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पाकिस्तान में सरकार सेना से भिड़ी

११ जनवरी २०१२

पाकिस्तान में सेना और सरकार खुल कर आमने सामने आ गए हैं. फौज का कहना है कि अगर सरकार ने उनकी धुलाई जारी रखी तो इसके बेहद खतरनाक अंजाम होंगे और उधर सरकार ने फौज से ताल्लुक रखने वाले रक्षा सचिव को बर्खास्त कर दिया.

तस्वीर: AP

अमेरिका में सामने आए एक मेमो के बाद पाकिस्तान की सरकार की खूब फजीहत हो रही है. इसके बाद ही पाकिस्तानी सेना भी गर्म हो गई है और यहां तक कहा जा रहा है कि उन्होंने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को काम करने से रोक दिया है. मेमोगेट से मशहूर हुए इस कांड में हालांकि जिस मेमो की चर्चा हो रही है, उस पर किसी का दस्तखत नहीं था.

प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के दफ्तर से जारी एक बयान में कहा गया है कि रक्षा सचिव नईम खालिद लोधी को बुरे बर्ताव और गैरकानूनी कदम उठाने की वजह से पद पर से हटा दिया गया है. बयान में कहा गया है कि लोधी के कदमों से सरकार की अलग अलग संस्थाओं के बीच गलतफहमी पैदा हुई. पाकिस्तान के 1947 में अस्तित्व में आने के बाद से ही सेना और सिविल सरकार के बीच तनाव चल रहा है और इस दौरान सेना ने कई बार तख्ता पलट किया है.

जनरल अशफाक परवेज कियानीतस्वीर: Abdul Sabooh

रक्षा सचिव की बर्खास्तगी से ठीक पहले पाकिस्तान की सेना ने कहा था कि अगर उन पर किसी तरह के आरोप लगाए जाएंगे, तो इसके बेहद खतरनाक अंजाम होंगे. प्रधानमंत्री गिलानी ने चीनी प्रेस से बातचीत में कहा था कि सेना और खुफिया विभाग के प्रमुखों ने मेमोगेट कांड में असंवैधानिक तरीके से काम किया है.

क्या है माजरा

समाचार एजेंसियों ने पहले रिपोर्टें दी थीं कि पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल लोधी का छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है. लोधी को सेना प्रमुख परवेज कियानी का बेहद करीबी बताया जाता है. उन्होंने 21 दिसंबर को पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके कहा था कि पाकिस्तान की रक्षा मंत्रालय का सेना और खुफिया विभाग की गतिविधियों पर कोई नियंत्रण नहीं है. सूत्रों का कहना है कि लोधी ने इस हलफनामे को रक्षा मंत्री चौधरी अहमद मुख्तार से पास कराए बगैर ही कोर्ट में पेश कर दिया.

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्टतस्वीर: Abdul Sabooh

इसके अगले दिन प्रधानमंत्री ने लोधी को निर्देश दिया कि वह अदालत में नया हलफनामा दायर करें, जो कि सरकार के नजरिए से ज्यादा सटीक हो लेकिन लोधी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. लोधी के इस हलफनामे से प्रधानमंत्री गिलानी का वह दावा खोखला साबित होता है, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि सेना सहित सभी सरकारी इदारे सरकारी नियंत्रण में हैं.

पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के सूत्रों का कहना था कि लोधी के इस हलफनामे से दुनिया के सामने इस बात की छवि जाएगी कि पाकिस्तान में सेना और सरकार के बीच दरार बहुत बढ़ गई है. जब लोधी ने दोबारा हलफनामा दायर करने से इनकार कर दिया, उसके बाद ही प्रधानमंत्री गिलानी ने दो मौकों पर सेना के खिलाफ कठोर बयान दिए.धीरज खोते प्रधानमंत्री ने अब कहा कि सेना प्रमुख और आईएसआई प्रमुख ने संविधान के प्रतिकूल काम किया है.

गुस्से में लाल है सेना

गिलानी की टिप्पणी पर सीधा हमला करते हुए सेना ने बुधवार एक बयान जारी कर कहा, "आदरणीय प्रधानमंत्री ने जो आरोप लगाए हैं, उससे गंभीर आरोप नहीं लग सकते हैं." इसमें कहा गया, "इस तरह के आरोप का देश के अंदर बेहद गंभीर परिणाम निकल सकता है." पाकिस्तानी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ताजा तनाव बेहद गंभीर है.

प्रधानमंत्री गिलानीतस्वीर: picture-alliance/dpa

मेमोगेट स्कैंडल करीब तीन महीने पहले तब सामने आया, जब पाकिस्तानी मूल के बिजनेसमैन मंसूर एजाज ने अमेरिका की फाइनेंशियल टाइम्स में एक लेख लिखा. इसमें दावा किया गया कि पाकिस्तान के एक अधिकारी ने उन्हें एक मेमो अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन पहुंचाने का जिम्मा सौंपा. यह मेमो अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान के अंदर मारे जाने के बाद लिखा गया था. बताया जाता है कि एक वरिष्ठ पाकिस्तानी राजनयिक ने यह मेमो दिया जिसमें कहा गया कि बिन लादेन के खात्मे के बाद हो सकता है कि पाकिस्तानी सेना सरकार का तख्ता पलटने की कोशिश करे और वैसी हालत में पाकिस्तान को अमेरिकी मदद की जरूरत होगी.

हक्कानी बने बलि का बकरा

बाद में मंसूर ने उस राजनयिक की पहचान अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी के रूप में की. हक्कानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बेहद करीबी बताए जाते हैं. हालांकि हक्कानी ने इस बात से इंकार किया है लेकिन इस मामले के सामने आने के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले की जांच के लिए एक कमीशन बना दिया है.

इस घटनाक्रम के बीच राष्ट्रपति जरदारी बीमारी का इलाज कराने दुबई चले गए. वह जब वहां से लौटे तो राष्ट्रपति भवन न जाकर कराची चले गए. इसके करीब दो तीन हफ्तों बाद भी उन्होंने अपना काम शुरू नहीं किया है. बताया जाता है कि पाकिस्तान की सेना नहीं चाहती है कि जरदारी दोबारा राष्ट्रपति के तौर पर काम करें.

रिपोर्टः एएफपी, डीपीए/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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