पौधों में ना तो दिमाग होता है और ना ही आंखें. फिर वे कैसे इस बात का पता लगा लेते हैं कि प्रकाश किस तरफ है और बढ़ने के लिए उसके मुताबिक घूम जाते हैं. वैज्ञानिकों ने इस रहस्य से पर्दा उठा दिया है.
वैज्ञानिकों को पता चल गया है कि पौधे प्रकाश की दिशा में क्यों बढ़ते हैंतस्वीर: Jerry Jackson/Zumapress/picture alliance
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भारतीय वैज्ञानिक जेसी बोस ने यह बात बहुत पहले ही बता दी थी कि पेड़-पौधों में भी जान है और वे भी सांस लेते हैं. लेकिन यह रहस्य ही बना हुआ था कि पौधे प्रकाश का पता कैसे लगाते हैं.
अब वैज्ञानिकों ने साइंस पत्रिका के नवंबर 2023 के अंक में छपे एक अध्ययन में इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश की है. वैज्ञाानिक जानते हैं कि पौधों के विकास के लिए धूप बहुत जरूरी है. इसीलिए वे प्रकाश की दिशा की तरफ घूम जाते हैं. सूरजमुखी का पौधा इसकी सबसे अच्छी मिसाल है.
इतनी गर्मी कि फोटोसिंथेसिस बिना मर सकते हैं पेड़
फोटोसिंथेसिस, पृथ्वी पर मौजूदा ज्यादातर जीवन के लिए बेहद अहम है. क्या हो अगर पत्तियां ये कर ही ना पाएं? धरती के एक बड़े हिस्से में इतनी गर्मी पड़ रही है कि कुछ पौधों की पत्तियां शायद फोटोसिंथेसिस कर ही नहीं सकेंगी.
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क्या है फोटोसिंथेसिस
सूरज की रोशनी में पौधे, हवा और मिट्टी से सीओटू और पानी लेते हैं. पौधों की कोशिकाओं में जाकर पानी ऑक्सीडाइज होता है और सीओटू कम हो जाता है. इस क्रिया में पानी, ऑक्सीजन में बदल जाता है और सीओटू बदलता है ग्लूकोज में. फिर पौधा ऑक्सीजन वातावरण में छोड़ देता है और ऊर्जा को ग्लूकोज मॉलिक्यूल्स में जमा कर लेता है.
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पौधों को कहां से मिलता है हरा रंग
पौधों की कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होता है, जो सूरज की रोशनी से मिलने वाली ऊर्जा जमा करता है. इसके थाइलाक्लॉइड मेंमब्रेन्स में रोशनी को सोखने वाला क्लोरोफिल नाम का एक पिगमेंट होता है. इसी की वजह से पौधों को मिलता है हरा रंग.
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पेड़ों की भी गर्मी सहने की सीमा है
फोटोसिंथेसिस करने की पत्तियों की क्षमता, तापमान के एक सीमा से पार होने पर नाकाम होने लगती है. यानी जब पेड़ बहुत गरम हो जाते हैं, तो पत्तियों में ऊर्जा उत्पादन की मशीनरी तपकर खत्म होने लगती है. ऊष्णकटिबंधीय इलाकों के पेड़ों में तापमान की यह सहनशक्ति तकरीबन 46.7 डिग्री सेल्सियस है.
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क्या कहता है नया शोध
नेचर पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण अमेरिका से लेकर दक्षिणपूर्व एशिया के ऊष्णकटिबंधीय जंगलों में इतनी गर्मी हो रही है कि वहां कई पत्तियां शायद फोटोसिंथेसिस करने की हालत में ना रहें.
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40 डिग्री सेल्सियस के भी पार
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर ऊपर स्थित अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर लगे थर्मल सैटेलाइट सेंसरों से लिए गए तापमान के आंकड़े इस्तेमाल किए. उन्होंने इसे लीफ-वॉर्मिंग प्रयोगों से जमा किए आंकड़ों से मिलाया. वैज्ञानिकों ने एक्सट्रीम तापमान पर गौर किया. पाया गया कि फॉरेस्ट कैनपी का औसत तापमान, 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा. लेकिन कुछ मामलों में यह 40 डिग्री सेल्सियस के पार भी चला गया.
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मर सकते हैं पेड़
रिपोर्ट के मुताबिक, अभी 0.01 फीसदी पत्ते तापमान की सीमा रेखा पार कर रहे हैं. इस सीमा के बाहर फोटोसिंथेसिस करने की उनकी क्षमता दम तोड़ देती है. यानी, पत्ते और पेड़ की मौत हो सकती है.
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ग्लोबल वॉर्मिंग
0.01 फीसदी पत्तों का आंकड़ा अभी कम मालूम होगा. लेकिन तापमान तो लगातार बढ़ रहा है. सबसे गर्म जुलाई! अब तक का सबसे गर्म जून! ऐसे में ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के ऊष्णकटिबंधीय खतरों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
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ऊष्णकटिबंधीय जंगलों की अहमियत
पृथ्वी के करीब 12 फीसदी इलाके में ऊष्णकटिबंधीय जंगल हैं. इतने से इलाके में पौधों और जानवरों की तीन करोड़ से ज्यादा प्रजातियां हैं. यानी, पृथ्वी पर मौजूद वन्यजीवन का आधा हिस्सा और पेड़-पौधों की कम-से-कम दो तिहाई विविधता. माना जाता है कि वर्षावनों में तो अब भी सैकड़ों प्रजातियां हैं, जिनका हमें पता नहीं.
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जल चक्र: पानी-भाप-बादल-बारिश
ये जंगल पृथ्वी के पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए अहम हैं. ये हमें ऑक्सीजन देते हैं. सीओटू सोखते हैं. ये पानी का चक्र भी बनाए रखते हैं. ये वाष्पन क्रिया से वातावरण को पानी और नमी मुहैया करते हैं, जिससे बादल बनते हैं, बारिश होती है और इस तरह पानी का एक चक्र घूमता रहता है. ऐसा नहीं कि एक जगह के जंगल से उसी जगह बारिश होती हो. इस बारिश से नदियों, झीलों और सिंचाई व्यवस्थाओं को खुराक मिलती है.
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धूप की दिशा में बढ़ने की पौधों की इस प्रक्रिया को फोटोट्रोपिज्म कहते हैं. प्रकाश को केंद्र में रखकर होने वाली इस गतिशीलता का पता सबसे पहले चार्ल्स डार्विन और उनके बेटे ने तब लगाया, जब 19वीं सदी खत्म होने को थी. उन्होंने पाया कि जब कोई पौधा ऐसे अंधेरे कमरे में रखा हो जहां एक तरफ एक मोमबत्ती ही जल रही है तो पौधा रोशनी की तरफ झुक जाता है.
क्या पौधे इंसानों की तरह देखते हैं?
फोटोट्रोपिज्म में फोटोरिसेप्टर मदद करते हैं. साइंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के लिए प्रमुख रिसर्चर क्रिस्टियान फांकहॉयजर ने कहा कि पौधों में फोटोरिसेप्टर कुछ-कुछ वैसे ही काम करते हैं जो इंसानों और दूसरे जानवरों की आंखों में पाए जाने वाले रिसेप्टर करते हैं. लेकिन इंसानों के रिसेप्टरों और पौधों के 'देखने वाले' रिसेप्टरों में कुछ अंतर भी हैं.
प्रकाश का स्रोत ऊपर हो तो पौधे सीधे बढ़ते हैं और यदि बगल से आ रहा हो तो उसी ओर बढ़ते हैंतस्वीर: Martina Legris/UNIL
लुजान यूनिवर्सिटी के जुड़े फांकहॉयजर कहते हैं कि पहला अंतर तो यह है कि इंसानों और अन्य जानवरों के देखने वाले रिसेप्टर सिर्फ आंखों तक ही सीमित होते हैं जबकि पौधे तो पूरी तरह ऐसे रिसेप्टरों से ढके होते हैं. इसका मतलब है कि वे हर दिशा से देख सकते हैं. फांकहॉयजर ने डीडब्ल्यू के साथ खास बातचीत में कहा कि इस तरह कहा जा सकता है कि पौधे के पूरे शरीर पर आंखें होती हैं.
दूसरा अंतर यह है कि इंसान और दूसरे जानवर साफ-साफ छवि देख सकते हैं, वहीं पौधे सिर्फ प्रकाश की मौजूदगी का ही पता लगा सकते हैं, उसकी मात्रा, रंग, अवधि और दिशा के साथ.
पौधे प्रकाश की दिशा का कैसे पता लगाते हैं?
फांकहॉयजर और उनकी टीम ने कुछ खास फोटोरिसेप्टरों के काम करने के तरीके की पड़ताल की जिन्हें फोटोट्रोपिंस कहा जाता है. यही प्रकाश की दिशा पर नजर रखते हैं.
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फांकहॉयजर ने बताया कि फोटोट्रॉपिंस एक ऐसे सोलर पैनल की तरह है जो सूरज की स्थिति पर नजर रखता है ताकि उसे ज्यादा से ज्यादा फोटोन मिले और सोलर एनर्जी को इलेक्ट्रिक एनर्जी में बदलने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा सके.
हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि फोटोट्रोपिंस 'देखते' हैं कि प्रकाश किस दिशा से आ रहा है, लेकिन उन्हें अब भी सटीकता से यह नहीं पता चला है कि फोटोट्रोपिंस के भीतर वो कौन सी चीज है जो आंख की तरह काम करती है.