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पुरुषों के गढ़ में मूर्तियां गढ़ती है चायना

४ अक्टूबर २०१०

दुर्गा पूजा की नगरी कोलकाता में मूर्तियां बनाने पर पुरुषों का एकछत्र राज है. लेकिन एक महिला कलाकार चायना पाल ने मूर्तियों को तराशने के साथ साथ पुरुषों के इस साम्राज्य में अपनी जगह भी तराशी है.

चायना पालतस्वीर: DW

कुमारटोली यानी कोलकाता स्थित मूर्तिकारों का सबसे बड़ा मोहल्ला. दुर्गापूजा सिर पर आने के साथ ही इस मोहल्ले की तंग गलियों में कलाकारों की व्यस्तता बेहद बढ़ गई है. वे दिन-रात मेहनत कर मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. इन गलियों से गुजरते हुए अचानक एक जगह नजर पड़ते ही लोग चौंक उठते हैं. एक बरामदे में महिला मूर्तिकार पूरी तन्मयता के साथ मूर्तियां गढ़ रही है. साढ़े तीन सौ मूर्तिकारों के मोहल्ले में यह अकेली महिला कलाकार है. नाम है चायना पाल. वह बीते सोलह वर्षों से तमाम देवी-देवताओं की मूर्तियां गढ़ रही है.

तस्वीर: DW

कुमारटोली में मूर्तियां बनाने का काम सदियों से पुरुषों के हाथों में रहा है. यह काम करने वाले भी मानते हैं कि मूर्तियां बनाना महिलाओं के वश की बात नहीं है. लेकिन चायना ने अपनी मेहनत व लगन से इस धारणा को गलत साबित कर दिया है. खुद चायना के पिता भी मानते थे कि महिलाएं मूर्तियां नहीं बना सकतीं.

चायना कहती है कि मेरे पिता भी कहते थे कि मूर्तियां बनाना तुम्हारा काम नहीं है. लेकिन उनकी मौत के बाद जब पेट पालने की जिम्मेदारी कंधों पर आ गई तो मैंने यह काम शुरू कर दिया. वह बताती है कि शुरूआत में तो काफी दिक्कत हुई. लगता था कि मूर्तियां बना कर उनको कैसे और कहां बेचूंगी. लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ समझ में आने लगा. दूसरे कलाकारों ने भी इस काम में काफी सहायता की.

तस्वीर: DW

दरअसल, चायना का मूर्ति निर्माण के क्षेत्र में कदम रखना एक हादसा ही था. वर्ष 1994 में उसके मूर्तिकार पिता हेमंत कुमार पाल का दुर्गापूजा के ठीक दो सप्ताह पहले निधन हो गया. उस समय वे कई जगह मूर्तियां सप्लाई करने के आर्डर ले चुके थे. तब चायना, जो उस समय 23 साल की थी, ने इस कला के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होने के बावजूद उन अधूरी मूर्तियों को पूरा कर ग्राहकों को समय पर भेजने का बीड़ा उठाया. उस समय तक चायना के दो भाई घर से अलग होकर दूसरी जगह काम कर रहे थे और दो बहनों की शादी हो चुकी थी.

शुरूआत में उसे बेहद दिक्कत हुई. उसने अपने पिता से यह कला नहीं सीखी थी. उसे सब कुछ नए सिरे से सीखना पड़ा. लेकिन अपनी मेहनत व लगन के बूते उसने जल्दी ही इस कला की तमाम बारीकियां सीख लीं. उसके बाद अब तक चायना के हाथ रुके नहीं हैं. वह अपने छोटे से घर में लगातार सपनों को सजीव बनाने में जुटी है.

चायना कहती है कि मौजूदा दौर में जब महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं तो मूर्ति बनाने में क्या दिक्कत है. यह तो एक कला है. चायना ज्यादा बड़ी मूर्तियां नहीं बनातीं. लेकिन उसकी बनाई मूर्तियां हाथोंहाथ बिक जाती हैं.

कुमारटोली के दूसरे कलाकार भी चायना के साहस व कला की प्रशंसा करते हैं. उसके पड़ोसी मूर्तिकार इंद्रजीत पाल कहते हैं कि वह पूरे मोहल्ले में अकेली महिला मूर्तिकार है. वह बहुत बढ़िया काम कर रही है. ग्राहकों को चायना की बनाई मूर्तियां बेहद पसंद हैं. यहां तमाम लोग उसका पूरा समर्थन करते हैं.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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