मौसम की मार झेल रहे सुंदरबन क्षेत्र के कुछ गांवों में सराहनीय कदम उठाए गए हैं. लोग अपने घरों, खाली जमीनों और तटबंधों में मैंग्रोव के पेड़ लगा रहे हैं. इससे हरियाली तो मिल ही रही है, साथ ही तूफान से बचाव भी हो रहा है.
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9 साल पहले आए चक्रवात और तूफान को याद कर पुष्पो मंडल आज भी सिहर उठती हैं. पश्चिम बंगाल के गोशाबा ब्लॉक में आने वाला तटवर्ती गांव पथरपारा इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ था. पुष्पो बताती हैं कि तेज तूफान बांध को तोड़ता हुआ खेतों और घरों में घुस गया और सब कुछ तबाह कर गया. सुंदरबन क्षेत्र में आने वाले इस गांव ने तबाही से सबक सीखा है. ग्रामीणों ने मैंग्रोव के पौधे घरों, खेतों और तटबंधों पर लगाना शुरू कर दिया है. ऐसा ही कदम भारत के अन्य तटवर्ती राज्य ओडिशा व तमिलनाडु में भी उठाया जा रहा है.
पुष्पो के पति संतोष बताते हैं कि टीले की वजह से समुद्र के खारे से बचाव हो पाता है. वह कहते हैं कि अगर टीले न हो तो खारा पानी खेतों में घुस आएगा जिससे मिट्टी खराब हो जाएगी और यह फसल व सब्जियों के लिए सही नहीं होगा. कलकत्ता यूनिवर्सिटी के मरीन साइंस डिपार्टमेंट के पूर्व हेड अभिजीत मित्रा के मुताबिक, ''बांधों के नजदीक मैंग्रोव जंगलों के होने से तूफान और चक्रवात से प्राकृतिक रूप से बचाव होता है.'' एशिया-प्रशांत पर हुए एक शोध का जिक्र कहते हुए वह कहते हैं, ''अध्ययन किया गया है कि मैंग्रोव जंगल की 50 मीटर की एक पट्टी तूफान और लहरों की शक्ति को 50 फीसदी तक कम कर देती है.''
ग्रामीणों ने उठाया बीड़ा
जलवायु परिवर्तन से तहस-नहस हो रहा है वन्य जीवन
बढ़ता तापमान, समुद्र का बढ़ता जलस्तर या जंगलों में आग. जलवायु परिवर्तन के ये बस कुछ उदाहरण हैं. आइए जानते हैं कि वन्य जीवन पर जलवायु परिवर्तन का क्या असर पड़ रहा है.
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जंगलों में आग
हाल के वर्षों में अमेरिका के कैलिफोर्निया के जंगलों में लगी आग ने दुनिया का ध्यान खींचा है. आग लगने के पीछे कारण इंसानों का जंगलों पर कब्जा और वन प्रबंधन की कमी भी है. वन्य जीवन के विशेषज्ञ डेविड बाउमन कहते हैं कि स्थिति पहले से ही खराब थी और जलवायु परिवर्तन ने इसे और बढ़ा दिया है.
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सूखे का प्रकोप
पिछले 20 वर्षों से कैलिफोर्निया और दक्षिणी यूरोप ने कई बार सूखे की मार झेली है. जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ गर्म और सूखी हवाएं चलने लगीं बल्कि जरूरी नमी भी कम होती गई. नतीजा यह कि जमीन सूखने लगी, जिससे जंगलों की आग को और बढ़ावा मिला. सूखे का मतलब है पेड़ों का मुरझा जाना और इसने आग के लिए ईंधन का काम किया.
तस्वीर: DW
हरे-भरे पेड़ गायब
बदलते मौसम ने हरे-भरे पेड़ों से उनकी खूबसूरती छीन ली और नई प्रजातियों के पौधे मौसम के अनुकूल ढल गए. पौधों से नमी गायब होती गई और कांटेदार पौधों व झाड़ियों का कब्जा बढ़ता गया. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह परिवर्तन तेजी से आया और अमेरिका के जंगलों में रोजमैरी और लैंवेडर के जंगली पौधे दिखने लगे.
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भूजल का गिरता स्तर
बारिश में कमी और बढ़ते तापमानों ने पेड़-पौधों की जड़ों पर असर डाला. पानी की तलाश में वे और नीचे तक बढ़ते चले गए और इससे भूजल का स्तर गिरता चला गया. आम लोगों को पानी के लिए सैकड़ों फीट नीचे तक खुदाई करनी पड़ती है, फिर भी पानी नहीं मिलता.
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कमजोर हुईं हवाएं
सामान्य तौर पर उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया का मौसम शक्तिशाली और तेज हवाओं पर निर्भर होता है जो ध्रुवीय और भूमध्य क्षेत्र के बीच के विपरीत तापमानों की वजह से पैदा होती है. लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से आर्कटिक क्षेत्र का तापमान वैश्विक तुलना में दोगुनी तेजी से बढ़ा है. इसकी वजह से हवाएं की रफ्तार कमजोर हुई है और महाद्वीप के मौसम पर असर पड़ा है.
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बीटल की तबाही
तापमान बढ़ने से बीटल कनाडा के बोरियल जंगलों की ओर भाग रहे हैं. इन्होंने यहां तबाही मचाई हुई है और पेड़ों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है. पेड़ सूख रहे हैं और जंगलों में आग को और भड़का रहे हैं. पेड़-पौधों के जलने से वायुमंडल को भारी नुकसान पहुंच रहा है और यह जलवायु परिवर्तन को बदतर बना रहे हैं. (एएफपी)
गांव में बतौर शिक्षक काम करने वाले गोपाल मंडल का कहना है, ''अब लहरें ऊंची उठती हैं. पिछले दशक के मुकाबले तूफान और चक्रवात भी ज्यादा आते हैं.'' गोशाबा ब्लॉक के बांधों को सुरक्षित रखने के लिए ग्रामीणों ने बीड़ा उठाया है. 2012 से दर्जन भर गांव लगभग 49 एकड़ खाली जमीन को बहाल करने के लिए उनके तटबंधों के नजदीक मैंग्रोव के पेड़-पौधे लगा रहे हैं. शुरुआत में उन्होंने स्वेच्छा से काम किया और बाद में स्थानीय पर्यावरण समूहों ने उन्हें आर्थिक मदद दी. ग्रामीणों का कहना है कि तटबंध का 30-35 किलोमीटर का इलाका अब बेहतर तरीके से सुरक्षित है.
सुंदरबन क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले इलाकों में शामिल है. पौधारोपण की मुहिम का नेतृत्व करने वाले जुबिली गांव के अर्जुन मंडल बताते हैं कि उनकी टीम मैंग्रोव के बीजों को जंगलों में इकट्ठा करती है. ये बीज तूफान की वजह से जंगलों में तितर-बितर हो जाते हैं और जब पानी घटता है तो किनारों पर जमा हो जाते हैं. इन बीजों को इकट्ठा करने के बाद स्थानीय महिलाएं तीन फीट लंबे छोटे पौधे तैयार करती हैं.
पेड़ों का ख्याल रखते हैं ग्रामीण
मॉनसून के आने से पहले ग्रामीण उन जगहों की तलाश कर लेते हैं, जहां इन पौधों को रोपा जाना है. आमतौर पर यह नदियों के किनारे होता है. फिर अंकुरित पौधों को चार फीट की दूरी पर लगाया जाता है जिससे जड़ों को फैलने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके. ग्रामीण इन पौधों को पालने के लिए साफ-सफाई का ख्याल रखते हैं और पशुओं से इनकी रक्षा करते हैं.
संतोष मंडल कहते हैं कि पीढ़ियों से मैंग्रोव के बारे स्थानीय लोगों को जानकारी है और इसी वजह से गांव की रक्षा हो पा रही है. मैंग्रोव को लेकर विशेषज्ञों और पर्यावरण समूहों में बढ़ती जागरूकता से ग्रामीणों को उनकी जानकारी व अनुभव को इस्तेमाल करने के लिए उत्साहित किया जा रहा है. इससे बर्बाद होते जा रहे मैंग्रोव जंगलों की रक्षा हो पा रही है और मौसम की मार से बचाव भी हो रहा है.
वीसी/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
2018 के लिए यूनेस्को की नई विश्व धरोहर
यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति ने 2018 के लिए दुनिया की धरोहरों के नाम तय किए हैं. इनमें मुंबई की पहचान विक्टोरिया बिल्डिंग से लेकर कनाडा के 7 हजार साल पुराने जंगल तक शामिल हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/J.Woitas
नाउमबुर्ग कैथिड्रल, जर्मनी
13वीं सदी में बना नाउबुर्ग कैथिड्रल मध्यकाल की कला का नायाब नमूना है. तस्वीर में दिख रही उटा फोन नाउमबुर्ग को मध्यकाल की सबसे खूबसूरत महिला माना गया है. इसे बनाने वाले कलाकार को यदि पता होता कि एक दिन इसे विश्व धरोहर में शामिल किया जाएगा तो वह जरूर महिला के चेहरे पर मुस्कान ले आते.
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गोबेकली तेप, तुर्की
संभवतः यह दुनिया का सबसे पुराना मंदिर है. इसमें लगे हुए पत्थर और सीढ़िया 12 हजार साल पुराने हैं. माना जाता है कि माया, मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यता से भी पुरानी इंसानी प्रजाति की धरोहर है.
तस्वीर: DAI
बौद्ध पर्वत और मठ, दक्षिण कोरिया
तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी 7वीं शताब्दी से लेकर अब तक दक्षिण कोरिया के 4 मठ- टोंगदोसा, बुस्योकसा, बेयोपजूसा और दायेहेयुंग्सा कोरियाई बौद्ध परंपरा को दिखाते हैं. तस्वीर में दिख रहा 5 मंजिलों का पगोडा बेयोपजूसा मंदिर की पहचान है. एक समय में यहां करीब 3 हजार भिक्षु रहते थे..
तस्वीर: CIBM
मदीना अजहारा, स्पेन
936 में बनी इस शाही इमारत को कोरडोबा के खलीफा ने अपनी प्रियतमा अज-जाहरा के लिए बनवाया था. इसे बनाने में 40 वर्ष लगे और 44 साल बाद दुश्मनों ने इसे तोड़ दिया. आज कोरडोबा के नजदीकी पुरात्तव साइटों पर जाए तो वहां मूरिश की संस्कृति और स्पेन के इतिहास को देखना शानदार अनुभव होता है.
तस्वीर: CAMaZ
हाइथाबु और डानेविर्के, जर्मनी
9वीं सदी में उत्तरी जर्मनी में बने ट्रेड सेंटर हाइथाबु को विकिंग्स ने बनवाया था. इसकी रक्षा करने के लिए डानेविर्के नामक 30 किलोमीटर लंबी दीवार बनाई गई. कारीगर और व्यापारी के तौर पर विकिंग्स ने शांतिपूर्ण तरीके से जीवन बिताया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/C.Charisius
चिरीबिक्वेटे नेशनल पार्क, कोलंबिया
अमेजन बेसिन में बना चिरीबिक्वेटे नेशनल पार्क पहाड़ों और रॉक पेटिंग्स के लिए मशहूर है. यूनेस्कों ने प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत होने के साथ इसे विश्व धरोहरों में शामिल किया है. करीब 75 हजार पेटिंग्स में शिकार, युद्ध, नृत्य और परंपरा की झलक दिखती है.
तस्वीर: Jorge Mario Álvarez Arango
थिमलिच ओहिंगा, केन्या
तस्वीर में दिख रहे पत्थर के ऊपर पत्थर बिना किसी सीमेंट या गारे के पिछले 500 वर्षों से जुड़े हैं. थिमलिच ओहिंगा की ये दीवारें पूर्वी अफ्रीका की महत्वपूर्ण पुरातत्व साइटों में से एक हैं. इनमें 16वीं सदी के बाद की झलक दिखाई पड़ती है. उस दौरान पैस्टोरल समुदाय के कारीगर विक्टोरिया झील के किनारे बसे और अपनी कला का प्रदर्शन किया.
तस्वीर: National Museums of Kenya
नागासाकी में छुपी हुई ईसाई विरासत, जापान
एक कैथिड्रल, एक महल और 10 गांव मिलकर ईसाई धर्म के प्रचार की कहानी बताते हैं. 17 से 19वीं सदी के बीच काफी प्रसिद्ध हुए इस धर्म के लोगों ने अपने समुदाय बनाए और तटीय व द्वीपों पर जाकर रहे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Chibahara
कलहट का प्राचीन शहर
14 और 15वीं सदी में ओमान का उत्तर पूर्वी शहर व्यापार का केंद्र हुआ करता था. तस्वीर में दिख रही बीबी मरियम की यह समाधि प्राचीन धरोहर है. 2010 कलहट में करीब 1100 लोग रहा करते थे. इस बंदरगाह शहर के बाहरी हिस्से में स्थित है जहां से लिक्विड गैस का व्यापार होता है.
तस्वीर: MHC
विक्टोरियाई और आर्ट डेको क्वॉर्टर, भारत
मुंबई की पहचान कहे जाने वाली विक्टोरिया बिल्डिंग यूरोपीय और भारतीय डिजाइन के मिश्रण का शानदार नमूना है. 19 और 20वीं सदी की इन इंडो-गोएथिक-डेको स्टाइल की इन इमारतों की झलक समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में देखी जा सकती है.
तस्वीर: Abha Narain Lambah Associates
पिमाशियोविन अकी, कनाडा
घने जंगलों और विशाल नदियों में अपना घर बनाए अनिशिनाबेग समुदाय के लोगों का इतिहास 7 हजार साल पुराना है. पिमाशियोविन अकी का मतलब "धरती जो जीवन" दे होता है. यहां के लोगों को प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहना आता है.