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पुर्तगाल का जुनूनी दीवाना कार्लोस ब्रुन

२१ जून २०१२

रंग बिरंगे कपड़े पहवे और पसंदीदा टीम के रंग में चेहरा पुताए स्टेडियम में बैठे फुटबॉल फैन्स यूरो कप या किसी फुटबॉल टूर्नामेंट के दौरान अजीब बात नहीं है. लेकिन पुर्तगाल के एक फुटबॉल प्रेमी की कहानी बहुत रोचक है.

तस्वीर: picture alliance/dpa

गुरुवार को पुर्तगाल क्वार्टर फाइनल में चेक गणराज्य के साथ खेल रहा है. निश्चित ही दीवाने कार्लोस वहां पुर्तगाल की जीत की दुआ करेंगे. यूरो 2012 में गुरुवार से क्वार्टर फाइनल का दौर शुरू हो रहा है. शुक्रवार को जर्मनी का मैच ग्रीस के साथ होना है.

कार्लोस ब्रुन जुनूनी फैन हैं, इतने कि अपने शौक को पूरा करने के लिए 55 साल के जीवन में 169 देश घूम चुके हैं, कई हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं और कई हजार डॉलर का खर्चा भी. ब्रुन पुर्तगाल के फुटबॉल प्रेमी हैं और वह अपने देश का कोई भी अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैच देखना मिस नहीं करते.

1985 से अब तक उन्होंने पुर्तगाल के सिर्फ तीन अंतरराष्ट्रीय मैच मिस किए हैं. मैंने पुर्तगाल की टीम को 234 बार खेलते हुए देखा है और दो अंतरराष्ट्रीय मैच मैंने मिस किए हैं. पोलैंड और स्विट्जरलैंड के खिलाफ दो दोस्ताना मैच. दोनों में हम 2-1 से हार गए. जो तीसरा गेम वह नहीं देख पाए वह था अल्बानिया के खिलाफ वर्ल्ड कप क्वालीफाइंग मैच. क्योंकि उनकी दूसरी मुहब्बत, उनकी पत्नी ने उन्हें यात्रा से रोक दिया. "मेरे पास टिकट थे और मैं जाने के लिए तैयार था लेकिन मेरी पत्नी का अचानक ऑपरेशन करना पड़ा, इसलिए मैं रुक गया. मेरे तीन ही जुनून हैं, फुटबॉल, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे. अपनी पत्नी से भी मैं फुटबॉल के कारण ही मिला. 2002 में कोरिया में हुए वर्ल्ड कप के दौरान मैं पांच पुर्तगालियों से मिला. इनमें से एक ने बाद में मुझे अपनी शादी में मुझे बुलाया. वहां मेरी मुलाकात इन पांच में से एक की बहन से हुई, जिससे मैंने बाद में शादी की."

तस्वीर: Reuters

एजोरेस द्वीप पर पैदा हुए ब्रुन यूरो कप देखने के लिए पुर्तगाल से यूक्रेन पहुंचे हैं. उनका सपना है कि टीम फाइनल में पहुंचे. "राष्ट्रीय टीम का मैं दीवाना हूं. यही एक चीज है जो पूरे देश को एकजुट रखती है. 1986 में जब मैंने पहली बार अपनी टीम को मेक्सिको में वर्ल्ड कप क्वालीफाइंग खेलते हुए देखा, तब से मैं इसका दीवाना हो गया हूं. तब से जहां भी पुर्तगाल खेलता है, वहां मैं जाता हूं."

अधिकतर फुटबॉल फैन्स के लिए कहीं जाने का मतलब होता कभी छोटी और कभी लंबी दूरी की उड़ान. लेकिन ब्रुन का मामला अलग है. वह हमेशा ड्राइव करना पसंद करते हैं. पुर्तगाल से यूक्रेन जाने के लिए उन्हें कार में छह दिन लगे और उन्होंने 4,789 किलोमीटर का रास्ता तय किया.

यात्रा के दौरान वह अपनी वैन में रहते हैं. जिसमें एक कूकर है और बिस्तर. "नहाने के लिए मैं अक्सर उन होटलों का इस्तेमाल करता हूं जिसमें पुर्तगाल के फैन्स रह रहे हैं. अगर ऐसा कुछ नहीं हो तो फिर मैं स्विमिंग पूल में जाता हूं और वहां नहा लेता हूं."

आम तौर पर साथ में कोई दोस्त होता है. लेकिन वह अपनी कार चलाता है. "मुझे अपनी जगह पसंद है. मुझे इसकी आदत है. दो साल पहले मैं वर्ल्ड कप देखने पुर्तगाल से दक्षिण अफ्रीका गया था. 2014 के लिए मैंने योजना बना ली है. बशर्ते हम क्वालीफाई कर लें. पहले मैं जहाज से कनाडा जाऊंगा और फिर वहां से ब्राजील."

2006 में ब्रुन जर्मनी आए. उसके दो साल बाद स्विटजरलैंड और ऑस्ट्रिया गए. "मेरे अधिकतर अनुभव शानदार रहे हैं. बढ़िया लोग मिले. दोस्त बने, अनुभव बांटे. मुझे कई लोग अपने घर बुलाते हैं, मेरे लिए खाना बनाते हैं."

लेकिन उन्हें एक दुर्घटना भुलाए नहीं भूलती. "हम दो लोग थे. गलती से हम रात में सूडान के रेगिस्तान में घुस गए. एक गैंग ने हमें पकड़ लिया और हमारे सिर पर उन्होंने तीन घंटे कलाशनिकोव राइफल ताने रखी. हमें उन्हें विश्वास दिलाना पड़ा कि हमारे पास कोई पैसे नहीं हैं. आखिरकार उन्होंने हमारे लिए खाना पकाया. हमने कुछ वाइन साथ में पी और उन्होंने हमें आगे जाने दिया. लेकिन यह बहुत बुरा अनुभव था."

तस्वीर: Getty Images

अपने जुनून को पूरा करने के लिए ब्रुन को काफी मेहनत भी करनी पड़ती है. वह लागोस के एलग्रेव में तीन दुकानें चलाते हैं. "मैं एंटीक चीजें, सोना और चांदी के गहने बेचता हूं और इंडोनेशिया, थाइलैंड और नेपाल जैसे एशियाई देशों के फर्नीचर. जब मैं नहीं होता तो मेरी पत्नी दुकान संभालती है. मैं वैसे तो अपना बजट कम ही रखता हूं. इस बार यूक्रेन के लिए मुझे पांच हजार यूरो लगे, जबकि दक्षिण अफ्रीका के लिए करीब इससे दुगने लगे थे. लेकिन हम जब भी जाते हैं तो साथ में पुर्तगाल के स्कार्फ, जर्सी जैसी चीजें ले जाते हैं और फिर इन्हें बेच देते हैं.

ब्रुन के लिए टीम की जीत किसी भी महंगे गहने से भी ज्यादा है. "2004 में एथेंस में हम यूरो कप के फाइनल में थे. ग्रीस के साथ फाइनल में मुझे लगा था कि हम जीत जाएंगे. हार के बाद मैं तीन घंटे रोया. लेकिन जब तक मुझमें जान है, ताकत है, मैं मैच देखने जाता रहूंगा. अगर लाठी लेकर भी मुझे चलना पड़ा तो मैं भी मैं जाऊंगा."

रिपोर्टः आभा मोंढे (डीपीए)

संपादनः महेश झा

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