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पाक को कितना नवाजेंगे शरीफ

१४ मई २०१३

आतंकवाद और अंदरूनी कलह से टूट रहे मुल्क की सत्ता संभालने वाले नवाज शरीफ के पास न सिर्फ अपने कामों को पूरा करने की जिम्मेदारी होगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे नई छवि देने की चुनौती भी होगी.

तस्वीर: picture-alliance/AP

पिछली बार सैनिक तख्तापलट में उन्हें गद्दी गंवानी पड़ी, जिसके बाद कभी सऊदी अरब तो कभी लंदन में रहते हुए शरीफ ने सियासत जारी रखी. आखिरकार 2007 में वह पाकिस्तान लौटे लेकिन पिछले चुनाव में सत्ता उनके हाथ नहीं आ सकी.

उनके समर्थकों का कहना है कि कारोबारी नेता शरीफ देश के लिए सही वक्त में सही प्रधानमंत्री साबित होंगे. पाकिस्तान इस वक्त महंगाई, बेरोजगारी, बिजली की कमी और दूसरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है. उनके सामने पड़ोसी मुल्क भारत के साथ बेहतर कारोबारी रिश्ता शुरू करने का मौका होगा.

हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि वह इस्लामी चरमपंथियों के खिलाफ नरम रुख अपनाते हैं और इसकी वजह से आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. अमेरिका के लिए शरीफ एक मुश्किल नेता हो सकते हैं और ओबामा प्रशासन उन पर बारीकी से नजर रखेगा. अमेरिका इसलिए भी उन पर नजर रखेगा क्योंकि पड़ोसी देश अफगानिस्तान में अब भी उसकी सेना तैनात है.

तस्वीर: picture alliance/AP Photo

तेज सियासी कदम

पंजाब प्रांत के एक अमीर कारोबारी के बेटे नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जियाउल हक के दौरान राजनीति में कदम रखा. उसके बाद 1990 के दशक में वह दो बार प्रधानमंत्री बने. हालांकि दोनों ही बार वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

दूसरी बार जब वह प्रधानमंत्री थे, तो 1999 में उस वक्त के सैनिक प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया और उन्हें सत्ता से हटा दिया. इससे पहले नवाज शरीफ की सरकार ने मुशर्रफ के विमान को उड़ाने की असफल कोशिश की. उसके बाद शरीफ को देश छोड़ कर भागना पड़ा, जबकि यह अजब संयोग है कि इस वक्त मुशर्रफ पाकिस्तान के अंदर नजरबंद हैं और 63 साल के शरीफ फिर से प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं.

सैनिक तख्ता पलट के बाद सात साल तक शरीफ को पाकिस्तान से दूर रहना पड़ा. लेगिन बाद में सऊदी अरब के दबाव की वजह से परवेज मुशर्रफ ने उन्हें 2007 में पाकिस्तान आने की इजाजत दे दी. पाकिस्तान और सऊदी अरब के करीबी रिश्ते हैं. उसी वक्त पाकिस्तान की दूसरी पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो भी देश लौटीं, जिनकी बाद में हत्या कर दी गई. इसके बाद भुट्टो की पार्टी को चुनाव में जीत मिली. शरीफ उस चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे.

उतार चढ़ाव का सफर

शुरू में शरीफ और भुट्टो की पीपीपी ने मिल कर सरकार बनाई, लेकिन बाद में शरीफ विपक्ष में चले गए. उन्होंने भुट्टो के विधुर और पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी पर कई तरह के आरोप लगाए. उन्होंने सरकार पर लगातार आरोप लगाए. 1947 में अलग राष्ट्र बनने के बाद पाकिस्तान में पहली बार किसी लोकतांत्रिक सरकार ने अपन कार्यकाल पूरा किया है और चुनी हुई सरकार ने चुनी हुई सरकार को सत्ता सौंपी है.

इस बार के चुनाव में पंजाब प्रांत में मध्य वर्ग का खासा समर्थन मिला. शरीफ इसी प्रांत के हैं और इसी सूबे में पाकिस्तान की सबसे ज्यादा सीटें भी हैं. उन्हें कारोबारी वजहों से लोगों का अच्छा समर्थन हासिल है. उन्होंने पहले भी मजदूरों के लिए काम किया है, चाहे वह पीली टैक्सी की तरकीब शुरू करने की बात हो या न्यूनतम मजदूरी तय करने की.

हालांकि उनकी पहचान 1998 के परमाणु परीक्षण के लिए भी होती है. भारत के एटमी टेस्ट के फौरन बाद पाकिस्तान ने भी परीक्षण कर दिया, जिसकी वजह से दुनिया भर के देशों ने उससे नाराजगी जताई और कई जगह से पाबंदी भी लगी. लेकिन देश के अंदर उनका खूब मान सम्मान हुआ. अमेरिका के साथ उसके रिश्ते खराब हुए. हालांकि बाद में 9/11 की घटना के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के संबंध फिर से अच्छे हो गए.

तस्वीर: Imago

शरीफ की पार्टी पिछले पांच साल से पंजाब प्रांत में जमी है और इस दौरान उसके रिश्ते चरमपंथी दलों से अच्छे रहे हैं. कहा जाता है कि उनकी पार्टी मुस्लिम लीग एन ने चरमपंथियों के खिलाफ सही कदम नहीं उठाया है.

तालिबान के साथ

1990 के दशक में प्रधानमंत्री रहते हुए नवाज शरीफ ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन का साथ दिया था. हालांकि निर्वासन से लौटने के बाद उन्होंने माना था कि उनकी यह नीति गलत रही. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को अफगानिस्तान के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देना चाहिए. अमेरिका भी पाकिस्तान को ऐसा ही करता देखना चाहता है.

दो साल पहले पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद से पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते फिर खराब हुए हैं. शरीफ ने पाकिस्तानी इलाकों में ड्रोन हमलों पर चिंता जाहिर की है और इसकी निंदा की है. पंजाब प्रांत ने अमेरिका के 10 करोड़ डॉलर की सहायता को ठुकरा दिया था. यह कदम बिन लादेन के मारे जाने के खिलाफ उठाया गया.

हालांकि शरीफ की विदेश नीति की राह में पाकिस्तान की सेना बड़ा अड़ंगा लगा सकती है. राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में सेना का बड़ा रोल रहा है. इस साल के आखिर में सेना प्रमुख परवेज कियानी का कार्यकाल खत्म हो रहा है. नए सेना प्रमुख के नाम पर भी सेना और शरीफ में तकरार हो सकती है.

एजेए/एएम (एपी)

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