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समाज

पाकिस्तान: स्कूल की किताबों में लिंग भेद

१४ सितम्बर २०२१

एक पिता और उसका बेटा सोफे पर बैठ कर होमवर्क कर रहे हैं और मां और बेटी जमीन पर बैठे हैं. पाकिस्तान में मर्दों और औरतों के बारे में पुराने खयालात दिखाने वाली इन किताबों की आलोचना हो रही है.

Pakaistan, Schulbuch - Achtung, schlechte Qualität
तस्वीर: B. Mari

पाकिस्तान में सत्तारूढ़ पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने इसी साल अगस्त में देश के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम (एसएनसी) में संशोधन किया और कहा कि ये संशोधन "शिक्षा प्रणाली में असमानता का अंत करने की राह में एक में एक मील का पत्थर है."

लेकिन इस नए पाठ्यक्रम की किताब जारी होने के बाद से सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इसकी आलोचना की है. उनका कहना है कि किताब में महिलाओं और पुरुषों को पितृसत्तात्मक रूप से दर्शाया गया है.

विचारधारा पर आधारित

यह आक्रोश शिक्षा विशेषज्ञों, ऐक्टिविस्टों और आम लोगों द्वारा की गई इस पाठ्यक्रम की आलोचना की ही तर्ज पर है. उनका कहना है कि यह लैंगिक बराबरी, धार्मिक अल्पसंख्यकों और सांस्कृतिक विविधता को शामिल करने में असफल हो गया है.

वीमेन ऐक्शन फोरम ने एक बयान में एसएनसी को "शिक्षा संबंधी अनिवार्यताओं की जगह विचारधारा संबंधित अनिवार्यताओं पर आधारित" बताया और कहा कि यह "समाज में विभाजन की सोच के बीज बोएगा."

लड़कियों को सिर्फ घर के काम करते हुए दिखाया गया हैतस्वीर: Mavra Bari

पांचवीं कक्षा की अंग्रेजी की किताब के आवरण पर एक पिता-पुत्र की सोफे पर पढ़ाई करते हुए तस्वीर है जबकि मां-बेटी जमीन पर पढ़ रही हैं. मां-बेटी ने हिजाब से अपने अपने सरों को भी ढक रखा है.

अधिकतर किताबों के आवरण पर छोटी बच्चियों को भी हिजाब पहने दिखाया गया है. सामान्य रूप से लड़कियां यौवनारंभ या प्यूबर्टी शुरू होने के बाद हिजाब पहनना शुरू करती हैं. उसी किताब में महिला नेताओं को "पुरुषों की समर्थक" भी बताया गया है.

असलियत से परे

लड़कियों और महिलाओं को मुख्य रूप से मां, बेटी, पत्नी और शिक्षिका के रूप में दिखाया गया है. खेलने और व्यायाम करने के चित्रों में उनके चित्र नहीं हैं. सिर्फ लड़कों को खेलते और व्यायाम करते देखा जा सकता है. लड़कियों को जिन चित्रों में जगह दी गई है उनमें वो महज दर्शक की तरह नजर आ रही हैं.

इदारा-ए-तालीम-ओ-आगाही (आईटीए) केंद्र की सीईओ बेला रजा जमील पूछती हैं, "पाकिस्तान में लड़कियां और महिलाएं इस समय खेलों में श्रेष्ठ प्रदर्शन दिखा रही हैं. वे ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. के2 जैसे पर्वतों पर चढ़ रही हैं. तो किताबें क्यों इसे प्रतिबिंबित करने की जगह शारीरिक गतिविधियों और प्रतियोगी खेलों से उन्हें बाहर कर रही हैं."

पेशावर में अपना हुनर दिखाती महिला खिलाड़ीतस्वीर: PPI/Zuma/picture alliance

ऐक्टिविस्ट और समाजशास्त्री निदा किरमानी ने डीडब्ल्यू को बताया कि लड़कियों के पहनावे को लेकर इन किताबों में जो संदेश दिए जा रहे हैं वो महिलाओं की लाज और कपड़ों के बारे में सरकार द्वारा दिए गए संदेशों के बाद ही आए हैं.

हाल ही में प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ लोगों का गुस्सा फट पड़ा था जब उन्होंने महिलाओं के खिलाफ बढ़ रही यौन हिंसा के लिए उनके पहनावे को जिम्मेदार बताया था.

किरमानी कहती हैं, "ऐसा लग रहा है कि ये किताबें सभी लड़कियों और महिलाओं के लिए एक ही तरह के पहनावे की बात कर रही हैं, लेकिन हम सब जानते हैं कि पाकिस्तान में कपड़े पहनने का सिर्फ एक तरीका नहीं है, बल्कि पर्दा करने का कई तरह का दस्तूर मौजूद है."

दक्षिणपंथी एजेंडा

संघीय शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण मंत्रालय की तकनीकी सलाहकार आयशा रज्जाक ने डीडब्ल्यू को बताया कि हालांकि महिलाओं को पुलिस और पायलट के रूप में दिखाए जाने के उदाहरण भी हैं, यह एक अपवाद है. उनके अनुसार यह एसएनसी में मौजूद "लिंग आधारित प्रतीकवाद" को और आगे बढ़ाता है.

महिलाओं के अधिकारों की मांग करते हुए इस्लामाबाद में रैलीतस्वीर: Aamir Qureshi/AFP/Getty Images

वह बताती हैं कि एसएनसी के अति-दक्षिणपंथी समर्थक इसी तरह के उदाहरणों को चुन कर आलोचना को नकार रहे हैं और पाठ्यक्रम में एक ऐसे एजेंडा को विश्वसनीयता देने की कोशिश कर रहे हैं जिसे पाकिस्तान के धार्मिक दक्षिणपंथी समर्थकों की तुष्टि के लिए बनाया गया है.

आईटीए की जमील ने यह भी कहा कि पाकिस्तान में महिलाएं पहले से भेदभावपूर्ण परंपराओं की वजह से अनुपातहीन रूप से प्रभावित हैं, वहां सर ढकने को सामान्य करने के संकेतों से उनके खिलाफ हिंसा और बढ़ सकती है.

पाकिस्तान के उच्च शिक्षा आयोग के पूर्व अध्यक्ष तारिक बनूरी ने डीडब्ल्यू को बताया कि एसएनसी में महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों और सांस्कृतिक विविधता के प्रतिनिधित्व में कमी की वजह से लोगों के बीच विभाजन बढ़ेगा और देश की शिक्षा प्रणाली और "उलझ" जाएगी.

"खतरा इस बात का है कि हमारे यहां एक और पीढ़ी जो सीख रही है उस पर सवाल नहीं उठा पाएगी. यह एक घातक समस्या है." दक्षिणी प्रांत सिंध ने एसएनसी को नकार दिया है और उसे "ऊटपटांग" और "लैंगिकवादी" बताया है. (बी. मारी)

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