केंद्र सरकार ने अदालत को बताया है कि पीएमकेयर्स फंड सरकार का फंड नहीं है और इसमें संचित धनराशि सरकारी खजाने में नहीं जाती है. ऐसे में इस फंड की वैधता और जनता के प्रति जवाबदेही को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं.
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पीएमकेयर्स फंड की मार्च 2020 में एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में स्थापना की गई थी. तब से इसे स्थापित करने के उद्देश्य और इसके संचालन में पारदर्शिता की कमी को लेकर विवाद चल रहा है.
कई लोगों ने सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई आवेदन दे कर इसके बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की, लेकिन पूरी तस्वीर अभी तक सामने नहीं आई है.
पीएमओ में दफ्तर, लेकिन सरकार का नहीं
इसके बाद लोगों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. इस फंड को लेकर सरकार का ताजा बयान दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहे एक मामले पर सुनवाई के दौरान आया. वकील सम्यक गंगवाल ने इसी अदालत में दो अलग अलग याचिकाएं दायर की हुई हैं.
एक में फंड को आरटीआई कानून के तहत "पब्लिक अथॉरिटी" घोषित करने की और दूसरी याचिका में "स्टेट" घोषित करने की अपील की है.
22 सितंबर को दूसरी याचिका पर सुनवाई के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के एक अधिकारी ने अदालत को बताया कि यह ट्रस्ट चाहे संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत "स्टेट" हो या ना हो और आरटीआई कानून के तहत "पब्लिक अथॉरिटी" हो या ना हो, किसी "थर्ड पार्टी की जानकारी देने की हमें अनुमति नहीं है."
सरकार के इस फंड को "थर्ड पार्टी" कहने से मामला और पेचीदा हो गया है. गंगवाल पहले ही अदालत को बता चुके हैं कि फंड की वेबसाइट पर उससे संबंधित जो कागजात मौजूद हैं, उनमें यह बताया गया है कि ट्रस्ट की स्थापना ना तो संविधान के तहत की गई है और ना संसद द्वारा पारित किए गए किसी कानून के तहत.
पारदर्शिता का सवाल
इसके बावजूद सरकार के सबसे उच्च दर्जे के अधिकारियों का नाम इससे जुड़ा है. प्रधानमंत्री पदेन रूप से इसके अध्यक्ष हैं और रक्षा, गृह और वित्त मंत्री पदेन रूप से ही इसके ट्रस्टी हैं. इसका मुख्य कार्यालय पीएमओ के अंदर ही है और पीएमओ में ही एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी इसका संचालन करते हैं.
वेबसाइट पर सिर्फ वित्त वर्ष 2019-20 में इसमें आए अंशदान की जानकारी उपलब्ध है, वो भी सिर्फ 27 से लेकर 31 मार्च तक, यानी कुल पांच दिनों की. इन पांच दिनों में फंड को 3076 करोड़ रुपए हासिल हुए.
लेकिन वेबसाइट के मुताबिक अभी तक फंड से 3100 करोड़ रुपए कोविड-19 प्रबंधन से संबंधित अलग अलग कार्यों के लिए आबंटित किए गए हैं. ऐसे में फंड को लेकर पूरी तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है. अब देखना होगा कि अदालत इन याचिकाओं पर क्या रुख अपनाती है.
15 साल का हुआ सूचना का अधिकार कानून
सूचना का अधिकार कानून लागू हुए 15 साल पूरे हो गए हैं. 12 अक्टूबर 2005 को कानून लागू हुआ था. इसका मकसद सरकारी काम में पारदर्शिता लाना और भ्रष्टाचार को खत्म करना था लेकिन 15 साल बाद भी लाखों शिकायतें आज भी लंबित हैं.
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लंबित मामले
केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग में 2.20 लाख से अधिक अपील और शिकायतें अब भी लंबित हैं. लंबित मामलों के यह आंकड़े 31 जुलाई 2020 तक के हैं. यही नहीं चिंता का विषय यह है कि कुल 29 सूचना आयोग में से 9 (31 फीसदी) में कोई मुख्य सूचना अधिकारी है ही नहीं. इसके अलावा अगस्त महीने से मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) का पद खाली है.
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रिपोर्ट कार्ड
सूचना का अधिकार कानून के 15 साल पूरे होने पर सतर्क नागरिक संगठन और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है. इस रिपोर्ट में पाया गया कि सबसे ज्यादा लंबित मामले महाराष्ट्र में 59,000 हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश (47,923) और सीआईसी में (35,653) हैं.
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खाली पद
रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड और त्रिपुरा में सूचना आयुक्त का पद खाली है और वहां सूचना के अधिकार से जुड़े मामले लंबित पड़े हैं और लोगों को सूचना नहीं मिल पा रही है. ओडिशा में चार आयुक्त काम कर रहे हैं और राजस्थान में सिर्फ तीन आयुक्त हैं.
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बढ़ता बोझ
प्रक्रिया धीमी होने के कारण मुख्य सूचना आयोग में भी लंबित मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. वहां 36,500 से ज्यादा मामले लंबित हैं.
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सजा कम
विश्लेषण में यह भी पाया गया कि सरकारी अधिकारियों को कानून का उल्लंघन करने के लिए किसी भी सजा का शायद ही सामना करना पड़ता है. 2019-20 में 16 आयोगों के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में पाया गया कि जुर्माना केवल 2.2% मामलों में लगाया गया था.
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जुर्माना
1,995 मामलों में 18 आयोग ने करीब 2.5 करोड़ जुर्माना लगाया. सबसे ज्यादा जुर्माना हरियाणा में (65.4 लाख रुपये), उसके बाद मध्य प्रदेश में (43.3 लाख रुपये) और उत्तराखंड में (35.8 लाख रुपये) लगाया गया.
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सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आम नागरिक सरकारी प्राधिकरण से सूचना पाने के लिए आवेदन कर सकता है. कानून के मुताबिक 30 दिनों के भीतर सूचना देने की व्यवस्था की गई है. आरटीआई के तहत सरकारी काम में पारदर्शिता लाना, भ्रष्टाचार को खत्म करना, उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना और नागरिकों को सशक्त करना है.