दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तक मेला फ्रैंकफर्ट में राजनीतिक विवादों के साथ शुरू हुआ. सलमान रुश्दी के आने के वजह से ईरान ने मेले में भाग लेने से मना कर दिया. मेले में सौ देशों के 7,000 प्रदर्शक भाग ले रहे हैं.
विज्ञापन
इस साल फ्रैंकफर्ट मेले में सहयोगी देश इंडोनेशिया है जो कल्पना के 17,000 द्वीप नाम से अपनी प्रदर्शनी दिखा रहा है. वहां की 25 करोड़ आबादी 400 भाषाएं बोलती है. पांच दिनों तक चलने वाले मेले का पहला दिन लेखकों और प्रकाशकों के लिए सुरक्षित है, जबकि शनिवार और रविवार को मेला आम लोगों के लिए अपने दरवाजे खोल देगा. मेले में कुल मिलाकर इस साल 3 लाख लोगों के आने की उम्मीद है. दुनिया के सबसे बड़े किताब मेले पर रिपोर्ट करने के लिए दुनिया भर से 10,000 पत्रकार भी पहुंचे हैं. मंगलवार शाम एक भव्य समारोह में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थन के साथ 67वें पुस्तक मेले की औपचारिक शुरुआत हुई.
मेले के पहले दिन एक गिनीज रिकॉर्ड भी बना. 12 घंटे की मेहमत और 1 मिनट का मजा. पुस्तक मेले में दुनिया का सबसे लंबा किताबों का डोमीनो गिरा. इसके लिए 10,200 किताबों का इस्तेमाल किया गया था. इस रिकॉर्ड को अगले साल गिनी वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया जाएगा. इससे पिछला रिकॉर्ड हाल ही जापान में 9,862 किताबों से डोमीनो बनाया गया था.
उद्घाटन समारोह में जर्मन संस्कृति मंत्री मोनिका ग्रुटर्स ने सहयोगी देश इंडोनेशिया के बारे में कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश इस बात का सबूत है कि एक उदारवादी इस्लाम संभव है. जर्मन पुस्तक व्यापार संघ के प्रमुख हाइनरिष राइटमुलर ने कहा, "शब्दों की आजादी के बिना आजादी संभव नहीं है. अशांत विश्व में शांति लाने में किताबें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं." उन्होंने कहा कि विचारों और प्रकाशन की स्वतंत्रता पर समझौता नहीं किया जा सकता क्योंकि वे लोकतांत्रिक समाज का आधार हैं.
ईरानी फतवे की वजह से मौत के खतरे में जी रहे भारतीय मूल के लेखक सलमान रुश्दी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए विश्वव्यापी आंदोलन का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि उसे सिर्फ धार्मिक असहिष्णुता से ही खतरा नहीं है बल्कि गलत समझे जा रहे उदारवाद से भी. रुश्दी ने कहा, "शब्दों की आजादी मानव जाति का वैश्विक अधिकार है. इस आजादी के बिना हर दूसरी आजादी विफल रहेगी."
फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला जर्मनी और अंतरराष्ट्रीय पुस्तक व्यापार के बारे में महत्वपूर्ण पैमाना होता है. यहां किताबों के प्रदर्शन के साथ लाइसेंस के समझौते भी होते हैं. जर्मनी में किताबों की बिक्री का कारोबार अच्छा चल रहा है हालांकि इस साल सितंबर तक बिक्री में पिछले साल के मुकाबले 2.5 प्रतिशत की कमी आई है. पिछले साल जर्मनी का पुस्तक कारोबार 9.3 अरब यूरो (650 अरब रुपये) का रहा. लेकिन सांख्यिकी कार्यालय का कहना है कि किताबों पर परिवारों का खर्च कम हो रहा है. दस साल पहले 168 यूरो के मुकाबले 2013 में जर्मन परिवारों ने 132 यूरो खर्च किए.
एमजे/आरआर (डीपीए)
थोमस मान: प्रतिभाशाली परिवार
जर्मनी का मान परिवार सनकी और रईस था लेकिन अभूतपूर्व साहित्यिक प्रतिभा की मिसाल भी था. साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक थोमस मान और उनका परिवार जर्मनी के उन प्रसिद्ध परिवारों में शामिल है जो अभी भी मिथक बने हुए हैं.
तस्वीर: ullstein bild
पिता के इर्द गिर्द
मां कात्या बच्चों मोनिका, मिषाएल, एलिजाबेथ, क्लाउस और एरिका मान के साथ 1924 में. वे सब मशहूर पिता थोमस मान के इर्द गिर्द खड़े हैं. जीवनी लेखक टिलमन लामे का कहना है कि वे पिता से अलग हो भी नहीं सकते थे.
तस्वीर: ullstein bild
नोबेल पुरस्कार
अपने पहले ही उपन्यास बुडेनब्रूक्स के साथ थोमस मान को 1901 में नोबेल पुरस्कार मिला और वे दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गए. उनके बच्चों ने बाद में कितनी भी कोशिश की अपने ख्यातनामा पिता को मात नहीं दे पाए.
तस्वीर: ullstein - AKG Pressebild
घुट्टी में कला
थोमस मान के बड़े बच्चे पहले विश्व युद्ध के बाद बर्लिन में रहने लगे. एरिका ने अभिनेत्री के रूप में नाम कमाया और क्लाउस ने लेखक के रूप में. तस्वीर में, गुस्ताफ ग्रुंडगेंस, एरिका, पामेला वेडेकिंड और क्लाउस मान.
तस्वीर: ullstein bild
जटिल प्यार
एरिका ने अभिनेता गुस्ताव ग्रुंडगेंस से शादी की तो क्लाउस की मंगनी पामेला से हुई. बाद में पामेला ने अपनी दोस्त डोरोथिया के पिता से शादी कर ली. एरिका भी पामेला को चाहती थी. मान परिवार प्यार के मामले में बहुत प्रगतिशील था जहां समलैंगिकता के बारे में खुलकर बात होती थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
लेखक और इतिहासकार
क्लाउस मान ने अपने उपन्यास में खुलकर समलैंगिकता पर लिखा है. भाई गोलो इतने खुले नहीं थे. उन्होंने लेखक के अलावा इतिहासकार बनने का फैसला किया. उनका अभी तक नाम है और इसकी वजह से उन्हें पिता का भी सम्मान मिला.
तस्वीर: picture alliance/Imagno/Votava
परिवार की छवि
नाजियों के दमन से मान परिवार के जर्मनी से भागकर अमेरिका जाने के बाद एरिका मान परिवार की पीआर एजेंट बन गईं. उनके ही प्रयासों की वजह से हिटलर के खिलाफ संघर्ष में मान परिवार को आदर्श के रूप में देखा जाता है.
तस्वीर: Public Domain
भाई हाइनरिष
सचमुच पूरा मान परिवार दूसरे बुद्धिजीवियों के विपरीत बहुत पहले ही हिटलर के खिलाफ बोलने लगा था. थोमस मान के भाई हाइनरिष मान भी. वे खुद बड़े लेखक थे और हिटलर के हिंसक शासक के खिलाफ महत्वपूर्ण आवाजों में एक.
तस्वीर: AP
किस्मत के साथी
निर्वासन ने परिवार को एक दूसरे के और करीब ला दिया. वे वित्तीय रूप से भी एक दूसरे पर निर्भर थे और एक दूसरे को नजरअंदाज नहीं कर सकते थे. उन्हें जर्मनी में नहीं रह पाने और 1945 के बाद भी खुला स्वागत न होने का गम सताता रहा.
तस्वीर: ullstein - Thomas-Mann-Archiv
खुशनुमा दिन
बच्चों को सिर्फ अतीत के खुशनुमा दिनों की याद ही रह गई. इस तस्वीर जैसे मस्ती के दिन जिसमें थोमस मान 1930 में अपने बच्चों एलिजाबेथ, मिषाएल और दो अन्य बच्चों के साथ दिख रहे हैं. क्लाउस ने 1949 में आत्महत्या कर ली और थोमस मान की 1955 में मौत हो गई.
तस्वीर: ullstein bild
छोटी बेटी
थोमस मान के परिवार का आखिरी सदस्य 8 फरवरी 2002 को दुनिया को विदा कह गया. उनकी छोटी बेटी एलिजाबेथ अकेली संतान थी जो पिता से स्वतंत्र जिंदगी जीने में कामयाब रही. मौत से एक दिन पहले भी स्कीइंग के लिए गई.