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पूर्वोत्तर में बेमौसम बारिश और तूफान की बढ़ती घटनाएं

१८ अप्रैल २०२२

क्या पूर्वोत्तर भारत में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का असर तेज होने लगा है? असम समेत इलाके के तीन राज्यों और पश्चिम बंगाल में बेमौसमी बरसात और चक्रवाती तूफान में भारी नुकसान के बाद यह सवाल पूछा जाने लगा है.

असम के डिब्रूगढ़ में बारिश घऱ पर गिरा पेड़
असम के डिब्रूगढ़ में बारिश घऱ पर गिरा पेड़तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

पूरा भारत जहां गर्मी के कहर से जूझ रहा है वहीं इस इलाके में बरसात और तूफान का बोलबाला है. असम और उसकी सीमा से सटे पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में इस तूफान से कम से 16 लोगों की मौत हो गई जबकि घायलों की तादाद सैकड़ों में है. भारी बारिश और तूफान ने हजारों घरों को नुकसान पहुंचाया है. भारतीय मौसम विभाग ने अगले पांच दिनों के दौरान अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में गरज के साथ बारिश या बिजली गिरने की भविष्यवाणी की है.

असम में शनिवार को भीषण तूफान के साथ आसमानी बिजली गिरने के कारण कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई. असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार बीते गुरुवार से ही असम के कई हिस्सों में ‘बोरदोइसिला' ने कहर ढाया है. राज्य में गर्मियों के मौसम में आंधी के साथ होने वाली बारिश को ‘बोरदोइसिला' कहा जाता है. आंधी से कई इलाकों में बिजली के खंभे उखड़ गए हैं. नतीजतन कई इलाको में बिजली की सप्लाई ठप हो गई है. एक सरकारी बयान में कहा गया है कि 12 हजार से अधिक घरों को नुकसान पहुंचा है. राज्य के 12 जिलों के करीब तीन सौ गांवों के 20 हजार से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए हैं.

पूर्वोत्तर में बिन मौसम बरसात और तूफान की घटनाएं बढ़ गई हैंतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

47 गांवों के 1000 घरों को नुकसान

मेघालय के री-भोई जिले में भी चक्रवाती तूफान ने तबाही मचा रखी है. इस तूफान ने अब तक 47 गांवों के 1000 से ज्यादा घरों को नुकसान पहुंचाया है. कई लोग बेघर हो चुके हैं. लगातार हो रही तेज बारिश से स्थिति काबू में नहीं आ रही है. राज्य में बीते तीन दिनों से होने वाली भारी बारिश के साथ आए तूफान के कारण बिजली की सप्लाई में बाधा पहुंची है. हालांकि इस तूफान में किसी के मरने या घायल होने की कोई सूचना नहीं मिली है. राज्य के वेस्ट गारो हिल्स, खासी हिल्स और पूर्वी जयंतिया जिलों के कुछ इलाकों में अब भी बरसात जारी है.यह भी पढ़ेंः जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मेघालय के खासी समुदाय के तरीके

उधर, मिजोरम के कोलासिब और मामित जिलों में भारी बारिश और ओलावृष्टि के साथ आए भीषण तूफान ने एक चर्च की इमारत सहित 200 से अधिक घरों को क्षतिग्रस्त कर दिया. एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि शनिवार की देर रात दो जिलों में आए तूफान में अब तक किसी के मारे जाने की खबर नहीं है. कोलासिब जिले में कम से कम 220 घर और चर्च की इमारत क्षतिग्रस्त हो गई. असम सीमा से सटे ममित जिले में दो दर्जन मकान क्षतिग्रस्त हो गए.
इस तूफान का असर असम से सटे पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में भी हुआ है. वहां चक्रवाती तूफान में दो लोगों की मौत हो गई और कम से कम 50 लोग घायल हो गए हैं. कूचबिहार नगर पालिका अध्यक्ष रवींद्रनाथ घोष ने बताया कि चक्रवात से जिले के तूफानगंज, माथाभांगा समेत कई अन्य इलाके भी प्रभावित हुए हैं.

बदलता मौसम

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है. लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर अब इलाके में साफ नजर आने लगा है. इसके कारण बेमौसम की बरसात और साल में कई बार आने वाली बाढ़ अब नियति बनती जा रही है. यह विडंबना ही है कि जिस इलाके में दुनिया में सबसे बारिश वाली जगह है उसे अब पीने के पानी की किल्लत और सूखे से भी जूझना पड़ रहा है. 

कहीं सूखा है तो कहीं बाढ़ की समस्यातस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

पर्यावरणविदों ने इसके लिए तेजी से बढ़ती आबादी, घटते जंगल और बिजली परियोजनाओं के लिए पहाड़ों की बेतरतीब कटाई को भी जिम्मेदार ठहराया है. मौसम विभाग के मुताबिक, वर्ष 2001 से 2021 के बीच यानी 21 में से 19 वर्षों में इलाके में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है. बीते साल इलाके में मानसून सामान्य रहा था. हालांकि इस साल अप्रैल के महीने में जिस तरह बारिश और चक्रवाती तूफान ने इलाके में कहर बरपाया है उसने पर्यावरणविदों और मौसम वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया है.

यह भी पढ़ेंः असम की बाढ़ पर अंकुश लगाने की पहल

पर्यावरणविद डा. सुमंत डेका कहते हैं, "ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का असर अब पूर्वोत्तर इलाके में साफ नजर आने लगा है. यही वजह है कि बेमौसम बरसात की घटनाएं बढ़ रही हैं. बारिश का सीजन शुरू होने से पहले ही कई इलाके बाढ़ में डूब जाते हैं. यह चिंता का विषय है.”

मौसम वैज्ञानिक डॉ. भूमिधर बर्मन कहते हैं, "पूर्वोत्तर भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल असर की सटीक निगरानी जरूरी है. इसके लिए पूरे साल होने वाले बदलावों के आंकड़ों को जुटा कर उनका गंभीरता से अध्ययन करना जरूरी है." वह बताते हैं कि कुछ दुर्गम इलाकों के आंकड़े महज अनुमान के आधार पर ही लिए जाते हैं. इससे किसी ठोस नतीजे पर पहुंचना मुश्किल है.

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