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पुणे में होगा इंडो-जर्मन अरबन मेला

६ जनवरी २०१३

भारत और जर्मनी के कूटनीतिक संबंधों की 60वीं वर्षगांठ के सिलसिले में चल रहे समारोह का समापन पुणे में दस दिनों के इंडो-जर्मन अरबन मेले के साथ होगा. मेले में दोनों देशों की खोजों और डिजायनों के बेहतरीन नमूने पेश किए जाएंगे.

तस्वीर: DW

अंतरराष्ट्रीय ख्याति के जर्मन कलाकार मार्कुस हाइंसडॉर्फ ने इस घुमंतु मेले की रूपरेखा तैयार की है. अपनी तरह की अनूठी मोबाइल प्रदर्शनी में जर्मनी की विभिन्न कंपनियां और संगठन सिटी स्पेस से जुड़े मुद्दों और उनके हल पर इंटरएक्टिव प्रेजेंटेशन दिखा रहे हैं. इसमें शहरी जिंदगी से जुड़े परिवहन, ऊर्जा, टिकाऊ विकास, वास्तुशिल्प और शहरी कला जैसी समस्याओं का हल दिखाने की कोशिश है.

प्रदर्शनी के आयोजकों में शामिल पुणे के मैक्स मुलर भवन के निदेशक फोलिको नाथर कहते हैं, "भारत भर में यह कार्यक्रम श्रृंखला तेज शहरीकरण और जर्मनी व भारत के समकालीन शहरों में परिवर्तन की गति के कारण उठने वाली चुनौतियों के बारे में बताती है." जर्मनी का सांस्कृतिक संस्थान गोएथे इंस्टीट्यूट भारत में मैक्स मुलर भवन के नाम से जाना जाता है.

परियोजना के बारे में बताते हुए नाथर ने कहा कि भारत में जर्मनी वर्ष से संबंधित समारोहों की शुरुआत 2011 में हुई जो 2013 में समाप्त हो रही है. नाथर के अनुसार भारत में चल रही प्रदर्शनी राजनीति, कारोबार, विज्ञान, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में साझा रुख को दिखाता है. दोनों देशों के बीच 1951 में कूटनीतिक संबंधों की स्थापना हुई थी. इस समय भारत जर्मनी में भारत वर्ष मना रहा है.

बैंगलोर में इंडो-जर्मन अरबन मेलातस्वीर: DW

इंडो-जर्मन अरबन मेला की यात्रा 2012 में पश्चिमी शहर मुंबई से शुरू हुई. पिछले साल जून और जुलाई में यह प्रदर्शनी बंगलोर और चेन्नई गई. अक्टूबर में प्रदर्शनी नई दिल्ली गई और अब उसका समापन पुणे में हो रही है. प्रदर्शनी के समन्वयकों में शामिल केतकी गोलटकर के अनुसार पुणे के डेक्कन कॉलेज में मंडपों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार ढाला जा रहा है. गोएथे इंस्टीट्यूट में जर्मन पढ़ने वाले छात्रों को स्वयंसेवक के रूप में लगाया गया है.

इन मंडपों में शहरों को जीने लायक बनाने के लिए हुए वैश्विक आविष्कारों, भावी रुझानों और सुविधाओं को दिखाया जा रहा है. मेले को डिजायन करने वाले कलाकार हाइंसडॉर्फ कहते हैं, "मेरी रचना का फोकस शहरी जगहों का उपयोग है. इन मंडपों के डिजायन में मेरा लक्ष्य भारतीय डिजायन के परंपरागत पहलुओं को बनाए रखना और उन्हें टिकाऊ वास्तुशिप में बदलना शामिल था." उन्होंने कहा कि प्रकृति में वास्तुकला के तत्व को पहचानना और उस पर जोर देना इसकी विशेषता है.

इंडो-जर्मन अरबन मेले की परियोजना को समर्थन दे रही जर्मन कंपनियों में बीएएसएफ, बॉश, डॉयचे बैंक, सीमेंस और फोल्क्सवैगन शामिल है.

एमजे/ओएसजे (पीटीआई)

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