पानी से लबालब हो सकता है चांद
३० मई २०११केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी, ब्राउन यूनिवर्सिटी, कारनेजी इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के मुताबिक चंद्रमा में इंसान की उम्मीद से 100 गुना ज्यादा पानी हो सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक चांद के भीतर गहराई में पानी का अपार भंडार है. चंद्रमा की सतह से लाई गई ऑरेंज ग्लास सॉयल (नारंगी रंग की शीशे जैसी सतह का बुरादा) की जांच के बाद यह दावा किया जा रहा है.
नैनो माइक्रोप्रोब तकनीक का इस्तेमाल कर ऑरेंज ग्लास सॉयल की जांच की गई. रिसर्च पेपर को सह लेखन जेम्स वैन ओरमान कहते हैं, "नमूने इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण हैं कि चांद के भीतर कितना पानी है. चांद की भीतरी तह काफी हद तक पृथ्वी के गर्भ की तरह है. जिस तरह वहां पानी की प्रचुरता के संकेत मिले हैं, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है."
साइंस एक्सप्रेस पत्रिका के 26 मई को प्रकाशित अंक में इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट भी प्रकाशित की गई है. वैज्ञानिकों की इसी टीम ने 2008 में पहली बार नेचर पत्रिका के जरिए दुनिया को बताया कि ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों में पानी मौजूद होता है.
1972 में अंतरिक्ष यान अपोलो-17 में 11वीं वार अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ चांद पर उतरा. वैज्ञानिकों ने वहां से कई नमूने लिए. इन नमूनों की आज भी जांच जारी है. वैज्ञानिक मानते हैं कि 3.7 अरब वर्ष पहले एक विस्फोट के बाद ऑरेंज ग्लास सॉयल बनी. रिसर्च टीम कहती है, "सीधी सी बात है कि 2008 में हमने देखा कि चंद्रमा के मैग्मा में धरती के गर्भ से निकलने वाले लावे की तरह पानी की मात्रा होती है."
2009 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी चांद से नमूने लिए. इनमें चांद पर बर्फ मिली थी. भारतीय अंतरिक्ष यान चंद्रयान-1 की मदद से नासा के मून मैपर ने पानी खोजा था. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के मुताबिक चांद के अंधेरे हिस्सों में पानी बर्फ के रूप में मौजूद है. ये ऐसे हिस्से हैं जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता है.
खोज इस दावे की भी पुष्टि कर रही है कि चांद और पृथ्वी की उत्पत्ति समान ढंग से हुई. वैज्ञानिकों का एक धड़ा मानता है कि चंद्रमा पृथ्वी से टूटकर बना. 1970 में सामने आई एक थ्योरी के मुताबिक 4.5 अरब साल पहले जब धरती बेहद गर्म थी तब एक खगोलीय चट्टान पृथ्वी से टकराई. टक्कर से पृथ्वी का एक हिस्सा टूटा और चंद्रमा बना.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: उभ