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पिघल गया पूरा ग्रीनलैंड

२५ जुलाई २०१२

उत्तरी ध्रुव के सबसे नजदीकी भूखंड ग्रीनलैंड का लगभग पूरा हिस्सा पिघल गया है. जो इलाका सफेद बर्फ से ढंका होता था, वह अब हरा दिख रहा है. वैज्ञानिक इस बात से चिंतित हैं कि कहीं इससे समुद्र का जलस्तर न बढ़ जाए.

पीटरमैन ग्लेशियरतस्वीर: AP

"यह इतना हैरान कर देने वाली खोज है कि पहले तो मैंने नतीजों पर विश्वास ही नहीं किया, क्या यह सच है या आंकड़ों में कुछ गड़बड़ है?" अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के सोन न्गीम एक ही सवाल पूछने में लगे हैं. नासा ने एक बयान में कहा कि ग्रीनलैंड पर बर्फ की परत को नापने के लिए तीन सैटेलाइटों से डाटा लिए गए और इनसे पता चला कि बर्फ की परत यानी आइस शीट का 97 प्रतिशत मध्य जुलाई के दौरान पिघल गया.

नासा ने अपने एक वैज्ञानिक के हवाले से बताया कि 12 जुलाई को जब वे डाटा का विश्लेषण कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि ग्रीनलैंड का ज्यादातर बर्फीला हिस्सा पिघला चुका है. यह नतीजे भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के ओशनसैट उपग्रह से लिए गए थे. कई और सैटेलाइट से जमा किए गए परिणामों से इस बात की पुष्टि हो गई. बर्फीले ग्रीनलैंड के सैटेलाइट मानचित्रों से पता चला कि आठ जुलाई तक बर्फीली परत का 40 प्रतिशत हिस्सा गायब हो चुका था और कुछ ही दिनों बाद 97 प्रतिशत बर्फ की परत पानी में बदल गई. हाल ही में नासा ने खबर दी कि ग्रीनलैंड के पास एक बड़ा आइसबर्ग पीटरमैन हिमनद से टूट गया था.

तस्वीर: REUTERS

नासा के टॉम वैग्नर कहते हैं, "यह घटना और इसके साथ कई अजीब प्राकृतिक घटनाएं हुईं हैं, जैसे पिछले हफ्ते पीटरमैन हिमनद पर हुआ. यह सब एक बहुत ही जटिल कहानी का हिस्सा हैं." नासा के वैज्ञानिक इसलिए चिंतित हैं क्योंकि ग्रीनलैंड की सतह पर औसत से ज्यादा बर्फ पिघला है. 30 साल के सैटलाइट डाटा में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया. गर्मियों में आम तौर पर ग्रीनलैंड का आधा बर्फ पानी में बदल जाता है. नासा के मुताबिक ग्रीनलैंड के पहाड़ों पर यह पानी दोबारा जम जाता है और तटीय इलाकों पर कुछ पानी बर्फ की परत में फंसता है, बाकी समुद्र में बह जाता है. लेकिन इस बार बर्फ तीन किलोमीटर ऊंचे पर्वतों पर भी नहीं टिक रहा.

कुछ वैज्ञानिकों को डर है कि ग्रीनलैंड में इतने बर्फ के पिघलने से समुद्री जलस्तर बढ़ जाएगा लेकिन ग्लेशियर पर रिसर्च कर रहीं लोरा कोएनिग कहती हैं कि हर 150 साल में इस तरह बड़े पैमाने पर हिमनद पिघलते हैं. कोएनिग के मुताबिक 1889 में ऐसा हुआ था और इसके बाद 2012 में बर्फ का पिघलना चिंता वाली बात नहीं हैं. हालांकि कोएनिग खुद कहती हैं कि आने वाले सालों में अगर ऐसा होता रहा तो परेशानी आ सकती है.

एमजी/एजेए (एएफपी)

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