पिल्लै को "देशहित" में रोका
१८ फ़रवरी २०१५दिल्ली हाई कोर्ट में दायर हलफनामे में गृह मंत्रालय ने कहा है कि प्रिया पिल्लै लंदन में ब्रिटेन के सर्वदलीय संसदीय समूह से मिलने वाली थीं. भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने सरकार के हलफनामे की विस्तृत जानकारी दी है. रिपोर्ट के मुताबिक गृह मंत्रालय ने कहा है कि ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संसद अधिकारों के हनन की "बहुत ज्यादा पक्षपाती" वार्षिक रिपोर्टें लाते हैं. इनके आधार पर भारत पर प्रतिबंधों का खतरा मंडरा सकता है.
यह हलफनामा सरकार ने 13 फरवरी को दायर किया. सरकार ने दलील दी कि "इन तरीकों" को "हाल के समय में ईरान, रूस और उत्तर कोरिया पर इस्तेमाल किया गया. इनका असर इन देशों की विकास दर, बेहतरी और नागरिकों की खुशी पर पड़ा."
हलफनामे में कहा गया है, "इस बात के संकेत हैं कि यूनाइटेड किंगडम की संसद की आदिवासियों पर आने वाली एपीपीजी रिपोर्ट, प्रिया परमेश्वरन पिल्लै की गवाही को भारत को नीचे आंकने के लिए इस्तेमाल करेगी, जिससे भारत प्रतिबंध झेलने वाले संभावित देशों में आ सकता है. संयुक्त राष्ट्र से अलग, अमेरिका, यूके और ईपी (यूरोपियन पार्लियामेंट) की ये रिपोर्टें भारत सरकार या स्थानीय दूतावास/उच्चायोग को अपना मत रखने का मौका नहीं देती हैं और निर्धारित देश के खिलाफ बहुत ही पक्षपात से भरी होती हैं."
पिल्लै 11 जनवरी को दिल्ली से लंदन जाने वाली थीं. लेकिन उन्हें विमान पर चढ़ने नहीं दिया गया. पिल्लै के खिलाफ खुफिया विभाग ने लुक आउट सर्कुलर जारी किया था. सरकार का आरोप है कि, "वह मध्य प्रदेश के माहान कोयला ब्लॉक के आदिवासियों के वन अधिकारों के उल्लंघन के आरोपों पर गवाही देने की योजना बना चुकी थीं."
विमान से उतारे जाने के बाद पिल्लै ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया. उच्च न्यायालय ने सरकार से इस बाबत जवाब मांगा. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने हाई कोर्ट से कहा कि यह फैसला "देशहित" में किया गया. सरकार का आरोप है कि पिल्लै "विदेश में भारत की छवि पर असर डालने के लिए विदेशों में भारत सरकार के खिलाफ अभियान छेड़ने के साफ इरादे से यूके जा रही थीं."
प्रिया पिल्लै ने सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर सरकार के हलफनामे की आलोचना की है. पिल्लै ने अपने ट्वीट में कहा, "मैं अदालत में सरकार द्वारा दायर गलत और आधारहीन हलफनामे का जवाब दूंगी."
सरकार ने मेधा पाटकर, पीवी राजगोपाल, नंदिनी सुंदर, एडमिरल रामदास, अरुणा रॉय और प्रफुल बिदवई जैसे दिग्गज भारतीय कार्यकर्ताओं का हवाला देते हुए कहा कि "इन्होंने विदेशी संसद की औपचारिक समिति के सामने ऐसे आरोप कभी नहीं लगाए हैं. इन कार्यकर्ताओं ने हमेशा भारतीय लोकतंत्र और भारतीय संविधान के दायरे में रहकर अपनी बात रखी. इन्होंने धरने दिए, मार्च निकाले, अनशन किया, हर स्तर पर भारतीय अदालतों का दरवाजा खटखटाया, केंद्र व राज्य सरकारों और उनके अधिकारियों से संपर्क किया और अपने विचार से लोगों को रूबरू कराने के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सहारा लिया."
भारतीय गृह मंत्रालय ने एक बार फिर साफ किया है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर सरकार के लिए मुश्किल खड़ी करने वालों को विदेशी सरकारों या एजेंसियों के सामने भारत की बुराई करने की इजाजत नहीं दी जाएगी. गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने साफ किया कि, "अगर पिल्लै दूसरे कारणों मसलन पर्यटन के लिए विदेश जाना चाहती हैं तो उन्हें जाने दिया जाएगा."