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पास है नोटों की बोरी, जान खाए रिश्वतखोरी

२८ दिसम्बर २०११

पूरी दुनिया की नजर भारत की आर्थिक तरक्की पर है लेकिन कारोबारी अपने ही देश में परेशान हैं. हाथ में पैसा है, मन में योजनाएं लेकिन कारोबार की राह में भ्रष्टाचार, लेन देन में पारदर्शिता की कमी और सरकारी लेटलतीफी की बाधा.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

अजय पीरामल देश के अरबपतियों में शामिल हैं. दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ने वाले देशों में से एक में रहने के बावजूद उन्हें समझ नहीं आ रहा कि कारोबार बढ़ाएं तो कैसे. मौकों की कमी नहीं, वो कहते हैं, "किसी भी बड़े निवेश के लिए यहां पारदर्शिता नहीं है." उनकी यह दुविधा भारत के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रही. देश में भ्रष्टाचार, नौकरशाहों की लालफीताशाही, अस्पष्ट और लगातार बदलती सरकार की नीतियों से कई अरबपतियों को लग रहा है कि अच्छा यही होगा कि मुल्क से बाहर निकल जाएं. दुनिया में कहीं भी कारोबार करना भारत की तुलना में आसान ही रहेगा.

पिछले साल मई में पीरामल के हेल्थकेयर कारोबार ने अपनी दवाइयों की कंपनी अमेरिका की एक बड़ी दवा कंपनी को करीब 3.8 अरब अमेरिकी डॉलर में बेच दी. पीरामल इस पैसे से अपने रसायनों के कारोबार को बढ़ाना चाहते थे लेकिन उन्हें बताया गया कि इस काम में पांच साल लगेंगे. पीरामल का कहना है, "यही प्लांट अगर चीन में लगाऊं तो दो साल में हो जाएगा. मुझे भारत से प्यार है लेकिन मेरे ग्राहक इंतजार नहीं कर सकते."

तस्वीर: dpa

दुनिया जब आर्थिक मंदी के जंजाल में उलझी है तब भी भारत विकास कर रहा है लेकिन मौजूदा दौर में इसे जिस सर्वोच्च स्थिति में होना चाहिए वहां यह न तो पहुंच सका है, न ही पहुंचने की हालत में दिख रहा है. रिजर्व बैंक के आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि विदेशी कंपनियों ने जितना पैसा भारत में निवेश किया है उससे ज्यादा पैसा भारत के कारोबारियों ने विदेशों में लगाया है. 2008 में विदेशियों ने भारत में जितना पैसा लगाया वो भारतीय कारोबारियों के विदेश में लगाए पैसे का करीब दुगुना था, 33 अरब अमेरिकी डॉलर. 2010 में यह तस्वीर उलट गई. भारत के कारोबारियों ने दूसरे देशों में करीब 40 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया और विदेशी कारोबारियों ने भारत में इसके आधा. यही हाल इस साल का भी रहा है.

एक तरह से यह भारत की दिग्गज कंपनियों के रवैये और भरोसे का हाल बताता है साथ ही दुनिया की अर्थव्यवस्था और वित्तीय बाजार की बुरी हालत के बारे में भी, लेकिन इसके साथ इससे यह अंदाजा भी हो जाता है कि घरेलू बाजार में कुछ दिक्कतें हैं. भारत की बड़ी कंपनियां अगर अपने ही देश में निवेश नहीं कर पा रही हैं तो यह एक विकासशील देश के लिए अच्छी बात नहीं है. भारत को इस वक्त घरेलू जरूरतों के लिए पैसा चाहिए. वहां सड़कें बनानी हैं, बिजलीघर और अनाज के गोदाम चाहिए जिससे कि करोड़ों लोगों को गरीबी की मार झेलने से बचाया जा सके.

भारत के कारोबारी भ्रष्टाचार, राजनीतिक नकारापन, लाइसेंस राज, और नियमों में आए दिन होने वाले फेरबदल से तो परेशान है हीं, इसके साथ उन्हें प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल और जमीन की लड़ाई भी लड़नी पड़ रही है. दो दशक से ज्यादा से उदारवाद की राह पर बढ़ने के बाद अब कारोबारी इन दिक्कतों के आगे खुद को बेबस महसूस कर रहे हैं. गोदरेज एंज बॉयस ग्रुप के चेयरमैन जमशेद गोदरेज कहते हैं, "अगर आप ईमानदार कारोबारी हैं तो भारत में कुछ भी शुरू करना बेहद मुश्किल है. कंपनियां वहां काम करने जा रही हैं जहां वो बेहतरीन मौकों और पूंजी को पूरी दक्षता के साथ इस्तेमाल कर सकें."  निश्चित रूप से ऐसे ठिकाने देश की सीमा से बाहर ही हैं.

एक मुश्किल और है, भारत में भ्रष्टाचार अंदर तक घुसा हुआ है और बीते सालों ने उसे किसी न किसी रूप में व्यवस्था का हिस्सा बना दिया है. हाल में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जिन्होंने कुछ मामलों में इस गंदे तरीके का इस्तेमाल भी रोकना पड़ा. इसका रुकना भी कम कुछ लोगों के लिए तत्काल में मुसीबतें ले कर आया है.

तस्वीर: AP

कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार, जंग में विधवा हुई महिलाओं के लिए मकानों में गड़बड़ी, मोबाइल फोन के स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाले ने देश को अरबों रुपये का नुकसान किया. सांसदों और मंत्रियों को जेल की हवा खानी पड़ी.

भ्रष्टाचार के खिलाफ देश का मध्यवर्ग सड़कों पर आ गया और अब भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल बिल पर संसद में बहस चल रही है. लोहा बनाने वालों को अयस्क नहीं मिल रहा क्योंकि कर्नाटक के बड़े खान घोटाले ने कोर्ट को अवैध खुदाई पर रोक लगाने का आदेश पर विवश कर दिया. अवैध खुदाई पर रोक लगे तो अच्छी बात है लेकिन दूसरी तरफ जिन कारोबारियों को अयस्क नहीं मिल पा रहा है वो अपनी किस्मत को रो रहे हैं. इन कारोबारियों की समस्या कितनी बड़ी है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि कुल लौह अयस्क के उत्पादन का करीब पांचवां हिस्सा तो अवैध खुदाई से आता है. नौकरशाह और हुक्मरान इतने घबराए हुए हैं कि वो पकड़े जाने के डर से देश चलाने के लिए जरूरी फैसले लेने से भी बच रहे हैं.

पीरामल को जिस दिन अमेरिकी कंपनी से पैसे मिले उसी दिन से उनके पास हर रोज नई नई योजनाओं में पैसा लगाने के प्रस्तावों की झड़ी लगी हुई है. पीरामल खुद भी चाहते हैं कि बिजली और सड़क बनाने के काम में पैसा लगाएं पर कैसे? पीरामल कहते हैं, "लोग जानते हैं कि मेरे पास पैसा है, बहुत सारे लोग बुनियादी निर्माण की योजनाएं लेकर हमारे पास आ रहे हैं, पर ये लोग नए हैं इनके पास न तो अनुभव है न जरूरी दक्षता न ही अच्छे कारोबार का कोई ट्रैक रिकॉर्ड लेकिन फिर भी लाइसेंस और मंजूरियां लेकर यह लोग हमारे पास चले आ रहे हैं. सिर्फ इसके आधार पर इन्हें पैसा कैसे दे दिया जाए."

रिपोर्टः एपी/एन रंजन

संपादनः ए जमाल

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