रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कमजोरी को ताकत बनाने की कला जानते हैं. सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद का साथ दे रहा रूस आज मध्य पूर्व में जारी खेल का एक अहम खिलाड़ी बन गया है.
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लगभग दो साल पहले तक मध्य पूर्व में रूस की मौजूदगी लगभग ना के बराबर थी. सिर्फ सीरिया में उसका एक नेवल बेस था. लेकिन अब रूस के लड़ाकू विमान सीरिया, ईरान और इराक के वायुक्षेत्र में कुलांचे भर रहे हैं. पिछले एक साल में रूस ने सीरिया में बहुत सक्रियता दिखाई है. इससे सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद और उनकी सरकार को मजबूती मिली जो एक समय ध्वस्त होने के कगार पर पहुंच गई थी. पुतिन ने ईरान के साथ सैन्य गठजोड़ किया जिससे फारस की खाड़ी में रूस को ताकत मिली. दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद से ही रूस इसी तलाश में था.
मध्य पूर्व में रूस की ताकत का एक पहलू तुर्की से नजदीकी भी है. हालांकि जब पिछले साल तुर्की ने रूस के एक लड़ाकू विमान को मार गिराया तो दोनों के रिश्तों में कड़वाहट आ गई. लेकिन अब तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यब एर्दोआन और पुतिन के बीच सब कुछ ठीक होता नजर आ रहा है और वो राजनयिक रिश्ते बहाल करने वाले हैं. इसके अलावा इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतान्याहू के साथ भी पुतिन का करीबी रिश्ता है.
दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स
फोर्ब्स पत्रिका ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दुनिया के सबसे ताकतवर लोगों की सूची में 9वें स्थान पर रखा है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लगातार तीसरे साल पहले स्थान पर बने हुए हैं.
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ताकतवर पुतिन
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लगातार तीसरे साल शीर्ष पर बने हुए हैं. पहले वैश्विक स्तर पर तमाम विरोधों के बावजूद उन्होंने जिस तरह क्रीमिया का अधिग्रहण किया. हाल ही में सीरिया में हवाई हमले कर एक बार फिर वे वर्तमान गंभीर संकट में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं.
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जर्मन चांसलर
जर्मनी यूरोप की राजनीति और आर्थिक पटल पर अहम स्थान रखता है और अर्थव्यवस्था के मामले में यूरोप में सबसे अधिक शक्तिशाली है. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल इस साल सूची में 5वें स्थान से उठकर तीसरे स्थान पर आ गई हैं. सीरियाई शरणार्थियों की मदद के लिए मैर्केल के उदार और साहसी कदम के कारण उनकी छवि और भी ताकतवर नेता की बनी है.
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तीसरे नंबर पर ओबामा
फोर्ब्स की ताकतवर 72 लोगों की सूची में तीसरे नंबर पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा हैं. फोर्ब्स के मुताबिक दूसरे टर्म के अंतिम चरण में आ चुके ओबामा की लोकप्रियता पहले के मुकाबले कुछ कम हुई है.
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चौथे नंबर पर पोप फ्रांसिस
ऐसा नहीं है कि शक्तिशाली लोगों की सूची में सिर्फ देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हों. इसी सूची में कैथोलिक गिरजे के प्रमुख पोप फ्रांसिस भी हैं. पोप रूढ़िवादी कैथोलिक ईसाइयों की पुरानी छवि को बदलने के काम में जुटे हुए हैं.
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शी जिनपिंग
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग फोर्ब्स की सूची में पांचवे नंबर पर हैं. सत्तारूढ़ जिनपिंग माओ झे डोंग के बाद सबसे ताकतवर चीनी नेता बनकर उभरे हैं. वे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं.
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छठवें नंबर पर बिल गेट्स
माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स इस सूची में सातवें से छठी पायदान पर आ गए हैं. अमेरिका के सबसे अमीर शख्स गेट्स अपने अरबों डॉलर का इस्तेमाल दुनिया भर के प्रमुख सामाजिक परिवर्तन के लिए कर रहे हैं.
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ऊपर उठे नरेंद्र मोदी
इस साल 9वें स्थान पर विराजमान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 की सूची में 15वें स्थान पर थे. मई 2014 में हुए आम चुनाव में बहुमत से जीतकर सत्ता में आने वाले बीजेपी नेता मोदी के बारे में फोर्ब्स का कहना है कि पीएम मोदी को अपनी पार्टी के सुधार एजेंडा को आगे बढ़ाने और "झगड़ालू विपक्ष" पर नियंत्रण करने पर ध्यान देना चाहिए.
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पुतिन मध्य पूर्व का पासा पलटने में कैसे कामयाब रहे? जिन देशों के साथ रूस की कभी बिल्कुल नहीं पटती थी, वो अब क्यों उसके नजदीक आते जा रहे हैं? रूस मध्य पूर्व में अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के मामले में क्यों अमेरिकियों से ज्यादा असरदार नजर आता है? पुतिन किसी भी संकट में रूस की विदेश नीति के हितों को पहचानने में जरा भी देर नहीं लगाते हैं और फिर उन्हें हासिल करने के लिए पूरे संसाधन भी लगा देते हैं. और जब वो हित पूरे हो जाते हैं या बदल जाते हैं तो रूस की नीति भी उसी के अनुरूप तुरंत बदल जाती है.
ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद अमेरिका ने उसके साथ रिश्तों को कोई भाव नहीं दिया और सऊदी अरब, कुवैत और कतर जैसे सुन्नी शासित देशों से दोस्ती बढ़ाई. इन देशों ने भी अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश किया. ये देश समझते हैं कि मध्य पूर्व में अमेरिका का रुख बिल्कुल वैसा ही हो जैसे वो सोचते हैं, भले ही वो बात अमेरिका के हितों के खिलाफ ही क्यों न जाती हो. वहीं रूस से वो ऐसी कोई उम्मीद नहीं लगाते हैं.
रूस के इन हथियारों से सहम जाती है दुनिया
शीत युद्ध के बाद से रूस को सैन्य रूप से कमजोर माना जाने लगा. लेकिन सीरिया के संघर्ष ने साफ कर दिया है कि रूस सैन्य रूप से बहुत ताकतवर है. रूस के पास ऐसे कई हथियार हैं जो मॉस्को को फिर से सुपरपावर बना सकते हैं.
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टी-14 टैंक
यह पांचवीं पीढ़ी का टैंक है. रूस ने इसे 2015 में लॉन्च किया. इस टैंक को रोबोटिक कॉम्बैट व्हीकल में भी बदला जा सकता है. हाल ही में रूस ने इस पर 152 एमएम की तोप लगाने का एलान किया है. रूसी उपप्रधानमंत्री दिमित्रि रोगोजिन के मुताबिक, यह तोप "एक मीटर मोटी स्टील की चादर को भेद सकती है."
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युद्धपोत प्योत्र वेलिकी
अटलांटिक महासागर में रूस के उत्तरी बेड़े का यह सबसे घातक युद्धपोत है. परमाणु ऊर्जा से चलने वाला यह युद्धपोत किरोव क्लास युद्धपोतों का हिस्सा है. नाटो इसे "विमानवाही पोतों का हत्यारा" कहता है. यह बैलेस्टिक मिसाइल को भी नष्ट कर सकता है.
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सुखोई टी-50
रूस का यह लड़ाकू विमान अमेरिका के हर तरह के लड़ाकू विमानों पर भारी पड़ता है. 2010 में पहली उड़ान के बाद रूस और भारत ने इसे साथ बनाने का फैसला किया. रणनीतिक साझीदारी के तौर पर रूस और भारत 2017 से इसे बड़े पैमाने पर बनाएंगे. लेकिन इस योजना पर वित्तीय मतभेद भारी पड़ रहे हैं.
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एस-400 मिसाइल
रफ्तार 17,000 किलोमीटर प्रति घंटा और 400 मीटर के दायरे में किसी भी लक्ष्य को भेदने की क्षमता के चलते पायलट इससे घबराते हैं. सीरिया के उडारान खामेमिम बेस में जब रूस ने इन मिसाइलों को तैनात किया तो अमेरिका को अपने लड़ाकू विमान वहां से हटाने पर मजबूर होना पड़ा. अब रूस एस-400 को और बेहतर कर रहा है.
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सुखोई एसयू-35
रूस का यह लड़ाकू विमान अमेरिका के एफ-16 पर भारी पड़ता है. इसका मुकाबला करने के लिए अमेरिका ने एफ-35 बनाया. लेकिन हाल ही में अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के मुताबिक एफ-35 भी सुखोई से कमतर है. सुखोई एसयू-35 की तेज रफ्तार और जबरदस्त चपलता को टक्कर देना बहुत मुश्किल है.
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हाइपरसोनिक रॉकेट वाईयू-71
रूस काफी समय से परमाणु हथियारों के लिए हाइपरसोनिक मिसाइल बनाना चाहता था. "प्रोजेक्ट 4204" नाम के सीक्रेट कोड के साथ रूस ने वाईयू-71 बनाया. इसकी रफ्तार 12,000 किलोमीटर प्रतिघंटा है. जैन्स इंटेलिजेंस रिव्यू के मुताबिक यह मिसाइल आराम से नाटो के डिफेंस सिस्टम को भेद सकती है.
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लड़ाकू हेलीकॉप्टर एमआई-28एन
अमेरिकी कंपनी बोइंग के अपाचे लॉन्गबो लड़ाकू हेलीकॉप्टर रफ्तार और हथियारों की क्षमता के मामले में इससे पीछे हैं. रूस का यह हेलीकॉप्टर टैंक, बख्तरबंद गाड़ियों पर हमला कर सकता है. यह रात में भी उड़ता है.
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विमानवाही एडमिरल कुजनेत्सोव
एडमिरल कुजनेत्सोव दुनिया का अकेला विमानवाही पोत है जो कई तरह की एंटी बैलेस्टिक हथियारों और पनडुब्बी से लैस है. 1990 में पेश किया गया यह पोत अमेरिकी विमानवाही पोतों से उलट अकेला समंदर का सफर कर सकता है. वैसे 1991 में सोवियत संघ के विघटन के वक्त यह पोत यूक्रेन के हाथ लगने वाला था.
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Tupolev Tu-160M
टीयू-160एम इस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा और भारी बमवर्षक है. रूसी पायलट इसे "सफेद हंस" कहते हैं. 2014 में आधुनिकीकरण के बाद टीयू-160एम की युद्ध क्षमता दोगुनी कर दी गई.
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परमाणु पनडुब्बी यूरी डोग्लोरुकी
बीते दशक में रूस ने बड़ी पनडुब्बियों के बजाए छोटी पनडुब्बियां बनानी शुरू कीं लेकिन यह जानलेवा साबित हुआ. यूरी डोग्लोरुकी के साथ रूस ने इस तकनीकी बाधा को दूर किया. साउंडप्रूफ होने की वजह से समंदर में इसका पता लगाना बहुत ही मुश्किल है. इसमें परमाणु हथियार लगाए जा सकते हैं.
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रूस एक तरफ शिया बहुल ईरान और सीरिया में असद की सरकार का समर्थन करता है, तो दूसरी तरफ अरब नेता भी पुतिन के साथ बनाकर रखना चाहते हैं. मिसाल के तौर पर सऊदी अरब इन दिनों रूस के साथ मिलकर इस बारे में काम कर रहा है कि कैसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों को स्थिर किया जाए. सऊदी अरब ये भी चाहता है कि इस मामले में पुतिन ईरान पर दबाव डालें.
रूस की साझेदारियां वास्तविकता पर आधारित होती हैं. पुतिन का इकलौता मकसद रूस के हितों को बढ़ावा देना है. उन पर ऐसे गठबंधनों की विरासत को ढोने का बोझ नहीं है जिनसे रूस के रणनीतिक हित पूरा न होते हों. वो सीरिया, ईरान और इराक की शिया सरकारों का समर्थन करते हैं क्योंकि वो सुन्नी चरमपंथ को एक दीर्घकालीन खतरा मानते हैं जिससे न सिर्फ मध्य पूर्व बल्कि रूस की सीमा से लगने वाले अन्य देशों में भी अस्थिरता फैलेगी. लेकिन शिया सरकारों के साथ नजदीकी सहयोग के बावजूद सुन्नी अरब देशों के साथ रूस के औद्योगिक और व्यापारिक रिश्तों को आगे बढ़ाने में पुतिन को किसी अड़चन का सामना नहीं करना पड़ता.
कमाल की बात ये है कि इस्राएल के घोषित दुश्मनों ईरान और सीरिया के साथ दोस्ती के बावजूद पुतिन इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतान्याहू के भी उतने ही करीब हैं. वो शायद नेतान्याहू को यकीन दिला चुके हैं कि सीरिया और ईरान इस्राएल के वजूद के लिए खतरा नहीं है बल्कि सुन्नी चरमपंथ को हराने में मददगार साबित हो सकते हैं. उर्जा, कृषि और हथियारों के क्षेत्रों में इस्राएल के साथ रूस का लगातार सहयोग जारी है. दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग भी है. पुतिन इस बात का पूरा ख्याल रखते हैं कि इस्राएल के दुश्मनों के पास घातक हथियार न पहुंचे.
दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ नेतान्याहू के रिश्ते सहज नहीं रहे हैं. जब ईरान के साथ परमाणु मुद्दे पर डील हो रही थी तो न सिर्फ नेतान्याहू ने बल्कि अमेरिका में मौजूद इस्राएल समर्थक लॉबी ने ओबामा की कड़ी आलोचना की थी. उन्होंने ओबामा के कार्यकाल की इस बड़ी उपलब्धि को खारिज ही कर दिया था. इतना तो तब है जब अमेरिका ने दस साल में इस्राएल को 38 अरब डॉलर की मदद दी है और उसकी सेना और हथियारों के जखीरे को आधुनिक बनाने में लगातार अमेरिका की तरफ से मदद दी जाती है.
ये बात सही है कि सऊदी अरब या इस्राएल जैसे सहयोगियों पर अमेरिका का असर कहीं ज्यादा है, लेकिन रूस ने जिस तरह अपनी जगह बनाई है उससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है. जब तक रूस मध्य पूर्व में अपनी अवसरवादी सोच को प्रभावी तरीके से लागू करता रहेगा, अमेरिका को मुश्किलों का सामना करते रहना पड़ेगा.. और यही मध्य पूर्व में रूस की बढ़ती ताकत का प्रतीक है.