पोलैंड में सालों तक पवन ऊर्जा का अनियंत्रित विकास होता रहा. उसकी वजह से जब हालात बिगड़ने लगे तो नए कानून बनाए गए. लेकिन उससे पवन ऊर्जा का विकास रुक गया. अब देश में बामुश्किल ही टरबाइनों का निर्माण हो पा रहा है.
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बाल्टिक तट पर बसे चिशोवो गांव में चलने वाली समुद्री बयार और मानुफक्टुरा सिएस्टा कैफे में बिकने वाले स्वादिष्ट चीज केक का लुत्फ उठाने वाले सैलानी जानते हैं कि वो पोलैंड की एक बड़ी प्यारी जगह में हैं. लेकिन कैफे से ऊंची और सड़क से महज 10 फुट दूर, विशाल पवनचक्की सारा मज़ा किरकरा कर देती है.
महज कुछ सौ मीटर के दायरे में, तटीय लैंडस्केप पर जहां तहां, अटपटे ढंग से दर्जन और टरबाइनें खड़ी कर दी गई हैं. ये उन विंड फार्मों का हिस्सा हैं जो 2001 और 2013 में पूरे कर लिए गए थे. लगता है कि सड़कों और मकानों से किसी तरह की दूरी रखने के बारे में जरा भी ध्यान नहीं दिया गया. इन विंड फार्मों का संचालन करने वाली कंपनियों, एनर्जिया इको और एनर्को का दावा है कि उन्हें संबद्ध अधिकारियों की ओर से जरूरी निर्माण परमिट हासिल हुआ है.
टरबाइन निर्माण पर प्रतिबंध
इस किस्म के अनियंत्रित टरबाइन विकास पर रोक लगाने के लिए पोलैंड में सत्ताधारी रूढ़िवादी लॉ एंड जस्टिस पार्टी (पीआईएस) की सरकार ने 2016 में एक कानून पास किया था जिसके तहत तमाम नयी पवन चक्की प्रोजेक्टों के लिए "10एच नियम" लागू कर दिया गया.
इस कानून के निर्देशानुसार, नजदीकी मकान या संरक्षित क्षेत्र से पवनचक्की की दूरी उसकी ऊंचाई की 10 गुना रखनी होगी. उदाहरण के लिए, अगर पवन चक्की 200 मीटर (656 फुट) ऊंची है तो वो नजदीकी मकान या संरक्षित क्षेत्र से कम से कम दो किलोमीटर दूर बनाई जानी चाहिए.
टरबाइनों के निर्माण पर कानूनी अंकुश
पवन चक्कियों को नापसंद करने वाले या उन्हें स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए नुकसानदायक मानने वाले लोगों ने ऐसे प्रतिबंधों का स्वागत किया है. ऐसे लोग पोलैंड में भी हैं और दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी. लेकिन पवन चक्कियों के संचालक और अक्षय ऊर्जा के समर्थक मानते हैं कि 10एच रूल एक लिहाज से घरेलू पवन ऊर्जा विकास का खात्मा है. पोलैंड के विंड एनर्जी एसोसिएसन के अध्यक्ष यानुश गायोविएत्स्की ने कहा कि कानून की वजह से पोलैंड का सिर्फ 0.28 प्रतिशत इलाका ही टरबाइनों के निर्माण के लिए उपलब्ध है.
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पोलैंड के एक थिंक टैंक फोरम इनर्जी से जुड़ीं अलेक्जांड्रा जियादकीविच कहती हैं, "मौजूदा कानून के तहत एक तरह से नयी पवनचक्कियों के निर्माण के लिए कोई जमीन ही नहीं बची है." वो ये भी कहती हैं कि निर्माणाधीन टरबाइनें 10एच कानून के अमल में आने से पहले जारी हुए परमिटों के आधार पर बनाई जा रही हैं, यानी 2016 से पहले. वो कहती हैं, "पोलैंड को नयी ऊर्जा की ओर जाने के लिए बबुत सारी नयी पवनचक्कियां चाहिए और जल्दी से जल्दी चाहिए."
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विकास के लिए समझौते का रास्ता
पिछली जनवरी में, संसद में इस कानून के संशोधन के लिए एक बिल भी पेश किया गया था. उम्मीद थी कि ऐसा कोई समझौता निकाल लिया जाएगा जिससे पवनचक्की कंपनियों को मदद मिल सके. संशोधन के तहत, टरबाइनों और मकानों या संरक्षित क्षेत्रों के बीच, कानूनन निर्धारित दूरी को घटाकर 500 मीटर करने का प्रस्ताव था. पोलिश विंड एनर्जी एसोसिएशन के मुताबिक ऐसा हो जाए तो इससे देश के 7 फीसदी भूक्षेत्र में टरबाइनें खड़ी की जा सकेंगी. लेकिन संसद में इस पर कोई सहमति नहीं बनी. अब 700 मीटर दूरी के प्रस्ताव पर चर्चा कराने की योजना है.
अक्षय ऊर्जा निर्माता कंपनी, केयर ग्रुप से जुड़े दामियान बाबका ने बताया कि प्रस्तावित 500 मीटर सीमा के लागू न हो पाने से पवन ऊर्जा उत्पादकों को तगड़ा झटका लगा है. उनकी कंपनी को संशोधन के पास हो जाने की बड़ी उम्मीद थी. बाबका कहते हैं, "700 मीटर की दूरी कुछ प्रोजेक्टों के लिए लागू की जा सकती है लेकिन इससे हरित ऊर्जा उत्पादन क्षमता बहुत ही कम रह जाएगी."
करीब 300 की आबादी वाले खूबसूरत चिशोवो गांव के निवासियों ने पिछली मर्तबा एक संगठन बनाया था. उसका ध्यान पवन ऊर्जा उत्पादन के अनियंत्रित विकास से पड़ने वाले प्रभाव पर था. 1998 से 8.8 फीसदी लोग, गांव छोड़कर जा चुके हैं और जो वहीं रह गए हैं, उन्हें कानून पर सख्ती से अमल के मामले में अधिकारियों पर जरा भी भरोसा नहीं रहा.
उदार, लचीले नियमों का नकारात्मक प्रभाव
चिशोवो में 10एच नियम को भारी समर्थन हासिल है. गांव के लोगों ने इसके सख्त अमल का जोरदार स्वागत भी किया था. गांव ने बाजार उदारीकरण का बुरा पहलू देखा है और नियमों के और लचीले सिस्टम का हाल भी. उदाहरण के लिए, टरबाइनों के ठीक नीचे बहुत सारे अनधिकृत कैंप और झोपड़ियां डाल दी गई. उनके लिए सामने समन्दर का खूबसूरत नजारा बेशक है लेकिन बेकार गंदे पानी के ट्रीटमेंट और कचरा जमा करने का कोई जरिया नहीं.
गांववालों को नहीं पता कि किसने कब क्या बना डाला. वे इतना ही जानते हैं कि वहां रह रहे लोग आगे नहीं बढ़े हैं. लोकल एसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में से एक बीनर्ट परिवार का घर, एक पवनचक्की से महज 450 मीटर दूर है. बीनर्ट परिवार का मानना है कि टरबाइनों के रोटरों के शोर और उनकी वजह से रोशनी में बदलाव ने उनकी सेहत और तंदुरुस्ती पर खराब असर डाला है.
परिवार के मुखिया माचेइ बीनर्ट पुख्ता तौर पर पोलैंड में अक्षय ऊर्जा के विकास के पक्ष में हैं. उनके परिवार की रिहाइशी और कमर्शियल इमारतों की छतों पर कई सारे सौर पैनल लगे हैं और वे बड़ी मात्रा में सौर ऊर्जा बेचते भी हैं. बीनर्ट कहते हैं, "अक्षय ऊर्जा पर काम चलता रहे, इसके लिए स्पष्ट नियमों की दरकार है, लेकिन टरबाइनों से सीधे तौर पर प्रभावित लोगों के बिना आप वे नियम नहीं बना सकते."
पवन ऊर्जा का भविष्य
बिजली उत्पादन में हवा की अहमियत बढ़ती ही जा रही है. बड़ी बड़ी टरबाइनें यानी पवनचक्कियां बनने लगी हैं- ज्यादा ऊंची और ज्यादा कारगर. दुनिया में करीब सात प्रतिशत बिजली पवन ऊर्जा से मिल ही रही है. तो आगे क्या?
तस्वीर: Jan Oelker
तब और अब
पवन ऊर्जा का इस्तेमाल सदियों से होता रहा है. उससे पानी खींचा जाता है, अनाज पीसा जाता है, लकड़ी काटी जाती है और जहाजों को उनके ठिकानों तक वही पहुंचाती हैं. यूरोप में 19वीं सदी के दौरान सैकड़ों हजारों पवनचक्कियां लगाई गई थीं. नीदरलैंड्स के लोग उसका इस्तेमाल अधिकतर दलदल को सुखाने में करते हैं. आज पवन ऊर्जा से साफ बिजली पैदा होती है. वे जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं.
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कोयले को मात देती हवा
पवनचक्कियां अक्सर सबसे सस्ती ऊर्जा पैदा करती हैं. नये कोयले या एटमी ऊर्जा संयंत्र से मिलने वाली बिजली आज दो से तीन गुना ज्यादा महंगी पड़ती है जबकि पवन ऊर्जा विशेष रूप से सस्ती है. भविष्य के अनुमानों के मुताबिक पवन ऊर्जा की लागत और गिरेगी- यानी 2030 तक, अच्छे हवादार ठिकानों में महज 0.04 डॉलर प्रति किलोवॉट घंटा की लागत मिलेगी.
तस्वीर: picture alliance / Zoonar
20 गुना अधिक बिजली
उत्तरी जर्मनी में विल्हेल्मशाफेन के पास लगाई गई एक विशाल पवनचक्की 6,000 किलोवॉट बिजली पैदा करती है और वहां के 10,000 लोगों की घरेलू बिजली की जरूरतों को पूरा करती है. 25 साल पुराने मॉडलों से सिर्फ 500 किलोवॉट ही मिल पाती थी- करीब 500 लोगों के लिए उतनी बिजली पर्याप्त थी. आधुनिक टरबाइनें अब आसमान में 180 मीटर तक ऊंची उठी रहती हैं. जितनी ऊंची होंगी उतनी हवा खींचेंगी.
तस्वीर: Ulrich Wirrwar/Siemens AG
समंदर में धंसे विशाल डैने
समंदर में हवा ज्यादा भरोसेमंद और ताकतवर होती है. दुनिया की कुल पवन ऊर्जा का करीब पांच फीसदी हिस्सा, तट पर बने पवनचक्की पार्कों से आता है. जैसे ये नीदरलैंड्स के तट पर बना एक पवन पार्क है. ऐसी टरबाइनों से करीब 10,000 किलोवॉट बिजली मिल जाती है. 2025 से उनकी क्षमता 15,000 किलोवॉट तक बढ़ने का अनुमान है. तब 40,000 से ज्यादा लोगों को बिजली मिल सकती है.
तस्वीर: Siemens Gamesa
सबसे आगे है चीन
दुनिया की तमाम नयी पवनचक्कियों में से आधी इस समय चीन में स्थापित हैं. अकेले 2020 में देश ने 52 गीगावॉट क्षमता वाली पवनचक्कियां निर्मित की हैं. ये 50 एटमी ऊर्जा संयंत्रों से मिलने वाली बिजली के बराबर है. पवन विस्तार में अग्रणी देश डेनमार्क और जर्मनी हैं. डेनमार्क अपने यहां बिजली की करीब 50 फीसदी मांग पवन ऊर्जा से पूरी करता है. जर्मनी को 25 फीसदी बिजली पवन ऊर्जा से मिलती है.
पूरी दुनिया में पवन ऊर्जा उद्योग में करीब 13 लाख लोग काम करते हैं. इनमें से साढ़े पांच लाख लोग चीन में, एक लाख दस हजार लोग अमेरिका में, 90 हजार जर्मनी में, 45 हजार भारत में और 40 हजार ब्राजील में हैं. पवन चक्कियां लगाना और चलाना, कोयले से हासिल ऊर्जा के मुकाबले ज्यादा महंगा पड़ता है. लिहाजा पवन ऊर्जा का विस्तार ज्यादा से ज्यादा नौकरियां पैदा कर रहा है.
तस्वीर: Paul Langrock/Siemens AG
नागरिक भी चाहते हैं लाभ कमाना
सघन आबादी वाले इलाकों में पवन ऊर्जा को लेकर अक्सर विरोध देखा जाता है. लेकिन ये धारणा बदल सकती है अगरचे नागरिकों को भी स्थानीय परियोजनाओं में शामिल होने का मौका मिले. जैसे, जर्मनी के फ्रैंकफुर्ट शहर के नजदीक श्टार्कनबुर्ग में बहुत सारे निवासी पवन ऊर्जा के विस्तार के पक्ष में हैं. वे नयी टरबाइनों में निवेश कर रहे हैं. और बिजली बेचकर लाभ भी कमा रहे हैं.
तस्वीर: Energiegenossenschaft Starkenburg eG
पाल जहाजों से डीजल की बचत
अतीत में, पाल नौकाओं और जहाजों से दुनिया भर में माल की ढुलाई होती थी लेकिन फिर डीजल इंजन आ गए. आज आधुनिक नौचालन फिर से हरकत में आ गया है. हवा के अतिरिक्त धक्के के साथ मालवाहक जहाजों की ऊर्जा खपत 30 फीसदी तक कम की जा सकती है. इसके अलावा जहाज भविष्य में हरित हाइड्रोजन का इस्तेमाल ईंधन के रूप में कर पाएंगे.
तस्वीर: Skysails
पानी में तैरती पवनचक्कियां
पवन ऊर्जा के लिए समुद्र में पर्याप्त जगह है. लेकिन कई जगहों पर पानी इतना गहरा होता है कि समुद्र तल पर नींव नहीं पड़ सकती. इसका विकल्प है बुईज़ यानी पानी की सतह पर तैरते उत्प्लवों पर टरबाइनें रख दी जाती हैं. ये उत्प्लव समुद्र तल से लंबी कड़ियों के सहारे बांधे जाते हैं. तैरती पवनचक्कियां यूरोप और जापान में पहले से हैं. ये तूफानों में भी स्थिर रहती हैं.
तस्वीर: vestas.com
घरों के लिए पवन ऊर्जा
लंदन में 147 मीटर ऊंची स्ट्राटा एसई1 नाम की गगनचुंबी इमारत में लगीं टरबाइनें भी ध्यान खींचती हैं. लेकिन ऐसे रूफटॉप इन्स्टॉलेशन आमतौर पर किफायती नहीं होते क्योंकि शहरों में हवा अक्सर काफी कमजोर रहती है. छतों पर तो सौर प्लेटें ही ज्यादा कारगर साबित होती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Global Warming Images/A. Cooper
सबसे अधिक पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा
तीन से 11 महीने में पवनचक्कियां उतनी ऊर्जा पैदा कर देती हैं जितनी उन्हें बनाने में खर्च होती है. इस बिजली उत्पादन की प्रक्रिया में सीओटू तो नहीं निकलती लेकिन आसपास का सूरतेहाल बदल जाता है. दूसरे ऊर्जा स्रोतों की तुलना में, अब भी पवन ऊर्जा का पर्यावरणीय ग्राफ बेहतर है. जर्मनी की संघीय पर्यावरण एजेंसी के मुताबिक पवनचक्कियों की पर्यावरणीय लागत, कोयले की ऊर्जा से 70 गुना कम है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Tack
सौर ऊर्जा की जगह क्या है?
पवन और सौर ऊर्जा संयंत्र मिलकर दुनिया की ऊर्जा जरूरतों को पूरी कर सकते हैं. पवनचक्कियां 10 किमी प्रति घंटा की रफ्तार वाली हवाओं से बिजली पैदा करती हैं. तीखी धूप वाले इलाकों में सौर प्लेटें सबसे सस्ता ऊर्जा स्रोत हैं. इक्वेटर से और उत्तर और दक्षिण की ओर, पवन और सौर ऊर्जा की मिलीजुली जरूरत होती है. हवादार इलाकों में खासकर, पवनचक्कियां ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत बन सकती हैं.