कोशिश करेंगे कि अफगानिस्तान में संघर्ष खत्म हो: इमरान खान
२० नवम्बर २०२०
पाकिस्तानी पीएम इमरान खान ने कहा है कि वह अफगानिस्तान को खूनी संघर्ष से निकलने में मदद करेंगे. दोनों देशों के रिश्ते हाल के सालों में बहुत खराब रहे हैं. गुरुवार को काबुल का दौरा कर इमरान खान ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया.
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इमरान खान ने बतौर प्रधानमंत्री पहली बार काबुल का दौरा किया है. वह ऐसे समय में अफगानिस्तान गए, जब तालिबान और अफगान सरकार के बीच जारी शांति वार्ता के बावजूद वहां हिंसा बढ़ रही है. कतर की राजधानी दोहा में तालिबान और अफगान सरकार को बातचीत की मेज तक लाने में पाकिस्तान ने अहम भूमिका निभाई है. इमरान खान ने काबुल में राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ पत्रकारों से बातचीत में कहा, "हम देख रहे हैं और इस बात से चिंतित हैं कि कतर में होने वाली वार्ता के बावजूद अफगानिस्तान में हिंसा बढ़ रही है."
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा, "हिंसा को कम करने और युद्ध विराम कराने के लिए पाकिस्तान जो भी संभव है, वह करेगा." उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ही वह देश है जिसने 2018 में तालिबान को अमेरिका से वार्ता करने के लिए राजी किया, जिसका नतीजा यह निकला है कि अब अफगानिस्तान से सभी विदेशी फौजी हटाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा, "पाकिस्तान के लोगों और सरकार का बस एक ही सरोकार है कि हम अफगानिस्तान में शांति चाहते हैं."
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच राजनयिक रिश्ते लंबे समय से खराब हैं. बहुत से अफगान आरोप लगाते हैं कि पाकिस्तान उनके आंतरिक मामलों में दखल देता है और तालिबान की मदद कर अफगानिस्तान को अस्थिर करता है. पाकिस्तान ऐसे आरोपों को लगातार खारिज करता है. हालांकि तालिबान के बहुत से नेता पाकिस्तान के शहर क्वेटा में रहते हैं. इसके अलावा अतीत में उग्रवादी आसानी से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सीमा के आरपार आसानी से आते-जाते रहे हैं.
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अफगान युद्ध की किसने कितनी कीमत चुकाई
अमेरिका पर सबसे बड़े आतंकी हमले के साथ ही वॉशिंगटन ने तय किया था कि अफगानिस्तान में घुसकर अल कायदा और तालिबान को साफ कर दिया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. क्या है अफगान युद्ध का लेखा जोखा.
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आम अफगान नागरिक
2009 से अगस्त 2019 तक 32,000 आम नागरिक मारे गए. 60,000 से ज्यादा घायल हुए. विस्थापितों की तादाद लाखों में है.
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अमेरिकी और गठबंधन सेना की क्षति
अफगान युद्ध में अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय सहयोग सेना (आईसैफ) के 3,459 सैनिक मारे गए.
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अफगान आर्मी लहूलुहान
2014 से अगस्त 2019 तक अफगान सेना के 45,000 जवान इस युद्ध में मारे जा चुके हैं.
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अमेरिका का खर्च
अक्टूबर 2001 से मार्च 2019 तक अफगान युद्ध में अमेरिका ने 760 अरब डॉलर खर्च किए.
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तालिबान को कितना नुकसान
18 साल से जारी युद्ध में तालिबान के 31,000 से ज्यादा लड़ाके मारे गए.
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बड़े निशाने
अफगान युद्ध में अमेरिका को अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मारने में सफलता मिली. बिन लादेन के अलावा तालिबान के कई बड़े कमांडर भी मारे गए.
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तालिबान अब भी मजबूत
अफगान सरकार और संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अमेरिका की अगुवाई वाली गठबंधन सेनाओं के हमले में तालिबान से ज्यादा आम नागरिक मारे गए. ऐसे हमलों ने अमेरिका के प्रति नफरत और तालिबान के प्रति सहानुभूति पैदा करने का काम किया.
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इस्लामिक स्टेट का एंगल
अफगानिस्तान में अब इस्लामिक स्टेट भी सक्रिय है. देश के पूर्व में पाकिस्तान से सटी सीमा पर कुनार के जंगलों में इस्लामिक स्टेट की पकड़ मजबूत हो चुकी है. आईएस 2015 से वहां है. कहा जा रहा है कि तालिबान अगर कमजोर हुआ तो इस्लामिक स्टेट ताकतवर होगा.
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अशांत भविष्य
युद्ध और गृह युद्ध में फंसे अफगानिस्तान का भविष्य डगमग ही दिखता है. देश में विदेशी ताकतों की छत्रछाया में सक्रिय रहने वाले कई धड़े हैं. इन धड़ों के बीच शांति की उम्मीदें कम ही हैं. भू-राजनीतिक स्थिति के चलते ये देश पाकिस्तान, भारत, चीन, रूस, अमेरिका और ईरान के लिए अहम बना रहता है.
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युद्ध में पिसता अफगानिस्तान
पिछले हफ्ते ही पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि अफगानिस्तान अपनी जमीन पर भारत को कैंप लगाने की अनुमति दे रहा है, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान में हमले करने वाले आतंकवादियों को ट्रेनिंग और शरण देने के लिए किया जा रहा है. भारत और अफगानिस्तान, दोनों ने ही इन आरोपों को खारिज किया.
अफगान राष्ट्रपति की युद्धविराम की अपीलों को तालिबान ने बार बार खारिज किया है. लेकिन वह कहते हैं, "हिंसा कोई समाधान नहीं है." इस साल की शुरुआत में तालिबान ने दो मौकों पर बहुत छोटे से समय के लिए युद्धविराम का ऐलान किया. एक बार ईद उल फितर पर और दूसरी बार ईद उल अजाह पर.
दोहा में अफगान सरकार और तालिबान की शांति वार्ता 12 सितंबर को शुरू हुई, लेकिन अभी तक उसका कोई खास नतीजा नहीं निकला है. अफगान गृह मंत्रालय के प्रवक्ता तालिक एरियन ने बताया कि पिछले छह महीने में तालिबान ने 53 आत्मघाती हमले और 1,250 विस्फोट किए हैं. इनमें 1,210 लोग मारे गए और ढाई हजार से ज्यादा घायल हुए हैं.
अफगान सरकार ने काबुल में शैक्षिक संस्थानों पर हमला करने का आरोप भी लगाया जिसमें दर्जनों छात्र मारे गए. तालिबान ने ऐसे हमलों के पीछे अपना हाथ होने से इनकार किया. उसका कहा है कि तथाकथित इस्लामिक स्टेट ऐसे हमले कर रहा है. सीरिया और इराक में हारने के बाद इस्लामिक स्टेट अफगानिस्तान में पैर पसार रहा है. हाल के समय में उसने कई हमलों को अंजाम दिया है. तालिबान और आईएस एक दूसरे को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हैं.
कोरोना संकट के कारण दुनिया के दूसरे संकटों की तरफ इन दिनों का किसी ध्यान नहीं है. जलवायु परिवर्तन, कश्मीर में बंदिशें, लीबिया में जंग, सीरिया में अफरातफरी और अफगानिस्तान का संकट, सभी अपनी जगह कायम हैं.
तस्वीर: DW/ P. Vishwanathan
जलवायु परिवर्तन
पृथ्वी के तापमान में वृद्धि, बेलगाम आर्थिक गतिविधियां, बर्फ पिघलने से समुद्र के जलस्तर में इजाफा, वायु प्रदूषण और प्लास्टिक का बेतहाशा इस्तेमाल हमारे ग्रह के अस्तित्व पर सवाल उठा रहे हैं. वैज्ञानिक बार बार चेतावनी दे चुके हैं कि धरती को बचाने के लिए हमारे पास सीमित ही समय है. एक अध्ययन के अनुसार इंसानी गतिविधियां पृथ्वी को विनाश की तरफ धकेल रही हैं, जिससे नए वायरस और बीमारियां पैदा हो रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/Imaginechina
डगमगाती अफगान शांति डील
अफगानिस्तान में 18 साल से जारी जंग के खात्मे के लिए हाल में अमेरिका और तालिबान के बीच एक समझौता हुआ. लेकिन कभी कैदियों की अदला बदली पर मतभेद, कभी अलग अलग अफगान धड़ों में असहमति तो कभी रुक रुक कर हो रहे हमलों के कारण समझौते का भविष्य अधर में लटका है. इसके अलावा अफगानिस्तान में लगभग दो हजार आईएस के लड़ाके भी सक्रिय हैं, जो शांति की उम्मीदों के लिए लगातार खतरा हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Sayed
भारत पाक तनाव कायम
पुलवामा हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान में काफी तनाव है. दोनों देश कोरोना संकट का सामना कर रहे हैं लेकिन सरहद पर उनके तनाव में कोई बदलाव नहीं आया है. भारतीय सेना का दावा है कि मार्च में पाकिस्तान की तरफ से नियंत्रण रेखा पर फायरिंग के चार सौ से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. पाकिस्तान ने भारत पर इस साल अब तक बिना वजह सात सौ बार फायरिंग का आरोप लगाया है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Naveed
कश्मीर में बंदिशें
जम्मू कश्मीर में पिछले साल अगस्त में धारा 370 को खत्म किए जाने के बाद से ही लॉकडाउन के हालात थे जबकि कोरोना संकट की वजह इसे और भी सख्ती से लागू किया जा रहा है. बंदिशों की वजह से कश्मीर लोगों की आर्थिक कमर पहले से ही टूटी हुई है. सब कामकाज और कारोबार पिछले नौ महीने से बंद है. कोरोना संकट ने कश्मीरियों की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है.
तस्वीर: Sharique Ahmad
बेहाल ईरान
अमेरिका 2015 में हुई ईरानी डील से जब से अलग हुआ, तभी से ईरान पर प्रतिबंध दोबारा लग गए. इससे देश की अर्थव्यवस्था का पहले ही बेड़ा गर्क था, लेकिन कोरोना संकट ने और ठप्प कर दिया. मध्य पूर्व में ईरान कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित है. देश के सर्वोच्च नेता अमेरिकी मदद को ठुकरा चुके हैं. उनका कहना है कि अमेरिका मदद ही करना चाहता है तो प्रतिबंधों को हटाए. अमेरिकी राष्ट्रपति इस मांग को खारिज कर चुके हैं.
तस्वीर: khabaronline
रोहिंग्या आज भी बेघर और बेसहारा
बांग्लादेश की सरकार ने अप्रैल के शुरू में कॉक्स बाजार में पूरी तरह लॉकडाउन को लागू कर दिया. इस जिले में लगभग दस लाख रोहिंग्या लोगों ने शरण ले रखी है. रोहिंग्या म्यांमार में सेना की कथित ज्यादतियों से तंग हो कर बांग्लादेश पहुंचे हैं. संयुक्त राष्ट्र रोहिंग्या लोगों के खिलाफ म्यांमार के कदमों की तुलना "नस्ली सफाये" से कर चुका है. इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में मुकदमा चल रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri
यमन की जंग के पीड़ित
संयुक्त राष्ट्र यमन में जारी लड़ाई को इस वक्त की "सबसे बुरी मानवीय त्रासदी" कह चुका है. पांच साल से भी ज्यादा समय से चल रही लड़ाई में एक लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं जबकि बेघर होने वाले और सूखे जैसे हालात का सामने करने वाले लोगों की संख्या दसियों लाख है. सऊदी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन ने दो हफ्तों के संघर्षविराम का ऐलान किया, लेकिन इससे छलनी हो चुके यमन को शायद ही कोई राहत मिले.
तस्वीर: picture alliance / Xinhua News Agency
सीरिया में भी विनाश जारी है
सीरिया में 2011 से चला आ रहा गृहयुद्ध अब भी खत्म नहीं हुआ है. इन दिनों इदलीब प्रांत रूसी और सीरियाई लड़ाकू विमानों की बमबारी की जद में है. पिछले दिनों सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद की फौज पर अतीत में रासानियक हथियारों का इस्तेमाल करने के आरोप फिर लगे. संयुक्त राष्ट्र सीरिया के युद्ध में शामिल सभी पक्षों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगाता है.
तस्वीर: AFP/O. H. Kadour
यूरोप का शरणार्थी संकट
सन 2015 में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका से दस लाख से ज्यादा शरणार्थी यूरोप पहुंचे जिससे पैदा संकट आज भी जारी है. लाखों शरणार्थी तुर्की, लेबनान, जॉर्डन और यूरोप के अलग अलग देशों में शरणार्थी शिविरों में गुजर बसर कर रहे हैं. इनमें सबसे बुरा हाल ग्रीस के द्वीपों पर स्थिति कैंपों का है, जिनमें पहले ही क्षमता से ज्यादा लोगों को रखा गया है. कोरोना संकट के बाद अब उनके लिए खतरे कहीं ज्यादा बढ़ गए हैं.