C. Kapoor
सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Aung Thu
मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Yulinnas
कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Win
आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.