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'पाक के तुरूप के पत्ते हैं आतंकी संगठन'

८ अक्टूबर २०११

जर्मन मीडिया की नजरें इस सप्ताह अफगानिस्तान और अमेरिका के साथ पाकिस्तान के बढ़ते मतभेदों पर रही. इसके अलावा भारतीय राष्ट्रपति का स्विस दौरा भी सुर्खियों में रहा.

तस्वीर: AP

अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने कहा है कि उनकी सरकार भविष्य में तालिबान के साथ संपर्क करने की कोशिश नहीं करेगी बल्कि पाकिस्तान के साथ संवाद पर ध्यान देगी. उन्होंने कहा कि अकेले उसी के पास इलाके में शांति की कुंजी है. नौए ज्यूरिषर त्साइटुंग का कहना है कि आतंकवाद विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तानी खुफिया सेवा आईएसआई  तालिबान नेतृत्व बल्कि हक्कानी नेटवर्क को न सिर्फ बर्दाश्त करती है बल्कि सक्रिय मदद भी देती है.

दूसरे उग्रपंथी गुटों के विपरीत, जिसे आईएसआई ने पिछले दशकों में बनाया है और जिनकी मदद की है, हक्कानी नेटवर्क और क्वेटा शूरा अपनी गतिविधियां अफगानिस्तान पर केंद्रित कर रहा है और उन्हें पाकिस्तान में हमलों के लिए शायद ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. इसलिए आईएसआई उन्हें दुश्मन नहीं बल्कि तुरूप का पत्ता समझता है. उनकी मदद से इस्लामाबाद हिंदुकुश में पश्चिमी सेनाओं की वापसी के बाद अपना प्रभाव कायम करना चाहता है और भारत, चीन, ईरान और रूस जैसी क्षेत्रीय सत्ताओं के खिलाफ अपने को अच्छी स्थिति में लाना चाहता है. इसके अलावा वह सुनिश्चित करना चाहता है कि भविष्य में अफगानिस्तान में पाकिस्तान समर्थक पख्तूनों का वर्चस्व हो कि भारत के साथ दोस्ती वाले ताजिक उत्तरी सहबंध का.

तस्वीर: AP

अमेरिका इस्लामी आतंकवाद का मुकाबला प्रिडेटर और रीपर से कर रहा है. न्यू अमेरिका फाउंडेशन के एक विश्लेषण के अनुसार जून 2004 से अप्रैल 2011 के बीच 1435 से 2283 लोग ड्रोन हमले में मारे गए. बर्लिन से प्रकाशित टागेस्श्पीगेल का कहना है कि शांति नोबेल पुरस्कार विजेता राष्ट्रपति बराक ओबामा के सत्ता में आने के बाद से ड्रोन हमलों की संख्या में भारी विस्फोट हुआ है.

अमेरिकी जनमत सर्वेक्षण संस्था गैलप के एक सर्वे के अनुसार सिर्फ 9 फीसदी पाकिस्तानी ड्रोन हमलों का समर्थन करते हैं. न्यू अमेरिका फाउंडेशन के विश्लेषकों ने पाया है कि ड्रोन तैनाती वाले इलाकों के दो तिहाई से ज्यादा लोग अमेरिका के खिलाफ आत्मघाती हमलों को उचित मानते हैं. अमेरिकी सेनाधिकारी और खुफिया एजेंसी एनएसए के भूतपूर्व प्रमुख डेनिस ब्लेयर चेतावनी देने लगे हैं कि इस्लामी दुनिया में ड्रोन हमलों से होने वाला नुकसान उसके फायदे से बड़ा हो सकता है. अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय टुकड़ियों पर हमला करने वाले लगभग 80 प्रतिशत आत्मघाती हमलावर प्रीडेटर और रीपर के तैनाती क्षेत्र से आते हैं, इसलिए उन्हें इन हमलों के नतीजे पता हैं.

पाकिस्तान में एक आतंकवाद विरोधी अदालत ने राजनीतिज्ञ सलमान तासीर के हत्यारे को मौत की सजा सुनाई है. पुलिसकर्मी मुमताज कादरी को पंजाब के गवर्नर की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था. नौए ज्यूरिषर त्साइटुंग का कहना है उदारवादी राजनीतिज्ञ विवादास्पद ईशनिंदा कानून में संशोधन का समर्थन कर रहे थे, जिसका इस्तेमाल धार्मिक अल्पसंख्यकों को तंग करने के लिए किया जाता है.

यूं भी इस फैसले पर शायद ही कभी अमल हो. एक तो पाकिस्तान ने 2008 से किसी को फांसी नहीं दी है. दूसरे सरकार इस मामले में आग में घी डालने से बचेगी. हत्यारा जनता के बीच बहुत लोकप्रिय है, और उदारवादी आवाजें लगभग चुप हो चुकी हैं. तासीर की मौत के बाद एकमात्र व्यक्ति जिसने ईशनिंदा कानून के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत की थी वह  धार्मिक अल्पसंख्यक मंत्री शाहबाज भट्टी थे. उन्हें भी मार्च में मार डाला गया.

तस्वीर: UNI

पाकिस्तान के बाद अब भारत. भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने स्विट्जरलैंड का राजकीय दौरा किया. नौए ज्यूरिषर त्साइटुंग के अनुसार स्विस नेताओं के साथ बातचीत के केंद्र में वित्त, विज्ञान और पर्यावरण तकनीक के क्षेत्र में सहयोग था.

चूंकि भारत की राष्ट्रपति मात्र प्रतिनिधि भूमिका निभाती हैं, दौरे से कोई खास राजनीतिक नतीजे निकलने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. 76 वर्षीया पाटिल 2007 से राष्ट्रपति हैं और इस पद पर पहली महिला हैं. सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के सदस्य होने के नाते उन्होंने युवा उम्र से ही कई राजनीतिक पदों पर काम किया, लेकिन पार्टी में उन्हें कभी कद्दावर नेता नहीं माना जाता था. कांग्रेस पार्टी की प्रमुख सोनिया गांधी  और नेहरू गांधी परिवार के प्रति उनकी वफादारी को राष्ट्रपति बनाए जाने का एकमात्र कारण समझा जाता है.

भारत भले ही गरीबी से लड़ने में अभी भी पश्चिमी देशों जैसे नतीजे देने से काफी दूर हो और सरकार इलाके के दूसरे प्रभावशाली देश चीन को ईर्ष्या से देखती हो, आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने बढ़ते वैश्विक महत्व से परिचित है, कहना है म्यूनिख से प्रकाशित ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग का.

इसकी वजह मुख्य रूप से भारत की अर्थव्यवस्था है. जब से देश ने 20 साल पहले अपने बाजार खोले हैं, अर्थव्यवस्था बढ़ रही है. आर्थिक प्रगति की दर नियमित रूप से सात से आठ प्रतिशत होती है और संकट काल में भी इसमें नाटकीय कमी नहीं हुई है. भारत की ताकत देश के अंदर है. अर्थव्यवस्था में प्रगति की वजह घरेलू बाजार है, निर्यात से सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ 20 फीसदी पैदा किया जाता है. हालांकि भ्रष्टाचार पहले की ही तरह व्यापक रूप से फैला है, लेकिन पूंजीनिवेशक पूरी ताकत के साथ भारत जा रहे हैं. 1.1 अरब संभावित उपभोक्ताओं के साथ भारत का बाजार अपने आकार के कारण ही बहुत चुनौती भरा है. और आकलन है कि भारत जल्द ही चीन को आबादी के मामले में भी पीछे छोड़ देगा.

बर्लिन से प्रकाशित दैनिक टागेस्श्पीगेल ने महिलाओं के दल गुलाबी गैंग के बारे में रिपोर्ट दी है जो संपत पाल देवी के नेतृत्व में बुंदेलखंड में सक्रिय है. गुलाबी रंग महिलाओं के मीठे व्यवहार का परिचायक है. लेकिन गैंग के सदस्य पुरुषों को खट्टी गोली खिलाने से नहीं हिचकते. पहले वे बातचीत से मामला निबटाने की कोशिश करते हैं और फिर जरूरत पड़ने पर पतियों और पुलिस वालों को पीटने से भी नहीं हिचकते.

हिंसा और अपराध के शिकारों, गरीब तथा निचली जाति के लोगों का कोई मददगार नहीं. और सबसे नीचे महिलाएं हैं जो मध्ययुगीन आचारसंहिता  पर चलने को विवश हैं. बहुत से माता पिता अपनी बेटियों को इस डर से स्कूल नहीं भेजते कि वहां उनका संपर्क लड़कों से हो जाएगा और वे परिवार की इज्जत को बट्टा लगा सकती हैं. बहुत सी लड़कियों की किशोरावस्था में ही शादी कर दी जाती है. दहेज ह्त्याएं और बलात्कार तथा हिंसा बहुत आम है. लेकिन इनका शिकार होने वाली शर्म से उसके बारे में बात नहीं करती. और चूंकि उन्हें मदद की उम्मीद नहीं होती, पुलिस और अधिकारियों को और कम बताया जाता है.

और अंत में म्यांमार, जहां सरकार ने दुनिया के सबसे बड़े बांध का निर्माण कार्य रोक दिया है. 2.6 अरब यूरो की लागत से बनने वाला बांध चीन बना रहा था.

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची ने कहा था कि बांध म्यांमार की सबसे बड़ी नदी इरावडी को खतरे में डाल रहा है और दर्जनों गांवों में रहने वाले 12 हजार लोगों को विस्थापित कर देगा. लंबे समय से म्यांमार निवासी इस पर नाराज हैं कि उनकी सरकार उनकी जमीन और खनिज को चीन को सौंप रही है. यह फैसला इस देश में मोड़ साबित हो सकता है. पिछले नवम्बर में हुए चुनावों तक म्यांमार को दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे खराब तानाशाही समझा जाता था. अब उस पर दबाव बढ़ रहा है. एक तो सरकार को फिर से विद्रोह प्रदर्शनों का डर है, जिसे वह 2007 की तरह दबा नहीं सकती. दूसरे वह 2014 में आसियान की अध्यक्षता संभालेगा. संभावना बढ़ रही है कि वह चीन के साथ झगड़े का जोखिम उठा रहा है.

संकलन: प्रिया एसेलबॉर्न/मझा

संपादन: वी कुमार

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