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पीएम के दिखाए सपनों की राह देखता टेम्भली

२२ दिसम्बर २०१०

इस साल सितंबर में महाराष्ट्र का एक अनाजना आदिवासी गांव सुर्खियों में आ गया जब प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यहां का दौरा किया. 10 आदिवासियों को नए जमाने के पहचान पत्र मिले पर सुविधाएं अब भी कोसों दूर.

तस्वीर: DW

टेम्भली गांव से ही प्रधानमंत्री ने खास पहचान पत्र देने के कार्यक्रम की शुरुआत की और कहा कि आम आदमी को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की यह सबसे बड़ी पहल होगी. गरीब लोगों को उनका अधिकार मिल सकेगा और वे सुविधाएं भी, जिनका वादा केंद्र सरकार ने किया है. तीन महीने बाद प्रधानमंत्री के दिलाए भरोसे पर टूटी उम्मीदों का बोझ पड़ चुका है.

प्रधानमंत्री को आना था तो गांव में एक पक्की चिकनी सड़क बनी. उसी पर दौड़ता हुआ प्रधानमंत्री का काफिला यहां आया. अब इस सड़क पर बच्चे पुराने टायर, डंडे से नचाकर खेलते हैं. वादे तो पूरे हुए नहीं, उम्मीदों की सड़क जरूर बनी. अब उसी पर सपनों के पहिए दौ़ड़ा रहे हैं. 28 साल की सुनंदा करमा ठाकरे अपने पति के साथ रोटी कमाने पड़ोसी राज्य गुजरात जाने की सोच रही हैं. सुनंदा कहती हैं, "हम तो साल के शुरुआत में ही गुजरात जाने वाले थे पर प्रधानमंत्री के आने की बात सुन रुक गए, पर उनसे भी सिर्फ कोरे वादे ही मिले मदद नहीं. अधिकारी भी तभी मुंह दिखाते हैं जब मंत्री आते हैं. वे यहां आएं तो हम उन्हें अपनी तकलीफ बताएं पर कोई सुनने वाला ही नहीं. प्रधानमंत्री के साथ आए अधिकारियों ने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा. यहां तक कि कुछ सड़कें अब भी अधूरी हैं और कई घरों में बिजली भी नहीं."

बायोमेट्रिक यूआईडी कार्ड के साथ सुनंदा कर्मा ठाकरेतस्वीर: DW

काम की कमी मजदूरों को यहां से दूर ले जा रही है. यहां साल में कुछ ही महीने होते हैं जब उन्हें खेतों में काम मिल पाता है. वहां भी मजदूरी 60-70 रुपये रोज से ज्यादा नहीं मिलती. पड़ोसी राज्य गुजरात में गन्ने की खेती, कपास और मूंफलियां तोड़ने की फैक्टरियों में उन्हें खूब काम मिल जाता है. यहां मजदूरी भी हर रोज के 150-180 रुपये तक मिल जाती है. मानसून शुरु होने से पहले वे जब तक गांव लौटते हैं उनके पास एक अच्छी रकम जमा हो जाती है.

तस्वीर: DW

पड़ोसी राज्य में काम की सुविधा तो है लेकिन गांव छोड़ कर जाना कई मुसीबतों को दावत भी देता है. घर छोड़ कर गए इन मजदूरों को बेहद खराब स्थिति में रहना पड़ता है और कई बार उनके सिर पर छत भी नहीं होती. इसके अलावा गृहस्थी भी बिखर जाती है. बच्चों के स्कूल छूट जाते हैं.

मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव हैतस्वीर: DW

टेम्भली ग्राम पंचायत के सदस्य मादी राजू मक्कन मानते हैं कि गांववालों की तात्कालिक जरूरतों को पूरा किया जाना जरूरी है जो रोजगार और घर से जुड़ी हैं. वह कहते हैं, "राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना टेम्भली में तुरंत शुरू की जानी चाहिए. सरकार वादे तो करती है लेकिन उन्हें पूरा नहीं करती. यही वजह है कि लोगों की उम्मीदें टूट रही हैं और वे दूसरे राज्यों में जा रहे हैं. हमारे गांव मे कई लोग हैं जो गरीबी रेखा के नीचे हैं, उनके पास रहने को घर भी नहीं. सरकारी योजनाएं अधूरी पड़ी हैं और बाढ़ की तबाही भी झेलनी पड़ती है. कई बार गुहार लगाई लेकिन सरकार सुनती ही नहीं."

सरकार का दावा था कि विशेष पहचान पत्र बन जाने से उनकी समस्याएं दूर होंगी. वे आसानी से बैंक में खाता खोल सकते हैं और उन्हें बैंक से लोन भी मिल जाएगा. अधिकारियों ने भरोसा दिलाया था कि रोजगार गारंटी योजना भी जल्दी ही शुरू हो जाएगी.

कार्ड तो मिला पर वह सब नहीं जो उसके साथ मिलने वाला था. कार्ड पहचान का जरिया जरूर बन गया पर इस पहचान से न तो गरीबी मिटी न रोजगार मिला.

रिपोर्टः पिया चंदावरकर/ एन रंजन

संपादनः आभा एम

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