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पेशेवर खिलाड़ियों की सबसे बड़ी चुनौती है मानसिक स्वास्थ्य

विवेक शर्मा
२० जून २०२०

मौजूदा दौर में खेल एक पेशा बन चुका है. खिलाड़ियों पर बेहतर प्रदर्शन का दबाव तो होता ही है, मैदान के बाहर भी अपनी छवि बनानी होती है. खेल की डिमांड हरेक खिलाड़ी के शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य पर असर डालती है.

Bhuvneshwar Kumar | Cricket | Indien
तस्वीर: picture alliance / empics

पिछले दिनों जब भारतीय टीम के पूर्व तेज गेंदबाज प्रवीण कुमार ने इस बात का खुलासा किया कि वो डिप्रेशन की वजह से खुद को गोली मारने ही वाले थे तो पूरा खेल जगत अवाक रह गया. यही नहीं टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली भी इस मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या पर अपनी राय जाहिर कर चुके हैं. ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर ग्लेन मैक्सवेल मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों से उबरने के लिए कुछ दिनों का ब्रेक भी ले चुके हैं. समय समय पर ऐसी खबरें सामने आती रही हैं जब खिलाड़ी मानसिक रुप से दबाव और तनाव में आने के बाद पेशेवर सलाह लेते हैं या खुद को खेल से दूर करने पर मजबूर हो जाते हैं. देश की नुमाइंदगी, प्रदर्शन में निरंतरता, पेशेवर चुनौतियां और कामयाब होने का दबाव, ये चारों बातें खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं. कई बार इसे पेशेवर हैजार्ड या जोखिम भी कहा जाता है जो हरेक पेशे से जुड़ा होता है. ना केवल क्रिकेट बल्कि सभी खेलों मे खिलाड़ी इस परेशानी से दो-चार होते हैं. चाहे पहलवान हो, हॉकी खिलाड़ी या फिर महिला क्रिकेटर.

इन दिनों कोरोना जैसी महामारी भी खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल रही है. दुनिया भर के खिलाड़ी इस परेशानी से जूझ रहे हैं लेकिन कई खिलाड़ी ऐसे भी हैं जिन्होंने लॉकडाऊन जैसी चुनौती का डट कर सामना किया और कोविड-19 के दौर में सकारात्मक सोच को सबसे जरूरी उपाय बताया. जेवलिन थ्रो में भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करने वाले नीरज चोपड़ा अपने लॉकडाऊन के दिनों की बातें याद करते हुए बताते हैं कि रामायण और महाभारत ने उनमें सकारात्मकता लाने में मदद की. "सिर्फ हम नहीं पूरा वर्ल्ड इंफेक्ट हो रहा है, पूरे वर्ल्ड में ये परेशानी है. अपने आप को घर में रखकर घर पर ही ट्रेनिंग करो, फिटनेस का ध्यान रख सकते हैं. रामायण और महाभारत देख रहे हैं तो काफी अच्छा लग रहा है सभी को.” वहीं महिला फर्राटा रेस में 100 मीटर की चैंपियन दुती चंद ट्रेनिंग को पॉजिटिव रहने से जोड़ती हैं, "पॉजीटिव रखने के लिए एक ही रास्ता है कि थोड़ी बहुत घर में ही ट्रेनिंग कर रहे हैं.” साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार के सपोर्ट से आगे की तैयारी आसान हो जाएगी.

हॉकी कोच हरेन्द्र सिंहतस्वीर: privat

एक दूसरे से बातचीत

मानसिक रूप से खुद को सुदृढ़ बनाने के लिए अधिकांश खिलाड़ियों और कोचों का यही मत है कि आपसी बातचीत जैसा अचूक उपाय कोई नहीं है. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या से निपटने के लिए जरूरी है कि खिलाड़ी अपने परिवार, दोस्तों और खास तौर पर कोचों से निरंतर चर्चा करते हैं और अपनी मन की बात बताते रहें. भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कोच हरेन्द्र सिंह बताते हैं, "कोच बहुत बड़ा रोल अदा करता है, अगर कोच खिलाड़ियों को कहे कि आप हार भी जाएंगें तो भी मैं संभाल लूंगा और आप अपना 100 फीसदी दो, तो खिलाड़ी तनाव मुक्त हो जाते हैं. साथ ही अपने-अपने कोच, परिवार के लोगों, दोस्तों के साथ खुले मन से बातचीत करने की भी जरूरत होती है.” जिन संगी साथियों के साथ रोज ट्रेनिंग और अभ्यास के सत्र होते हैं उनकी भी भूमिका काफी बड़ी होती है. भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान अंजुम चोपड़ा बताती हैं, "चर्चा करना बेहद जरूरी होता है. क्योंकि बात करने से हरेक व्यक्ति अपना दृष्टिकोण रखता है जो चुनौतियों से निपटने में मदद करता है और जब असली मैच में ऐसे ही हालात सामने आते थे तो मैं आसानी से हैंडल कर लिया करती थी.”

टीम इंडिया के पूर्व विकेटकीपर दीप दासगुप्ता का भी मानना है कि उभरते खिलाड़ियों के सामने बचपन से ही उम्मीदों का पहाड़ खड़ा करना सही नहीं होता, साथ ही अपेक्षाएं भी संतुलित होना चाहिए. दीप दासगुप्ता कहते हैं, "बच्चों के लिए फैमिली और कोचों का रवैया बहुत अच्छा होना चाहिए. परिवार के लोगों का बर्ताव बहुत महत्वपूर्ण होता है. दबाव नहीं डालने से माहौल अच्छा रहता है, साथ ही कोच का ट्रीटमेंट भी बहुत अच्छा होना चाहिए... कोच ही खिलाड़ियों पर दबाव डालता है या उन्हें दबाव से मुक्त रखता है.”

कई बार मानसिक सुदृढ़ता किसी शख्स में नैचुरली ही आती है, उसे सिखाने की जरूरत नहीं होती. ये कहना है भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व टेस्ट खिलाड़ी अशोक मल्होत्रा का. अपने बचपन के दोस्त और तेज गेंदबाज कपिल देव की मिसाल देते हुए अशोक बताते हैं, "कपिल को कभी मैदान पर मैच प्रेशर का फर्क नहीं पड़ा, चाहे गेंदबाजी हो या बल्लेबाजी. उन्हें अपनी क्षमता पर बहुत भरोसा था.” अशोक अपने बचपन के दिनों का एक किस्सा याद करते हुए कहते हैं कि छोटे शहर का होने के बावजूद कपिल में बचपन से ही बहुत आत्मविश्वास था. "एक बार बचपन में हम दोनों एक ही साइकिल पर जा रहे थे, कपिल ने मुझसे कहा कि मैं तो भारत के लिए टेस्ट मैच खेल जाऊंगा.” कई मामलों में आत्मविश्वास ही मानसिक सुदृढ़ता की पहचान होता है.

क्रिकेट कमेंटेटर दीप दासगुप्तातस्वीर: privat

कोच की अहम भूमिका 

भारतीय रेलवे की कुश्ती टीम के कोच और अर्जुन अवार्ड विजेता कृपाशंकर पटेल के अनुभव भी कुछ ऐसे ही हैं. कृपाशंकर बताते हैं कि कोच की भूमिका निर्णायक होती है, "खिलाड़ियों के प्रदर्शन के सकारात्मक पहलुओं पर चर्चा और प्रेरणादायक बातें बताने से खिलाड़ी प्रोत्साहित होता है क्योंकि कैंप और अभ्यास के दौरान कोच ही खिलाड़ियों के साथ सबसे ज्यादा वक्त बिताते हैं और हर पहलू की बारीकियों की जानकारी कोच के अलावा किसी और को नहीं होती."

कई बार मुश्किल वक्त में पेशेवर मनोवैज्ञानिक की मदद काफी कारगर साबित हो सकती है. क्रिकेट खिलाड़ी भी समय-समय पर कैंप के दौरान पेशेवर मनोवैज्ञानिकों से बातचीत करते रहे हैं. अंजुम बताती हैं, "बैंगलोर स्थित नेशनल क्रिकेट एकेडमी में जब प्रैक्टिस करते थे तो वहां ये सारी सुविधाएं उपलब्ध होती थीं. लंबी अवधि के कैंप के दौरान डॉक्टर किंजल सूरतवाला के साथ बातचीत के एक या दो सत्र जरूर होते थे.” कुश्ती और हॉकी जैसे खेलों मे भी खेल मनोवैज्ञानिक कोचों की मदद से हरेक खिलाडी के लिए एक प्लान तैयार करते हैं जो कि आमतौर पर बड़े टूर्नामेटों से पहले लगने वाले नेशनल कैंपों में देखने को मिलता है.

इसके अलावा कई कोचों का मानना है कि प्रेरणादायी किताबें और महान खिलाड़ियों की जीवनी पढ़ने से भी सकारात्मक विचार आते हैं और मानसिक रुप से मुश्किल दिनों की चुनौतियों से निपटने के उपाय जानने में किताबें बहुत मदद करती हैं. भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कोच हरेन्द्र सिंह कहते हैं, "नतीजों या नाकामी के बारे में कभी नहीं सोचें. नाकामी सफलता की पहली सीढ़ी होती है, नाकामी से आपको पता लगगता है कि आखिरी गलती कहां हुई. इसमें कैसे सुधार करें और अगली स्टेप कैसे लें ये तय करें.”

एथलीट दुती चंदतस्वीर: Getty Images/AFP/J. Samad

मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी दबाव में तब आते हैं जब किसी भी बड़े टूर्नामेंट की तैयारी की जाती है. ऐसे में अच्छे प्रदर्शन करने का दबाव और अपेक्षाओं का ऊफान हमेशा ही बना रहता है लेकिन इस तनाव और दबाव को हैंडल करने का तरीका हर खिलाड़ी अपने स्तर पर खोज लेता है. दीप दासगुप्ता प्लानिंग को खेल की ट्रेनिंग का एक अहम हिस्सा बताते हैं, "प्रदर्शन में सफलता या असफलता में प्लानिंग की बड़ी जिम्मेदारी होती है. इसलिए प्लानिंग सही होती है तो चीजें सही होती है. ऐसे में फोकस खुद से हटकर प्लानिंग पर जाता है. और खिलाड़ी नतीजे के लिए प्लानिंग को ही जिम्मेदार मानता है. साथ ही इमोशनल बैलेंस रखना भी बहुत जरूरी है." दीप दासगुप्ता के मुताबिक जो शख्स अपनी निजी जिंदगी में जितने अलग-अलग चुनौतीपूर्ण हालातों का सामना करता है वो मानसिक रुप से उतना ही सुदृढ़ होता जाता है. क्रिकेट को 80 फीसदी मेंटल गेम कहा जाता है. जैसे फिजीकल फिटनेस के लिए जिम और नेट प्रैक्टिस करना जरूरी है वैसे मानसिक स्वास्थ के लिए भी अभ्यास होना चाहिए.

मानसिक दबाव और तनाव मौजूदा पेशेवर खेलों का हिस्सा बन चुका है. इस दबाव को झेलने और हैंडल करने के लिए हरेक खिलाड़ी का फार्मूला अलग-अलग होता है. जिस खिलाड़ी ने उस फार्मूले को हासिल कर लिया वो अत्याधिक दबाव में भी खुद को टूटने नहीं देता और चुनौतियों से कामयाबी के साथ निपटते हुए सफलता हासिल करता है.

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