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पुरानी यादों को नक्शे पर उकेरकर मुंबई को बचाने की पहल

कैथरीन डेविसन
१२ फ़रवरी २०२२

प्रदूषण और बड़े पैमाने पर निर्माण ने मुंबई के प्राकृतिक तटीय संरक्षण को खत्म कर दिया है. इस शहर के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे में पुरानी यादों को नक्शे पर उकेरकर शहर को बचाने की कोशिश शुरू की गई है.

पकड़ी गई मछली दिखाता एक मछुआरा.
प्रदूषित खाड़ियों ने मछुआरों को समंदर से और दूर कर दिया है.तस्वीर: Catherine Davison

विकास कोली की लकड़ी की नाव मुंबई की खाड़ी की भूलभुलैया से गुजर रही है.  उन्हें अब यह रास्ता पूरी तरह याद नहीं है. इसलिए, वे बार-बार अपने फोन पर नक्शे को ध्यान से देख रहे हैं. कोली के दाईं ओर के किनारे पर यात्रियों के लिए नाव घाट बनाया हुआ है. इसके लिए खाड़ी से निकली जमीन पर कंक्रीट का स्लैब लगाया गया है. हालांकि, इस नक्शे पर मुंबई का कोई भी आधुनिक लैंडमार्क नहीं है. इसके बजाय, नक्शे पर मुंबई को अलग-अलग हिस्सों में बांटने वाली खाड़ी के साथ-साथ मछली मारने वाली नाव और दो केकड़ों के चित्र हैं.

मुंबई अब भारत की आर्थिक राजधानी बन चुकी है. करीब 2 करोड़ लोग यहां रहते हैं. पिछले कुछ दशकों में शहर का भूगोल काफी बदल चुका है, लेकिन विकास कोली के लिए यह नक्शा खोए हुए अतीत की कहानी बयां करता है. अर्बन डिजाइन स्टूडियो और थिंक टैंक बॉम्बे-61 ने इस नक्शे को तैयार किया है. इसमें मछली पकड़ने वाले पुराने तटीय गांव या ‘कोलीवाड़ा' के साथ उन जगहों को दिखाया गया है जो शहर के विस्तार से पहले मछली और केकड़े के प्रमुख स्रोत थे.

विकास को फिर से परिभाषित करना

बॉम्बे-61 को उम्मीद है कि नक्शे से पुरानी यादें ताजा होंगी. साथ ही, विकास कोली जैसे स्थानीय लोग पर्यावरण को बचाने के लिए प्रेरित होंगे. आजीविका और प्राकृतिक प्रणालियों को बचाने के उनके प्रयास, जलवायु कार्यकर्ताओं और शहरी डिजाइनरों के ऐसे आंदोलन का हिस्सा हैं जो विकास के वैकल्पिक दृष्टिकोण के लिए मुंबई के अतीत की ओर देख रहे हैं.

कोली नक्शे पर बने केकड़े और नदी के किनारे पर इसी जगह की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "करीब 20 या 30 साल पहले यहां का पानी काफी साफ था. इस वजह से यहां काफी मछलियां मिलती थीं.”

बॉम्बे- 61 मुंबई के प्राकृतिक संसाधनों के पुराने नक्शे बना रहा है.तस्वीर: Bombay61

कोली समुदाय को मुंबई का मूल निवासी कहा जाता है. ये पारंपरिक रूप से मछुआरे थे. इनका आज भी खाड़ी और मैंग्रोव के जंगलों से घनिष्ठ संबंध है. लेकिन हाल के वर्षों में, प्लास्टिक और कचरे ने पानी को प्रदूषित कर दिया है. इससे मैंग्रोव और उन पर निर्भर पारिस्थितिक तंत्र दोनों को नुकसान पहुंचा है. अब वे काफी कम मछलियां पकड़ पाते हैं.

विकास कोली अफसोस जताते हुए कहते हैं, "मुंबई मूल रूप से मछुआरों का हुआ करता था, लेकिन अब मछुआरों को ही विस्थापित होना पड़ रहा है.” वह शहर का पुराना नाम लेते हुए कहते हैं, "यह बॉम्बे की सबसे दुखद कहानी है.” 

समंदर से शहर को बचाना है

मुंबई मूल रूप से कई द्वीपों पर बसा हुआ है. समुद्र से निकली जमीन पर ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान मुंबई को बसाया गया. जैसे-जैसे शहर की आबादी बढ़ी, वैसे-वैसे घर बनाने के लिए जमीन की मांग बढ़ती गई. नए बुनियादी ढांचे का निर्माण हुआ लेकिन इन सब के लिए प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की उपेक्षा की गई जो अब शहर के अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है.

मानसून के मौसम में मुंबई में  करीब हर साल बाढ़ आने लगी है. कंक्रीट के जंगल की वजह से पानी का निकास नहीं हो पाता और लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. संरक्षित मैंग्रोव वन भूमि और बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण कर वहां भी बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं. इस वजह से भी शहर में तूफान आने का खतरा बढ़ गया है. पहले यही मैंग्रोव वन शहर को तूफान से बचाते थे.

जलवायु परिवर्तन की वजह से ये समस्याएं पहले के मुकाबले तेजी से बढ़ सकती हैं. शहर का अस्तित्व काफी ज्यादा संकट में पड़ सकता है. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, इस सदी के अंत से पहले समुद्र का स्तर एक मीटर (3 फीट से अधिक) तक बढ़ सकता है. इस वजह से मुंबई, बैंकॉक, जकार्ता और न्यू ऑरलियन्स जैसे दूसरे प्रमुख तटीय शहर पानी में डूब सकते हैं. मुंबई के नगर आयुक्त इकबाल सिंह चहल ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि अगर स्थिति नहीं बदली, तो शहर का एक बड़ा हिस्सा 2050 तक पानी में डूब जाएगा.

और पढ़ेंः जलवायु परिवर्तन से कराहते भारत के शहर कुछ सीखेंगे?

विकास कोली समुद्र के किनारे पर केकड़ों के पुराने इलाके दिखा रहे हैं.तस्वीर: Catherine Davison

यादों को नक्शे पर उतारना

बॉम्बे-61 के सह-संस्थापक केतकी टारे कहते हैं कि अतीत से सबक लेकर ही भविष्य का सामना किया जा सकता है. जय भडगांवकर भी बॉम्बे-61 के सह-संस्थापक हैं. दोनों यह उम्मीद जताते हैं कि समुदाय की यादों को नक्शे पर उतारकर वे स्थिति को उस तरह बदल सकते हैं जैसे अमेरिकी मनोवैज्ञानिक पीटर कान ‘पर्यावरण से जुड़ी पीढ़ीगत भूल' की सुधार करने के बारे में बताते हैं. इसके तहत, युवा अपने प्रदूषित वातावरण को फिर से पहले की तरह सामान्य करते हैं.

टारे कहते हैं कि अगर इसी तरह से कंक्रीट के जंगल बढ़ते रहे, वातावरण प्रदूषित होता रहा और बाढ़ का आना ‘सामान्य स्थिति' बन जाती है, तो फिर किसी नए विकल्प की कल्पना करना मुश्किल है.

इस परियोजना के तहत, स्थानीय कहानियों को तस्वीरों के जरिए दिखाने के लिए दीवारों पर चित्र बनाए गए हैं. साथ ही, फोटो संग्रह भी तैयार किया गया है. इसमें दिखाया गया है कि समुद्र के तट और खाड़ियां कैसी दिखती थीं. टारे कहते हैं कि इसका उद्देश्य विकास के मायने को बदलना है. हम यह बताना चाहते हैं कि विकास का मतलब सिर्फ शहर का विस्तार करना ही नहीं होता है, बल्कि प्राकृतिक प्रणालियों जैसे कि समुद्र के किनारों, वनस्पतियों, जल निकायों जैसी चीजों को बचाना भी है. 

गैर-लाभकारी संगठन कंजरवेशन एक्टिविस्ट ट्रस्ट के कार्यकारी ट्रस्टी देबी गोयनका भी इस बात से सहमत हैं कि विकास को लेकर एक नया दृष्टिकोण पैदा करने की जरूरत है. वह कहते हैं, "अगर किसी बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए प्राकृतिक संरचना को नष्ट कर दिया जाता है, तो मेरे हिसाब से यह विकास नहीं है.”

मैंग्रोव वन का संरक्षण

कई वर्षों तक गोयनका ने उन नीतियों को लागू करने के लिए अभियान चलाया है जो शहर के मैंग्रोव जंगलों और बाढ़ के मैदानों में विकास परियोजनाओं के निर्माण पर रोक लगाती हैं. एक अनुमान के अनुसार, 1990 और 2001 के बीच मुंबई उपनगरीय क्षेत्र में लगभग 40 फीसदी मैंग्रोव वन नष्ट हो गए. इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि शहर के मैंग्रोव वनों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जा रहा है.

मुंबई के विकास ने उसके अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर दिया है.तस्वीर: Java

राज्य सरकार पर बढ़ते सार्वजनिक दबाव की वजह से 2012 में मैंग्रोव सेल का गठन किया गया. भारत में यह इस तरह की पहली सरकारी इकाई है. इस इकाई को मौजूदा वन क्षेत्रों को अवैध अतिक्रमणों और विकास परियोजनाओं से बचाने के साथ-साथ मैंग्रोव वन के क्षेत्र को फिर से पुनर्जीवित  करने का काम सौंपा गया है.

सरकारी विभाग की सहायक इकाई मैंग्रोव फाउंडेशन में परियोजना की उप-निदेशक और पारिस्थितिकी विज्ञानी शीतल पचपांडे कहती हैं, "मुंबई जैसे शहर में जमीन एक बड़ा मुद्दा है. इसलिए शुरुआत में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.” वह दावा करती हैं कि खाई बनाकर और घेराबंदी करके आज मुंबई से मैंग्रोव वनों के अतिक्रमण को 99 फीसदी हटा दिया गया है. अब तक 80 लाख से अधिक मैंग्रोव के नए पौधे भी लगाए गए हैं.

सामुदायिक कार्रवाई और मालिकाना हक

गोयनका का मानना है कि ऐसे प्रयास तभी सफल हो सकते हैं जब सार्वजनिक तौर पर लोगों का जुड़ाव हो. बॉम्बे-61 ने भी कुछ इसी तरह की बात कहते हुए इस ‘भागीदारी को विकास का एक तरीका' बताया. उनकी परियोजना का उद्देश्य स्थानीय लोगों की यादों को शहर के डिजाइन में शामिल करके, कोली समुदाय को आसपास के पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रेरित करना है. उनके अंदर यह भावना जगानी है कि इस पर्यावरण पर उनका मालिकाना हक है. यह उनका पर्यावरण है.

भविष्य के परियोजना प्रस्तावों में मैंग्रोव और पर्यावरण के फायदों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना है. इसके तहत, मैंग्रोव पर्यटन को बढ़ावा देने और खाड़ियों में फैले जालों में प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करने में कोली समुदाय की मदद करने की योजना शामिल है.

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टारे कहते हैं कि इस तरह से कोली अपने पर्यावरण की रक्षा भी कर पाएंगे और उनकी आजीविका का साधन भी बढ़ेगा. विकास कोली पहले से ही कोलीवाड़ा के जरिए पर्यटन को बढ़ावा दे रहे हैं. वे यहां आने वाले पर्यटकों को खाड़ी और दीवार पर की गई चित्रकारी दिखाते हैं और उनके संरक्षण के लिए अभियान चलाते हैं.

टारे कहते हैं, "वे मैंग्रोव को भी अच्छी तरह से जानते हैं और उनकी प्रजातियों को भी. हम इन समुदायों को इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षक के रूप में क्यों नहीं देख सकते?”

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