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अब पुदुचेरी में भी सत्ता से बाहर कांग्रेस

२२ फ़रवरी २०२१

मुख्यमंत्री वी नारायणसामी के इस्तीफे के साथ ही पुदुचेरी में कांग्रेस-डीएमके की सरकार गिर गई है. विधान सभा चुनाव मुश्किल से दो महीने दूर हैं, इसलिए देखना होगा कि महीनों से चल रही खींच तान पर पर्दा अब भी गिरा है या नहीं.

puducherry V Narayanaswamy
तस्वीर: imago/Hindustan Times

33 सीटों वाली पुदुचेरी विधान सभा में बहुमत के लिए 17 सीटें चाहिए होती हैं. कुछ विधायकों के इस्तीफे के बाद सदन में सदस्यों की संख्या गिर कर 26 पर आ गई थी, इसलिए बहुमत का आंकड़ा भी 14 पर आ गया था. रविवार को कांग्रेस और उसके घटक दल डीएमके के एक एक विधायक के इस्तीफे के बाद सदन में सरकार के पास सिर्फ 12 सीटें रह गईं और वह अल्पमत में आ गई.

इसके बाद राज्य का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहीं तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सौंदरराजन ने मुख्यमंत्री नारायणसामी को सदन में विश्वास मत का सामना करने को कहा. सोमवार को सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले तक मुख्यमंत्री दावा कर रहे थे कि उनके पास बहुमत है लेकिन विश्वास मत के शुरू होने से पहले ही वे अपने मंत्रियों के साथ मिल कर सदन की कार्यवाही छोड़ कर चले गए. इसके बाद अध्यक्ष ने घोषणा कर दी कि सरकार ने बहुमत खो दिया है.

सदन की कार्यवाही के बाद नारायणसामी ने राज्यपाल से मिल कर इस्तीफा तो सौंप दिया लेकिन उन्होंने साथ ही आरोप लगाया कि अध्यक्ष का फैसला गलत था और प्रदेश में लोकतंत्र की हत्या हुई है. उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र की बीजेपी सरकार, विपक्षी दल एनआर कांग्रेस और एआईएडीएमके ने मिल कर उनकी सरकार गिरा दी है. दरअसल नारायणसामी पहले से दावा कर रहे थे कि विधान सभा में तीन सदस्य हैं जिन्हें बीजेपी ने मनोनीत किया है और मनोनीत सदस्य होने के नाते इन्हें विश्वास मत के दौरान मतदान करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.

पुदुचेरी में मुख्यमंत्री नारायणसामी और तत्कालीन राज्यपाल किरण बेदी के बीच तनातनी लगातार बनी रही.तस्वीर: picture alliance/ZUMA Press

सत्ता के संघर्ष का नतीजा

अगर इन्हें मतदान से बाहर रखा जाता, तो सदन की संख्या 23 हो जाती, बहुमत का आंकड़ा 12 हो जाता और कांग्रेस-डीएमके सरकार बच जाती. लेकिन विधान सभा अध्यक्ष ने मनोनीत सदस्यों को भी मतदान की अनुमति दे दी. मुख्यमंत्री ने अध्यक्ष के इस फैसले को गलत बताया. प्रदेश में इसके बाद क्या होगा यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है. सदन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी एनआर कांग्रेस है और अगर वह सरकार बनाने का दावा पेश करती है, तो राज्यपाल उसे निमंत्रण दे सकती हैं. लेकिन चूंकि चुनाव सिर्फ दो महीने दूर हैं, राज्यपाल तब तक राष्ट्रपति शासन भी लागू कर सकती हैं.

पुदुचेरी में यह राजनीतिक खींच तान राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच लंबे समय से चल रहे सत्ता के संघर्ष का नतीजा है. दक्षिण के राज्यों में सिर्फ पुदुचेरी में ही कांग्रेस सत्ता में बची थी. जुलाई 2019 में कुछ इसी तरह कर्नाटक में भी कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे की वजह से कांग्रेस-जेडी (एस) सरकार गिर गई थी और बीजेपी सत्ता में आ गई थी.

पुदुचेरी में बीजेपी के सिर्फ तीन विधायक हैं लेकिन माना जा रहा है कि अगर एनआर कांग्रेस और एआईएडीएमके मिल कर सरकार बनाएंगे तो बीजेपी के तीनों विधायक भी उसमें शामिल होंगे. बीजेपी को उम्मीद है कि इससे पड़ोसी राज्य तमिलनाडु की राजनीति पर भी असर पड़ेगा. दोनों प्रदेशों में चुनाव एक साथ ही होते हैं और दोनों जगह अमूमन एक ही पार्टी या गठबंधन की विजय होती है. हालांकि 2016 में ऐसा नहीं हुआ था. पुदुचेरी में तो कांग्रेस-डीएमके गठबंधन को बहुमत मिला था लेकिन तमिलनाडु में एआईएडीएमके ने सरकार बनाई थी. बीजेपी को राज्य में एक भी सीट नहीं मिली थी.

जुलाई 2019 में इसी तरह कर्नाटक में भी कांग्रेस-जेडी (एस) सरकार गिर गई थी और बीजेपी सत्ता में आ गई थी.तस्वीर: IANS

राज्यपाल से टकराव

पुदुचेरी सरकार के कार्यकाल की शुरुआत के तुरंत बाद से ही मुख्यमंत्री नारायणसामी और तत्कालीन राज्यपाल किरण बेदी के बीच तनातनी शुरू हो गई और लगातार चलती ही रही. मुख्यमंत्री का आरोप था कि बेदी सरकार के रोज के कार्यों में हस्तक्षेप करती थीं, सरकारी नियुक्तियों पर रोक लगा देती थीं, सरकार को फैसले लेने से रोकती थीं और कई बार फैसलों को उलट भी देती थीं. उन दोनों के बीच यह खींचतान लगातार चलती ही रही.

फरवरी 2019 में तो नारायणसामी ही बेदी के खिलाफ छह दिनों तक धरने पर बैठे रहे थे. जनवरी 2020 में मुख्यमंत्री एक बार फिर बेदी को हटाए जाने की मांग कर तीन दिनों के धरने पर बैठे थे. 16 फरवरी को राष्ट्रपति ने बेदी को राज्यपाल के पद से हटा दिया और तेलंगाना की राज्यपाल को प्रदेश का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया.

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