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प्रेस स्वतंत्रताएशिया

उत्पीड़न के शिकार हैं पूर्वोत्तर के पत्रकार भी

प्रभाकर मणि तिवारी
५ नवम्बर २०२०

दिल्ली और मुंबई में पत्रकारों के साथ कुछ हो तो हंगामा मच जाता है. लेकिन पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में पत्रकारों को माफिया और सरकार दोनों के दबाव में काम करना पड़ता है. सरकारी दबाव के लिए हर कानून का सहारा लिया जाता है.

Indien Pressefreiheit Journalist  Kishore Chandra Wangkhem
तस्वीर: privat

अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी पूरे देश में सुर्खियां बटोर रही है. गैर-पत्रकारीय वजह से की गई उनकी गिरफ्तारी के विरोध में केंद्र के तमाम मंत्रियों और बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने ट्वीट किए हैं और इसे लोकतंत्र की हत्या तक करार दिया है. लेकिन दूसरी ओर, पूर्वोत्तर में पत्रकारों के उत्पीड़न के मामले सामने ही नहीं आ पाते. यह दिलचस्प है कि ऐसे ज्यादातर मामले उन मणिपुर व त्रिपुरा जैसे उन राज्यों से सामने आ रहे हैं जहां बीजेपी की ही सरकार है. मणिपुर में सोशल मीडिया पोस्ट के लिए कई पत्रकारों की गिरफ्तारी हो चुकी है. पड़ोसी त्रिपुरा में भी गिरफ्तारी के साथ हत्याएं तक हो चुकी हैं.

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने अर्णब की गिरफ्तारी की तो निंदा की है, लेकिन अपने राज्य में होने वाली ऐसी घटनाओं पर उन्होंने चुप्पी साध रखी है. दिलचस्प बात यह है कि बीरेन सिंह को भी वर्ष 2000 में उनके एक लेख पर देशद्रोही बताते हुए गिरफ्तार किया गया था. अप्रैल 2000 में उनके अखबार नहारोलगी थौदांग पर छापा मारा गया था और तब सरकार ने उसे उग्रवादियों का समर्थक अखबार घोषित किया था. इससे साफ है कि इलाके में उत्पीड़न का इतिहास नया नहीं है.

फेसबुक पोस्ट के चलते जेल में

मणिपुर के एक टीवी पत्रकार किशोर चंद्रा वांगखेम को फेसबुक की एक पोस्ट के चलते 29 सितंबर को ही गिरफ्तार किया गया था. लेकिन उनको अब तक जमानत तक नहीं मिली है और वे इंफाल के सेंट्रल जेल में हैं. किशोर को एक हाई प्रोफाइल बीजेपी नेता की पत्नी की सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट पर टिप्पणी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उनकी गिरफ्तारी दो समुदायों के बीच दुश्मनी भड़काने के आरोप में की गई थी. भाजपा नेता की पत्नी राज्य के एक अलग मणिपुरी जनजाति मारम समुदाय से आती हैं.

प्रत्रकार किशोर चंद्रा की पत्नी रंजीतातस्वीर: privat

किशोर चंद्रा की पत्नी रंजीता एलेनबाम कहती हैं, "बीजेपी नेता की पत्नी के कथित पोस्ट पर आंखें मूंदने वाली पुलिस ने किशोर के पोस्ट पर सक्रियता दिखाते हुए फौरन उनको गिरफ्तार कर लिया. यह गिरफ्तारी राजनीतिक दबाव में की गई है.” रंजीता ने अब हाईकोर्ट में अपील करने का फैसला किया है.

इससे पहले किशोर चंद्रा को मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी के लिए राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि रानी लक्ष्मीबाई का मणिपुर से कोई लेना-देना नहीं था. उन्होंने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की आलोचना करते हुए उनको केंद्र की कठपुतली करार दिया था. वांगखेम ने मुख्यमंत्री से पूछा था कि क्या झांसी की रानी ने मणिपुर के उत्थान में कोई भूमिका निभाई थी? उस समय तो मणिपुर भारत का हिस्सा भी नहीं था.

वांगखेम का कहना था कि वे मुख्यमंत्री महोदय को यह याद दिलाना चाहते हैं कि रानी का मणिपुर से कोई लेनादेना नहीं था. अगर आप उनकी जयंती मना रहे हैं, तो आप केंद्र के निर्देश पर ऐसा कर रहे हैं. इसके बाद उनको देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उनको लगभग छह महीने जेल में रहना पड़ा और मणिपुर हाईकोर्ट के निर्दश के बाद वे अप्रैल, 2019 में जेल से रिहा हुए.

पत्रकार संगठन में मतभेद

शुरुआती दौर में तो स्थानीय पत्रकार यूनियन ने वांगखेम की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री से उनको शीघ्र रिहा करने की मांग उठाई थी. लेकिन ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन में अब इस मसले पर एक किस्म का विभाजन दिखाई दे रहा है. ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के अध्यक्ष ब्रजेंद्र निंगोंबा ने एक बयान में कहा है कि वांगखेम ने यूनियन के उस संकल्प का उल्लंघन किया है जिसमें कहा गया था कि यूनियन के सभी सदस्य निजी हैसियत से सोशल मीडिया पर अपनी उन तमाम गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होंगे जिनका उनके पेशे से कोई संबंध नहीं है. दूसरी ओर, वांगखेम ने ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट एसोसिएशन पर बिके होने का आरोप लगाया है. वांगखेम ने कहा है कि गिरफ्तारी पर ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन की चुप्पी से उनको कोई हैरानी नहीं है. इनको राज्य सरकार ने खरीद रखा है.

मुख्यमंत्री बीरेन सिंह राज्यपाल पीबी आचार्या के साथतस्वीर: IANS

पूर्वोत्तर में पत्रकारों के उत्पीड़न का यह पहला या आखिरी मामला नहीं है. इससे पहले मिजोरम में एक नेशनल चैनल की पत्रकार एम्मी सी. लाबेई की भी पुलिस ने पिटाई की थी. वे असम-मिजोरम सीमा विवाद के दौरान हुई हिंसक झड़प की कवरेज के लिए मौके पर  गई थीं. इसी तरह हाल में मेघालय स्थित शिलांग टाइम्स की संपादक पैट्रिशिया मुखिम पर भी हमला हो चुका है. वर्ष 2012 में अरुणाचल टाइम्स की संपादक टोंगम रीना के पेट में गोली मार दी गई थी, लेकिन वे बच गईं थीं. असम में वर्ष 1987 से 2018 के बीच कम से कम 32 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है.

धमकियों के बीच पत्रकारिता

त्रिपुरा में टीवी पत्रकार शांतनु भौमिक की हत्या ने तो पूरे देश में सुर्खियां बटोरी थीं. लेकिन वह चुनाव का समय था. इसलिए इस मामले को सुर्खियां मिलीं. उसके बाद राज्य में सुदीप दत्त भौमिक नामक एक अन्य पत्रकार की भी हत्या कर दी गई. वहां बीते सितंबर में कोरोना के आंकड़ों के बारे में छापने पर मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने पत्रकारों को सरेआम धमकी दी थी. उसके बाद कई पत्रकारों पर हमले किए गए थे. लेकिन किसी भी अभियुक्त के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.

मणिपुर के वरिष्ठ पत्रकार पाओजेल चाओबा कहते हैं, "हमारा काम ही सरकार के कामकाज पर सवाल उठाना और सच को सामने लाना है. लेकिन ऐसा कहना-सुनना आसान है, करना बेहद मुश्किल. खासकर पूर्वोत्तर में पत्रकारों को बेहद सावधानी से काम करना पड़ता है. पता नहीं किस बात पर सरकार देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल दे.”

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