एक ऐनिमेशन वीडियो बड़े ही सीधे सरल अंदाज में दिखा रहा है कि क्यों पीरियड्स पर खुल कर बात करना जरूरी है. आप भी देखिए.
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भारतीय समाज में वैसे ही पीरियड्स पर कभी खुलेआम बात नहीं होती है. इसके कारण कई बार किशोरियां कई उल्टे पुल्टे काम भी कर जाती हैं. सही जानकारी के अभाव में कई लड़कियों को संक्रामक बीमारियां हो जाती हैं तो कई मासिक धर्म को ही कोई बीमारी समझ लेती हैं. गरीबी के कारण समस्या और बढ़ जाती है. गरीब घरों में लोगों के पास सैनिटरी पैड खरीदने के पैसे और सुविधा दोनों नहीं होती. इस कारण भी कई पीरियड्स शुरु होते ही कई लड़कियों की पढ़ाई छूट जाती है.
ये वीडियो दिखाता है कि क्यों हम सबको इस विषय पर और चुप्पी नहीं साधनी चाहिए और इस पर बात करने में शर्म भी नहीं होनी चाहिए.
वीडियो में कई जरूरी आंकड़े पेश किए गए हैं जो आंखें खोल देने वाले हैं. हर साल 28 मई को मेन्स्ट्रुअल हायजीन डे मनाया जाता है. लड़कियों और महिलाओं की इस समस्या का हल संभव है. इसके लिए भारत में ही कई लोग और कंपनियां गांवों में ही बनाए जा सकने वाले साधारण पैड्स को लोकप्रिय बनाने में लगे हैं.
पाया गया है कि अगर लड़कियों को पैड्स उपलब्ध कराए जा सकें तो वे स्कूल जाने में हिचकिचाती नहीं. इसके अलावा स्कूल समेत हर जगह शौचालयों की व्यवस्था होना भी बेहद जरूरी है. ऐसी एक छोटी लेकिन अहम मदद कई लड़कियों का आज और कल बेहतर बना सकती है.
पीरियड्स पर 5 जरूरी बातें
28 मई को मेन्स्ट्रुअल हायजीन डे है. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के विशेषज्ञ बता रहे हैं पीरियड्स से जुड़ीं कुछ जरूरी बातें...
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शौचालय क्यों जरूरी है?
रोजाना पूरी दुनिया में 15 से 49 साल की 80 करोड़ महिलाएं पीरियड्स में होती हैं. वॉटरएड दुनिया की सवा अरब औरतों को पीरियड्स के दौरान शौचालय की सुविधा नहीं होती. यूएन का अनुमान है कि इस वजह से हर 10 में से एक लड़की पीरियड के दौरान स्कूल नहीं जाती. धीरे-धीरे उसका स्कूल छूट जाता है.
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पीरियड्स पर बात क्यों नहीं होती?
पीरियड्स के लिए दुनियाभर में 5000 से ज्यादा सांकेतिक शब्दों का इस्तेमाल होता है क्योंकि सीधे-सीधे इसका नाम लेने में शर्म आती है. नेपाल जैसे देशों में आज भी चौपदी परंपराएं मानी जाती हैं जब पीरियड्स के दौरान महिलाएं खुद को परिवार से अलग कर लेती हैं. ईरान में 50 फीसदी और भारत में 10 फीसदी लड़कियां मानती हैं कि पीरियड्स बीमारी हैं.
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नजरअंदाज क्यों करते हैं?
एक स्वस्थ, प्रोडक्टिव और सम्मानजनक जीवन के लिए महिलाओं को पीरियड्स के दौरान पानी, साबुन, शौचालय और सैनिटरी पैड जैसी चीजें जरूर मिलनी चाहिए. वे अपने जीवन के 6-7 साल पीरियड्स में गुजारती हैं. यह उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा है. फिर भी उन्हें मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल पातीं.
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क्या असर?
पीरियड्स पर बात न हो पाने का असर ही है कि इसका नाम लेने तक में शर्म आती है. इसे बीमारी समझ जाता है. महिलाओं को परिवार से अलग तक कर दिया जाता है.
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क्या कहती है आयशा?
घाना की रहने वाली हाई स्कूल की छात्रा आयशा कहती है कि पीरियड्स के दौरान अगर स्कर्ट पर खून का धब्बा लग जाए तो लड़के हमें बेशर्म कहते हैं और शर्मिंदा करते हैं. हमें खुद को खराब लगता है कि लड़कों ने हमारे कपड़ों पर खून देख लिया. हमारे लिए तब उनके सामने जाना तक मुश्किल हो जाता है.