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पीपली लाइव: पहले दिन ही छा गया नत्था

१३ अगस्त २०१०

रिलीज होने के साथ ही चर्चा में आई आमिर खान की नई फिल्म पीपली लाइव. भारत की सच्चाई पर व्यंग और तीखी चोट करती इस फिल्म ने दर्शकों को झकझोरा. फिल्म में मीडिया की नौटंकी पर तीखा कटाक्ष. कमाल का निकला नत्था.

नत्था के किरदार में ओंकारदास माणिकपुरीतस्वीर: Aamir Khan Productions

पीपली लाइव, आमिर खान की इस फिल्म का दर्शकों के लंबे समय से इंतजार था. शुक्रवार को फर्स्ट डे, फर्स्ट शो में भी यह बात साबित हो गई. दिल्ली, मुंबई, भोपाल और यूपी के ज्यादातर सिनेमाघर भरे रहे. सिनेमा हॉल से निकलने वाले लोगों की जुबान पर 'नत्था' और 'इस देश का कुछ नहीं हो सकता' जैसे जुमले थे.

फिल्म में देसी मिट्टी की कहानी है. इस फिल्म का हीरो, अमेरिका या ब्रिटेन में नहीं रहता. न ही उसके पास महंगी कारें हैं. सामान्य भारतीय फिल्मों से उलट पीपली लाइव में हीरो क्या करता है, यह पता चल रहा है. वह गरीब किसान है. दरअसल हाल में बॉलीवुड की फिल्मों में हीरो को नौकरी पर काम करते हुए दिखाया ही नहीं जाता. हमेशा लगता है कि नायक पैदाइशी अमीर है, कैसे यह भी पता नहीं चलता.

लेकिन पीपली लाइव सच्चाई के साथ सट कर चलती फिल्म है. कहानी पीपली गांव के किसान भाइयों पर आधारित है. कर्ज और जमीन छीनने के डर ने दोनों की कमर तोड़ दी है. वह मदद के लिए दर दर भटक रहे हैं, तभी उन्हें पता चलता है कि आत्महत्या करने पर सरकार मुआवजा दे रही है. मुआवजे के चक्कर में छोटा भाई नत्था आत्महत्या करने का एलान करता है.

तस्वीर: Aamir Khan Productions

उसकी आत्महत्या की खबर मीडिया तक पहुंचती है. कई टीवी चैनल पीपली पहुंच जाते हैं, नत्था ने क्या खाया, क्या मरेगा नत्था, नत्था कब मरेगा, नत्था के गांव में देवी, जैसी मसालेदार खबरें दिखाना शुरू करते हैं. मीडिया पर कटाक्ष करते हुए दिखाया गया है कि कोई भी चैनल नत्था की आत्महत्या के पीछे छुपे किसानों के दर्द की बात नहीं कर रहा है. सब नत्था की मौत को मनोहर कहानियों की तरह दिखा रहे हैं.

देश में बढ़ी महंगाई पर सरकार की चुप्पी को भी बखूबी दिखाया गया है. आखिरकार केंद्र सरकार पर नत्था की आत्महत्या रोकने का दवाब पड़ता है. लेकिन लोकल राजनीति में नत्था ऐसा फंस जाता है कि नेताओं का एक तबका उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने लगता है.

आखिर में नत्था अपने बड़े भाई से कहता है कि, ''भैया आप कर लो आत्महत्या, मुझे डर लग रहा है.'' फिल्म ग्रामीण भारत के बारे में संजीदगी से सोचने पर विवश करती है, हंसाती है और झोकझोरती भी है. अंत में एक सवाल बचता है कि क्या नत्था मरेगा. आलोचक कहते हैं कि यही सवाल लाख टके का है कि क्या गांवों में बसने वाले करोड़ों नत्था मरेंगे?

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: ए जमाल

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