"रणनीति बदले अमेरिका"
२५ जनवरी २०१४![](https://static.dw.com/image/17381899_800.webp)
अमेरिकी पॉलिसीमेकरों का मानना है कि अमेरिका पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को आम तौर पर अफगानिस्तान सुरक्षा मामलों से जोड़ कर देखता आया है. अमेरिकी थिंक टैंक 'काउंसिल ऑन फॉरन रिलेशंस' की रिपोर्ट के अनुसार अब अमेरिका को पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों पर गौर करने की जरूरत है.
इस रिपोर्ट के एक लेखक डैनिएल एस मार्की कहते हैं, "पाकिस्तान में अमेरिकी पॉलिसी अफगान सुरक्षा से जुड़ी रही है जो कि पाकिस्तान में ज्यादा पसंद नहीं की जाती. लेकिन अब जबकि अमेरिका अफगानिस्तान से वापसी कर रहा है, जो कि अफगानिस्तान में उसकी जिम्मेदारी में होने जा रही कमी की तरफ इशारा करता है, अमेरिका को पाकिस्तान में अपनी कार्यनीति के बारे में दोबारा सोचने की जरूरत है." पाकिस्तान के साथ अमेरिका की नई सोच अमेरिका को अन्य एशियाई देशों चीन और भारत में भी फायदा पहुंचाएंगी. एशिया पर फोकस बढ़ाना राष्ट्रपति बराक ओबामा की नीति भी है.
दो जरूरी लक्ष्य
रिपोर्ट के अनुसार नई नीति में दो बातों का ख्याल रखा जाना जरूरी है. पहला, अमेरिका को पाकिस्तान में मिल रही सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से निपटना होगा. दूसरा, भारत के साथ उसका नाजुक रिश्ता.
इनमें से दूसरे मकसद को पूरा करने के लिए अमेरिका को चाहिए कि वह एशिया की क्षेत्रीय आर्थिक ताकतों के साथ ज्यादा से ज्यादा आर्थिक समझौते करने के लिए पाकिस्तान पर जोर डाले. हालांकि पहले मकसद को पूरा करने में कई चुनौतियां हैं.
मार्की कहते हैं, "पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को अमेरिका सीधे चुनौती नहीं दे सकता है. यह पाकिस्तान की समस्या है और इसके लिए पाकिस्तान के नेताओं की भागीदारी की जरूरत है." साथ ही वह मानते हैं कि अमेरिका इस काम में पाकिस्तान के सैनिकों को प्रशिक्षण और हथियार मुहैया करा उनकी मदद जरूर कर सकता है. अमेरिका ने इस तरह की नीति पहले भी पाकिस्तान में तालिबान के खिलाफ अपनाई है.
बढ़ता अविश्वास
अमेरिका द्वारा पाकिस्तान में नियमित भूमिका के पीछे कारण है पाकिस्तान का अमेरिका में अविश्वास. रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि अमेरकिा को उसी स्थिति में पाकिस्तान की मदद करनी चाहिए जब पाकिस्तान खुद आतंकवाद से लड़ाई के प्रति जिम्मेदारी दिखाए.
अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद को सिर्फ अफगानिस्तान से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए. बल्कि इसे पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा के लिए प्रयासों पर गौर करते हुए देखना चाहिए. पाकिस्तान की जमीन पर हो रही हिंसा के खिलाफ पाकिस्तान की वचनबद्धता को ध्यान में रख कर भी इसे देखा जाना चाहिए.
अमेरिका को खुद अपने हित के लिए भी अविश्वास की समस्या से निपटना पड़ेगा. एक और थिंक टैंक विल्सन सेंटर के माइकल कूगलमन मानते हैं कि यह अविश्वास दोनों के बीच इसलिए भी है क्योंकि दोनों के लिए खतरे की परिभाषा अलग है और उससे निपटने का तरीका भी.
विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका सभी कट्टरपंथी समूहों को खतरे की तरह देखता है. और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहता है. लेकिन पाकिस्तानी नेताओं के लिए ये समूह एक दूसरे से अलग हैं और यह उनके लिए मायने रखता है. कूगलमन कहते हैं, "पाकिस्तानियों की नजर में कुछ लड़ाकू समूह दूसरों से ज्यादा खतरनाक हैं. खासकर वे जो सरकार पर निशाना साधते हैं."
अर्थव्यवस्था पर गौर
मार्की की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका को पाकिस्तान के आर्थिक पहलुओं पर भी गौर करना चाहिए. खासकर चीन और भारत के साथ उसके संबंधों के मामले में. अमेरिकी कूटनीतिज्ञों और व्यापार अधिकारियों को चाहिए कि वे भारत, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के साथ कम बाधाओं वाला व्यापार का एक संयुक्त रास्ता निकालें. हालांकि इसका यह मतलब नहीं कि अमेरिका को भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार को ले कर चल रहे मौजूदा मतभेदों का हिस्सा बन जाना चाहिए.
मार्की ने कहा, "अमेरिक को चाहिए कि वह दोनों देशों को द्विपक्षीय समझौते के फायदे समझाने की कोशिश करे. क्षेत्रीय संभावनाओं के अलावा पाकिस्तान के पास समृद्धि का और कोई रास्ता नहीं है." फिलहाल भारत पाकिस्तान व्यापार संबंध ज्यादा भारत के पक्ष में हैं. भारत पाकिस्तान को ज्यादा सामान मुहैया करा रहा है. इसकी एक वजह यह भी है कि पाकिस्तान की अपनी उत्पादकता भारत के मुकाबले कहीं कम है.
संगठन सेंटर फॉर ग्लोबल डेवेलपमेंट का मानना है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सुधारने में अमेरिका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और एशियन डेवेलपमेंट बैंक के जरिए भी मदद कर सकता है.
एसएफ/आईबी (आईपीएस)