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पुलिस में भी सुरक्षित नहीं महिलाएं

८ अगस्त २०१४

केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों से पुलिस में 33 फीसदी महिलाओं की भर्ती करने को कहा है. लेकिन राज्यों में प्रशिक्षण सुविधाओं के अभाव और अधिकारियों के विरोध के कारण इस आरक्षण को लागू करना आसान नहीं है.

तस्वीर: DW/P.M. Tewari

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्य गुजरात में तो पिछले महीने ही इस आरक्षण का एलान कर दिया गया था. मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, ओडीशा और कर्नाटक ने महिला पुलिस बल की तादाद बढ़ाने की दिशा में पहल कर है, लेकिन पश्चिम बंगाल समेत कई राज्य केंद्र के इस फरमान से सहमत नहीं हैं. बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद महिलाओं के लिए 10 फीसदी आरक्षण का एलान किया गया था. बावजूद इसके राज्य में महिला कांस्टेबलों के सैकड़ों पद खाली हैं. सरकार के पास इसके लिए अपनी दलीलें हैं. लेकिन पुलिस बल में महिलाओं की बदहाल स्थिति भी इसकी एक प्रमुख वजह है. उत्तर प्रदेश में तो आला अफसरों की सताई एक महिला जवान महीनों से न्याय की आस में दर-दर भटक रही है.

तैंतीस फीसदी आरक्षण

गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने पिछले महीने पुलिस बल में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का एलान किया था. उन्होंने इसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया कदम करार दिया था. अब केंद्रीय महिला व बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए सभी राज्य सरकारों से पुलिस बल में महिलाओं के लिए ऐसे ही आरक्षण की वकालत की है.

तस्वीर: DW/P.M. Tewari

मेनका गांधी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भेजे गए पत्र में गुजरात सरकार के फैसले से प्रेरणा लेने को कहा है. उनकी दलील है कि पुलिस बल में महिलाओं की तादाद बढ़ने से पीड़ित महिलाएं और ज्यादा तादाद में अपने खिलाफ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने सामने आएंगी. केंद्र के इस पत्र के बाद खासकर मध्यप्रदेश जैसे भाजपाशासित राज्यों ने तो इस प्रस्ताव के प्रति दिलचस्पी दिखाई है. लेकिन पश्चिम बंगाल ने इसका विरोध किया है.

बंगाल की स्थिति

पश्चिम बंगाल के महिलाओं के लिए दस फीसदी आरक्षण के एलान के बावजूद राज्य पुलिस में महिलाओं की तादाद लगभग नगण्य (2.85 फीसदी) है. महिलाओं के 10,415 पद स्वीकृत होने के बावजूद उनकी तादाद लगभग साढ़े चार हजार यानी आधे से भी कम है. यह स्थिति तब है जब बंगाल में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न और अपराधों का ग्राफ लगातार ऊपर की ओर बढ़ रहा है. ममता बनर्जी ने 2017 तक राज्य के सभी 75 सबडिवीजनों में महिला थानों की स्थापना का एलान किया है, लेकिन अब तक इनमें से एक दर्जन थाने ही खुले हैं.

कोलकाता पुलिस में कुल 25 हजार जवान हैं, लेकिन उनमें महज 499 महिलाएं हैं जबकि महिला कांस्टेबलों के पांच सौ से ज्यादा पद खाली पड़े हैं. राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं, "हमने पिछले साल ही 10 फीसदी आरक्षण का एलान किया था. धीरे-धीरे इसे बढ़ाया जाएगा. लेकिन इसे एक साथ 33 फीसदी करना तर्कसंगत नहीं है. दस फीसदी आरक्षण का कोटा ही भरना मुश्किल है."

शोषण की शिकार

राज्य के विपक्षी राजनीतिक दलों का आरोप है कि पुलिस बल में भी महिलाएं शोषण की शिकार हैं. इसी वजह से महिलाएं भर्ती के लिए आगे नहीं आतीं. कांग्रेस और सीपीएम नेताओं का कहना है कि राज्य में लगातार बढ़ते आपराधिक ग्राफ के बावजूद सरकार आरक्षण बढ़ाने के फैसले का जिस तरह विरोध कर रही है, वह समझ से परे है. कोलकाता पुलिस की एक महिला कांस्टेबल नाम नहीं बताने की शर्त पर कहती है, "हमें अफसरों के शोषण का शिकार होना पड़ता है. स्थितियां बेहतर नहीं हैं. इसलिए युवतियां इस पेशे में नहीं आना चाहतीं."

पुलिस की नौकरी करने वाली यह महिलाएं अपने अफसरों के खिलाफ मुंह तक नहीं खोल सकतीं. मुंह खोलने की स्थिति में उसे अनुशासनहीनता करार देकर उसी के खिलाफ कार्रवाई की जाती है. राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, "राज्य में महिला जवानों के प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में हम चाह कर भी महिलाओं की तादाद नहीं बढ़ा सकते. प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी की वजह से ही सरकार महिलाओं की भर्ती में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेती." ऐसे में 33 फीसदी आरक्षण के विरोध की वजह आसानी से समझी जा सकती है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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