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पेंशन से निहाल हो रहे बिहार के एमएलए-एमएलसी

मनीष कुमार, पटना
३० सितम्बर २०२१

बिहार में वर्तमान में राज्य में ऐसे 991 पूर्व विधायक हैं जिनके खाते में सरकारी कोष से प्रतिमाह पेंशन के तौर पर 4,94,44000 रुपये की रकम भेजी जाती है. पेंशन किसे और कितना मिलेगा इसके नियमों पर सवाल उठ रहे हैं.

Indien Feier 100 Jahre Bihar Assembly
तस्वीर: Manish Kumar/DW

बिहार में विधायक (एमएलए) या विधान पार्षद (एमएलसी) बने नेता वेतन-भत्ते और दूसरी सुविधाओं के नाम पर एक लाख 35 हजार रुपये तो पाते ही हैं, हार जाने या दोबारा नहीं चुने जाने पर भी कई सुविधाओं के अलावा बतौर पेंशन वे या उनके आश्रित आजीवन अच्छी-खासी रकम के हकदार हो जाते हैं.  इनके पेंशन निर्धारण का तरीका भी अजीबोगरीब है.

भारत में सांसद या विधायक रहते वेतन और सुविधाएं मिलने का प्रावधान तो है ही, चुनावी हार या दूसरे कारणों से भूतपूर्व हो जाने पर भी उन्हें  पेंशन और कई सुविधाएं आजीवन मिलती हैं. निधन हो जाने के बाद उनके आश्रित को भी आजीवन पारिवारिक पेंशन मिलता है. विश्व के अनेक देशों में जनप्रतिनिधियों को वेतन और सुविधाएं मिलती है जिसे निर्धारित करने का अधिकार अलग संस्थाओं को रहता है. इसके लिए उम्र और सेवा की सीमा निर्धारित है. ब्रिटेन जैसे देश में इसके लिए आयोग का गठन किया गया है, किंतु भारत में सांसद व विधायकों की सुविधाओं के संबंध में क्रमश: संसद व विधानसभाएं ही निर्णय लेतीं हैं. 

एक से अधिक पेंशन के हकदार

देशभर में कर्मचारी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक को केवल एक पेंशन मिलती है. किंतु, सांसद व विधायक इसके अपवाद हैं. वे एक या उससे अधिक पेंशन पाने के हकदार हैं. ऐसे में अगर कोई राजनेता एक बार विधायक बनता है और उसके बाद फिर सांसद बन जाता है तो उसे विधायक की पेंशन के साथ-साथ लोकसभा सांसद का वेतन और भत्ता मिलता है. इसके बाद अगर वह किसी सदन का सदस्य नहीं रह जाता है तो उसे विधायक के पेंशन के साथ-साथ सांसद का पेंशन भी मिलता है.

बिहार में एक एमएलए या एमएलसी को 35,000 की राशि न्यूनतम पेंशन के तौर पर मिलती है. लेकिन यह एक साल विधायक रहने पर ही मिलती है. इसके बाद वह जितने साल विधायक रहते हैं, उतने वर्ष तक हर साल उनके पेंशन में तीन-तीन हजार रुपये तक की बढ़ोतरी होती है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अगर कोई व्यक्ति पांच साल तक एमएलए रहता है तो उसे एक साल के लिए 35,000 तथा अगले चार साल के लिए अतिरिक्त 12,000 रुपये अर्थात कुल 47,000 रुपये मिलेंगे. इसके अतिरिक्त वह संसद के किसी सदन के सदस्य रहे होते हैं तो उन्हें उस सदन के सदस्य के तौर पर अलग पेंशन मिलता है.

ठीक इसी तरह मौजूदा नियम के अनुसार एक सांसद यदि दोबारा निर्वाचित होता है तो उसकी पेंशन राशि में दो हजार रुपये प्रतिमाह की और बढ़ोतरी कर दी जाती है और यही क्रम आगे भी चलता जाता है. पहले यह नियम था कि वही पूर्व सांसद पेंशन के योग्य माना जाएगा जिसने बतौर सांसद चार साल का कार्यकाल पूरा कर लिया हो. 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार ने इसमें संशोधन करके यह प्रावधान कर दिया कि यदि कोई एक दिन के लिए भी सांसद बनेगा तो वह पेंशन का हकदार होगा और तब से यही व्यवस्था चल रही है.

आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय कहते हैं, ‘‘यह कौन सा नियम है कि ये लोग जहां-जहां रहेंगे, वहां-वहां से पेंशन लेंगे. एक आदमी को एक जगह से पेंशन मिलना चाहिए. ऐसा नहीं कि विधायक रहे तो उसका पेंशन, विधान परिषद का सदस्य रहे तो उसका पेंशन राज्यसभा सदस्य रहे तो उसका पेंशन, लोकसभा सदस्य रहे तो उसका पेंशन और नहीं तो जहां नौकरी में रहे उससे भी पेंशन लें. एक-एक आदमी पांच-पांच जगहों से पेंशन ले रहा है.''

एक लाख रुपये से अधिक की पेंशन 

आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय को बिहार विधानसभा सचिवालय से दी गई जानकारी के अनुसार राज्य में ऐसे 12 राजनेता हैं जिन्हें एक से डेढ़ लाख तक की रकम पेंशन के रूप में मिलती है. जबकि, 70 राजनीतिज्ञ ऐसे हैं जो 75 हजार से एक लाख रुपये तक की पेंशन पाते हैं और 254 पूर्व एमएलए-एमएलसी को 50 से 75 हजार तक की रकम मिलती है. रमई राम ऐसे राजनेता हैं जिन्हें पेंशन के तौर पर सर्वाधिक 1,46,000 रुपये प्रतिमाह मिलते हैं. चारा घोटाले के आरोपी रहे जगदीश शर्मा दूसरे नंबर पर आते हैं. उन्हें सवा लाख रुपये की पेंशन मिलती है. इसी तरह अलकतरा घोटाले के आरोपी रहे मो. इलियास हुसैन को 1,01,000 रुपये दिए जाते हैं.

लता मंगेशकर ने सांसद के रूप में कोई वेतन भत्ता या पेंशन नहीं ली.तस्वीर: UNI

446 विधायकों के परिवार को पेंशन 

बिहार विधानसभा सचिवालय द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार दिवंगत 446 विधायकों- विधान पार्षदों के पारिवारिक पेंशन पर पिछले वित्तीय वर्ष में 23 करोड़ 85 लाख रुपये खर्च किए गए. बतौर पेंशन इनमें सर्वाधिक 1,09,500 रुपये पूर्व कांग्रेस नेता महावीर चौधरी की विधवा वीणा देवी के खाते में भेजे जाते हैं. ऐसे करीब डेढ़ दर्जन राजनेता हैं जिनकी विधवाओं को 70 हजार से लेकर एक लाख रुपये पारिवारिक पेंशन के रुप में मिलते हैं. क्षेत्रवार देखें तो सबसे ज्यादा पटना जिले में 30 दिवंगत विधायकों की पत्नियां पारिवारिक पेंशन पा रहीं है. इसके बाद मुजफ्फरपुर में 23 को और पूर्णिया, पूर्वी चंपारण तथा दरभंगा में 20-20 विधायकों की विधवाओं के खाते में पेंशन की राशि भेजी जा रहीं है.

पेंशन में गड़बड़ी की आशंका

आरटीआई के तहत दी गई सूचना से यह भी पता चला है कि दिवंगत विधायकों तथा उनके दिवंगत आश्रितों के खाते में भी पेंशन की रकम भेजी गई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद की माता व स्व. ठाकुर प्रसाद की धर्मपत्नी विमला देवी, राज्य के पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन की माता व भाजपा के पूर्व विधायक स्व. नवीन किशोर सिन्हा की पत्नी मीरा सिन्हा तथा राजद नेता विजय सिंह यादव के बैंक अकाउंट में पेंशन की रकम भेजी गई. जबकि इन तीनों का निधन हो चुका है.

सूचना देने के लिए एक जुलाई, 2021 का संदर्भ लिया गया है. हालांकि, रविशंकर प्रसाद ने ट्वीट कर इस सूचना को गलत बताते हुए कहा कि 25 दिसंबर, 2020 को माताजी के निधन के बाद 31 दिसंबर, 2020 को ही उनका पेंशन अकाउंट बंद करा दिया गया है. अकाउंट में पैसा आना संभव ही नहीं है. वहीं मंत्री नितीन नवीन ने कहा कि इसी साल मार्च महीने में मां के निधन के बाद 13 मई को बैंक को मेल कर सूचना दे दी गई थी. उनके निधन के बाद इस बीच खाते में राशि भेजी गई थी जिसे बैंक ने वापस ले लिया है.

रविशंकर प्रसाद की मां का नाम भी पेंशन पाने वालों में था.तस्वीर: Santosh Kumar//Hindustan Times/imago images

शिव प्रकाश राय कहते हैं, "मिली सूचना के अनुसार राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के चचेरे भाई सच्चिदानंद सिंह (रामगढ़), मेदिनी राय (बेगूसराय), विश्वनाथ राय (रामगढ़) का मामला भी कुछ इसी तरह का है. इसकी जांच सख्ती से होनी चाहिए. तभी स्थिति साफ हो सकेगी.'' वहीं इस संबंध में न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि हालांकि पेंशन की राशि दूसरे विभाग से जारी की जाती है. किंतु इसमें गलती किस स्तर से हुई, उसकी जांच कराई जाएगी. वैसे इसकी एक प्रक्रिया है जिसके तहत पेंशनभोगी को साल में एक बार लाइफ सर्टिफिकेट देना पड़ता है.  

 2017 में लोक प्रहरी नाम की एक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पूर्व सांसदों को मिलने वाले पेंशन व अन्य भत्तों को बंद करने की मांग की थी. याचिका में कहा गया था कि सांसद के पद से हटने के बाद भी जनता के पैसे से पेंशन लेना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) और अनुच्छेद 106 का उल्लंघन है. संसद को यह अधिकार नहीं है कि गरीब कर दाताओं के ऊपर सांसदों और उनके परिवार को पेंशन राशि देने का बोझ डाले. हालांकि अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि हमारा मानना है कि विधायी नीतियां बनाने या बदलने का सवाल संसद के विवेक के ऊपर निर्भर है. इस बीच सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर जैसे पूर्व सांसद भी हैं, जिन्होंने पेंशन लेने से इनकार कर दिया था.

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