पाक के खिलाफ भारत के साथ आए अफगानिस्तान और बांग्लादेश
२८ सितम्बर २०१६
इस्लामाबाद में होने वाला सार्क सम्मेलन रद्द होना तय हो गया है. भारत, भूटान और बांग्लादेश हिस्सा नहीं लेंगे. पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति भारत में कामयाब होती दिख रही है.
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आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को अलग-थलग कर देने की रणनीति में भारत को दक्षिण एशिया में बड़ी कामयाबी मिली है. भूटान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान ने भी इस्लामाबाद में नवंबर में होने वाले सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है. एक दिन पहले ही भारत ने कहा था कि वह 19वें सार्क सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेगा.
भारत का कहना है कि बीते हफ्ते कश्मीर के उड़ी में हुए आतंकी हमले में मारे गए आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे. उसका यह पुराना आरोप है कि पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को भड़का रहा है. इसलिए भारत ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग कर देने की रणनीति बनाई है. उसी के तहत भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर में इस्लामाबाद ना जाने का फैसला किया. और इस फैसले के ऐलान के एक ही दिन बाद सार्क के तीन और सदस्यों ने भारत जैसा फैसला कर लिया है.
जानिए, कौन है हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार
कौन है हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार
स्वीडन के थिंक टैंक सिपरी की रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया में हथियारों का आयात करने वाले देशों में एशिया और मध्यपूर्व के देश सबसे आगे हैं. इनमें भी टॉप पर है भारत जहां पर्याप्त स्वदेशी हथियारों का निर्माण नहीं हो रहा है.
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#1 भारत
दुनिया भर में आयात किए जाने वाले कुल हथियारों का 14 फीसदी केवल भारत में आता है. हथियारों का आयात भारत में चीन और पाकिस्तान से तीन गुना ज्यादा है. सिपरी की रिपोर्ट में इसका कारण “भारत की अपनी आर्म्स इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धी स्वदेशी हथियार डिजाइन कर पाने में असफल रहना” बताया गया है. सबसे ज्यादा हथियार रूस (70%), अमेरिका (14%) और इस्राएल (4.5%) से आते हैं.
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#2 सऊदी अरब
पहले के मुकाबले बीते पांच सालों में सऊदी अरब में हथियारों का इंपोर्ट 275 प्रतिशत बढ़ा. सीरिया और यमन में जारी युद्ध की स्थिति का भी इस बढ़त में हाथ है. सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका और ब्रिटेन से आ रहे हैं. सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार "तेल के दामों में आई कमी के बावजूद, मध्य पूर्व में हथियारों की बड़ी खेप आना जारी रहेगा क्योंकि बीते पांच सालों में कई अनुबंधों पर हस्ताक्षर हुए हैं."
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#3 चीन
विश्व के कुल आयात में करीब 4.7 फीसदी हिस्सेदारी वाला चीन धीरे धीरे अपने हथियारों की जरूरत खुद पूरी करने की ओर अग्रसर है. 2006-11 के मुकाबले 2011-15 में आयात में 25 फीसदी की कमी दर्ज हुई. 21वीं सदी के शुरुआती सालों में चीन दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक हुआ करता था. अब तीसरे स्थान पर है.
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#4 संयुक्त अरब अमीरात
बीते पांच सालों में उसके पहले के पांच सालों की अपेक्षा पूरे मध्यपूर्व इलाके में हथियारों का आयात 61 फीसदी बढ़ा. इसी दौरान केवल संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में आयात में 35 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई. जबकि कतर में यह 279 फीसदी बढ़ गया. सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका (65%) से आते हैं. हाल ही में यूएई ने फ्रांस से 60 नए रफाएल लड़ाकू जेट खरीदने का सौदा किया है.
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#5 ऑस्ट्रेलिया
सरकार हथियारों की खरीद 65 फीसदी तक बढ़ा कर बीते पांच सालों में ऑस्ट्रेलियाई सेना को मजबूत बना रही है. ऑस्ट्रेलिया प्रोजेक्ट कंगारू नाम के एक बड़े प्रोजेक्ट के तहत 12.4 अरब डॉलर की कीमत पर अमेरिका से 72 स्टेल्थ फाइटर जेट एफ-35 खरीदेगा. हालांकि अभी एफ-35 जेटों के निर्माण और विकास की प्रक्रिया में कुछ बाधाएं आती दिख रही हैं. कई सेना विशेषज्ञ इसे रूस के सुखोई सू-35 से कम खूबियों वाला बताते हैं.
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#6 तुर्की
तुर्की विदेशी हथियारों पर अपनी निर्भरता कम करने की ओर प्रयासरत है. दो द्वीपों वाले इस देश में अब ज्यादा से ज्यादा द्विपक्षीय टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की योजनाएं चलाई जा रही हैं. ऑस्ट्रेलिया की ही तरह तुर्की भी नाटो का सदस्य देश है. और उसने भी अमेरिका से एफ-35 जेट विमानों की खरीद की है. तुर्की नाटों के साथ मिलकर अपना खुद का युद्धक टैंक बनाने की कोशिश कर रहा है.
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#7 पाकिस्तान
चीनी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार पाकिस्तान ही है. हाल ही में इस्लामाबाद ने डीजल से चलने वाली आठ चीनी पनडुब्बियां, टाइप 41 युआन, खरीदने का सौदा किया है. इसके अलावा पाकिस्तानी तोपखाने और हवाई बेड़े अभी भी अमेरिका से आयात होते हैं.
केवल पांच सालों में आयातकों की सूची में 43वें स्थान से 8वें पर आने वाले इस कम्युनिस्ट देश में सबसे ज्यादा हथियार रूस से आ रहे हैं. पांच सालों के अंतराल में आयात में करीब 700 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है. दक्षिण चीन सागर में जारी संघर्ष के कारण वियतनाम अपनी जलसेना और वायुसेना की लड़ाकू क्षमता को और मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.
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इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक सार्क के मौजूदा अध्यक्ष नेपाल को बांग्लादेश की ओर से एक पत्र भेजा गया है जिसमें कहा गया है कि दक्षिण एशिया में फिलहाल माहौल अच्छा नहीं है. अखबार ने इस पत्र के कुछ अंश छापे हैं. इसके मुताबिक पत्र कहता है, "एक देश का बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में दखल बढ़ता जा रहा है. लिहाजा माहौल ऐसा नहीं है कि इस्लामाबाद में 19वां सार्क सम्मेलन सफल हो पाएगा. बांग्लादेश सार्क प्रक्रिया को शुरू करने वाले देशों में है और क्षेत्रीय सहयोग के प्रतिबद्ध है लेकिन साथ ही यह भी मानता है कि ऐसा सिर्फ सौहार्द्रपूर्ण माहौल में ही हो सकता है. लिहाजा बांग्लादेश इस साल इस्लामाबाद में प्रस्तावित सम्मेलन में हिस्सा नहीं ले पाएगा."
भूटान ने भी हाल के दिनों में इलाके में आतंकवाद बढ़ने को लेकर चिंता जाहिर की है और कहा है कि इस वजह से क्षेत्रीय माहौल सफल सार्क सम्मेलन के अनुकूल नहीं रह गया है. अफगानिस्तान की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि अंदरूनी हिंसा और आतंकवाद में बढ़ोतरी के कारण वह सार्क में हिस्सा नहीं ले पाएगा. अफगानिस्तान ने कहा है, "अफगानिस्तान पर जो आतंकवाद थोपा गया है उसके नतीजे में युद्ध और हिंसा में बढोतरी हुई है. इसलिए सर्वोच्च कमांडर के रूप में देश के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी अपनी जिम्मेदारियों में मसरूफ रहेंगे और सम्मेलन में भागीदारी नहीं कर पाएंगे."
देखिए, भारत-पाक की तनातनी से ऊपर है सार्क
भारत पाक की तनातनी से ऊपर सार्क
सार्क देशों की दो दिवसीय 18वीं शिखर वार्ता 27 नवंबर को नेपाल की राजधानी काठमांडू में संपन्न हो रही है. इस दौरान आपसी साझेदारी को और बेहतर बनाने पर चर्चा तो हुई ही भारत पाकिस्तान के बीच तनातनी भी सुर्खियों में रही.
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दो दिन तक भारत और पाकिस्तान के बीच बनी दूरियां धुलीखेली में दूर हुई जब नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ ने हाथ मिला लिया.
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नवाज शरीफ ने सार्क देशों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रस्तावों को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि इस बारे में वे घरेलू प्रक्रियाएं पूरी नहीं कर पाए है.
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शिखर बैठक का मेजबान नेपाल भी चाहता है कि इन तीनों समझौतों पर हस्ताक्षर हो जाएं और उसके नेताओं की भी कोशिश होगी कि पाकिस्तान इसके लिए राजी हो जाए.
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18वें शिखर सम्मेलन के दौरान आठ सदस्य देशों में से अधिकतर ने आतंकवाद को अहम मुद्दा बताया है. साथ ही विश्लेषकों का मानना है कि भारत और पाकिस्तान की अनबन से ऊपर सार्क संगठन है और इसमें क्षेत्रीय विकास के समझौते होने चाहिये.
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भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने दक्षेस इलाके के लिए स्वास्थ्य, विज्ञान, वीजा नीति, मूलभूत संरचना में सुधार के मुद्दों को उठाया और काठमांडू से दिल्ली की बस का उद्धाटन किया.
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एक दिन पहले ही भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि सीमापार आतंकवाद के बढ़ते मामलों के कारण माहौल खराब हो गया है और ऐसे में सार्क सम्मेलन की सफलता संदिग्ध है. भारत के इस कदम को पाकिस्तान ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया था.
अब सार्क सम्मेलन रद्द होना तय है क्योंकि नए नियमों के मुताबिक सम्मेलन तभी हो सकता है जब सभी सदस्य देश हाजिर हों.