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पेड़ लगाकर तूफान से बचाव कर रहे ग्रामीण

२७ नवम्बर २०१८

मौसम की मार झेल रहे सुंदरबन क्षेत्र के कुछ गांवों में सराहनीय कदम उठाए गए हैं. लोग अपने घरों, खाली जमीनों और तटबंधों में मैंग्रोव के पेड़ लगा रहे हैं. इससे हरियाली तो मिल ही रही है, साथ ही तूफान से बचाव भी हो रहा है.

Bildergalerie Bangladesch Sundarbans Mangrovenwälder
तस्वीर: DW/M, Mamun

9 साल पहले आए चक्रवात और तूफान को याद कर पुष्पो मंडल आज भी सिहर उठती हैं. पश्चिम बंगाल के गोशाबा ब्लॉक में आने वाला तटवर्ती गांव पथरपारा इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ था. पुष्पो बताती हैं कि तेज तूफान बांध को तोड़ता हुआ खेतों और घरों में घुस गया और सब कुछ तबाह कर गया. सुंदरबन क्षेत्र में आने वाले इस गांव ने तबाही से सबक सीखा है. ग्रामीणों ने मैंग्रोव के पौधे घरों, खेतों और तटबंधों पर लगाना शुरू कर दिया है. ऐसा ही कदम भारत के अन्य तटवर्ती राज्य ओडिशा व तमिलनाडु में भी उठाया जा रहा है. 

पुष्पो के पति संतोष बताते हैं कि टीले की वजह से समुद्र के खारे से बचाव हो पाता है. वह कहते हैं कि अगर टीले न हो तो खारा पानी खेतों में घुस आएगा जिससे मिट्टी खराब हो जाएगी और यह फसल व सब्जियों के लिए सही नहीं होगा. कलकत्ता यूनिवर्सिटी के मरीन साइंस डिपार्टमेंट के पूर्व हेड अभिजीत मित्रा के मुताबिक, ''बांधों के नजदीक मैंग्रोव जंगलों के होने से तूफान और चक्रवात से प्राकृतिक रूप से बचाव होता है.'' एशिया-प्रशांत पर हुए एक शोध का जिक्र कहते हुए वह कहते हैं, ''अध्ययन किया गया है कि मैंग्रोव जंगल की 50 मीटर की एक पट्टी तूफान और लहरों की शक्ति को 50 फीसदी तक कम कर देती है.''

ग्रामीणों ने उठाया बीड़ा

गांव में बतौर शिक्षक काम करने वाले गोपाल मंडल का कहना है, ''अब लहरें ऊंची उठती हैं. पिछले दशक के मुकाबले तूफान और चक्रवात भी ज्यादा आते हैं.'' गोशाबा ब्लॉक के बांधों को सुरक्षित रखने के लिए ग्रामीणों ने बीड़ा उठाया है. 2012 से दर्जन भर गांव लगभग 49 एकड़ खाली जमीन को बहाल करने के लिए उनके तटबंधों के नजदीक मैंग्रोव के पेड़-पौधे लगा रहे हैं. शुरुआत में उन्होंने स्वेच्छा से काम किया और बाद में स्थानीय पर्यावरण समूहों ने उन्हें आर्थिक मदद दी. ग्रामीणों का कहना है कि तटबंध का 30-35 किलोमीटर का इलाका अब बेहतर तरीके से सुरक्षित है.

सुंदरबन क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले इलाकों में शामिल है. पौधारोपण की मुहिम का नेतृत्व करने वाले जुबिली गांव के अर्जुन मंडल बताते हैं कि उनकी टीम मैंग्रोव के बीजों को जंगलों में इकट्ठा करती है. ये बीज तूफान की वजह से जंगलों में तितर-बितर हो जाते हैं और जब पानी घटता है तो किनारों पर जमा हो जाते हैं. इन बीजों को इकट्ठा करने के बाद स्थानीय महिलाएं तीन फीट लंबे छोटे पौधे तैयार करती हैं.

पेड़ों का ख्याल रखते हैं ग्रामीण

मॉनसून के आने से पहले ग्रामीण उन जगहों की तलाश कर लेते हैं, जहां इन पौधों को रोपा जाना है. आमतौर पर यह नदियों के किनारे होता है. फिर अंकुरित पौधों को चार फीट की दूरी पर लगाया जाता है जिससे जड़ों को फैलने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके. ग्रामीण इन पौधों को पालने के लिए साफ-सफाई का ख्याल रखते हैं और पशुओं से इनकी रक्षा करते हैं.

संतोष मंडल कहते हैं कि पीढ़ियों से मैंग्रोव के बारे स्थानीय लोगों को जानकारी है और इसी वजह से गांव की रक्षा हो पा रही है. मैंग्रोव को लेकर विशेषज्ञों और पर्यावरण समूहों में बढ़ती जागरूकता से ग्रामीणों को उनकी जानकारी व अनुभव को इस्तेमाल करने के लिए उत्साहित किया जा रहा है. इससे बर्बाद होते जा रहे मैंग्रोव जंगलों की रक्षा हो पा रही है और मौसम की मार से बचाव भी हो रहा है.   

वीसी/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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