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पेंटिंग बेच कर चुनाव लड़ेंगी ममता

२१ जनवरी २०१३

तृणमूल कांग्रेस के पंचायत चुनाव अभियान का खर्च निकालने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बनाई सैकड़ों पेंटिंगों की बिक्री हुई. पर दो हफ्ते के इस कार्यक्रम को विपक्ष ने नाटक बताया और पूरा हिसाब मांगा है.

तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

विपक्ष ने खरीदारों के नाम बताने की भी मांग की है. इस विवाद के तूल पकड़ने की एक वजह यह है कि इसी दौरान महानगर में आयोजित जाने माने चित्रकार जामिनी राय के चित्रों की प्रदर्शनी में न तो ज्यादा दर्शक पहुंचे और न ही कोई खरीदार.

ममता कहती हैं, "मेरे पास पैसा नहीं है. न तो मैं पूर्व सांसद के तौर पर पेंशन लेती हूं और न ही मुख्यमंत्री के तौर पर वेतन. पार्टी चलाने के लिए पैसों की जरूरत होती है. इसलिए मैंने पंचायत चुनाव का खर्च निकालने के लिए अपनी कलाकृतियों को बेचने का फैसला किया." वैसे वह खुद को कलाकार नहीं मानतीं. लेकिन इससे पहले भी ममता के बनाए चित्रों की तीन प्रदर्शनी आयोजित लग चुकी हैं.

अपनी प्रदर्शनी का उद्घाटन खुद ममता ने ही किया. इसमें 225 पेंटिंग थीं, जिनकी कीमत एक से तीन लाख रुपये के बीच थी. इनकी खूब बिक्री हुई. इस मौके पर जाने माने चित्रकार जोगेन चौधरी और शुभप्रसन्ना भी मौजूद थे. शुभप्रसन्ना कहते हैं, "इनको मुख्यमंत्री नहीं बल्कि एक कलाकार के बनाए चित्रों के नजरिए से देखना चाहिए. इन चित्रों में जादुई गुण हैं." कोलकाता के टाउन हाल में प्रदर्शनी लगी, जिसके क्यूरेटर शिवाजी पांजा बताते हैं, "रोजाना औसतन कोई 200 लोग इसे देखने आए और लगभग तमाम चित्र बिक गए."

विपक्ष का आरोप

ममता के बनाए चित्र भले हाथोंहाथ बिक गए, विपक्षी सीपीएम ने इस पर सवाल खड़े कर दिए हैं. पार्टी के गौतम देव कहते हैं, "ममता क्या पिकासो या दा विंची हैं, जो उनके चित्र करोड़ों में बिक गए. यह शर्मनाक है." पार्टी ने ममता पर चित्रों की बिक्री के बहाने धन उगाही का आरोप लगाया है.

विधानसभा में विपक्ष के नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, "ममता ने कहा है कि वह अपनी पार्टी के पंचायत चुनाव अभियान के लिए किसी से चंदा नहीं मांगेंगी. लेकिन उनको इसकी जरूरत ही क्या है. राज्य में जबरन उगाही का दौर चल रहा है." मिश्र का सवाल है कि ममता को इस बात का खुलासा करना चाहिए कि उनके चित्र कितने रुपये में बिके और किसने खरीदे. उनका कहना है, "खरीदारों ने काले धन से वह चित्र खरीदे या सफेद से?"

तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

आम लोग भी हैरत में

मुख्यमंत्री के बनाए चित्रों की भारी बिक्री से आम लोग भी हैरत में हैं. महानगर की छात्रा सुचित्रा साहा का सवाल है, "ममता दी इतनी बड़ी चित्रकार कब से हो गईं? समय बिताने के लिए कागज पर आड़ी तिरछी लकीरें खींचना अलग बात है और इतनी बड़ी तादाद में चित्र बनाना और बेचना अलग." लेकिन एक निजी फर्म में काम करने वाली श्वेता तालुकदार कहती हैं, "ममता का जीवन खुली किताब है. वह अपने चित्रों को बेच कर चुनाव खर्च जुटा रही हैं तो इसमें बुरा क्या है ?"

वैसे लोगों का मानना है कि इस बिक्री में उनकी कुर्सी का भी हाथ है. आईटी इंजीनियर सुमित घोष कहते हैं, "उद्योगपति तो मुख्यमंत्री और राजनेताओं की करीबी हासिल करने के बहाने तलाशते रहते हैं. यह प्रदर्शनी भी उनके लिए ऐसा ही मौका है. ममता के चित्रों में किया गया निवेश तो वह कभी भी सूद समेत हासिल कर सकते हैं."

ममता बेअसर

पूरे विवाद के बावजूद ममता परेशान नहीं हैं, "मुझे कला का कोई ज्ञान नहीं है. मैंने 2006 में शौकिया तौर पर पेंटिंग शुरू की थी." उनका दावा है कि किसी पर भी उनके चित्रों को खरीदने का दबाव नहीं था.

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी कहते हैं, "चुनाव अभियान के लिए दूसरी राजनीतिक पार्टियों की तरह जबरन वसूली से धन जुटाने का यह तरीका लाख दर्जे बेहतर है."

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः अनवर जे अशरफ

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