सौर-मंडल के पास ही मिला 'सुपर अर्थ' ग्रह
५ मार्च २०२१![Illustration Super Erde Gliese 486 b](https://static.dw.com/image/56777011_800.webp)
खगोलशास्त्रियों ने पृथ्वी के सौर मंडल के पास ही इस नए ग्रह की खोज की है. इसे एक 'सुपर-अर्थ' एक्सोप्लानेट कहा जा रहा है जिसकी सतह का तापमान पृथ्वी के सबसे करीबी ग्रह शुक्र से थोड़ा ठंडा है. पृथ्वी से परे जीवन के सुराग की तलाश में लगे वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के जैसे एक 'सुपर-अर्थ' के वातावरण का अध्ययन करने का यह अच्छा अवसर है.
एक्सोप्लानेट वो ग्रह होते हैं जो पृथ्वी के सौर मंडल के बाहर होते हैं. जर्मनी के मैक्स प्लैंक खगोलशास्त्र संस्थान के शोधकर्ताओं ने बताया है कि ग्लीज 486 बी अपने आप में जीवन की मौजूदगी के लिए एक आशाजनक उम्मीदवार नहीं है क्योंकि वो गर्म और सूखा है. उसकी सतह पर लावा की नदियों के बह रहे होने की भी संभावना है. लेकिन पृथ्वी से उसकी करीबी और उसके भौतिक लक्षण उसे वातावरण के अध्ययन के लिए एक आदर्श उम्मीदवार बनाते हैं.
पृथ्वी और अंतरिक्ष दोनों से काम करने वाली अगली पीढ़ी की दूरबीनों की मदद से यह अध्ययन किया जा सकता है. नासा इसी साल जेम्स वेब अंतरिक्ष टेलिस्कोप को शुरू करने वाली है. इसकी मदद से वैज्ञानिक ऐसी जानकारी निकाल सकेंगे जिससे दूसरे एक्सोप्लानेटों के वातावरणों को समझने में मदद मिलेगी.
इनमें ऐसे ग्रह भी शामिल हो सकते हैं जहां जीवन के मौजूद होने की संभावना हो. विज्ञान की पत्रिका साइंस में छपे इस शोध के मुख्य लेखक ग्रह वैज्ञानिक त्रिफोन त्रिफोनोव का कहना है कि इस एक्सोप्लानेट का "वातावरण संबंधी जांच करने के लिए सही भौतिक और परिक्रमा-पथ संबंधी विन्यास होना चाहिए."
क्या होती है 'सुपर-अर्थ'
सुपर-अर्थ एक ऐसा एक्सोप्लानेट होता है जिसका गहन यानी मॉस हमारी पृथ्वी से ज्यादा हो लेकिन हमारे सौर मंडल के बर्फीले जायंट वरुण ग्रह यानी नेप्चून और अरुण ग्रह यानी यूरेनस से काफी कम हो. ग्लीज 486 बी का घन पृथ्वी से 2.8 गुना ज्यादा है और यह हमसे सिर्फ 26.3 प्रकाश वर्ष दूर है.
इसका मतलब यह कि यह ग्रह ना सिर्फ पृथ्वी के पड़ोस में है, बल्कि यह हमारे सबसे करीबी एक्सोप्लानेटों में से है. हालांकि त्रिफोनोव ने यह भी कहा, "ग्लीज 486 बी रहने लायक नहीं हो सकता है, कम से कम उस तरह से तो बिल्कुल भी नहीं जैसे हम पृथ्वी पर रहते हैं. अगर वहां कोई वातावरण है भी तो वो छोटा सा ही है."
एक्सोप्लानेटों के अध्ययन का रोसेटा पत्थर
इसके बावजूद तारा-भौतिकविद और इस अध्ययन के सह-लेखक होसे काबालेरो ने उत्साह से कहा, "हमारा मानना है कि ग्लीज 486 बी तुरंत ही एक्सोप्लानेटों के अध्ययन का रोसेटा पत्थर बन जाएगा, कम से कम पृथ्वी जैसे ग्रहों के लिए तो बिल्कुल ही. रोसेटा पत्थर वो प्राचीन पत्थर है जिसकी मदद से विशेषज्ञों ने मिस्र की चित्रलिपियों को समझा था.
वैज्ञानिक अभी तक 4,300 से भी ज्यादा एक्सोप्लानेटों की खोज कर चुके हैं. कुछ वृहस्पति यानी जुपिटर जैसे बड़े गैस के ग्रह निकले तो कुछ और ग्रहों को पृथ्वी की तरह चट्टानों की सतह वाला पाया गया, जहां जीवन के होने की संभावना होती है.
सीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore