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पिछले पांच साल में बॉलीवुड ने भी खूब राजनीति की है

ऋषभ कुमार शर्मा
१० अप्रैल २०१९

बॉलीवुड और राजनीति में हमेशा गहरे संबंध रहे हैं लेकिन पिछले पांच साल में सरकार से बॉलीवुड की बेहद करीबी दिखी है. पहले दोनों आमने-सामने भी दिखाई दिए हैं लेकिन पिछले सालों में ऐसा कम ही देखने मिला है.

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तस्वीर: Getty Images/I. Mukherjee

चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर बनी फिल्म के रिलीज पर रोक लगा दी है. चुनाव आयोग ने इस फिल्म के रिलीज को आचार संहिता का उल्लंघन माना है. पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस फिल्म के रिलीज पर रोक नहीं लगाई थी. भारत के लोकसभा चुनाव में इस बार बॉलीवुड इंडस्ट्री पहले हुए किसी चुनाव से ज्यादा सक्रिय है. पहले के चुनावों में भी बॉलीवुड से राजनीति में लोग आते जाते रहे हैं लेकिन इस चुनाव में राजनीति ही बॉलीवुड में पहुंचती दिखाई दी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक्टर विनोद खन्ना, परेश रावल, शत्रुघ्न सिन्हा, सिंगर बप्पी लहरी, बाबुल सुप्रियो, अभिनेत्री हेमा मालिनी, किरन खेर को टिकट दिए थे. वहीं कांग्रेस में ऐसी संख्या कम रही. एक्टर राज बब्बर, रवि किशन, अभिनेत्री नगमा के अलावा कोई जानी-पहचानी बॉलीवुड हस्ती कांग्रेस से चुनाव नहीं लड़ी.

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद बॉलीवुड की फिल्मों में उनके समर्थन का रुझान दिखाई देना शुरू हुआ. जनवरी, 2015 में पहलाज निहलानी को सेंसर बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया. निहलानी पर कई बार पक्षपात का आरोप लगा. उन पर फिल्मों में जबरन कट लगाने और ´सही लाइन´ न होने पर रिलीज होने से रोकने तक के आरोप लगे. जून, 2015 बॉलीवुड से ही जुड़े फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टिट्यूट का प्रेसिडेंट गजेंद्र सिंह चौहान को बनाया गया. चौहान के प्रेसिडेंट बनने का बड़े पैमाने पर वहां पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं ने विरोध किया. गजेंद्र का एक्टिंग करियर ज्यादा अच्छा नहीं था. ऐसे में उन पर आरोप लगा कि भाजपा से करीबी के चलते उन्हें एफटीआईआई का प्रेसिडेंट बनाया गया. 2017 में लंबे विवाद के बाद उन्हें हटाया गया.

इसके बाद बॉलीवुड में फिल्मों के आने का सिलसिला शुरू हुआ. शुरुआत अक्षय कुमार ने ही की. टॉयलेट एक प्रेम कथा फिल्म का प्रमोशन करने के लिए उन्होंने राजनीतिक तौर-तरीके अच्छी तरह से अपनाए.

फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा का पोस्टर.तस्वीर: Viacom 18 Motion Pictures

अक्षय कुमार को कई सरकारी ऐड्स और फिल्म रिलीज पर टैक्स में छूट भी मिली. बॉलीवुड में अपनी एक्टिंग की धाक जमाने वाले अनुपम खेर भी इसमें पीछे नहीं रहे. उनकी पत्नी किरण खेर चंडीगढ़ से भाजपा की सांसद हैं. वो लगातार मीडिया और सोशल मीडिया में भाजपा का समर्थन करते रहे. 2016 में हुए जेएनयू विवाद, कश्मीरी पंडितों की घर वापसी जैसे मुद्दों पर वो मुखर रूप से सरकार के पक्ष में खड़े रहे. 2019 में मनमोहन सिंह के ऊपर उनके मीडिया सलाहकार संजय बारू की लिखी किताब पर बनी फिल्म में वो मनमोहन सिंह के किरदार में दिखाई दिए. कई फिल्म समीक्षकों ने इस फिल्म को एजेंडा फिल्म करार दिया. विवाद तब और बढ़ गया जब इस फिल्म के ट्रेलर को भाजपा ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट से शेयर किया. इस फिल्म में सोनिया और राहुल गांधी को विलेन दिखाने की कोशिश की गई.

फिल्म डायरेक्टर मधुर भंडारकर की फिल्म इंदु सरकार को भी इसी क्रम में देखा गया. यह फिल्म इमरजेंसी के ऊपर बनी थी. इसमें इंदिरा और संजय गांधी को विलेन की तरह दिखाया गया. इस फिल्म को कई सरकारी संस्थानों में स्पेशल स्क्रीनिंग कर दिखाया गया.

2016 में उरी हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक पर बनी फिल्म उरी दी सर्जिकल स्ट्राइक को भी इसी कड़ी में माना जा सकता है. उरी फिल्म में सरकार की तारीफों के पुल बांधे गए. भाजपा ने इस फिल्म की जगह-जगह स्क्रीनिंग करवा कर इसे अपने प्रचार में इस्तेमाल किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिल्म के अभिनेता और अभिनेत्री से मुलाकात कर इसे सुर्खियां दीं. भाजपा के समर्थक और फिल्म डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री भी इस लिस्ट में शामिल हुए. उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री की मौत पर ताशकंद फाइल्स नाम से फिल्म बनाई है. इस फिल्म को भी चुनावों के समय पर रिलीज किया जा रहा है.

इस फिल्म के लिए अनुपम खेर को काफी आलोचना झेलनी पड़ी.तस्वीर: Imago/Zuma/A. Khan

शिवसेना के संस्थापक और महाराष्ट्र के तेज तर्रार नेता रहे बाल ठाकरे के जीवन पर भी फिल्म बनी है. ठाकरे नाम से बनी इस फिल्म में विवादों से भरे बाल ठाकरे के जीवन को महिमामंडित कर दिखाया गया. इसमें बाल ठाकरे का किरदार नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निभाया.

इस लिस्ट में अभी सबसे ज्यादा सुर्खियों में बनी हुई फिल्म नरेंद्र मोदी की बायोपिक ही है. तीन महीने के भीतर यह फिल्म बना ली गई. नरेंद्र मोदी के किरदार में विवेक ओबेरॉय हैं. यह फिल्म पहले 25 अप्रैल को रिलीज होनी थी. फिर इसे 20 दिन पहले कर पहले चरण के मतदान से पहले रिलीज करने के लिए 5 अप्रैल तारीख तय की गई. लेकिन तकनीकी कारणों से यह तारीख भी पीछे खिसकानी पड़ी और 11 अप्रैल तारीख तय की गई जिस पर चुनाव आयोग ने रोक लगा दी है. इसके अलावा नरेंद्र मोदी के ऊपर बनी वेब सीरीज इंटरनेट पर चल रही है.

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले रिलीज हुई फिल्म यंगिस्तान भी इस तरह के विवादों में रही. कहा गया कि इस फिल्म का मुख्य करेक्टर राहुल गांधी से मिलता जुलता है. इंदिरा गांधी की सरकार ने आंधी और किस्सा कुर्सी का नाम की दो फिल्मों पर रोक लगा दी थी. इन दोनों फिल्मों में भारत की उस दौर की राजनीति को दिखाया गया था और इंदिरा गांधी की आलोचना माना गया था. दक्षिण भारतीय फिल्म मर्शल के एक सीन में जीएसटी को लेकर कुछ दृश्य थे. भाजपा समर्थकों ने इसे सरकार की आलोचना बताकर निशाना साधा था. विवाद बढ़ता देखकर फिल्म के प्रॉड्यूसर ने इस सीन को हटाने तक की बात कही थी.

इसके अलावा 2019 में आई फिल्म गली बॉय में कन्हैया कुमार विवाद के बाद से चर्चा में आए आजादी गाने को इस्तेमाल किया गया. माई नेम इज रागा नाम से एक कम चर्चा वाली फिल्म आ रही है. इसमें राहुल गांधी का महिमा मंडन किया गया है. 2019 में ही आई फिल्म मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर को सरकार की शौचालय बनाने की नीति से जोड़कर देखा गया. 2015 में राजस्थान के चर्चित भंवरी देवी हत्याकांड पर भी फिल्म बनी थी.

टीवी भी इसमें पीछे नहीं रहा. भाभीजी घर पर हैं नाम के एक सीरियल में आचार संहिता के बावजूद खुले तौर पर सरकारी योजनाओं का प्रचार किया गया. इस सीरियल में नरेंद्र मोदी की तारीफ की गई. साथ ही, नरेंद्र मोदी ने पिछले पांच साल में अलग-अलग तरह से टीवी सीरियल्स से जुड़ाव रखा है. स्वच्छ भारत अभियान से तारक मेहता का उल्टा चश्मा को जोड़ कर ये शुरुआत 2014 में की थी.

प्रधानमंत्री अलग-अलग मौकों पर फिल्मी सितारों से मिलते रहे हैं.तस्वीर: IANSLive/Insta/priyankachopra

इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फिल्मी सितारों का मिलने का सिलसिला चलता रहा. मोदी भी अभिनेता-अभिनेत्रियों की शादियों में जाते रहे. जनवरी के महीने में कई सारे अभिनेताओं का नरेंद्र मोदी से मिलने जाना चर्चा का विषय रहा. इनमें अधिकतर उस धड़े से माने जाने वाले लोग थे जो मोदी समर्थक नहीं थे. इसके बाद नरेंद्र मोदी ने एक सम्मेलन में बॉलीवुड और टीवी जगत के लोगों को संबोधित किया. स्वरा भास्कर, जावेद अख्तर जैसे लोग अक्सर सरकार के खिलाफ बोलते रहे जबकि अनुपम खेर, विवेक अग्निहोत्री और कंगना राणावत सरकार का पक्ष लेते रहे.

हालांकि, बॉलीवुड अपने बचाव में ये तर्क दे सकता है कि पहले बायोपिक फिल्मों का दौर नहीं था. बड़ी संख्या में बायोपिक बनना 2012 के बाद से ही शुरू हुई हैं. 

2014 के बाद बॉलीवुड में खेमेबंदी एक दम साफ नजर आने लगी है. बॉलीवुड पूरी तरह दो धड़ों में बंट गया है. एक धड़ा वर्तमान सरकार का समर्थक है और दूसरा विरोधी है. चुनाव से पहले 800 थिएटर कलाकारों ने देश के नाम चिट्ठी लिखकर भाजपा को वोट न देने की अपील की है. दोनों पार्टियों ने इस बार भी बॉलीवुड से जुड़े लोगों को टिकट दिया है. लेकिन इस बार ये राजनीति फिल्मों में भी खूब दिखाई दी है.

 

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