दिल्ली की चकाचौंध के बीच यहां के कई इलाके ऐसे हैं जहां मूलभूत जरूरतों का मानो अकाल है. यहां पानी का संकट हिंसक रूप ले चुका है जिसमें लोगों ने जानें गंवाई हैं. क्या सरकार के पास इससे निपटने का कोई समाधान है?
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दिल्ली में पानी की समस्या कोई नई बात नहीं है लेकिन वजीरपुर की रहने वाली सुशीला देवी ने इसकी भारी कीमत चुकाई है. पानी को लेकर मचे हाहाकार ने हिंसक रूप लिया जिससे उनके पति और बेटे की जान चली गई. 40 वर्षीय सुशीला बताती हैं कि पानी की काफी कमी है और इसलिए कीमत बहुत ज्यादा है. बीते मार्च में जब पानी का टैंकर आया, तो मोहल्ले के लोगों में विवाद हो गया जिसके बाद हुई मारपीट में उन्होंने अपने पति और बेटे को हमेशा के लिए खो दिया.
इस घटना के बाद सरकार की नींद टूटी और इस मलिन बस्ती में पानी की सप्लाई शुरू हुई. सुशीला के मुताबिक, यह पानी पूरी तरह साफ नहीं है, लेकिन पिया जा सकता है. नहाने और बर्तन-कपड़े धोने के लिए ठीक है, "पहले तो इतना गंदा पानी आता था कि हम हाथ-पैर भी नहीं धो सकते थे. वह पानी जहर के समान था."
बहुत बीमार है गंगा
भारत के सवा अरब लोगों के लिए गंगा केवल एक जीवनदायिनी नदी ही नहीं बल्कि हिंदुओं के लिए पूजनीय भी है. देश के 40 करोड़ लोग पानी के मुख्य स्रोत के रूप में इस पर निर्भर हैं. लेकिन प्रदूषण इसे और बीमार बना रहा है.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
"मां गंगा" के लिए प्रार्थना
भारत में 2,600 किलोमीटर से भी लंबी नदी गंगा उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर हिंद महासागर तक फैली है. हिंदू मान्यता में गंगा एक साथ सब कुछ है - पीने के पानी का स्रोत, देवी, पाप धोने वाली, पावन करने वाली, शवों को बहाने वाली और चिता की राख को अपने में समाहित करने वाली. देश में गंगा के कई घाटों पर होती है "मां गंगा" की आरती भी.
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"कहीं न जाऊं इसे छोड़ कर"
उत्तराखंड के देवप्रयाग में रहने वाले केवल 19 साल के पुजारी लोकेश शर्मा बताते हैं, "मैंने कभी यह जगह छोड़ कहीं और जाकर रहने के बारे में सोचा तक नहीं." देवप्रयाग ही वो जगह है जहां भागीरथी और अलकनंदा नदियां मिलती हैं और गंगा बनती हैं. देवप्रयाग में गंगा का पानी अपेक्षाकृत साफ दिखता है.
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गंदगी फैलाने वाला कौन?
...इंसान. भारत और बांग्लादेश से बहते हुए गंगा कितने ही छोटे बड़े गांव, शहर और महानगरों से गुजरती है. करीब डेढ़ करोड़ की आबादी वाले कोलकाता में गंगा का पानी धुंधला दिखता है. लोग नदी के पानी में नहाते हैं, कपड़े धोते हैं और जानवरों को भी नहलाते हैं.
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बन गया कूड़ादान
नदी के कुछ हिस्सों में प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि वहां नहाना खतरनाक है. कई लोग, छोटे कारोबारी और फैक्ट्री इस नदी में अपना कचरा बहाते हैं. हिंदू धर्म मानने वाले कई लोग लाशों को नदी के घाट पर जलाते हैं और चिता की राख को भी पवित्र मानी जाने वाली नदियों में बहाने की परंपरा है. सन 1985 से ही भारत सरकार गंगा को साफ करने की कोशिश कर रही है.
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जानलेवा पानी
इंडस्ट्री से निकलने वाला कचरा नदी के पानी में मिलकर उसे जहरीला बना देता है. आजकल रोजाना गंगा से बहने वाले लगभग पचास लाख लीटर पानी का एक चौथाई हिस्सा साफ किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश के कानपुर में चमड़ा उद्योग से निकलने वाले रसायन सीधे पानी में जा रहे हैं. इसलिए नदी में पानी की सतह पर झाग तैरता दिखता है.
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जैव विविधता का नुकसान
कानपुर के ही पास एक जगह पर गंगा इतनी प्रदूषित हो गयी है कि वो लाल रंग की दिखती है. पानी में ऑक्सीजन की कमी होने से कई जलीय जीव मर रहे हैं और धीरे धीरे मिटते जा रहे हैं. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के अनुसार, गंगा में डॉल्फिन की तादाद 1980 के दशक में 5,000 से घट कर अब 1,800 पर आ पहुंची है.
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राजनैतिक असफलता
भारत की सरकारों की राजनैतिक इच्छाशक्ति भी गंगा की बीमारी को बढ़ने से नहीं रोक पाई है. गंगा को साफ करने के लिए तमाम योजनाएं चल रही हैं. नदी में कचरा गिरने से रोकने के लिए और ट्रीटमेंट प्लांट बनाये जाने हैं और तट के पास लगी कम से कम 400 फैक्ट्रियों को दूर ले जाया जाना है. (हेलेना काशेल/आरपी)
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जून में आई केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि देश पानी के संकट के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है. उत्तरी हिमालय क्षेत्र से लेकर तटीय इलाकों तक करीब 60 करोड़ (लगभग आधी आबादी) पानी की कमी से जूझ रही है. हर साल प्रदूषित पानी की वजह से दो लाख लोगों की जानें जा रही हैं. सुशीला जैसी कई औरतें हैं जो रोजाना पाइप या बाल्टी को लेकर लाइन में खड़ी हो जाती हैं और टैंकर से पानी भरकर घर लाती है. कभी-कभी पानी के नल से कुछ बूंदे गिरती हैं, लेकिन वह गंदी होती हैं. विशेषज्ञों की राय में ऐसे पानी से संक्रमण, अपंगता और यहां तक की मौत भी हो सकती है. यही वजह है कि मलिन बस्ती की महिलाएं नल के पानी का इस्तेमाल नहीं करती और नगर पालिका के वॉटर टैंकर के आने का इंतजार करती हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 70 फीसदी पानी प्रदूषित है, जिसका मतलब है कि हर चार में से तीन भारतीय गंदा पानी पीने को मजबूर है. भारत में बड़ी दिक्कत गंदे पानी को साफ न करने की है. रिपोर्ट बताती है कि देश में गंदे पानी का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा साफ किया जाता है और बाकी नदी या तालाब में गिरा दिया जाता है जिससे भूजल प्रदूषित होता है. रिपोर्ट बनाने वाले अविनाश मिश्र के मुताबिक, "नदियों का पानी प्रदूषित है, भूजल और नल का पानी गंदा हो चुका है. यह सब इसलिए क्योंकि ठोस कचरे को साफ करने के लिए हमारा कोई प्रबंधन नहीं है."
किसानों और उच्चवर्ग द्वारा भूजल के पानी को बेतरतीब ढंग से निकालने की वजह से पानी का लेवल नीचे जा चुका है. रिपोर्ट ने आशंका जाहिर की है कि अगर ऐसा ही रहा तो दिल्ली और बेंगलुरु समेत 21 शहरों में साल 2020 तक भूजल खत्म होने की कगार पर आ जाएगा जिसका असर 10 करो़ड़ लोगों पर पड़ेगा. कभी "झीलों का शहर" कहे जाने वाला बेंगलुरु अब सूख चुका है. वहीं, राजधानी दिल्ली में यमुना मानो कराह रही है. वहां पानी की जगह सफेद झाग दिखाई देता है.
वॉटरएड इंडिया के हेड वीके माधवन का कहना है कि भारत में भूजल इतना प्रदूषित हो चुका है कि इससे कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड और नाइट्रेट की मात्रा पाई गई है. फसलों पर कीटनाशकों का इस्तेमाल करने से भूजल में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ती जा रही है. इन केमिकल्स की मात्रा इतनी ज्यादा हो गई है कि पानी में कीटाणुओं से होने वाली बीमारियां जैसे टाइफॉइड, डायरिया की समस्याएं दोयम दर्जे की हो गई हैं.
नदियों का बुरा हाल
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नीति आयोग की एक रिपोर्ट का दावा है कि अगर भारत में पानी की समस्या को सुलझा लिया गया तो इससे देश की जीडीपी को छह फीसदी का फायदा होगा. मिश्र बताते हैं, "हमारी इंडस्ट्री, खाद्य सुरक्षा सबकुछ पानी से जुड़ी हुई है. पानी कोई असीमित स्रोत नहीं है और एक दिन यह खत्म हो सकता है. 2030 तक भारत में पानी की सप्लाई मांग के मुकाबले आधी रह जाएगी."
फिलहाल इस बड़ी समस्या से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों से कहा है कि वे पानी को साफ करने की योजना को प्राथमिकता दें जिससे पानी की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाया जा सके.
वीसी/आईबी (रॉयटर्स)
कहां कहां हो रहे हैं पानी पर झगड़े
कहां कहां हो रहे हैं पानी पर झगड़े
भारत में कावेरी जल विवाद हो या सतलुज यमुना लिंक का मुद्दा, पानी को लेकर अकसर खींचतान होती रही है. वैसे पानी को लेकर झगड़े दुनिया में और भी कई जगह हो रहे हैं. एक नजर बड़े जल विवादों पर.
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ब्रह्मपुत्र नदी विवाद
2900 किलोमीटर लंबी ब्रह्मपुत्र नदी चीन के तिब्बत से निकलती है. अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए ये बांग्लादेश में गंगा में मिल जाती है. उर्जा के भूखे चीन के लिए जहां इस नदी का पनबिजली परियोजनाओं के लिए महत्व है, वहीं भारत और बांग्लादेश के बड़े भूभाग को ये नदी सींचती है. भारत और चीन के बीच इसके पानी के इस्तेमाल के लिए कोई द्विपक्षीय संधि नहीं है लेकिन दोनों सरकारों ने हाल में कुछ कदम उठाए हैं.
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ग्रांड रेनेसॉ बांध और नील नदी
2011 में अफ्रीकी देश इथियोपिया ने ग्रांड इथियोपियन रेनेसॉ बांध बनाने की घोषणा की. सूडान की सीमा के नजदीक ब्लू नील पर बनने वाले इस बांध से छह हजार मेगावॉट बिजली बन सकेगी. बांध बनाने का विरोध सूडान भी कर रहा है लेकिन मिस्र में तो इससे पानी की आपूर्ति प्रभावित होने का खतरा है. 1929 और 1959 में संधियां हुई हैं. लेकिन इथियोपिया किसी बात की परवाह किए बिना बांध बना रहा है जो 2017 तक पूरा हो सकता है.
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इलिसु बांध और तिगरिस नदी
तुर्की सीरियाई सरहद के पास तिगरिस नदी पर इलिसु बांध बना रहा है. इस महत्वाकांक्षी परियोजना के से सिर्फ तिगरिस बल्कि यूफ्रेटस की हाइड्रोइलेक्ट्रिक क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल किया जाना है. तुर्की अपनी अनातोलियन परियोजना के तहत तिगरिस-यूफ्रेटस के बेसिन में कई और बांध और हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट लगाना चाहता है. लेकिन इससे सबसे बड़ा घाटा इराक का होगा जिसे अब तक इन नदियों का सबसे ज्यादा पानी मिलता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सिंधु जल संधि विवाद
पानी के बंटवारे के लिए विश्व बैंक ने 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक संधि कराई जिसे सिंधु जल संधि के नाम से जाना जाता है. इसके तहत ब्यास, रावी और सतलज नदियों का नियंत्रण भारत को सौंपा गया जबकि सिंधु, चेनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को. पानी का बंटवारा कैसे हो, इसे लेकर विवाद रहा है. चूंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियां भारत से होकर जाती है, भारत इसका इस्तेमाल सिंचाई के लिए कर सकता है.
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शायाबुरी बांध
दक्षिण पूर्व एशियाई देश लाओस मेकॉन्ग नदी पर शायाबुरी बांध बना रहा है जिसका उसके पड़ोसी देश और पर्यावरणविद् विरोध कर रहे हैं. बांध के बाद ये नदी कंबोडिया और वियतनाम से गुजरती है. उनका कहना है कि बांध के कारण उनके मछली भंडार और लाखों लोगों की जिंदगियां प्रभावित होंगी. गरीब लाओस शायाबुरी बांध को अपनी आमदनी का जरिया बनाना चाहता है. उसकी योजना इससे बनने वाली बिजली को पड़ोसी देशों को बेचना है.
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पानी पर सियासत
मध्य पूर्व में जॉर्डन नदी का बेसिन इस्राएल और अन्य देशों के बीच सियासत का एक अहम मुद्दा है. मध्य पूर्व में पानी के स्रोतों की कमी होने की वजह इस्राएल, पश्चिमी तट, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन के बीच अकसर खींचतान होती रहती है. 1960 के दशक में पानी के बंटवारे को लेकर इस्राएल और अरब देशों के बीच तीन साल तक चले गंभीर विवाद को जल युद्ध का नाम दिया जाता है.