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पुलिस की बर्बरता

२५ जून २०१४

दिल्ली में बलात्कार के खिलाफ हुए प्रदर्शन हों, या फिर तुर्की में इंटरनेट पर पाबंदी के खिलाफ, सब में एक बात आम है, भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस हिंसा का ही सहारा लेती है. जर्मनी में अब इसके खिलाफ आवाज उठाई जा रही है.

Symbolbild Polizeigewalt
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी के शहर श्टुटगार्ट में कई सालों से नए रेलवे स्टेशन बनाए जाने के खिलाफ प्रदर्शन चल रहे हैं. 69 साल के डीट्रिष वागनेर भी इन प्रदर्शनों में शामिल रहे हैं. पर चार साल पहले कुछ ऐसा हुआ जिसने उनकी जिंदगी बदल दी. 30 सितंबर 2010, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के लिए पानी की बौछार की. वॉटर कैनन की बौछार किसी की पीठ पर लगी, तो किसी के कंधे पर. डीट्रिष वागनेर का नुकसान और भी भारी था. पानी उनकी आंखों पर पड़ा और वह अपनी दृष्टि खो बैठे.

आज वह पुलिस के इस रवैये के खिलाफ मुकदमा लड़ रहे हैं. उनके वकील फ्रांक उलरिष मन ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "उस दिन ने उनका (डीट्रिष वागनेर) का दुनिया देखने का नजरिया ही बदल दिया. अब उन्हें प्रशासन पर कोई भरोसा नहीं रहा." डीट्रिष वागनेर का आरोप है कि पुलिस लोगों को चोट पहुंचाने में अपना मजा खोज रही थी, उनके अनुसार पुलिस ने बच्चों पर पेपर स्प्रे का इस्तेमाल भी किया. वकील फ्रांक उलरिष मन का कहना है कि उनके मुवक्किल अब न्याय चाहते हैं, "वह जिम्मेदार लोगों को सजा दिलाना चाहते हैं."

पुलिस की लापरवाही

इस मामले में चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गयी. इनमें से दो के खिलाफ जून 2014 में शुरू हो चुका है. राज्य बाडेन वुएर्टेमबर्ग में पुलिस यूनियन के क्षेत्रीय अध्यक्ष योआखिम लाउटेनजाक ने इस मामले पर डॉयचे वेले से बात करने से इनकार कर दिया. लेकिन उन्होंने माना की दोनों पुलिसकर्मियों को यूनियन का पूरा समर्थन है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

वहीं यूनियन के अध्यक्ष राइनर वेंट ने कहा, "पुलिस द्वारा हिंसा हमारे लिए कोई मुद्दा नहीं है." अखबार 'डी वेल्ट' को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि पिछले कई सालों से हिंसा के मामलों में वृद्धि नहीं हुई है. जर्मनी में हर साल पुलिस के खिलाफ 2,500 से 3,000 मामले दर्ज किए जाते हैं. वेंट का कहना है कि असली समस्या पुलिस की संख्या है. उनके अनुसार देश में इतने पुलिसकर्मी नहीं हैं जो आए दिन हो रहे प्रदर्शनों पर काबू कर सकें, उन्हें कई कई घंटे ज्यादा काम करना पड़ता है और आखिरकार वे लापरवाही कर बैठते हैं.

पुलिसकर्मियों की पहचान

इन मामलों पर अदालत में सामान्य रूप से कार्रवाई नहीं हो पाती. बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी के टोबियास जिंगेल्नश्टाइन का कहना है कि अंत में अधिकतर लोग मामला वापस ले लेते हैं, "पुलिस वाले अपने ही सहकर्मियों के खिलाफ बयान नहीं देते. वे उन्हें बचाने की कोशिश करते हैं और अदालत उनके बयान को मानती है."

इसके अलावा कई बार लोगों के लिए अदालत में पुलिसकर्मियों की पहचान करना भी मुश्किल होता है. इसके लिए बर्लिन में पुलिसकर्मियों को नंबर दिए गए हैं. हिंसा के मामले में लोग पुलिसकर्मी का नंबर बता कर उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकते हैं. जिंगेल्नश्टाइन का मानना है कि पुलिस की हिंसा पर लोगों में जागरूकता फैलाने और बड़े स्तर पर चर्चा की जरूरत है. उनका कहना है कि इससे पुलिस वालों के रवैये में सुधार होगा.

श्टुटगार्ट मामले में इस साल के अंत तक फैसला आने की उम्मीद है. तब तक डीट्रिष वागनेर को इंसाफ के लिए इंतजार करना होगा.

रिपोर्ट: फाबियान फिशरकेलर/आईबी

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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