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पिछले 30 साल में दोगुने हुए गरीब मुल्क

२७ नवम्बर २०१०

ग्लोबलाइजेशन को दुनिया के विकास और गरीबी घटाने का मूलमंत्र माना जा रहा था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का कहना है कि पिछले 30-40 साल में सबसे गरीब मुल्कों की तादाद दोगुनी हो गई है. गरीबों की संख्या भी दोगुनी हुई.

तस्वीर: dpa

दुनिया में हर जगह आर्थिक उदारीकरण के बाद बढ़ी भारत और चीन की आर्थिक ताकत का बखान होता है. अमेरिका और यूरोप के अमीर मुल्क अपनी नीतियों को सही बताने के लिए हर मंच से कहते हैं कि ग्लोबलाइजेशन के बाद दुनिया में खुशहाली बढ़ी है. लेकिन एक आंकड़ा चिथड़ों में लिपटे भीड़ में पीछे खड़े उस गरीब आदमी की तरह है जो खुशहाली के इस पूरे कारोबार को मुंह चिढ़ाता खड़ा है.

यूएन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डिवेलपमेंट (अंकटाड) ने सबसे पिछड़े 49 मुल्कों पर जारी अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया में विकास का जो मॉडल चला आ रहा है, उस पर अब दोबारा विचार करने की जरूरत है. अंकटाड के महासचिव सुपाचाय पानिचपाकड़ी कहते हैं, "पिछड़े मुल्कों में व्यापार आधारित विकास का पारंपरिक मॉडल अपनाया गया है. लेकिन यह काम करता नजर नहीं आ रहा है. बल्कि हुआ यह है कि पिछले 30-40 साल में पिछड़े मुल्कों की हालत और खराब हुई है और असल में इनकी संख्या दोगुनी तक बढ़ गई है. 1980 के बाद से गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या भी दोगुनी हो गई है."

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तस्वीर: AP

इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों में तो हालात और ज्यादा खराब हुई है. रिपोर्ट कहती है कि 2002 से 2007 का जो आर्थिक उछाल का दौर था, उस दौरान गरीबों की संख्या 30 लाख सालाना की दर से बढ़ी. 2007 में 42.1 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे थे. हालांकि संकट के वक्त में इन गरीब मुल्कों में झेलने की ताकत बाकी मुल्कों के मुकाबले ज्यादा थी लेकिन हालत बहुत नाजुक है क्योंकि वे अपने आयात पर निर्भर हैं. सुपाचाय बताते हैं, "आयात पर निर्भरता विनाशक साबित हुई है. 2002 में पिछड़े मुल्क खाद्य आयात पर 9 अरब डॉलर खर्च कर रहे थे. 2008 में यह बढ़कर 23 अरब डॉलर हो गया."

अंकटाड की रिपोर्ट आर्थिक गड़बड़ियों की ओर भी इशारा करती है. रिपोर्ट के मुताबिक इन देशों की अर्थव्यवस्था में विविधता नहीं है और घरेलू बचत में भी कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. ये मुल्क बाहरी बचत पर निर्भर हैं और इनके कुदरती संसाधन भी तेजी से घट रहे हैं.

रिपोर्ट में लिखा है कि इन सभी समस्याओं की वजह से आर्थिक मंदी के बाद पिछड़े मुल्कों के विकास की राह में रोड़े खड़े हो गए हैं इसलिए इन्हें विकास के नए ढांचे के बारे में विचार करना होगा.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः महेश झा

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