दिल्ली पुलिस की एक महिला अधिकारी ने सिर्फ तीन महीनों में 76 लापता बच्चों को ढूंढ निकाला और समय से पहले पदोन्नति पाई. उनकी इस उपलब्धि ने हर साल बड़ी संख्या में बच्चों के लापता होने जाने की समस्या पर भी रौशनी डाली है.
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सीमा ढाका उत्तर पश्चिमी दिल्ली के समयपुर बादली पुलिस स्टेशन में बतौर हेड कांस्टेबल नियुक्त हैं, लेकिन जल्द ही वे दिल्ली में बतौर सहायक सब-इंस्पेक्टर कार्यभार संभालेंगी. रिकॉर्ड समय में कई लापता बच्चों को ढूंढ निकालने के लिए उन्हें समय से पहले पदोन्नति का इनाम दिया गया है.
दिल्ली में हर साल बड़ी संख्या में बच्चे लापता हो जाते हैं और इस समस्या के समाधान के लिए दिल्ली पुलिस ने हाल ही में एक प्रोत्साहन योजना निकाली थी. योजना के तहत अगर कोई पुलिसकर्मी 12 महीनों के अंदर 14 साल से कम उम्र के 50 या उससे ज्यादा बच्चों को ढूंढ निकालेगा तो उसे समय से पहले पदोन्नति दी जाएगी.
सीमा ने सिर्फ तीन महीनों में 76 लापता बच्चों को ढूंढ निकाला, जिनमें से 56 बच्चे 14 साल से कम उम्र के हैं. इन बच्चों को उन्होंने सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे दूसरे राज्यों से भी ढूंढ निकाला. दिल्ली पुलिस के कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव ने बताया कि सीमा समय से पहले पदोन्नति पाने वाली दिल्ली पुलिस की पहली अधिकारी हैं.
हर साल 67,000 बच्चे हो जाते हैं लापता
ताजा सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2018 में देश के अलग अलग इलाकों से 67,134 बच्चे लापता हो गए थे. दिल्ली से 6,541 बच्चे लापता हो गए थे. दिल्ली में यह बहुत बड़ी समस्या है और आंकड़ों के लिहाज से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली तीसरे स्थान पर है. पहले स्थान पर मध्य प्रदेश और दूसरे पर पश्चिम बंगाल हैं, जो दिल्ली से कई गुना बड़े राज्य हैं.
इस समस्या को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने अगस्त 2020 में प्रोत्साहन पर आधारित यह योजना शुरू की थी और पुलिस का कहना है कि योजना ने इस समस्या के प्रति दिल्ली के पुलिसकर्मियों में एक नई ऊर्जा भर दी है. पुलिस का दावा है कि अगस्त से अभी तक 1222 बच्चे लापता हुए हैं, जब की पुलिस ने इसी अवधि में 1440 लापता बच्चों को ढूंढ निकाला है.
दुनियाभर में लाखों बच्चे बाल मजदूरी करते हैं. भारत में भी 44 लाख बच्चे काम करते हैं. हालांकि बच्चों से काम कराना कानूनी तौर पर प्रतिबंधित हैं. एक नजर डालते हैं, भारत में बाल मजदूरी पर.
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खेत में काम
कृषि क्षेत्र में बच्चे अपने मजदूर माता-पिता की मदद के लिए काम करते हैं. जितनी देर माता-पिता मेहनत करते हैं उतनी ही देर बच्चे भी काम करते हैं.
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फैक्ट्री में काम
कई बार मजबूरी में माता-पिता अपने बच्चों को काम पर भेज देते हैं. बच्चों से फैक्ट्रियों में जोखिम भरा काम भी लिया जाता है. हालांकि कानूनी सख्ती के बाद यह चलन अब आम नहीं है.
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पत्थर तोड़ने का काम
मां-बाप का हाथ बंटाने के लिए बच्चे पत्थर तोड़ने का काम करते हैं. यह काम बहुत मेहनत भरा होता है और इसमें शारीरिक थकावट भी होती है. छोटे बच्चो द्वारा यह काम कराना भी गैर कानूनी है.
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कार वर्कशॉप में
अगली बार आप किसी कार वर्कशॉप में जाएं तो इस बात का ध्यान रखिएगा कहीं मैकेनिक किसी बच्चे से काम तो नहीं करा रहा है. भारत में कम उम्र से ही बच्चों को स्कूटर और कार की मरम्मत का काम सिखाया जाने लगता है.
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रेलवे स्टेशन पर कचरा इकट्ठा करना
ट्रेन से यात्रा के दौरान आपने कई बार यह देखा होगा कि स्टेशन आते ही बच्चे कचरा उठाने ट्रेन के भीतर आ जाते हैं. यह भी काम बच्चों से जबरन कराया जाता है. कई बार ऐसी जगहों पर रहने वाले बच्चों का यौन शोषण भी होता है.
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सिगरेट और गुटखा बेचते बच्चे
सड़क के किनारे कम उम्र के बच्चे सिगरेट और गुटखा बेचते दिखना भी आम बात है. शिक्षा पाने की जगह उनसे इस तरह के काम कराए जाते हैं. जब तक उन्हें यह बात समझ में आती है उनका बचपना निकल जाता है.
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कूड़ा बीनना
कूड़ा बीनने के लिए भी बच्चों का इस्तेमाल होता है. रिसाइक्लिंग की चीजों को कूड़े की ढेर से अलग करने के लिए बच्चों को काम पर लगाया जाता है. यह काम बेहद खतरनाक होता है क्योंकि कई बार कूड़े की ढेर में कई तरह के केमिकल होते हैं.
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फल बेचना
बच्चों को फल और सब्जी बेचने के काम के लिए भी लगाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन का अनुमान है कि भारत में 5 से लेकर 14 साल की उम्र के करीब 44 लाख बाल मजदूर हैं. दुनिया भर में 15 करोड़ बच्चे मजदूरी करने को मजबूर हैं.