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पाक से गर्मजोशी और दूरी, दोनों रखेगा चीन

४ अक्टूबर २०११

अमेरिका के साथ लगातार बिगड़ते रिश्तों के मद्देनजर पाकिस्तान अपने पक्के दोस्त चीन से सरपरस्ती हासिल करने में जुटा है. लेकिन हालात ये हैं कि चीन रिश्तों की पारंपरिक गर्मजोशी के बावजूद पाकिस्तान को गले नहीं लगा सकता.

एक दूसरे को पक्के दोस्त कहते हैं चीन और पाकिस्तानतस्वीर: Edyta Pawlowska - Fotolia.com/DW

बेशक चीन को यह बात कतई मंजूर नहीं कि उसकी सीमाओं के आसपास अमेरिका की मौजूदगी रहे, लेकिन वह अपने पश्चिमी मोर्चे पर शांति चाहता है और मानता है कि अगर अमेरिका अचानक मदद बंद कर देता है तो पाकिस्तान मुश्किलों में घिर जाएगा.

कूटनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चीन दक्षिण एशिया के सुरक्षा तनाव में दखल दे कर भारत के साथ गर्माते रिश्तों को भी खराब नहीं करना चाहेगा. ऐसे में एक सधा हुए संतुलन बनाते हुए चीन पाकिस्तान के साथ आर्थिक सहयोग में मदद करता रहेगा, लेकिन रक्षा सहयोग की रफ्तार धीमी कर सकता है. मुस्कराते हुए चेहरों और तमाम वादों के बावजूद चीन पाकिस्तान से कुछ दूरी बनाए रखेगा.

चौकन्ना चीन

ब्रसेल्स में जर्मन मार्शल फंड थिंक टैंक के रिसर्चर एंड्र्यू स्मॉल कहते हैं, "मुझे लगता है कि वे देखेंगे कि इस वक्त अमेरिका-पाकिस्तान रिश्तों के मोर्चे पर क्या हो रहा है और बहुत सावधानी से काम लेंगे." स्मॉल ने चीन-पाकिस्तान रिश्तों का अध्ययन किया है. वे इन दोनों देशों का दौरा भी कर चुके हैं. वह कहते हैं, "वे बहुत ही चौकन्ने हो कर यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि रिश्तों में जो कुछ हो रहा है, वे उसे सही तरह समझ पा रहे हैं या नहीं. उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं है और न ही वे मतभेदों से पैदा हुई खाई को पाटने में तुरंत कोई दिलचस्पी दिखा रहे हैं."    

चीन पाकिस्तान में भारी पैमाने पर निवेश कर रहा है, फिर भी उतनी मदद नहीं दे सकता जितनी अमेरिका से मिलती रही हैतस्वीर: picture alliance/dpa

  

पाकिस्तान को सबसे ज्यादा मदद अमेरिका से मिलती है लेकिन दोनों देशों के रिश्ते अब संकट से घिरे हैं. अमेरिका का आरोप है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अफगान तालिबान गुट हक्कानी नेटवर्क की सहायता करती है जो अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी और दूसरे विदेशी सैनिकों को निशाना बनाता है. अमेरिकी सेना प्रमुख माइक मुलेन के मुताबिक 13 सितंबर को काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हुए हमले में भी आईएसआई ने हक्कानी नेटवर्क का साथ दिया.

चीन की तरफ झुकाव

पाकिस्तान इस तरह के आरोपों को सिरे से खारिज करता है और उसने अमेरिका को चेतावनी दी है कि अगर उसके इस तरह के आरोप जारी रहे तो वह अपने एक अहम साथी को खो देगा. संकट के समय हमेशा की तरह पाकिस्तान फिर चीन की तरफ झुकता जा रहा है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने कहा है कि पाकिस्तान और चीन एक दूसरे के "सच्चे दोस्त" हैं. पिछले हफ्ते पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने जोर देकर कहा कि अगर अमेरिका से रिश्ते बेहतर नहीं हो पाए तो पाकिस्तान के पास दूसरे विकल्प भी हैं. उनका इशारा चीन की तरफ था. चीन भी कम से कम सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान को पूरा भरोसा दे रहा है.

मई में पाकिस्तानी जमीन पर अमेरिकी सैन्य अभियान में ओसामा बिन लादेन की मौत के चंद हफ्तों बाद चीन के दौरे पर गए पाकिस्तान प्रधानमंत्री गिलानी को चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने लंबे समय से जारी दोस्ती बनाए रखने का आश्वासन दिया और आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान की बड़ी कुरबानियों का जिक्र किया.

चीन पाकिस्तान को रणनीतिक तौर पर बहुत ही अहम साथी मानता हैतस्वीर: AP

पिछले हफ्ते भी चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के बयान में यही गूंज सुनने को मिली. प्रवक्ता के मुताबिक, "पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के मोर्चे पर है और चीन समझता है कि संबंधित देशों को हर देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए."     

सीमित रहेगी चीनी मदद

लेकिन चीनी मदद की भी एक सीमा है. शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज में दक्षिण एशिया मामलों के निदेशक चाओ कांगचेंग कहते हैं, "पक्के दोस्त होने का यह मतलब नहीं है कि पाकिस्तान के सारे खर्चे हम ही उठाएंगे. चीन की इतनी सामर्थ्य नहीं है. अमेरिका या किसी और देश की भी नहीं है. यह तो सिर्फ पाकिस्तान पर ही निर्भर करता है."     

चीन पाकिस्तान को एक अहम रणनीतिक साथी समझता है जिसके जरिए वह अपने प्रतिद्वंद्वी भारत को नियंत्रित कर सकता है और इलाके में अमेरिका के बढ़ते हुए असर से निपटने में भी यह मददगार साबित हो सकता है. वह पाकिस्तान के जरिए मुस्लिम दुनिया में भी पैठ बनाना चाहता है. चीन को अपने शिनचियांग इलाके में इस्लामी अलगाववादियों से निपटने में भी पाकिस्तान की मदद चाहिए.

भारत और चीन के बीच विवादों की कमी नहीं है लेकिन दोनों देश आर्थिक संबंधों को मजबूत कर आगे बढ़ रहे हैंतस्वीर: AP

चीन पाकिस्तान को सैन्य साजोसामान देने वाला बड़ा देश है. वह पाकिस्तान में दूरसंचार, बंदरगाहों और बुनियादी सुविधाओं के विकास में बड़ा निवेश कर रहा है. लेकिन चीनी नेता नहीं चाहते है कि वे अपने सीमित हितों को बड़े सुरक्षा लक्ष्य में तब्दील कर दें.

चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेंपररी इंटरनेशनल रिलेशन थिंक टैंक में दक्षिण एशिया मामलों के जानकार हू शिशेंग का कहना है, "अगर पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते बिगड़ते हैं और क्षेत्र में अस्थिरता फैलती है, तो चीन खुद अपने कंधों पर जिम्मेदारी नहीं लेगा. क्षेत्र के दूसरे देशों को भी स्थिरता बहाल करने में परेशानी होगी. क्षेत्र में अब भी अमेरिका ही स्थिरता के लिए जिम्मेदार होगा."     

रिपोर्ट: एजेंसियां/ए कुमार

संपादन: महेश झा

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