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पूर्वी सीरिया का इकलौता स्कूल

२१ फ़रवरी २०१३

रोजाना की हिंसा से अलग पूर्वी सीरिया में ऐसा स्कूल चल रहा है, जिसे चलाने वालों का दावा है कि देश के पूर्वी हिस्से में इकलौता स्कूल है. दीर इजौर शहर का यह स्कूल बेघर लोगों के लिए आशियाने का भी काम कर रहा है.

तस्वीर: DW/A. Stahl

राष्ट्रपति बशर अल असद की सेना और विद्रोहियों की बीच महीनों की लंबी लड़ाई के बाद पूर्वी फुरात नदी के किनारे बसे इस शहर में तबाही साफ देखी जा सकती है. तेल का गढ़ समझा जाने वाला इलाका पूरी तरह बर्बाद हो गया है, इमारतें ढह गई हैं और सड़कों पर मलबे का ढेर है.

दीर इजौर में कभी साढ़े सात लाख लोग रहते थे लेकिन बमों से बर्बादी के बाद पांच लाख लोगों को घर बार छोड़ कर भागना पड़ा. इसकी वजह से इस स्कूल के शिक्षक भी भाग गए.

अब स्थिति यह हो गई है कि एक एक किताब को कई कई छात्र मिल कर पढ़ रहे हैं. किताबें फट चुकी हैं, लगता है कि किसी ने इनके किनारे चबा लिए हैं और ऊपर से यहां टीचरों की भी कमी खल रही है.

अल ओमाल इलाके के इस स्कूल को खोलने वालों में यासिर तारिक भी शामिल हैं. करीब 50 बच्चों को यहां हफ्ते के छह रोज पढ़ाया जा रहा है. तारिक का कहना है, "ज्यादातर शिक्षक भाग गए हैं. बहुत कम लोग यहां आकर मदद करने को तैयार होते हैं क्योंकि उन्हें डर लग रहा है."

तस्वीर: DW/A. Stahl

वह बताते हैं कि स्कूल कैसे चल रहा है, "हम शाम को क्लास लगाते हैं क्योंकि दिन के वक्त खतरा ज्यादा रहता है. शाम को बम विस्फोटों की संभावना कम होती है और उस वक्त बच्चे स्कूल आ सकते हैं."

जब बच्चों की पढ़ाई पूरी हो जाती है और शाम जब रात में ढलने लगती है, तो बच्चों को खाना खिलाया जाता है. उसके बाद उन्हें एक एक कर घर भेजा जाता है क्योंकि "डर रहता है कि बम विस्फोट में एक साथ पूरा ग्रुप ही निशाना न बन जाए."

स्कूल के प्रिंसिपल बेदा अल हसन का कहना है कि जब बमों की आवाज नहीं थमती है और लगातार हमले होते रहते हैं, तो बच्चे बुरी तरह डर जाते हैं. उनका कहना है, "बच्चों को बहलाने के लिए हम गाने गाते हैं और जोर जोर से तालियां बजाते हैं. हम कोशिश करते हैं कि उनका ध्यान संगीत की ओर चला जाए और वे बमों के बारे में भूल जाएं."

तारिक का कहना है कि उनकी कोशिश है कि इश स्कूल से बच्चे इस बात को कुछ समय के लिए भूल जाएं कि उनका शहर और देश किस मुश्किल दौर से गुजर रहा है और कई बार यह काम भी कर जाता है.

जिंदगी की धड़कनतस्वीर: DW/A. Stahl

सुलतान मूसा की उम्र 12 साल है और वह यहां पढ़ता है. उसका कहना है, "मैं हर रोज स्कूल आता हूं क्योंकि मुझे पढ़ना अच्छा लगता है. मैं यहां आकर कुछ अलग कर सकता हूं." उसका कहना है कि सितंबर में स्कूल खुलने से पहले वह पूरा दिन घर में बैठा रहता था क्योंकि उसके घर वाले उसे कहीं भी भेजने से डरते थे.

दस साल की सिद्रा का कहना है कि उसे स्कूल आना पसंद है क्योंकि वह यहां खेल सकती है, "मेरे घर पर बमबारी हुई और मेरे खिलौने नष्ट हो गए." उसका कहना है कि बम विस्फोट में उसके पांच चचेरे भाई बहन मारे गए.

स्कूल में सिलेबस के हिसाब से ही इंग्लिश, गणित, अरबी और धर्म की पढ़ाई हो रही है लेकिन बच्चों को दूसरी बातें बताना भी जरूरी है. तारिक का कहना है, "यह सिर्फ स्कूल नहीं, खेलने की भी जगह है."

स्कूल में खेलने का मैदान वाकई में है और यहां खुले आसमान के नीचे होने के बाद भी यहां के खतरे बहुत हैं. मैदान पास की इमारत में है, जहां पिंग पांग टेबल के अलावा शतरंज की बिसातें और वीडियो प्लेयर भी लगा है, जिसमें टॉम एंड जेरी दिखते रहते हैं.

प्रिंसिपल हसन के पांच साल के बेटे कुतैबा भी एक छात्र है और उसे बच्चों की मोटरसाइकिल पर चढ़ना अच्छा लगता है, "मैं स्कूल आने का इंतजार ही नहीं कर सकता क्योंकि यहां मैं खेल सकता हूं."

यह इलाका भी सीरिया के दूसरे हिस्सों की तरह हिंसा में जल रहा है लेकिन पढ़ाई की कीमत यहां के कुछ लोगों ने खूब समझी है.

एजेए/एएम (एएफपी)

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